-->
पृथ्वीराज अरोड़ा हिन्दी लघुकथा के वरिष्ठ हस्ताक्षर हैं। उनकी लघुकथाओं में मानवीय संवेदना के वे सूत्र छिपे होते हैं जो उन्हें अपने समकालीनों के बीच विशिष्ट दृष्टि संपन्न कथाकार सिद्ध करते है। जनगाथा के इस अंक में उनकी तीन ताजातरीन लघुकथाएँ प्रस्तुत हैं।
-->
संलग्न पेंटिंग सीमा विश्वास की है जिसे सम्माननीय मित्र शमशेर अहमद खान ने
-->
रंगों के पर्व होली की शुभकामनाओं के साथ भेजा है।
॥नागरिक॥
शायद वह किसी काम से थोड़ी देर के लिए बाहर गया था। मैंने सिर उठाकर शीशे में देखा। सिर के एक हिस्से के बाल कुछ बड़े थे और दूसरे के छोटे। मैंने हाथ लगाकर जाँचा भी। मैं पिछले कई वर्षों से उससे बाल कटवा रहा था, परंतु ऐसी असावधानी कभी नहीं हुई थी। जैसे ही वह लौटा, मैंने बताया,“एक तरफ के बाल थोड़े बड़े लगते हैं।”
उसने कैंची और कंघा उठाया और बड़े बालों को छोटा कर दिया। फिर धीरे-से बोला,“माफ करना बाबूजी, मैं जानता हूँ कि आप पहले भी आये थे। अब दोबारा आये हैं। मुझे पता है कि आप मेरे अलावा किसी-और से बाल नहीं कटवाते।” फिर उसने स्वयं ही बताया,“बाबूजी, मैं बहुत परेशान हूँ।”
“क्या हुआ?”
“मैं दोपहर को घर गया तो पता चला कि मेरे आठ वर्ष के बच्चे को दो आदमी बहला-फुसला कर ले गए। उसे आइसक्रीम खिलाकर घर के बारे में पूछते रहे। मेरी बेटी के स्कूल में जाकर उसे भी देख आये हैं। मैं…मैं…बहुत तनाव में हूँ…क्या करूँ?”
“बेटे से पूछा कि वे कौन लोग थे?”
“पत्नी से उसे इस हरकत के लिए पीट दिया। वह बुरी तरह-से डर गया है। कुछ बताता नहीं।”
“फिर?” अचानक मेरे मुँह से निकल गया।
वह काफी देर चुप रहा। फिर बोला,“पुलिस पर मुझे भरोसा नहीं। …और ये नेता लोग तो पहचानते तक नहीं। रिश्तेदार नजदीक तक नहीं फटकेंगे। दोस्त सलाह भर देकर पहलू झाड़ लेंगे। बेटी का सवाल है…इज्जत का…” वह पगलाया-सा यही रट लगाये जा रहा था।
॥भ्रष्ट॥
दिनभर खटने के बाद वे शाम को घूमने जाते थे। यह उनकी दिनचर्या का एक अंग था। उनके बीच राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक और अधिकतर दफ्तरी सरोकारों की बातें होती थीं।
आज रवि ने बात शुरु की,“सचमुच, बेईमानी हमारे रगों में समा गई है। जो भ्रष्ट नही होना चाहता, उसे मजबूर किया जाता है।” वह थोड़ा रुका। अपनी बात के प्रभाव को आँकने के लिए उसने अपने साथियों की ओर देखा और आगे कहा,“आज एक आदमी किसी काम के सिलसिले में आया था। वह कानूनन सही था, मैंने काम करने से इंकार कर दिया। उसने कुछ लेने-देने की बात की, परंतु मैं अपने उसूलों पर अड़ा रहा।”
शामलाल ने इस प्रसंग में जोड़ा,“मैं ऐसी सीट पर हूँ जहाँ आसानी से रुपए ऐंठे जा सकते हैं, आप जानतए ही हैं। मेरे साथ तो हर रोज यही घटता है पर, मैं हराम की कमाई पर विश्वास नहीं करता।”
प्रभुदयाल ने सीने पर हाथ रखते हुए कहा,“आज तो मेरे साथ हद हो गई। काम करवाने के लिए एक आदमी मेरे घर पहुँचा और मिठाई के डिब्बे में रुपए डालकर मु्झे देने लगा। मेरी आत्मा मानी नहीं। मैंने उसे हाथ जोड़ते हुए डिब्बा स्वीकार करने से इंकार कर दिया।”
एक आदमी, जो उनके पीछे-पीछे चल रहा था और ध्यान-से उनकी बातें सुन रहा था, बिल्कुल पास आकर उसने पूछा,“जब हम सभी ईमानदार हैं, कोई भी भ्रष्ट नहीं है, तो भ्रष्टाचार क्यों है? क्या आपने किसी को अपने-आप को भ्रष्ट कहते सुना है? अगर हाँ, तो उसे पेश कर सकते है?”
अचानक पूछे गये इस सवाल से हकबकाए हुए वे तीनों एक-दूसरे को टुकुर-टुकुर ताकने लगे।
॥पति॥
बु्री खबर थी।
पति ने बताया—रज्जू-चाचा नहीं रहे।
पत्नी अलसायी-सी पड़ी रही। पति ने फिर दोहराया। पत्नी धीरे-धीरे उठी। बिखरे बालों को समेटा। जम्हाई ली। अपने गाउन को ठीक किया। आईने के सामने जाकर अपना चेहरा देखा। गुसलखाने गई। मुँह पर छींटे मारे। तौलिये से पौंछा। पानी धीरे-धीरे पिया, खाने की तरह। ब्रश लिया। पेस्ट लगाया। हौले-हौले, इत्मीनान से, ब्रश करती रही। पति कुर्ता-पाजामा पहने तैयार होकर आया और पत्नी को ब्रश करते देख किचन में घुसकर चाय बना लाया। पत्नी ने पति के हाथों बनायी चाय चुस्कियाँ ले पी और थोड़ी देर बाद फिर गुसलखाने में घुस गई। लौटकर आयी और आईने के सामने खड़ी हो साड़ी लपेटने लगी। पति ने घर के सभी दरवाज़े बंद किये और बाहर के दरवाज़े पर ताला टाँग घर से बाहर हो गया।
स्कूटर गली की सड़क पर खड़ा करके उसे स्टार्ट किया। फिर बंद कर दिया। फिर स्टार्ट किया और जोर-जोर से हॉर्न बजाई। फिर स्कूटर बंद कर दिया। मकान के अंदर जाकर देखा—पत्नी बालों को सँवार रही थी।
“जल्दी करो।” उसने कहा। कहकर वह फिर बाहर आ गया। स्कूटर स्टार्ट किया। फिर बंद कर दिया। फिर स्टार्ट किया। तेज-तेज हॉर्न बजाई। एक पड़ोसी ने झाँककर उसकी ओर देखा। जब पत्नी स्कूटर के पास आयी तो पति बोला—“वक्त की नजाकत को समझा करो।”
पत्नी केवल मुस्कराई। उसकी मुस्कराहट से मर्माहत उसे ढोने की बेबसी लिए वह स्कूटर का गियर बदलने लगा।
पृथ्वीराज अरोड़ा: संक्षिप्त परिचय
जन्म: 10 अक्टूबर, 1939 को बुचेकी(ननकाना साहिब, पाकिस्तान में)
प्रकाशित कृतियाँ: तीन न तेरह(लघुकथा संग्रह), प्यासे पंछी(उपन्यास), पूजा(कहानी संग्रह), आओ इंसान बनाएँ(कहानी संग्रह)
सम्पर्क : द्वारा डॉ सीमा दुआ, 854-3, शहीद विक्रम मार्ग, सुभाष कॉलोनी, करनाल-132001 (हरियाणा)
मोबाइल नं:09255921912