सुधा भार्गव जानी-मानी बाल साहित्यकार, कवयित्री और लघुकथा लेखिका हैं। इनके अलावा उन्होंने यात्रा वृत्तांत भी लिखे हैं और डायरी साहित्य भी। ‘उत्सवों का आकाश’ विभिन्न भारतीय त्यौहारों को केन्द्र में रखकर रची गयी उनकी दस बाल कहानियों का संग्रह है।
पहली कहानी का विषय है—नये साल का आगमन। कहानी का शीर्षक है—नये वायदे, नये कायदे। जैसाकि शीर्षक से स्पष्ट है, सुधा जी अपने गद्य में काव्यात्मक प्रवाह का ध्यान रखती हैं। बालकों के लिए लिखी होने की वजह से तो यह और भी आवश्यक है कि भाषा में सरलता और तरलता दोनों हों। कहानी की शुरुआत उन्होंने यों की है—‘नन्हे-मुन्नो, नया साल सूर्य-रथ पर सवार होकर निकलता है।’ अब, सही बात तो यह है कि प्रत्येक दिन सूर्य के रथ पर सवार होकर निकलता है; लेकिन जब यही बात नये साल की नयी सुबह के बारे में कही जाती है, तब उसके ध्वन्यार्थ अलग और आकर्षक होते हैं। ‘नये वायदे, नये कायदे’ सर्रू नाम के एक छोटे बच्चे की कहानी है। उसके पापा नाश्ते के लिए माँ द्वारा बनाये गये गाजर के हलुए, मठरी और बेसन के लड्डू को चोरी-चोरी अकेले ही चट कर जाते हैं। इसके कारण वह खाना भी नहीं खाते और काम पर निकल जाते हैं। यह बात जब सर्रू को पता चलती है तो वह नाराज हो जाता है। उसे खुश करने के लिए माँ नये सिरे से सारी चीजें बनाकर उसे खिलाती है। नये साल के आगमन पर माँ, सर्रू और पापा—तीनों अपनी-अपनी दिनचर्या को निर्धारित करने हेतु स्वयं से नये वायदे करते हैं जिन्हें वे पूरे साल निभायेंगे। सर्रू की मित्र मंडली के अन्य बच्चे भी उत्साह में भरकर नये वादे करते हैं।
दूसरी कहानी है—वेलेंटाइन डे की रानी। पहली ही पंक्ति में कहती हैं—14 फरवरी का प्रेमोत्सव दिवस प्यार देने और प्यार पाने का दिन होता है। इस कहानी की नायिका यानी मुख्य पात्र ‘चिन्नी’ नाम की पालतू बिल्ली है जो दादी की लाड़ली है। घर में दादी के अलावा मम्मी, पापा और गौरव भी हैं। चिन्नी को गौरव के स्कूल से आने के समय का ध्यान रहता है और वह सही 2 बजे दरवाजे पर टकटकी लगाकर बैठ जाती है। गौरव भी चिन्नी का बहुत ख्याल रखता है। मम्मी से कहकर वह आराम से उसके बैठने-खाने के लिए कुर्सी-मेज का इंतजाम कराता है। दादी अपने पुराने तौलिए से काटकर चिन्नी के लिए दो ‘बिब’ बना देती हैं ताकि खाते हुए वह गंदी न हो। पुराने स्वेटरों से वह उसके लिए शॉल भी बनाती हैं। वेलेंटाइन डे को गौरव घर में अपने दोस्तों के चिराग और पराग के साथ केक काटकर मनाता है। इस अवसर पर पराग की ओर से चिन्नी को गुलाब का एक फूल भी भेंट में मिलता है।
तीसरी कहानी का शीर्षक है—ओए बल्ले-बल्ले। यह छोटी-सी एक कविता से शुरू होती है। इसमें गुलाल बिखरते मार्च का जिक्र है तो ‘बड़कू’ नामक उसके बड़े भाई अप्रैल का भी जिक्र है। सुधा जी की बाल कहानियों में बड़ी बात यह है कि बातों ही बातों में वे बाल-संस्कार की बात भी कह देती हैं। इस कहानी में, ‘दादू कहते हैं—हरेक के शरीर में होलिका और प्रह्लाद रहते हैं।’ इसी के साथ बैसाखी का भी उल्लेख एक कविता के माध्यम से हुआ है।
चौथी कहानी ‘नाग देवता’ है। कहती हैं—‘बच्चो, मुझे मालूम है कि तुम्हें रिमझिम बरसते पानी में भींगना बड़ा अच्छा लगता है।’ इस तरह सुधा जी वाचक की तरह केवल कहानी नहीं कहती हैं बल्कि बच्चों से संवाद भी स्थापित करती हैं। बालकों को वह हेल-मेल और प्यार-स्नेह सिखाती हुई समझाती हैं कि—‘तुम्हारी बहन जब झूला झूले तो तुम जरूर उसे झोटा देना। पर धीरे-धीरे। वरना वह डर जाएगी। प्यार से उसे झोटा देना तो वह बहुत खुश होगी।’ जुलाई के साथ-साथ वह हिन्दी महीने सावन का नाम बताना भी लेखकीय कर्तव्य समझती हैं। इस कहानी में रिमझिम बारिश और झूला के साथ ही भारतीय त्यौहार ‘नाग पंचमी’ की भी एक कहानी जोड़ी गयी है। वह यह भी बताना नहीं भूलती हैं कि सारे साँप जहरीले नहीं होते और उनके जहर से दवाई भी बनाई जाती है, इसलिए बिना सोचे-समझे साँपों को मार नहीं देना चाहिए।
पाँचवीं कहानी ‘गुल्लक की करामात’ के केन्द्र में राखी का त्यौहार है। भाई-बहन हैं—टीटू और कोयलिया। इसके माध्यम से वह बताती बताती हैं कि—जिन भाई-बहन के हाथ प्यार से मिले रहते हैं, उनके दो नहीं चार हाथ होते हैं।
छठी कहानी ‘मीठी खीर’ की भूमिका में सुधा जी धीरे-से पहले कृष्ण की कहानी बच्चों को बताती हैं। उसके बाद सुनाती हैं मुख्य कहानी। इस कहानी के मुख्य पात्र बालक सारंगी, उसकी दादी और मम्मी हैं। इनके साथ ही एक गरीब बालक को भी कहानी से जोड़ा है। उस बालक के पास दूध और चावल हैं और वह चाहता है कि उन दूध-चावल से वे उसके लिए खीर बना दें। जाहिर है कि उसका अनुरोध स्वीकारा नहीं जाता है और दुत्कार कर भगा दिया जाता है। ऐसे में, सारंगी अपने हिस्से की खीर दादी से लेकर छिपता हुआ कबीरा नाम के उस बालक के पास जा पहुँचता है। उसे देखकर दादी उसकी माँ से कहती है—‘एक दुखिया को खुशी देकर हमारे घर के कन्हैया ने तो सच्चे अर्थों में जन्माष्टमी मनाई है।’
सातवीं कहानी गणेश चतुर्थी पर्व पर केन्द्रित है। इसका शीर्षक है—‘पूत के पाँव पालने’। इस कहानी को सुधा जी ने सीधे पुराण कथा के आधार पर प्रस्तुत किया है। इस कथा में उन्होंने सरस काव्य पंक्तियों का भी प्रयोग किया है।
आठवीं कहानी दशहरा त्यौहार पर केन्द्रित है। इसके शीर्षक ‘घर का भेदिया’ से ही अनुमान हो जाता है कि इसमें सुधा जी ने किस की ओर निशाना साधा होगा। बाल कहानियों के बारे में सुधा जी का सिद्धान्त है—कहानी की कहानी और जानकारी की जानकारी। सही है, बाल कहानियाँ केवल मनोरंजन और रोमांच के लिए ही प्रस्तुत न की जाएँ बल्कि उनसे बालकों के ज्ञान में भी यथेष्ट वृद्धि होनी चाहिए। न केवल सांस्कृतिक और पौराणिक जानकारी बल्कि वैज्ञानिक जानकारी भी।
नौवीं कहानी के केन्द्र में दीपावली पर्व है। इसका शीर्षक है—‘घर-घर जन्मो राम’। अलटू-पलटू और रामा-लाखा नाम के बच्चे इस कहानी के मुख्य पात्र हैं। इनमें पलटू बड़ा भाई है और अलटू छोटा। ये दोनों इस कदर शरारती हैं कि दिवाली के मौके पर छोड़े जाने वाले पटाखों को जलाकर किसी के भी ऊपर फेंक देते हैं। इसी कारण रामा-लाखा से इनका झगड़ा भी हो जाता है; लेकिन कहानी के अन्त में सब के बीच सुलह हो जाती है। सब प्रेम से दीवाली-पूजन करते हैं।
और अन्त में, दसवीं कहानी दिसम्बर माह की 25 तारीख को मनाये जाने वाले त्यौहार ‘क्रिसमस’ को केन्द्र में रखकर रची गयी है। शीर्षक है—‘लो मैं आ गया’। एक छोटे से घर में मंकी और टंकी नाम के दो लड़के रहते हैं। दिसम्बर की रात दस बजे दरवाजे पर खट-खट की आवाज सुनकर वे चौंक जाते हैं। मंकी झांककर देखता है कि बाहर उसी की उम्र का एक लड़का खड़ा ठंड से काँप रहा है। दोनों भाई मनमौजी नाम के उस लरके को शरण देते हैं। अपनी चारपाई पर उसे सुलाकर खुद जमीन पर सो जाते हैं। सुबह उठकर जो देखते हैं तो मनमौजी गायब! कमरे के बाहर वे सजे-धजे एक पेड़ को खड़ा देखते हैं। पूछने पर वह पेड़ बताता है कि वही मनमौजी है। कहानी इसी तरह बड़े रोचक ढंग से आगे बढ़ती है। पेड़ इस कहानी में सेंटा क्लाज की भूमिका निभाता है।
कुल मिलाकर ‘उत्सवों का आकाश’ रोचक और ज्ञानवर्द्धक बाल कहानियों का पुलिंदा है। इसके लिए लेखिका सुधा भार्गव साधुवाद की अधिकारी हैं। पुस्तक के भीतर विषयानुरूप श्वेत-श्याम चित्र हैं लेकिन वे किसी चित्रकार से न बनवाकर इन्टरनेट से उठाये लगते हैं। मात्र 96 पृष्ठ की पेपरबैक पुस्तक की रुपए 230/- कीमत बहुत अधिक प्रतीत होती है। इस तरह के अनाप-शनाप मूल्य पुस्तकों को बाल-पाठकों से दूर रखने का काम करते हैं।
समीक्षित पुस्तक—उत्सवों का आकाश (बाल कहानी संग्रह); लेखक—सुधा भार्गव; प्रकाशक—श्वेतांशु प्रकाशन, डी-14 नियर रामलीला पार्क, पाण्डव नगर, दिल्ली-110092; प्र॰ संस्करण—मई 2023; कुल पृष्ठ—96; मूल्य—रुपए 230 (पेपरबैक)
समीक्षक सम्पर्क—एफ-1703, आर जी रेजीडेंसी, सेक्टर 120, नोएडा-201301 (उप्र)
मोबाइल—8826499115
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