Monday, 27 August 2012

शोभा रस्तोगी 'शोभा' की लघुकथाएँ

दोस्तो, 'जनगाथा' पर बहुत समय बाद तपन शर्मा की एक लघुकथा 'शवयात्रा' गत दिनों पोस्ट की थी। इस बार प्रस्तुत हैं--शोभा रस्तोगी 'शोभा' की चार लघुकथाएँ:

गन्दा आदमी 
डेली पैसेंजरी करते एक अरसा हो गया| रोज वही चेहरे, ट्रेन,सीटी, भाग-दौड़| पाँच की बर्थ पर आठ-नौ व्यक्ति| पचास ग्राम जगह भी मिल जाए तो समझो किस्मत चमकी| ट्रेन की रफ़्तार पकड़ते ही निद्रा देवी का राज शुरू| झपकी आना...सिरों का लुढ़कना...लार निकलना...| मर्दों से आधा किलोमीटर दूर रहनेवाली ने भी उनसे सटके बैठना सीख लिया| क्या करे? कब तक खड़ी रहे? रोज का काम| शरीर टूटता अलग|
आज भी वही मुच्छड़ गन्दा चिपचिपा सा आदमी उसकी बगल में बैठा था| झपकी आने पर  धूल भरा सिर उसके कंधे से टकराएगा| वह घृणा से झटक देगी| फिर वह माफ़ी भरी आँखों से देखेगा| उफ़! जाने रात को इन्हें नींद क्यों नहीं आती? उसे खुद  कभी ट्रेन में नींद नहीं आती|
रात बिटिया को बुखार था| उसकी नींद भी पूरी न हुई| ऑफिस में भी काम पर काम| लगी रही दिन भर| बाहर देखते-देखते पता नहीं कब झपकी ने आँखों को  थपकी दी| अगले स्टेशन पर जोरदार आवाज़ से उसकी नींद टूटी तो पाया ...ओह! उसका अपना सिर इस गंदे आदमी के कंधे पर...ओह गाड! नो,नो ..इम्पोसिबल ...बट इट हेज़ हेप्पंड़ न| सॉरी| कहना पड़ा गंदे आदमी को|' कोई बात नहीं बहन| थकान की नींद ऐसी ही होती है|'
अब वह अपने आप से नज़रें चुरा रही थी|
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क़त्ल किसका 
दंगे भड़क उठे थे| सांप्रदायिक तत्व कार्यशील थे| कत्ले-आम आम हो गया| बी.एस.एफ. की गाड़ियाँ दनादन रौन्दाई गईं| कर्फ्यू का ऐलान| भग्गी मच गयी| लोग जहाँ-तहा पनाह लेने लगे| आँखों से विश्वास उतरकर बन्दूक, चाकू पर आ  गया| भीड़ छँटते ही सड़क नंगी हो गयी| पुलिया के नजदीक एक आदमी खून से लथपथ मृत पड़ा था| तहकीकात हुई| कोई वारिस नहीं| किसी संप्रदाय का कोई चिन्ह नहीं| कानाफूंसी होने लगी--किसका खून हुआ? 
सब आदमी पर लगे सांप्रदायिक लेबल ढूँढते रहे| 
क़त्ल आदमी का हुआ| यह कोई समझ न पाया|
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उजाला
ढोल-नगाड़ों की चाहत रखने वाली दादी के माथे पर अनगिनत शिकनें धमाचौकड़ी मचा रही थीं | एक तो पोती का जन्म, उस पर बहू का कुआँ पूजने का ऐलान| सिर सौ-सौ मन भारी हुआ जा रहा था| कौन-सा मुँह  दिखाएगी--जात-बिरादरी को, मौहल्ला-पड़ोस को, समाज को, नाते-रिश्तेदारों को| जितने मुँह उतनी बातें| जम के जगहँसाई होगी| मन किरिच-किरिच हुआ जा रहा था| छोटे की जिद खातर पढ़ी-लिखी बहू ब्याहने पर पहले ही कितनी छीछालेदार  हुई थी उसकी| और अब कुआँ, वो भी छोरी जात का!
आपादमस्तक दुःख से त्रस्त, पसीने से तर-बतर मान-मनुहार की मन में दबाएजच्चाखाने में पैर पड़ते ही कानों में गर्म सीसा पिघल गया| 'ढोल बजवाऊँगी, नौ दिन नवरात्रे रखूँगी | दुर्गा,लक्ष्मी, सरस्वती की कृपा  बरसी है मेरी गोद में| कुआँ पूजूँगी  मै अपनी लाडो का|' बहू का चेहरा लकदक उजाले से उल्लसित हुआ जा रहा था| कोर-कोर से रौशनी के असंख्य पुंज फूट रहे थे, जिसके दृष्टिमात्र से ही सास के मन में सदियों से बैठी अमावस का अज्ञानी तिमिर सिर पे पैर रख के भाग उठा| उलटे पैरों आती वह ख़ुशी से चिल्लाई--कुएँ की तैयारी कर लो| मेरे घर दुर्गा आई है|
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प्रेस्टीज इश्यू
'ओफ्फोह ! करीने से रखिए फूलमालाएँ डेड बॉडी के पास| व्हाट! पुरानी चादर? हटाओ इसे| नई धुली, वेल प्रेस्ड बोम्बे डाइंग की बेडशीट्स बिछाओ |... विडियो कवरेज हो रही है| देखिए! आप सभी रिश्तेदार अपने कपड़े ठीक करें… और चेहरा कुछ मुस्काता हुआ...आई मीन…थोडा दुःख के साथ...बाकी ठीक है| साहब की माँ एक्सपायर हुई हैं | लगना चाहिए भई |' विडियोग्राफर  कवरेज के दौरान हिदायतें दे रहा था।
'अरे ये काली साड़ी!...नो..नो…सफ़ेद पहनिए|' मृतका की ग्रामीण चचेरी बहन को रोका उसने|
'पर सफ़ेद साड़ी तो...' वह झिझकी| 
'तो किराए पर ले लो|...बड़ी बात है| साहब के आफिस में, मित्रों में…हर जगह यह विडियो  दिखाई जाएगी| बॉस का प्रेस्टीज इश्यू है न|' विडियोग्राफर बोला |
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लेखिका परिचय
शोभा रस्तोगी  'शोभा'             चित्र:बलराम अग्रवाल
शिक्षा - एम. ए. [अंग्रेजी-हिंदी ], बी. एड. , शिक्षा विशारद, संगीत प्रभाकर [ तबला ]           
जन्म - 26 अक्तूबर 1968 ,  अलीगढ [ उ. प्र. ]
सम्प्रति - सरकारी विद्यालय दिल्ली  में अध्यापिका
पता - RZ-D.-- 208, B, डी.डी.ए. पार्क रोड, राज नगर - || पालम कालोनी, नई दिल्ली -110077.भारत 
प्रकाशित रचनाएँ.-- पंजाब केसरी, कादम्बिनी,कल्पान्त, राष्ट्र किंकर, हम सब साथ साथ, केपिटल रिपोर्टर,कथा संसार,  बहुजन विकास, न्यू ऑब्जर्वर पोस्ट, शैल सूत्र, जर्जर कश्ती,सुमन सागर आदि  में  लघुकथा, कविता, कहानी, लेख,समीक्षा आदि प्रकाशित| 'खिडकियों पर टंगे लोग' लघुकथा  संग्रह  में लघुकथाएं संकलित | आकाशवाणी भोपाल से लेख प्रसारित| आकाशवाणी नई दिल्ली से ब्रज भाषा मै कहानियां  प्रसारित|
 ओंन लाइन पोर्टल पर प्रकाशित --  सृजनगाथा.कॉम , लघुकथा.कॉम , साहित्याशिल्पी.कॉम , शब्दकार.कॉम , रचनाकार.कॉम, स्वर्गविभा.कोम, हिंदी चेतना[कनाडा] पर शेर , लघुकथा व कविता, समीक्षा  प्रकाशित|
सम्मान -युवा लघुकथाकार सम्मन2010, पंचवटी राष्ट्रभाषा सम्मान2011, नारायणी साहित्य सम्मान2012
ईमेल - shobharastogishobha@gmail.com  

Saturday, 11 August 2012

शवयात्रा/तपन शर्मा


दोस्तो, लंदन ओलिम्पिक 2012 में भारतीय हॉकी टीम 12वें स्थान पर आयी है। उसने भले ही 21 गोल खाए, लेकिन बहादुरी दिखाते हुए 8 गोल किये भी। इस शानदार उपलब्धि पर आइए, पढ़ते हैं तपन शर्मा की शानदार लघुकथा 'शवयात्रा'

                                                             फोटो:बलराम अग्रवाल
राम नाम सत्य है....
ये किसकी अर्थी जा रही है भाई? एक आदमी ने शवयात्रा जाती हुई देखी तो दूसरे से पूछा।
अरे, तुम्हें नहीं पता? बहुत ऊँचे पद पर थीं ये बूढ़ी अम्मा। सुना है पद्मश्री मिला हुआ था। जवाब मिला।
पर ये हैं कौन?
ज्यादा तो नहीं पता पर कोई मेजर हुए हैं, शायद ध्यानचंद नाम था उनका। उन्हीं की माँ थीं बेचारी।
ध्यानचंद! ज्यादा सुना तो नहीं हैं इस आदमी के बारे में!!
पूरे लगन से अपनी माँ का ख्याल रखता था वो। सुना है, आँच तक नहीं आने दी कभी । फिरंगियों को भी पास नहीं भटकने दिया था।
हम्म।
पर आज देखो, बेचारी को कोई चार काँधे देने वाला भी नहीं मिला।
कोई बीमारी हो गई थी क्या? कौन-कौन थे इनके घर में?
परिवार तो अच्छा बड़ा था, पर पोते-पोतियों ने अपने बाप-दादा का नाम मिट्टी में मिला दिया। बिल्कुल भी इज़्ज़त नहीं दी अपनी दादी को। बीमारी में भी कोई सहारा न दिया। एक तरह से ये ही मौत के जिम्मेदार हैं।
पर पद्मश्री या पद्मविभूषण जिन्हें मिला उन अम्मा का सरकार ने तो ध्यान रखा होगा।
हा हा, कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो भाई, सटक गये हो क्या? सरकार ने कभी किसी का ध्यान रखा है जो इनका रखती। पता नहीं कितनी ही बार सरकार से मदद माँगी। हारी बीमारी में भी एक फूटी कौड़ी भी न मिली। आज की तारीख में देखो तो पूरी तरह से नजरअंदाज़ कर दिया था इन्हें।
अच्छा!
और नहीं तो क्या?
पर आस पड़ौसी, या जान पहचान वाले?
कोई किसी का सगा नहीं होता दोस्त। सब अपने मतलब का करते हैं। अम्मा से उन्हें क्या सारोकार होगा। कोई जमीन जायदाद तो थी नहीं। कोई पैसा नहीं। तो फिर क्यों अपना समय नष्ट करते?
सही कहते हो। पर मैंने इन सबके बारे में कभी सुना नहीं। टीवी तो मैं तो रोज़ाना देखता हूँ। सचिन, शाहरूख, धोनी, युवराज, अमिताभ, ऐश्वर्य इन सबके बारे में तो आता रहता है पर इन अम्मा के बारे में नहीं पता चला। कब मृत्यु हुई है इनकी?
यही कोई दो दिन पहले। कहीं बाहर गईं थीं। तीर्थ पर। कहते हैं वहाँ से वापस आते आते ही दिल का दौरा पड़ा और...
ओह। पर मैंने तो कोई खबर नहीं देखी। ब्रेकिंग न्यूज़ में इसका कोई जिक्र ही नहीं था"
हाँ। हो सकता है।
पर इतनी महान होते हुए भी ऐसी दर्दनाक मौत की चिता को आग लगाने वाला भी न मिला। सचमुच अफसोस है। किसी ने कुछ करा भी नहीं।
किसी की कद्र उसके जाने के बाद ही होती है। अब देखना, तुम्हें यही खबर दिखाई देखी हमेशा टीवी पर।
पर देखना ये है कि कब तक? अरे पर तुमने अभी तक इनका नाम नहीं बताया।
मैंने अभी अभी किसी के मुँह से सुना था। उसने इनका नाम हॉकी बतलाया है। तो यही नाम होगा।
हॉकी...
राम नाम सत्य है की ध्वनि फिर से आने लगी थी।
सम्पर्क:सी-159, ऋषि नगर, रानी बाग, दिल्ली-110034