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॥2॥ रोग
॥3॥ नई कास्टयूम
॥4॥ चुनाव
गृहमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में एक कुख्यात अपराधी-गुट और पुलिस-दल के बीच जबरदस्त गोलीबारी हुई। इस गोलीबारी में गुट के कुछ साथियों के साथ गुट का सरगना व कुछ पुलिसवाले भी मारे गए। टी.वी. पर खबर देख गृहमन्त्री बेहद व्यथित हो गए, खाना बीच में छोड़ दिया।
॥1॥ यथार्थ
'' माँ! कितना अच्छा होता कि हम भी धनी होते। हमारे भी यूँ ही नौकर-चाकर होते। ऐशो-आराम होता।''
'' सब किस्मत की बात है। चल फटाफट बर्तन साफ़ कर। और भी बहुत-सा काम अभी करने को पड़ा है! ''
'' माँ ! इस घर की सेठानी थुलथुली कितनी है! और बहुओं को देखो—हर समय बनी-ठनी घूमती रहती हैं। पतला रहने के लिए कसरतें करती हैं…!! भला घर की साफ-सफाई करें, रसोई का काम करें, बर्तन-भाँड़े माँझे, रगड़-रगड़ कर कपड़े धोयें तो कसरत करने की ज़रूरत ही ना पड़े… है ना माँ ?
''बात तो तेरी ठीक है बेटी। लेकिन, हमें भूखों मरना पड़ जाएगा बस।"
॥2॥ रोग
''साहब! मैंने ऐसा क्या कर दिया जो आपने मुझे बर्खास्त कर दिया?'' साहब के कमरे में जाकर वृद्ध चपरासी ने परेशान स्वर में पूछा।
"तुमने ‘कर्तव्य-पालन’ को रोग बना लिया है न रामदीन, इसलिए।'' अधिकारी बोला।
'' कर्तव्य-पालन को रोग…? साहब! मैं समझा नहीं!''
'' कर्तव्य-पालन को रोग…? साहब! मैं समझा नहीं!''
'' देखो रामदीन! ना तुम कई दिनों से भीगकर ख़राब हो रहे ऑफिस-फर्नीचर को बारिश से बचाकर सुरक्षित जगह पर रखते और ना ही नया फर्नीचर खरीदने की सरकारी-स्वीकृति निरस्त होती।” अधिकारी ने शान्त-स्वर में कहा और अपने काम में लगा रहा।
॥3॥ नई कास्टयूम
सभागार में मौजूद भीड़ में बेहद उत्सुकता थी। भीड़ में चर्चा का विषय था—चर्चित फैशन डिजाइनर की आज नई फीमेल कास्टयूम का प्रर्दशन होना। हाई सोसायटी वाली महिलाएँ अपने बदन-दिखाऊ भड़कीले कपड़े पहने ज्यादा उत्साहित थीं। कुछ समय पश्चात् अपनी नई डिजाइन्ड कास्टयूम पहनाई महिला मॉडल के साथ कैटवॉक करता डिजाइनर मंच पर आ गया। पूरा सभागार भौंचक रह गया। तालियाँ आघी-अधूरी बजकर रह गईं। कैमरों की फ्लैशें एक बारगी थम-सी गईं। सभागार में कानाफूसियाँ होने लगीं। ये क्या नई कास्टयूम है, ऐसी क्या हमारी सोसायटी में पहनते है, क्या इसकी बुद्धि सठिया गई है? पब पार्टियों में क्या ये कास्टयूम पहनकर जाएँगे हम लोग? वे महिलाएं आपस में बड़बड़ाती हुई सभागार से बाहर निकलने लगीं।
पारम्परिक कॉस्ट्यूम—सलवार सूट पहने, चुन्नी से माथा ढके, नजरें नीची किए मॉडल के साथ डिजाइनर अभिवादन मुद्रा में गेट पर खड़ा था।
॥4॥ चुनाव
गृहमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में एक कुख्यात अपराधी-गुट और पुलिस-दल के बीच जबरदस्त गोलीबारी हुई। इस गोलीबारी में गुट के कुछ साथियों के साथ गुट का सरगना व कुछ पुलिसवाले भी मारे गए। टी.वी. पर खबर देख गृहमन्त्री बेहद व्यथित हो गए, खाना बीच में छोड़ दिया।
‘‘क्या हुआ अचानक आपको, जो निवाला भी छोड़ दिया? राज्य में आज से पहले भी ऐसी कई बार घटनाएँ हुई हैं, जिन्हें कभी आपने इतने मन से नहीं लिया।'' पत्नी बोली।
‘‘ऐसी घटना भी तो मेरे साथ पहली बार हुई है।''
‘‘मैं समझी नहीं।''
‘‘जो सरगना मरा है, उसी के दम पे तो अब तक मैं चुनाव जीतता आया हूँ।'' गृहमन्त्री जी हाथ धोते बोले।
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12 comments:
सुनील जी की पहली और चौथी लघुकथा खास तौर पर पसंद आईं। दूसरी और तीसरी का प्लाट अच्छा है, पर उन पर और काम करने की जरूरत है। बधाई।
सुनील की चारों लघुकथाएं ध्यान खींचती हैं। किन्तु पहली और दूसरी लघुकथा मुझे कहीं अधिक प्रभावकारी लगीं। बधाई !
शुरु की तीन लघुकथाएँ अच्छी हैं
मैं भी नीरव की बात से सहमत हूं. बल्कि सच कहूं तो तीसरी लघुकथा कमजोर है, पहली और दूसरी निश्चित ही महत्वपूर्ण हैं, लेकिन चौथी भी प्रभावकारी है. भारतीय राजनीति की हकीकत है यह.
चन्देल
प्रथम कहानी मन की व्यथा उड़ेल गई और याद आई एक उक्ति -वह सच बोलना भी क्या हुआ जिससे नुकसान ही नुकसान हो I
सुधा भार्गव
laghukahaniyaa bahut achhi ban padi hain . her kahani mein ek baat hai
असरकारी लाघुकथायें...
sarthak rachanaye
सुनील जी ...आपकी चारो लघु कहानियां ..बहुत असरदार बन पड़ी है
सोचने को मजबूर करती है ...आज की सच्चाई को
Laghukatahyein apni laghuta ke evas apna sandesh bakhooobi pahuncha rahi hai
Badhayi
सुनील जी ,
लघु कथा कहूँ , हास्य कथा कहूँ , चुटकुले कहूँ ,
जग बीती कहूँ सुनील जी या हाज़िर जवाबी कहूँ ,
लघु कथा का यह प्रयास अच्छा लगा | बधाई हो |
सुनील जी ,
लघु कथा कहूँ , हास्य कथा कहूँ , चुटकुले कहूँ ,
जग बीती कहूँ सुनील जी या हाज़िर जवाबी कहूँ ,
लघु कथा का यह प्रयास अच्छा लगा | बधाई हो |
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