Tuesday, 24 June 2025

चरित्र-रचना की सूक्ष्मता : काले दिन / डॉ. शोभा जैन


इंदौर से प्रकाशित साप्ताहिक ‘अग्निधर्मा’ (अंक 25जून-1जुलाई 2025, पृष्ठ 5) के 'अग्निधर्मा:पुस्तक चर्चा' स्तम्भ में डॉ॰ शोभा जैन द्वारा लिखित ‘काले दिन’ की विस्तृत समीक्षा प्रकाशित हुई है; तथापि डॉ॰ शोभा जैन ने अपनी ओर इसे 'संक्षिप्त चर्चा' कहा है। उनके आभार सहित प्रस्तुत है उक्त समीक्षा :  

बदलते सामाजिक परिदृश्य के मध्य चेहरे की सच्चाइयों के बरअक्स मुखौटे  भी बदले हैं।  इस बदलाव में समाज की देहरी से  उठाए कथानक अपनी लघुता में अर्थवत्ता की गहरी  छाप छोड़ देते हैं।  लघुकथा की छोटी सी जमीन पर संग्रह  'काले दिन' का क्षेत्रफल अपनी  सांकेतिकता के टेप से नपा तुला होकर अपनी व्यंजना में पोषित होता है ।  व्यंजना का यह आचरण ही देश ,काल परिस्थिति का सही-सही उद्घाटन करने में निः सृत हुआ लघुकथा संग्रह  'काले दिन'  में ।

वैचारिक संबद्धता इन लघुकथाओं का सारतत्व है। समाज के षट्कोणीय ज्वलंत हालातों  का मिला जुला मसौदा तैयार करती इन लघुकथाओं में लेखक बलराम अग्रवाल  किसी चमत्कारिक स्वर में आलंबन नहीं खोलते बल्कि ‘संप्रेषण’ के ‘नुकीले’ घेराव से अपनी  सर्जना को ठोस जमीन देते हैं।

कुल जमा 67 लघुकथाओं में एक लघुकथा 'दिवार से पीठ टिकाए बैठा वह बूढ़ा’ (पृ 92 )' आंतरिक जीवन का ऐसा परिशिष्ट खोलती है जो पाठक को घंटों सोचने पर विवश करती है ।

कथा विन्यास का कौशल  शीर्षकों पर भी प्रतिबिंबित होता है।  यह मनोवैज्ञानिक स्पर्श बारीक़ बुनावट का संकेतक है।  कथ्य को बुनने के लिए लेखक ने बाह्य दृश्य-पटल को जितना थिरकन-भरा बनाया है उसी पर उदासी के स्याह रंगों से संवेदना को गहरा दिया है। मसलन

''अकेला हूँ बेटा।'' बुजुर्ग ने कहा, इधर -उधर से भीख मांग ,पेट भरकर यहाँ आ पड़ता हूँ। बतियाने के लिए पांच -सात मिनट निकाल लोगे तो मेहरबानी होगी। ''

''देख लेना ,अगर कर सको .. '' दुविधा में पाकर उन्होंने कहा ,''आपका बहुत समय ले लिया ,अब जाइये।'' और विदा कर दिया।

और उस दिन के बाद ,अनायास, घर-वापसी का मेरा रास्ता ही बदल गया।

इस लघुकथा  में घटना की विशिष्टता नहीं है।  जीवन की विवशता को सामने रखकर कथाक्रम संजोने की कला  है जिसमें रचनाकार भाषा को ऐंद्रिय बनाता है।  कुछ अबाध्य अभावों के बावजूद वह स्पर्श कर जाती है।

शब्दाधिक्य की मार से पूरी सुरक्षित  लघुतम संवादों के  गढ़ी गई ये लघुकथाएं अपनी लघुता  में एक लम्बी यात्रा तय करती हैं।  इनमें हिंसक संचय की प्रवृतियों और घनघोर आत्मकेन्द्रीयता का विस्तार है तो गहराव भी।  संस्था और संसाधनों पर एकाधिकार कायम करने के  तिकड़मी संस्कार ,पूँजीतंत्र और बाज़ारतंत्र  के  साथ जो   मूल्यहीन जीवन-विवेक  अस्तित्व में आया है, जातिवाद के विषाणु हों या वर्गीय विषमता लघुकथाओं की मुखर अभिव्यक्तियाँ बनी हैं । मसलन :

"जिनकी कोई एक विचारधारा नहीं होती, वे नष्ट हो जाते हैं।" उन्होंने कहा ।

"कबीर की तरह ?” मैंने पूछा ।

"नहीं..." अचानक मिले जवाबभरे इस सवाल पर वे सकपका गये ।

कुछ देर बाद सँभले और कहा, "उन हजारों-लाखों की तरह, जिनका नाम न तुम जानते हो न मैं ।''

"वही तो कबीर की जड़ों में पड़े हैं... !" मैंने कहा तो 'लाहौल-विला-कूवत' बकते वे मुझे छोड़कर इधर-उधर हो गये।

अनचीन्हे लोग (पृ 29 ) चंद पंक्तियों में लघुकथा कितनी बड़ी हलचल पैदा कर देती है। 

सांकेतिकता के आधार पर बुनी  लघुकथाएं  आतंकी (69 ), फासीवाद (68), दॉंव ,पेंच और पैंतरा (67 ) कैनवास में   सीमित होकर व्यापक अर्थ प्रदान करती है। 'दरख्त’, नया रेट, मल्टीलाइनर, शाहीन से मुलाकात : शुरूआती तीन सवाल जैसी लघुकथा में नैतिक संकेत, आदर्श बुनावट की निचली परत में समाए हुए हैं। कथांत उसकी प्रतिध्वनि देते हैं।  कथा  की लय  अबाधित रूप से लक्ष्यगामी है। आवरणविहीन शिल्प आम आदमी  का सहकार लघुकथाओं को व्यापक फलक देता है।

पात्रों की ‘चरित्र-रचना की सूक्ष्मता’ इस संग्रह की खासियत है।  'काले दिन' अपने पूरे कलेवर में जिन मूल्यों के लिए विपथगामिता और भ्रष्टताओं से टकराती है,  छोटे-छोटे कथानक में उपन्यास रचा जा सकता है।

पुस्तक : काले दिन; कथाकार : बलराम अग्रवाल; प्रकाशक : मेधा बुक्स, एक्स-11, नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032; फोन : 98910 22477; आईएसबीएन : 978-81-8166-21-5; कुल पृष्ठ : 100; मूल्य : रुपये 100 पेपरबैक संस्करण; वर्ष : 2023 द्वितीय संस्करण

Saturday, 14 June 2025

जबलपुर (म.प्र.) निवासी कथाकार पवन जैन की 7 लघुकथाएँ

       

॥1॥

स्वर्ग का पता

बहुत दिनों बाद आज अर्चना का फोन आया।

मैंने झट से उठाया और रोष में बोलने लगी, “याद आ गई मेरी! कहाँ थी इतने दिन? किसी गोष्ठी में भी नहीं दिख रही!”

उसने शांति से जबाब दिया, “हाँ यार, आजकल बहुत व्यस्त रहने लगी हूँ।

कहाँ व्यस्त रहती हो?”

सुबह-सुबह पूजा-पाठ, फिर भोग लगाकर फ्री होती हूँ तो बच्चों की देखभाल। शाम को सत्संग, पता ही नहीं चलता, कब दिन गुजर जाता है।

ओहो, तू कब से इतनी धार्मिक बन गई कि सुबह-शाम मंदिरों के चक्कर लगाती रहती है!”

मंदिर, वंदिर नहीं; मेरा घर ही मंदिर है।

क्या मतलब?”

तुझे तो मालूम है, सास-ससुर मेरे साथ ही रहते हैं। ससुर जी 98 साल के हैं और सासु माँ 95 की। अब दोनों अशक्त हो गए हैं। सुबह दोनों को उठाना, चाय-पानी कराना, नहलाना- धुलाना, यही पूजा-पाठ है मेरा। मैं पत्थरों की मूर्तियों को नहीं सजाती, इन जिंदा मूर्तियों की ही साज-सम्हाल करती रहती हूँ।

तेरी देवरानी भी तो है, वह कुछ नहीं करती क्या?”

वह भी करती है। सारा किचिन तो उसने ही सम्हाल रखा हैबच्चों के टिफिन, पूरे परिवार का नाश्ता, भोजन, रात का खाना, वही तो करती है।

और वह क्या बता रही थी, शाम को सत्संग?”

हाँ, रात्रि-भोजन के बाद पूरा परिवार माँ-बाबू जी के कमरे में बैठता है। सभी अपनी- अपनी बातें बताते हैं। कोई समस्या हो तो समाधान हो जाता है। बच्चों की फरमाइशों पर भी गौर हो जाता है।

फिर तो बढ़िया है, तेरा घर तो स्वर्ग है बिल्कुल!”

हाँ, यही बताने को तो फोन किया था। बता, कैसी लगी मेरी यह कहानी—‘स्वर्ग से सुंदर घर’! बिल्कुल मौलिक है।

तभी उसके बाबू जी की आवाज फोन पर सुनाई दी, “बहू, कब से भूखा बैठा हूँ।

अभी फोन रखती हूँ, बाबूजी चिल्ला रहे हैं। एक मिनिट की भी चैन नहीं  पकड़ते।

तभी उसकी सास की आवाज आई—“तुम ज्यादा न चिल्लाओ जी।

लम्बी साँस छोड़ने की आवाज...फोन कट गया।

॥2॥

मिराज

माँ और छोटे भाई को ट्रेन में बैठाकर रघु सीधे काम पर आ गया।

ओहो...अभी तो बारह ही बजे हैं! यह घड़ी आज इतना धीमा क्यों चल रही है!! काश, मेरे पास कोई जादू की छड़ी होती जिसे घुमाकर सीधे शाम बना देता।

घड़ी को बार-बार देखता वह, मन ही मन कहीं खोया-सा था।

शादी के दो दिन बाद ही पत्नी को गाँव में छोड़कर शहर काम पर आ गया था। महीनों तक उसे याद कर कच्चा-पक्का बना, जैसे-तैसे खाता रहा।...

माँ से मनुहार कर पत्नी को शहर ले आने की उसकी गुहार व्यर्थ न गई।

माँ उसके छोटे भाई के साथ पत्नी को लेकर शहर आ गई। नवविवाहिता बहू को घर-गृहस्थी चलाने के गुण सिखाने के लिए पूरे महीने तक, एक कमरे की खोली में रही। अब, उसकी नवब्याहता सामने तो थी, पर उसके सामीप्य से वह कोसों दूर था।

और आज—

पत्नी के सानिध्य के सुनहरे सपनों में डूबता-उतराता, शाम पाँच बजते ही वह कारखाने से निकल, बाजार की ओर बढ़ गया। वहाँ से, खाने के सामान के साथ, बेला के फूलों का एक गजरा भी लेता गया।

 जैसे ही घर पहुँचा, अपने साले को आया देखकर उसका दिल धक्क-सा रह गया।

 रात, खाना-पीना निपटने के बाद साले ने रघु से कहा, “जीजाजी, आपका काम तो ठीक-ठाक चल रहा है। आपकी गृहस्थी भी यहाँ जम ही गई है। सोचता हूँ, मैं भी शहर आ जाऊँ। आपका इस बारे में क्या ख्याल है?”

"नहीं, कभी नहीं। शहर में आदमी, आदमी नहीं रहताकोल्हू का बैल बनकर रह जाता है!” कहते हुए रघु का स्वर तल्ख और तेज हो गया।

उसका साला अचरज से उसकी ओर देख उठा। वह उस सीधे-सादे आदमी के मुँह से निकले शब्दों के तीखेपन का कारण खोजने की कोशिश कर रहा था।

एकाएक रघु का हाथ, पहन रखी अपनी पेंट की जेब में चला गया और झटके के साथ ऐसे बाहर निकला जैसे जेब में बैठे साँप ने डस लिया हो। उसमें रखा गजरा मुरझा चुका था!

॥3॥

तलाक

सत्तर से ऊपर हो गया, फिर भी उन जोड़ों का इंतजार करता हूँ।

बचपन में, जब स्कूल के बरामदे में टाट-पट्टी पर दीवार के सहारे बैठकर स्लेट पर लिखने बैठता, तब नजरें उन पर ही रहती। उनके फुदकने के साथ मन भी फुदकता रहता। झुंड के झुण्ड आतीं, लाइन में बैठकर चहचहाहट करती रहतीं। थोड़ी-सी ही आहट पर फुर्र से उड़ जातीं, पर थोड़ी ही देर में लौटकर आ जातीं।

बताया गयायह गौरैया है। फिर पहचानने लगा था कि उनमें कौन नर है कौन मादा। बैठे-बैठे उनकी कभी थोड़ी बहुत लड़ाई भी होती। देखने में बहुत आनंद आता। चोंचें भिड़ाते दो नर तेज चहचहाहट करते और जीतने वाला अपना जोड़ा बना लेता। उनके प्रणय निवेदन, भाव-भंगिमाओं को भी समझने लगा था। घर बनाने के लिए दोनों साथ-साथ तिनकों को इकट्ठे करते।

मेरी पढाई पूरी हुई। मैंने भी अपना जोड़ा बना लिया। दोस्तों-मित्रों के भी जोड़े बने। उनके बच्चों की शादी में भी शगुन और शुभकामनाएँ देकर आया।

आज, बहुत दिनों बाद, पेड़ पर गोरैया का जोड़ा आया। देखकर, मन प्रफुल्लित हो गया। पक्षियों की यह प्रजाति खुद विलुप्ति की कगार पर है, पर दिखती हमेशा जोड़े में ही है।

जिन्हें आशीर्वाद देकर आया था, उन्होंने भी काश्मीर, स्विट्जरलैंड में खूब चोंचे लड़ाईं, पर मोबाइल से चिपके रहे।

उन्होंने कभी गौरैया को नहीं देखा।

॥4॥

मानवीय कहर

भुखमरी से जूझ रही बच्ची और उसकी मौत का इंतजार करते गिद्धकी फोटो से केविन कार्टर को संसार में ख्याति मिली।

वह भी एक ऐसे ही दृश्य की तलाश में रेगिस्तान, नदी, पहाड़ एक कर रहा, गाँवों की, शहरों की खाक छान रहा ।

वह युद्ध में कुपोषण एवं चिकित्सीय अभाव में हड्डियों का ढाँचा बचे बच्चों, बारूदी बरसात से जख्मी, पट्टी बंधे कटे-फटे जिस्म और भूखे बच्चों को देखती माँ की पथरा गई पनीली आँखें, भूख से बिलबिलाती बेघर भीड़ को देख रहा। भूखमरी से निपटने के ऊँट के मुँह में जीरा जैसे होते प्रयास, प्रतिशोध की आग में जल रहे रसद को रोक प्रतिरोध कर रहे परिवारों को देख रहा, पर उसका  कैमरा क्लिक नहीं कर रहा।

तलाश कर रहा ऐसी आँखों को, जिनमें  इंसानियत नजर आये, जिन्हें वह कैमरे में कैद कर सके।

॥5॥

अव्यक्त

पत्नी ने कहा—“संध्या के घर चलना है। पंद्रह दिन पहले उसके पति का स्वर्गवास हो गया था।

हम दोनों शाम को उसके घर पहुँचे।

वह दरवाज़े पर ही मशीन रखे, गुनगुनाते हुए सिलाई कर रही थी।

पत्नी के मुँह से सांत्वना के दो शब्द निकलते, उसके पहले ही वह बोल पड़ी

अच्छा ही हुआ, इनकी गत सुधर गई। चार महीने से खटिया पर पड़े थे। कोई रिश्तेदार झाँकने भी नहीं आया। उनकी देखभाल में ही पूरा दिन खटती रहती थी। ऊपर से दवाइयों का खर्चा अलग। अकेला लड़का क्या-क्या करता बेचारा। उसकी कमाई तो राशन-पानी को भी पूरी नहीं पड़ती।

पत्नी की नजर उसके चेहरे पर जमी थी। वह थोडा़ रुककर बोली—“अब, सभी का एक-एक पैसा चुका दूँगी।

पत्नी ने कहा, “हम लोगों ने जो सहयोग किया था संध्या, वह कोई कर्जा नहीं है।"

उसने कहा, “जिसे सहयोग करना चाहिए था, वह तो जिंदगीभर बोझ बना रहा! नहीं तो यह सिलाई का काम क्यों करती? पर अब...अब इसमें मन लगने लगा है। थोड़ी चैन की साँस ले पा रहीं हूँ।

उसे खुश देखकर हम वापिस चल पड़े। रास्ते में पत्नी बोली, “अब उसकी गृहस्थी की चादर उसके सिर तक पहुँच गई है।

मैंने कहा, “हुनर कोई भी हो, आड़े वक्त पर काम आता ही है।

पत्नी बोली, “अपने पैरों पर खड़े होने का सुख उनकी आँखों से झलक रहा था।और उसने मेरा हाथ जोर से पकड़ लिया।

          6

धड़कनें

कब आये, खाना खाया कि नहीं, लेटे हैं या सो रहे हैं!...

मैं तो खटती रहती हूँ, दिन भर, सिर दर्द के मारे फटा जा रहा था, पर किससे कहूं।

बच्चे जब से बाहर गये, मेरा तो अब कोई नहीं! इनके पास समय कब होता है, कब मेरी सुनते हैं, मुझे तो अब पता ही नहीं।

हाय राम! झक मार के डाक्टर के पास गई

ब्लड प्रेशर 100-140... कोई खास बात नहीं, एक गोली रोज खानी पड़ेगी।कहाँ हैं सिंग साब! आपका ख्याल नहीं रखते!! बजन भी बढता जा रहा है, अच्छा नहीं है, कुछ कंट्रोल करो।"

मैं कुछ भी नहीं बोली।

जब सब-कुछ बढ़ रहा है, धन दौलत, रुपया-पैसा, मान-सम्मान, शुगर, ब्लड प्रेशर, वजन! मेरा कुछ और भी बढ़ रहा हैअभिमान, स्वाभिमान!

कम हो रही हैं तो दिल की धड़कनें, जो कभी एक-दूसरे के लिए धड़कती थीं...

डॉक्टर उन्हें नहीं नाप पाया!

7

अनाम

“ऐ, ओय! अरे सुन! क्या नाम है तेरा?

उसने फावड़ा जमीन पर रखते हुए कहा, “नाम जानकार क्या करेंगे साहब, बुलाना तो आपको ‘ओय’ कहकर ही है।” “!:?”

“ज्यादा बकवास न कर मालूम है, नगर निगम से मैंने ही बुलाया है तुझे! चल इधर आ जल्दी।”

फावड़ा वहीं छोड़कर, उनके पास आ गया, “जी कहिए।”

“यह नाली अच्छे से साफ कर दे।”

“आपके घर के सामने की ही नही, कालोनी की सारी नाली साफ करने आया हूँ।”

“ज्यादा बकवास न कर; जल्दी काम पर लग जा।”

“जी साब जी, आज कौन-सा दिन है ?

“आज गांधी जयंती है; पर तुझे क्या ?

कुछ सोचते हुए, “सुना है गांधी जी अपना संडास खुद साफ करते थे उनके मन में ऊँच नीच का भाव नहीं था।”

“हाँ, परंतु इससे तुझे क्या करना है?

 “उन्होंने जिन्हें पाठ पढ़ाया वे तो भूल गए, अब हमें ही तो याद रखना है।”

चौंकते हुए, “क्या याद रखना है?

“यही कि बाहर की और अंदर की गंदगी हमें ही साफ करना है।”

 

परिचय : पवन जैन

बी एससी, एम ए, एलएल बी।

593 संजीवनी नगर, जबलपुर म प्र

jainpawan9954@gmail.com

Mobile no, 9425324978

पंजाब नैशनल बैंक में विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए प्रबंधक के पद से सेवा निवृत हुए।

वर्तमान में स्वतंत्र लेखन, प्रमुखतः लघुकथा, पुस्तकों की समीक्षा।

विभिन्न साहित्यिक समूहों / पटलों पर लघुकथा की कार्यशाला का आयोजन।

समय-समय पर विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित।

लघुकथा श्री 2019

प्रसंग लघुकथा अलंकरण 2020

प्रसंग लघुकथा सृजन सम्मान 2021

विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर 2021

कादम्बरी सम्मान 2023

क्षितिज लघुकथा समग्र सम्मान 2023

पर्पल पेन संस्था दिल्ली, साहित्य साधक सम्मान 2023

प्रकाशित कृति— ‘फाउण्टेन पेन’ लघुकथा-संग्रह।









इस संग्रह को लघुकथा शोध केंद्र भोपाल द्वारा ‘पारस दासोत स्मृति लघुकथा कृति सम्मान 2022’ प्रदान किया गया।

पंजाब नेशनल बैंक, प्रधान कार्यालय नई दिल्ली द्वारा मौलिक पुस्तक लेखन योजना के अंतर्गत पुरस्कृत।

प्रमुख पत्र, पत्रिकाओं एवं संकलनों में लघुकथाएँ प्रकाशित। कुछ कथाएँ पंजाबी, नेपाली एवं उड़िया भाषा में अनुवादित एवं प्रकाशित।

कुछ सांझा संकलनों में सम्पादन सहयोग।

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Friday, 21 February 2025

बुलन्दशहर के दिवंगत साहित्यकार/डाॅ. किरन पाल सिंह (लेखक-संपादक)

पुस्तक  : बुलन्दशहर के दिवंगत साहित्यकार
लेखक-संपादक : डाॅ. किरन पाल सिंह 

संकलन-संयोजक : इशाक अली 'सुन्दर'

ISBN: 978-81-19208-13-5

सहयोग राशि: 550.00/-

प्रथम संस्करण : 2023

© डॉ. किरन पाल सिंह

प्रकाशक 
डॉ. चन्द्रकेतु तेवतिया 
निदेशक, आयुष, नई दिल्ली नगर निगम, 49/9 बंगला रोड, कमला नगर, दिल्ली-110009

मोबा: 09810732222

सर्वभाषा प्रकाशन
जे-49, गली नं. 38, राजापुरी (मेन रोड) उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059 

ई-मेल: sbtpublication@gmail.com 

वेबसाइट : www.sarvbhashatrust.com www.sarvbhasha.in

मोबाइल : 011+3501+3521, +91-81786 95606

मुद्रक : आर. के. ऑफसेट प्रोसेस, दिल्ली

BULANDSHAHAR KE DIVANGAT SAHITYAKAR 
Writer-Editor: Dr. Kiran Pal Singh Compiler: Ishak Ali 'Sunder'

Price: 550.00/-

भूमिका

-डॉ. कमल किशोर गोयनका

हिन्दी साहित्याकाश में आपको बुलन्दशहर दिखाई नहीं देगा और न ही इसकी इच्छा आपके मन में होगी कि बुलन्दशहर कृषि एवं सेना को श्रेष्ठ योद्धा तथा उच्च सैन्य पदाधिकारी देने वाले अंचल में, जो खड़ीबोली का एक प्रमुख क्षेत्र रहा है, वहां हिन्दी भाषा और साहित्य का क्या स्वरूप रहा है? आपको अधिक-से-अधिक यही मालूम होगा कि सेनापति और घनानंद जैसे प्रसिद्ध कवि बुलन्दशहर में पैदा हुए थे। आपको यह ज्ञात नहीं होगा कि कालिदास के ' अभिज्ञान शाकुंतलम्', 'मेघदूत' आदि का हिन्दी में अनुवाद करने वाले राजा लक्ष्मण सिंह (1826-1896)

बुलन्दशहर में डिप्टी कलेक्टर थे और उन्होंने बुलन्दशहर का इतिहास भी लिखा था और मेरे दादाश्री सेठ बद्रीदास गोयनका से उनके गहरे संबंध थे और मुझे अपने परिवार के पुस्तकालय से 'मेघदूत' के प्रथम संस्करण की प्रति मिली, जिसे मैं प्रकाशित कराना चाहता हूँ। आपको यह भी ज्ञात नहीं होगा कि बुलन्दशहर गंगा और यमुना के बीच में स्थित है और महाभारत काल की राजधानी के अत्यंत निकट रहा है और पहले नाम बरन था। आपको यह भी ज्ञात नहीं होगा कि 1857 के विद्रोह में बुलन्दशहर के कुछ देशप्रेमियों को नगर के एक चौराहे पर एक पेड़ पर लटकाकर फाँसी दे दी गई थी और उसके बाद वह चौराहा 'कालेआम' के रूप में अब तक जाना जाता है। आपको यह भी ज्ञात नहीं होगा
कि 1947 में भारत-विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण पर नगर के केंद्र चौक बाजार के निकट मुस्लिम सराय से 'अल्लाह हो अकबर' के नारे लग रहे थे, तब तत्कालीन कलेक्टर भगवान सिंह ने केवल दो-चार सिपाहियों से ऊपर कोट से मुस्लिम नेता को गिरफ्तार कर लिया था और नगर में कोई दंगा नहीं हो सका। ये डॉ. भगवान सिंह फीजी में भारतीय राजदूत रहे और फिर दिल्ली नगर निगम के कमिश्नर रहे और तब मेरी उनसे कई बार भेंट हुई। मुझे याद है कि उस समय और उसके बाद भगवान सिंह के इस योगदान को बुलन्दशहर के लोग भूल नहीं पाये और उस समय मैं 9 वर्ष का था और हमारी शीतलगंज हवेली (जो सबसे ऊँची और सुरक्षित थी) में मौहल्ले के काफी लोग इक्ट्ठा होकर छत पर आ गये थे और मुझे आज भी वह दृश्य याद है। आपको यह भी याद नहीं होगा कि कैप्टिन भगवान सिंह हिन्दी प्रेमी थे और उन्होंने ही बुलन्दशहर के कलेक्टर के कार्यकाल में 'हिन्दी साहित्य परिषद्' को जमीन आवंटित की थी और वे हिन्दी में कभी-कभी लिखते भी थे। आपको यह भी ज्ञात नहीं होगा कि बुलन्दशहर में हर साल नुमाइश लगती है और उसमें हर तरह की दुकानें, खेलकूद, सर्कस, कवि सम्मेलन आदि होते हैं और उसमें हमारी व्यापारिक फर्म हिस्सा लेती थी और सबसे बड़ी दुकान होती थी। इसी के कवि सम्मेलन में मैंने पहली बार बच्चन को सुना था। आपको यह भी ज्ञात नहीं होगा कि नरौरा तहसील में परमाणु विद्युत संयंत्र लगा है और राजघाट प्रसिद्ध गंगा का तीर्थस्थल है तथा खुर्जा का पॉटरी व्यापार देश में प्रसिद्ध है। आपको यह भी ज्ञात नहीं होगा कि मैंने और अनेक बुलन्दशहरी लोगों ने दिल्ली में रहते हुए बुलन्दशहर को दिल्ली से सीधे रेल लाइन से जुड़वाने की कोशिश की और जब हमारे शहर के सांसद उप रेलमंत्री बने, तब अधिक की, लेकिन दुर्भाग्यवश आज तक भी बुलन्दशहर सीधी रेल लाइन से दिल्ली से नहीं जुड़ पाया है और बुलन्दशहर के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास में यह सबसे बड़ी बाधा है। आपको यह भी ज्ञात नहीं होगा कि रुड़की से निकलने वाली गंग नहर बुलन्दशहर से गुजरती है और उसने उसके बाद इस जंगलनुमा भूमि को उर्वरा बना दिया और यह अंचल कृषि के उत्पादन का प्रमुख केंद्र बन गया ।


बुलन्दशहर की ऐसी अनेक बातें तथा तथ्य एक जनपद होने के कारण तथा राजधानियों और राजपथ से दूर और उपेक्षित होने के कारण वहाँ आज भी इसी प्रकार का जीवन चल रहा है और साहित्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय मंच तक पहुँचने वाले चार-पाँच लेखकों से अधिक नहीं हैं। इस समय बुलन्दशहर के सुधा गोयल, मुकेश निर्विकार, निर्देश निधि, देवेंद्र मिर्जापुरी, प्रसून, अनूप सिंह आदि लेखकों ने हिन्दी-संसार में अपनी पहचान बनाई है और विख्यात भाषाविद् डॉ. महावीर सरन जैन तो सेवानिवृत्ति के बाद वहीं रह रहे हैं और साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करते रहते हैं। ऐसी स्थिति में डॉ. किरन पाल सिंह की पुस्तक 'बुलन्दशहर के दिवंगत साहित्यकार' इस ओर एक नई रोशनी डालती है और वे बुलन्दशहर के दिवंगत लगभग सौ साहित्यकारों का एक प्रकार से परिचयात्मक कोश ही प्रस्तुत कर रहे हैं। बुलन्दशहर के पहले साहित्यकार सेनापति थे, जिनका जीवन काल 1584 से 1688 के लगभग तक रहा। 2022 में दिवंगत हुए साहित्यकारों में मेरे अभित्र मित्र डॉ. रमाकांत शुक्ल भी हैं, जो दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर थे और संस्कृत भाषा के प्रकांड पंडित थे तथा इमर्जेसी काल में वे मेरे साथ दिल्ली की तिहाड़ जेल में थे। इस पुस्तक के लेखक डॉ. किरन पाल सिंह ने बुलन्दशहर के 108 दिवंगत साहित्यकारों की सूची दी है, जिनमें अधिकांश अपने जनपद तक ही सीमित रहे और उनमें से काफी साहित्यकारों ने यश की कामना नहीं की और साहित्य-साधना करके ही संतुष्ट रहे। इनमें कुछ ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होने बुलन्दशहर की सीमा से निकल कर अपने साहित्य के द्वारा प्रांत के साथ कुछ राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई। इनमें आचार्य चतुरसेन शास्त्री, डॉ. रामदत्त भारद्वाज, दयानिधि शर्मा वैद्य, डॉ. कृष्णचंद्र शर्मा 'चंद्र', विश्वंभर मानव, पंडित नरेंद्र शर्मा, कैप्टिन भगवान सिंह, जगदीशचंद्र माथुर, सरस्वती कुमार 'दीपक', डॉ. शंकरदेव अवतरे, डॉ. द्वारिकाप्रसाद सक्सेना, डॉ. हरीन्द्र शास्त्री, राधेश्याम प्रगल्भ, जयपाल 'तरंग', शिशुपाल सिंह 'निर्धन', रमेश कौशिक, डॉ. रत्नलाल शर्मा, सरला अग्रवाल, रत्नप्रकाश 'शील', डॉ. कृष्णचंद्र गुप्त, डॉ. रमाकांत शुक्ल, डॉ. श्याम निर्मम आदि से मेरा परिचय रहा, संपर्क रहा और साहित्य के नाते कभी-कभी भेंट तथा वार्ता हुई और इसमें बुलन्दशहर के होने की मधुरता भी मिली-जुली रहती और इनमें से कुछ तो ऐसे भी रहे, जिनसे अक्सर फोन पर बातचीत होती रहती थी। ये बुलन्दशहर के वे साहित्यकार थे, जिन्होंने बुलन्दशहर को जनपद की सीमा से बाहर निकाल कर राष्ट्रीय मंच पर स्थापित किया और अपनी मातृभूमि तथा कर्मभूमि के संस्कार तथा परिवेश से अनुभूति-जन्य साहित्य की रचना करके प्रतिष्ठित हुए। यह ठीक है कि बुलन्दशहर प्रयाग, वाराणसी के समान साहित्य में प्रतिष्ठित नहीं हो सका, लेकिन जो परंपरा इन दिवंगत साहित्यकारों ने स्थापित की है, वह अवश्य ही एक दिन ऐसे कालजयी साहित्यकार को जन्म देगी जो इस नगर को भी साहित्य के नक्शे पर अपनी शोभा दिखाने का अवसर देगा।

डॉ. किरन पाल सिंह ने 'बुलन्दशहर के दिवंगत साहित्यकार' पुस्तक लिखकर एक शोधकर्मी साहित्यकार के साथ अपनी मातृभूमि का भी अभिनंदन किया है, जहाँ सौ से अधिक हिन्दी साहित्यकारों का इतिहास मिलता है और प्रत्येक साहित्यकार के संबंध में हमारी जानकारी का विस्तार करता है। यह ठीक है कि ये बुलन्दशहर जनपद के रचनाकार हैं, परंतु साहित्य की मुख्य धारा को अपने प्रवाह से और अधिक गतिमान तथा व्यापक बनाते हैं। मेरे विचार में यह पुस्तक एक प्रकार से बुलन्दशहर के हिन्दी साहित्य का इतिहास है और इसे वहाँ के स्कूलों तथा महाविद्यालयों तक अवश्य पहुँचना चाहिए, जिससे हमारी नई पीढ़ियाँ साहित्य के क्षेत्र में भी अपने पूर्वजों के योगदान को जान सकें।
मैं, डॉ. किरन पाल सिंह की इस पुस्तक का स्वागत करता हूँ और उनके इस बुलन्दशहर-प्रेम तथा वहाँ के साहित्यिक इतिहास को लिखने के लिए साधुवाद देता हूँ।

डॉ. कमल किशोर गोयनका
पूर्व प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय 
पूर्व उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा,
भारत सरकार

ए-98, अशोक विहार, फेज प्रथम,
दिल्ली-110052

मोबाइल : 09811052469

ईमेल : kkgoyanka@gmail.com

बुलन्दशहर का पताः
श्रीलक्ष्मी नारायण का मंदिर
शीतलगंज चौक बाजार
बुलन्दशहर (उ.प्र.)

इस ग्रंथ के सम्मान्य लेखकगण

1. श्री इशाक अली 'सुन्दर'- ग्राम व पोस्ट-भटौना, जिला-बुलन्दशहर 
मोबा : 8445542809

2. डॉ. एम.ए.लारी 'आज़ाद'- संपादक/प्रकाशक 'कालजयी', पूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष (इतिहास विभाग), एन.आर.ई.सी. कॉलेज, खुर्जा (बुलन्दशहर), ए-2, सामी अपार्टमेन्ट, दोधपुर, अलीगढ़ (उ.प्र) -202001 
मोबा : 8791150515

3. श्री ओमप्रकाश आर्य, एडवोकेट, म.नं. 521, HIG आवास विकास प्रथम, निकट डी.एम.कॉलोनी, बुलन्दशहर (उ.प्र.)-203001
मोबा: 9759508696

4. डॉ. कमलेश माथुर-जी-11, जनपथ, श्यामनगर, जयपुर (राज.) 
मोबा. 8690099698

5. डॉ. किरन पाल सिंह-196, दक्षिण वनस्थली, मंदिर मार्ग, बल्लूपुर, देहरादून (उत्तराखण्ड) - 248001
मोबा. 9456157016

6. श्री कौशल कुमार - H-297, गंगानगर, मेरठ- 250001 मोबा: 9720792401

7. डॉ. चन्द्रपाल शर्मा :- सर्वोदयनगर, पिलखुवा- 245304 जिला- हापुड़, (उ.प्र.) 
मोबा: 7668115174/8171969096

8. श्री दिव्य हंस 'दीपक'- ग्राम- बैनीपुर, पोस्ट- गाजीपुर, जिला-बुलन्दशहर -203205 
मोबा : 9761043984

9. डॉ. नृत्य गोपाल शर्मा - म.नं. 43, पॉकेट-4, सेक्टर-21, रोहिणी, दिल्ली-110086 
मोबा : 9818633238

10. श्री प्रमोद प्रणव- 146, हरि एन्क्लेव, बुलन्दशहर – 203001 
मोबा : 9456604870

11. श्री मुमताज 'सादिक'- सी-2-17, राजू पार्क, दिल्ली-80 मोबा: 7011335811

12. श्री योगेन्द्र कुमार - सेवानिवृत्त एडीशनल कमिश्नर (वाणिज्य कर) उत्तर प्रदेश, जी - 49, बीटा- 11, सिक्स्थ क्रॉस स्ट्रीट, रामपुर मार्केट के सामने, ग्रेटर नोएडा (उ.प्र.) -2013101, 
मोबा: 9871395282

13. श्री योगेन्द्रदत्त शर्मा- 'कवि कुटीर', के.बी-153 प्रथमतल, कविनगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)-201002
मोबा: 9311953571

14. प्रो. राजीव कुमार - अध्यक्ष राजनीति शास्त्र विभाग एवं अधिष्ठाता समाज विज्ञान संकाय, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी (बिहारी)  मोबा: 8707310684

15. श्री राजेश गोयल - नई बस्ती, औरंगाबाद, जिला- बुलन्दशहर - 203401 
मोबा : 9411834980

16. डॉ. विष्णुकान्त शुक्ल 'विभावना', प्रद्युम्ननगर, सहारनपुर (उ.प्र.) -247001 
मोबा : 9027338096

17. श्री शम्भूदत्त त्रिपाठी 'देवदानपुरी' 20/268, कोठियात, होटल राजदरबार के पीछे, बुलन्दशहर (उ.प्र.) 
मोबा: 8869801282


जन्म : 7 जुलाई सन् 1940ई0

माता : श्रीमती हरि देवी

पिता : चौधरी मुखत्यार सिंह

जन्मस्थान : ग्राम भटौना, जिला - बुलन्दशहर (उ०प्र०)

शिक्षा : एम. ए. हिन्दी, डी. फिल्. (डॉक्टर ऑफ फिलासफी), डिप्लोमा इन मेडिकल लैब टेक्नालॉजी (डी.एम.एल.टी)

कार्यक्षेत्र :  40 वर्ष पराचिकित्सा क्षेत्र में सरकारी सेवा। वर्ष 1999 में ओ.एन. जी.सी.लि. चिकित्सालय, देहरादून (उत्तराखण्ड) से सेवानिवृत्त। अपने विभागीय तकनीकी कार्यों के साथ ही राजभाषा - राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार-व्यवहार पर विशेष बल दिया। पेट्रोलियम तकनीकी शब्दावली निर्माण में विशेष योगदान ।

राजभाषा संगोष्ठियाँ : वर्ष 1998 से 2016 तक देश के विभिन्न प्रान्तों में अखिल भारतीय राजभाषा संगोष्ठियों का आयोजन किया गया, जिनमें से 9 संगोष्ठियाँ दक्षिण भारत के अहिंदी भाषी प्रदेशों में, सरकारी कार्मिकों का मार्ग-दर्शन एवं प्रोत्साहन किया।

प्रकाशित कृतियाँ :

मौलिक :

1. संक्षिप्त चिकित्सा निर्देशिका सन् 1986

2. गरिमामयी राजभाषा हिन्दी सन् 2004

3. हिन्दी के दिवंगत अल्पायु रचनाकार सन् 2016

4. राजभाषा हिन्दी के प्रबल पक्षधर सन् 2021
संकलित : हिन्दी महिमा सागर सन् 2014

संपादित ग्रंथ :

1. 'गोमती से गंगोत्री' श्री नित्यानन्द स्वामी अभिनंदन ग्रंथ, प्रथम मुख्यमंत्री - उत्तराखंड (2003).

2. राजभाषा हिन्दी : चिंतन और चेतना (2007)

3. 'संस्तवन एक आलोक पुरुष का' : पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह स्मृति - ग्रंथ (2010) -

4. भारतीय नरेशों की हिन्दी - सेवा (2018)

5. हिन्दी अनुरागी मुख्यमंत्री (2022) (साहित्य तक की भाषा आलोचना-2022 की 'टाप-टेन' पुस्तकों में चयनित)

6. विधानसभा अध्यक्षों का हिन्दी अवदान (2022)

विशेष सहयोग :

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जीवन्त व्यक्तित्व एवं अटल चिन्तन-2019

संपादित पत्रिका :

1. 'देवांशी' प्रथम उत्तरांचल गाँव का मेला (2000)

2. 'उत्तरपथ' उत्तरांचल राज्य खेल (2001)

प्रस्तुत ग्रंथ : बुलन्दशहर के दिवंगत साहित्यकार

शीघ्र प्रकाश्य : हिन्दी - सेवी राज्यपाल

संप्रति : भारतीय राजभाषा विकास संस्थान, देहरादून के कार्यक्रम निदेशक के रूप में राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार-उन्नयन में संलग्न ।

संपर्क - सूत्र :

'पारिजात', 196 दक्षिण वनस्थली, मंदिर मार्ग, बल्लूपुर, देहरादून (उत्तराखण्ड) 248001 
मो0 919456157016,

वाट्स एप्प : 916396041585

ई-मेल : kartikeya4188@gmail.com


कवि, साहित्यकार, पत्रकार, पर्यावरणविद्

शैक्षणिक नाम : इशाक अली

साहित्यिक नाम : इसहाक अली 'सुन्दर'

जन्म तिथि : 3 मई 1974 

पिता का नाम : श्री शरीफ खान (स्व.)

माता का नाम : श्रीमती गफूरन (स्व.)

जन्म स्थान : भटौना, जिला-बुलन्दशहर (यू.पी.)

शिक्षा : एम.ए (हिंदी, समाजशास्त्र) एम.एस.डब्लयू, विद्यावाचस्पति

विधा : गीत, ग़ज़ल, कविता, संस्मरण, लेख, साक्षात्कार ।

पूर्व उप-संपादक : भारतीय पत्रकार जगत पत्रिका

पूर्व प्रसार व्यवस्थापक : जहानुमां उर्दू पत्रिका गंगोह (उ.प्र.)

पूर्व जिला संवाददाता : उपभोक्ता अधिकार पाक्षिक समाचार पत्र जयपुर (राजस्थान)

पूर्व जिला उपाध्यक्ष : भारतीय दलित साहित्य अकादमी शाखा-बुलन्दशहर।

पूर्व अतिथि सदस्य : शुभम साहित्य, कला एवं संस्कृति संस्थान गुलावठी (उ.प्र.)

स्थायी सदस्य : पीपल फॉर एनिमल्स, नई दिल्ली

साहित्य सहयोगी : बुलंदप्रभा साहित्यिक पत्रिका

जिला अध्यक्ष : भारतीय दलित साहित्य अकादमी, शाखा हापुड़

विशेष सम्मान : अन्तर्राष्ट्रीय सेवा रत्न अवार्ड - 2022

: राष्ट्रीय प्रतिष्ठा पुरस्कार - 2022

: विविधता में एकता राष्ट्रीय सम्मान - 2020

: गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 'सर्टिफिकेट ऑफ एक्सीलेंसी'

: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 'सर्टिफिकेट ऑफ मैरिट'

विदेश यात्रा : सउदी अरब

संप्रति : स्वतंत्र लेखन एवं सामाजिक कार्य में सक्रिय

स्थायी पता : ग्राम व पोस्ट-भटौना, जिला-बुलन्दशहर

मोबा.-9870680006, 8445542809

ई-मेल-ishakalisunder@gmail.com

sunder_ishak_ali@yahoo.com