Wednesday, 5 October 2022

अपराजित योद्धा : बिनोय कुमार दास

बिनोय कुमार दास 
(6 नवम्बर, 1949--4 अक्टूबर, 2022)
साहित्य साधक अपनी जड़ों को इतना विस्तार दे जाते हैं कि मौत के पंजे कभी भी उन्हें अपनी गिरफ्त में नहीं ले पाते। 

 संसार में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें जिन्दगी चाहे जितना डरा-धमकाकर रखे, मौत लेशमात्र भी डरा नहीं पाती है। ऐसे लोग में एक मैंने मधुदीप को देखा है और दूसरे हैं उड़िया और हिन्दी के बीच साहित्य-सेतु बन चुके बालासोर, उड़ीसा के निडर योद्धा—बिनोय कुमार दास जी।

श्री बिनोय कुमार दास से पहले परिचय के रूप में 24 सितंबर 2020 को मैसेंजर पर प्राप्त उनका एक संदेश मेरे मैसेंजर पर पड़ा है। संदेश उन्होंने अंग्रेजी में लिखा, जिसका अर्थ था—‘ओडिशा से मैं बिनोय कुमार दास, एक सेवानिवृत्त व्यक्ति। मैंने ‘दृष्टि’ के पृष्ठ 59 पर प्रकाशित आपकी लघुकथा ‘लगाव’ का उड़िया में अनुवाद किया है जोकि उड़िया के एक बहु-प्रसारित दैनिक अखबार में छपा है। मूल लेखक के तौर पर आपका नाम भी उड़िया-अनुवाद के साथ छपा है।’

साथ में उन्होंने उड़िया में प्रकाशित ‘लगाव’ की फोटो क्लिप भी भेजी थी और लिखा था—‘उड़िया में इसको ‘अदृश्य आकर्षण’ शीर्षक दिया गया है।’

आगे उन्होंने लिखा—‘आपके सूचनार्थ यह भेज रहा हूँ। अगर अच्छा लगे, तो कृपया सूचित करें।’

अच्छा न लगने का सवाल ही पैदा नहीं होता था। अपने इस संदेश के साथ उन्होंने उड़िया अनुवाद की प्रकाशित क्लिप और ‘दृष्टि’ में प्रकाशित ‘लगाव’ के ऊपरी अंश की फोटो भी भेजी थी। ‘लगाव’ के अंश की फोटो देखने पर उनकी संतुलित कार्यपद्धति का पता चलता है। उदाहरणार्थ, रचना के ऊपर लिखे मेरे नाम पर उन्होंने ‘राइट’ का चिह्न लगाया, साथ ही अंग्रेजी में लिखा—‘ट्रांसलेटेड ऑन 15-1-20 (यह तिथि 15-9-20 भी हो सकती है)’ और नीचे अपना हस्ताक्षर किया। हिन्दी पाठ में उन्होंने ‘मसनद’ पर भी एक निशान लगाया हुआ है, जिसका तात्पर्य मेरे अनुसार, यह रहा होगा कि ‘मसनद’ का समानार्थी शब्द उड़िया में तलाशना है।

मेरी लापरवाही देखिए, कि उनके उक्त संदेश को मैंने 24 जनवरी 2022 को पढ़ा यानी 1 वर्ष 4 माह बाद; और तभी उनको धन्यवाद भी ज्ञापित कर पाया।

बाद में, 4 अप्रैल, 2022 को इसी लघुकथा के अनुवाद को उन्होंने बालासोर और भुवनेश्वर से प्रकाशित उड़िया दैनिक ‘आजिकालि’ में प्रकाशित कराकर पुन: सूचित किया तथा उसकी फोटोप्रति भी मैसेंजर पर भेजी।

उसी दिन मैंने अपना कोई लघुकथा संग्रह भेजने के लिए उनसे उनका डाकपता माँगा। उन्होंने विनम्रतापूर्वक कहा—‘आप वरिष्ठ लघुकथाकार हैं। आपकी रचनाएँ इन दिनों लिखी जा रही लघुकथाओं से नितांत अलग होती हैं। यहाँ के पाठक आपकी लघुकथाएँ पसंद करते हैं। संग्रह भेज देंगे तो आपकी कुछ अन्य लघुकथाओं का उड़िया-अनुवाद करने में आसानी हो जाएगी।’

24 अप्रैल, 2022 को उन्होंने मुझसे लघुकथाकार अरुण सोनी का नम्बर माँगा, जोकि मैं नहीं दे सका।

मेरी नालायकी और लापरवाही देखिए कि 4 अप्रैल 2022 की अपनी-उनकी बातचीत को मैं भूल ही गया। अपना कोई संग्रह उन्हें नहीं भेज पाया। इस बीच संतोष सुपेकर आदि अनेक मित्रों ने उनके अस्वस्थ होने की पोस्ट फेसबुक पर डाली, उन पर भी सामान्य अफसोस ही जाहिर करके इतिश्री मान ली, संवाद नहीं किया।

गत 21 सितंबर को मैसेंजर में संदेश भेजकर उन्होंने मेरा वाट्सएप नम्बर माँगा। कहा कि—‘मैंने आपकी ‘कुंडली’ शीर्षक लघुकथा का उड़िया अनुवाद किया है। मैं उसकी टाइप की हुई प्रति आपके उपयोग हेतु भेज दूँगा।’

तब पहली बार मैंने पूछा—‘आपका स्वास्थ्य अब कैसा है?’ कहा—‘ईश-कृपा से आप स्वस्थ रहें।’ इसी के साथ अपना वाट्सएप नम्बर और ईमेल आईडी उन्हें दिया। उन्होंने वाट्सएप पर ‘कुंडली’ के उड़िया अनुवाद की फोटोप्रति मुझे भेजी।

स्वास्थ्य संबंधी मेरे सवाल के जवाब में उन्होंने लिखा—‘(पूछने के लिए) धन्यवाद… मैं अभी भी बिस्तर पर पड़ा हूँ… बीमारी कुछ ऐसी है कि… ठीक होने की कोई आशा नहीं है… केवल दिन गिन रहा हूँ… आखिरी साँस का इंतजार कर रहा हूँ…।’

ऐसी हालत में ‘अफसोस’ कितनी मुश्किल से जाहिर हो पाता है, यह मैंने महसूस किया। मैंने लिखा—‘पहली बार ऐसी बीमारी के बारे में सुन रहा हूँ। लेकिन ईश्वर सर्वशक्तिमान है और उस पर मुझे विश्वास है।’ तभी, अपना संग्रह भेजने का अपना पुराना वादा मुझे याद आया। मैंने लिखा—‘अपने दो संग्रह आपको भेज रहा हूँ।’

‘धन्यवाद… मेहरबानी।… मैं मानसिक रूप से स्वस्थ हूँ। बिस्तर में पड़ा-पड़ा अच्छी तरह पढ़ता और लैपटॉप का इस्तेमाल कर लेता हूँ। इससे मुझे मानसिक शान्ति और संतोष की प्राप्ति होती है।’

साथ ही उन्होंने अपना डाकपता पुन: मैसेंजर पर लिखा। इस बार मैंने लापरवाही नहीं बरती। अपने दो लघुकथा संग्रह ‘पीले पंखों वाली तितलियाँ’ और ‘जुबैदा’ उसी दिन रजिस्टर्ड डाक से भेज दिए। 28 सितंबर को उन्होंने सूचित किया—‘किताबें मिल गयी हैं।’

‘उम्मीद है, अच्छी लगेंगी।’ मैंने लिखा।

जवाब आया—‘नि:संदेह… आप निहायत संवेदनशील हैं और पाठक के दिल में सीधे उतरते हैं… मैं पहले आपकी बहुत-छोटी रचनाओं का अनुवाद करूँगा क्योंकि (रोग के निदान हेतु) बार-बार की जाँच-पड़ताल के कारण कम्प्यूटर का इस्तेमाल नहीं कर पाता हूँ। दो साल से अधिक समय से बिस्तर पर हूँ… जो भी हो, आपकी लघुकथाएँ अब मेरी प्रेरणा हैं (जीने हेतु प्रेरित करेंगी)।’

29 सितम्बर को उन्होंने ‘रचनाशील विपक्ष’ का उड़िया-अनुवाद मुझे वाट्सएप कर दिया तथा 30
सितम्बर को ‘भरोसा और ईमानदारी’ का। 

सोमवार की रात 12 बजकर 07 मिनट पर (यानी 4 अक्टूबर, 2022 दिन मंगलवार को प्रात: 00:07 बजे, अपने निधन से मात्र 23 घंटे पूर्व) मेरे वाट्सएप पर उनका भेजा एक लिंक मिला जिसका जवाब मैंने उसी रात 12 बजकर 54 मिनट पर उन्हें भेजा। 

4 अक्टूबर को ही किसी समय उन्होंने लिखा—‘निसंदेह… किसी भी तरह की रचनात्मकता आपको ऐसे अन्तहीन आनन्द से भर देती है जैसा संसार में कोई अन्य शायद न दे सके… रचनात्मकता व्यक्ति को न केवल व्यस्त रखते हुए समय बिताने में मदद करती है बल्कि निकट भविष्य में आपके कार्य के रूप में आपको सुखद सपने भी दिखाती है।

बिस्तर पर पड़ा मैं… जब अपनी किताबों और लैपटॉप में… मोबाइल में… नेबुला और ऑक्सीजन लगवाने में मुब्तिला रहता हूँ… मेरी पत्नी अपने आप को व्यस्त रखती है… वह मस्तिष्क के अद्भुत कलात्मक विचारों को सुई और रंगीन धागों… (क्रोशिया कढ़ाई के) फ्रेम… सिलाई मशीन के जरिये नयनाभिराम चीजों में तब्दील करती है।

आज मेरे पैन आदि रखने के उसने यह मिनि बैग बनाया है। (सान्त्वना द्वारा 4-10-2022 को लिखा गया)

No doubt....creativity of any kind job in you will fetch you immence pleasure that can perhaps nothing in this world can give.....it not only engages one to spend time smoothly but shows a brighter dream with a colourful result in near future of your ensuing job.

While on bed.....I am busy with books...lap tap...mobile ....nebulisation ...oxygen...

my Mrs. keeps herself with niddle...colourful thread...frame..sewing machine with fantastic ideas in mind to create something eye catchers product.

Today just completed this mini bag for keeping my pen etc....

#prepared by SANTWANA. 4.10.22

मैं नत-मस्तक हूँ साहित्य के उस सच्चे साधक के सामने जिसके लिए भाषा कोई सीमा नहीं थी और नितांत दुर्दमनीय रोग जिसकी साधना और सेवा भाव के बीच कोई बाधा नहीं खड़ी कर पाया। हिन्दी रचनाकारों को उड़िया रचनाकारों तक पहुँचाने का श्रमसाध्य कार्य उन्होंने अंतिम साँस तक किया, मुझे प्राप्त उनका वाट्सएप संदेश इसका प्रमाण है।

        ॥बार-बार… बार-बार नमन॥  

3 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

वंदन

Anonymous said...

सच में वे एक महान साहित्यिक योद्धा थे। 2 अक्टूबर को उन्होंने मेरी लघुकथा "लेनदेन" का अनुवाद भेजा था। उन्होंने बताया था कि वे जल्द ही मेरी लघुकथा "धंधेबाज" का अनुवाद करेंगे। ....एक महान साहित्यिक योद्धा को नमन...

Anonymous said...

मन बेहद व्यथित है 😞