Thursday, 10 December 2009

मलयालम लघुकथाएँ

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चुरु(राजस्थान) से भाई डॉ रामकुमार घोटड़ का अनुरोध आया कि तेलुगु-लघुकथाओं के उपरान्त इस माह मलयालम की लघुकथाओं को जनगाथा पर दिया जाय। उनके आदेश का पालन करते हुए, स्वयं द्वारा संपादित लघुकथा-संकलन मलयालम की चर्चित लघुकथाएँ से चुनकर प्रस्तुत कर रहा हूँ ये लघुकथाएँ

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पितृ-आत्माओ सावधान!
किलिरूर राधाकृष्णन
च्चा भीगी धोती पहनकर तर्पण करने बैठा। उसके पिता की मृत्यु हुई थी।
झारी के आगे जल छिड़ककर हाथ धोकर पवित्री पहनो। पंडितजी बोले।
बच्चे ने स्तब्ध-भाव से माता की ओर देखा। माता ने उसे अनूदित कर दिया—“ड्रोप सम वॉटर देअर ऑन द फ्लोर, पुट दैट रिंग-लाइक थिंग ऑन युअर फिंगर।
इतने समय तक पंडितजी स्वयं मुँह खोलकर स्तब्ध-से बैठे रहे और तुरन्त ही चैतन्य होकर अगला उपदेश जारी किया—“मरे हुए व्यक्ति का नाम और जन्म-नक्षत्र विचारकर, इस धारणा के साथ किआत्मा को दे रहा हूँतिल, फूल, चन्दन और जल मिलाकर…
मम्मी के ट्रांसलेशन के लिए उठी हुई आँखों और उस बैठे बच्चे को मैंने सहानुभूति के साथ देखा।
मरे हुए उस बेचारे की आत्मा शायद अब किसी अंग्रेजी माध्यम के एल के जी में प्रवेश पाने को भटक रही होगी।

धन्धा
अबुल्लिस ओलिप्पुड़ा
कमलाक्षी कल रात को कमाए हुए पैसे गिन रही थी। तभी उसने देखा कि आँगन में दो युवक खड़े हैं। एक के हाथ में एक कैमरा भी है।
एक ने कहा—“हम पत्रकार हैं…आप-जैसे लोगों के बारे में हम एक फीचर तैयार कर रहे हैं। अगर आपको एतराज़ न हो तो आपकी एक फोटो और…कुछ जानकारी भी दे सकें तो…अच्छा रहेगा।
कमलाक्षी मुस्कराई। उसने युवकों को आवश्यक जानकारी दी। दोनों सन्तुष्ट होकर वापस चले गए।
उसी दिन, रात को उन युवकों में से एक, पुन: कमलाक्षी के कुटीर के सामने दिखाई पड़ा।
कमलाक्षी ने पूछा—“अब क्या जानना बाकी है?
उसने जवाब दिए बिना पचास रुपए का नोट निकालकर कमलाक्षी की ओर बढ़ाया। फिर कमलाक्षी की कमर पकड़कर अन्दर घुस गया।
तब कमलाक्षी ने कहा—“आपने पूछा था न कि हम लोग यह धन्धा बन्द क्यों नहीं करतीं? बाबूजी,…आप-जैसे लोग जब तक इस दुनिया में हैं, हम यह धन्धा बन्द नहीं कर सकतीं।

आघात
सजीवन कल्लाच्ची
मास्सा…ऽ…ब, ये लोग हमें खेलने नहीं दे रहे…गड्ढों में भरा पानी हमारे ऊपर उलीच रहे हैं बार-बार! प्ले-ग्राउण्ड से आवाज़ आई।
यह बारिश के दिनों की एक दोपहर थी। पानी पड़ना हालाँकि रुक गया था, लेकिन स्कूल के मैदान में यहाँ-वहाँ जमा हो गया था।
हे…ऽ…अबे…ऽ…कौन है वहाँ…? आवाज़ सुनकर मास्टरजी की नींद उचट गयी और वे चिल्ला उठे।
दूसरी कक्षा के छात्र हैं मास्सा…ऽ…ब, एक हिन्दू और एक… बच्चों के बीच से पहली कक्षा की सफिया उनकी आवाज़ के जवाब में बोली।
उसका जवाब सुनते ही मास्टरजी की रही-सही नींद भी जाती रही। विस्फारित नेत्रों से उन्होंने लड़की की ओर देखाक्या बोला इसने!!
उनकी आँखों से दोपहर की क्या, जिन्दगीभर की नींद गायब हो गयी।

कुत्ते
मणंबूर राजनबाबू
मुझे कलक्टर साहब से मिलना था। पता चला कि वे अपने निवास पर नहीं, रेस्ट-हाउस पर हैं। घूमता-फिरता अंतत: मैं वहीं जा पहुँचा। मैंने पाया कि रेस्ट-हाउस के पूरे प्रांगण में कुत्ते घूम रहे थे। कलक्टर साहब के प्रिय कुत्ते।
अब, कलक्टर साहब से मिल पाने की दो ही सूरत हैंबाहर खड़ा मैं सोचने लगापहली यह कि इन कुत्तों के घेरे को तोड़कर उन तक पहुँचा जाए; और दूसरी यह कि इनके मुँह में हाथ डालकर इनके हलक से कलक्टर साहब को बाहर खींच लिया जाए।
ये दोनों ही तरकीबें मेरे-जैसे आदमी की ताकत से बाहर थीं; लेकिन साहब से मिलना बड़ा जरूरी था, सो मैं सोचता रहा।
तभी, रेस्ट-हाउस के वॉचमैन ने संकेत से मुझे बुलाया—“क्या चाहिए?
मुझे साहब से मिलना है, लेकिन…। मैंने कुत्तों की ओर इशारा करके अपनी शंका उस पर जाहिर की।
तुम्हारे साथ यह कौन है?
बेटी है मेरी।
ठीक है। वह मूँछें मरोड़ते हुए सीना फुलाकर बोला—“इस निवाले को इधर ही छोड़ जाओ और अन्दर जाकर साहब से मिल लो।
उसके इस कथन से मुझे थोड़ी राहत-सी मिली और मैं भीतर घुस गया, लेकिन उसकी दरियादिली का मतलब बहुत देर बाद मेरी समझ में तब आयाजब कलक्टर साहब से मुलाकात के बाद मैं बाहर आया।
कुत्ते उस अबोध की बोटियाँ नोंच-खसोट चुके थे।

ज्वालामुखी
सी वी बालकृष्णन
सीढ़ियाँ उतरती हुई पत्नी नीचे कमरे में आयी। आवाज़ सुनते ही वह सोफे पर उठ बैठा। कमरा एक अनोखी खुशबू से महक उठा। अतीव आश्चर्य के साथ उसने पत्नी की ओर देखा।
बेशक मेरी पत्नी चन्द्रमुखी है। इतनी सुन्दर श्रीमती के साथ जीते इतने साल हो गये! पहनी हुई यह रेशमी साड़ी मैंने शादी के दिन इसे प्रेजेन्ट की थी।वह उसे देखता ही रह गया।
पत्नी एक मुस्कराहट के साथ उसके करीब आ बैठी।
आप मुझे ऐसे क्या देख रहे हैं, जैसे पहले कभी न देखा हो।
नहीं तो… सुनते ही उसके मुँह से निकला।
सोफे में बैठे-बैठे ही सोने का इरादा है क्या? पत्नी दोबारा मुस्करायी।
नहीं तो। वह फिर बोला।
अभी सो जाने का समय नहीं हुआ है। मैं आपके लिए पान लगा लाऊँ?
पत्नी की बातें सुनकर उसे बहुत ही खुशी हुई। श्रीमती पान का डिब्बा ले आयी, समीप बैठी और पान बनाने लगी। चाँदी का डिब्बा था। पान बनाते वक्त उसने देखा कि श्रीमती की उँगलियाँ बहुत ही सुन्दर थीं। उसने श्रीमती से कहा,बहुत दिन बाद इतने प्यार से पान लगा रही हो।
पत्नी कुछ बोली नहीं, सिर्फ मुस्कराती रही। फिर बोली,आगे से मैं आपको हमेशा इसी तरह पान खिलाती रहूँगी।
वह और भी खुश हुआ। मन में श्रीमती के प्रति प्रेम बढ़ा। उसने प्यार से पत्नी के बालों में हाथ फेरा। श्रीमती ने पान का बीड़ा देने के लिए हाथ उसकी ओर बढ़ाया। उसने लेने से इन्कार किया।
प्यार से पत्नी ने अपने हाथों से उसके मुँह में पान रखा। वह पान चबाने लगा। पान खाने में मस्त रहा। पान की सुगन्धित और स्वादभरी पीक से उसका मुँह भर गया।
आप यहाँ क्या कर रहे हैं? नींद आ रही है तो बैडरूम में जाकर नहीं सो सकते क्या? अचानक श्रीमती की दोपहर के सूरज-सी तीखी आवाज़ सुनते ही वह चौंककर उठ बैठा।
पत्नी ने तीखी नजरों से उसकी ओर देखा।
मैं एक बहुत ही सुन्दर सपना देख रहा था। वह धीरे-से बोला। बिना कुछ बोले मुँह बिचकाकर वह रसोई की ओर चलती चली गयी। जैसे-ही वह रसोईघर तक पहुँची, उसने पीछे से उसे आवाज़ दी—“सपना सुनोगी?
अपना पागलपन अपने पास रखो। वह बोली और रसोई में घुस गयी।

उपनयन
कण्णन मेनन
उपनयन-कर्म और दोपहर का भोजन करने के बाद, लम्बी बोरी में दक्षिणा के रूप में मिले हुए नयी धोती, चावल और नारियल आदि को भरते हुए तन्त्रि के पास सुब्रह्मण्यम जा खड़ा हुआ। तन्त्रि हँसा, साथ में वह भी।
कल पिताजी ने बताया था कि स्वामी एक बड़े पण्डित हैं।
उसने गर्व से सिर हिलाया।
मुझे एक शंका है।
क्या है?
हम क्यों यह पवित्र-धागा धारण करते हैं? सुब्रह्मण्यम ने जनेऊ को छूकर पूछा।
तन्त्रि थोड़ा हिचकिचाया। बोला,क्या तुझे मालूम नहीं?
नहीं।
तू ब्राह्मण है, इसलिए यह पवित्र-धागा धारण करना है।
मेरा शरीर खुजला रहा है। मैं इसे उतारने जा रहा हूँ।
अरे-अरे, ऐसा नहीं करना। बड़ा पाप है।
पाप? पाप यानी क्या है स्वामी?
तन्त्रि को गुस्सा आया। बोला,जो नहीं करना चाहिए उसे करना पाप है।
बच्चे को हँसी आयी। पूछा,तो स्वामी ने कल रात जो सिगार पिया था?
बच्चा मुझे कष्ट देने के भाव से ही आया हैयह उसे पता चल गया।
वह तो मजाक में पिया था।
तो मजाक में पाप कर सकते है?
वह कुछ नहीं बोला। बच्चे ने फिर शुरू किया—“कल पिताजी जो बोतल लाये थे, वह खाली कर दिया, है न?
उसने घूरकर उसे देखा।
बच्चे ने छोड़ा नहीं—“स्वामी, ब्राह्मण लोगों के लिए मद्यपान पाप है न?
तन्त्रि दुबक-सा गया। यह कोई सुन रहा है क्या?इसे देखने के लिए उसने चारों ओर नजरें घुमायीं। सत्यानाश! यह शरारती न जाने अब क्या-क्या पूछने वाला है?
शरीर ठीक नहीं था। सारा बदन दर्द कर रहा था। पिताजी ने कहा था कि थोड़ा पीने से कम हो जायगा…इसलिए…एक घूँट…।
यानी, कल ही तुमने दो पाप किया था, है न?
उस छोकरे के मुँह पर एक थप्पड़ मारने का मन हुआ। इसी बीच तन्त्रि द्वारा पहनाए गए पवित्र धागे को उतारकर बच्चे ने धीरे-धीरे उसे अपने निकर के पॉकेट में रख लिया था।
जाकर कुर्ता पहनो। जनेऊ के बिना देखेगा तो कोई क्या सोचेगा? पीछे से पिता ने बच्चे को धिक्कारा।
बच्चे के भीतर जाने का वह क्षण देखकर अपने दोस्तों से बातचीत कर रहे उसके पिताजी को उसने अपने पास बुला लिया।
जल्दी ही उसे किसी डॉक्टर के पास ले जाओ। कुछ गड़बड़ है। क्या-क्या बेमतलब के सवाल उसने मुझसे पूछे? मैं एकदम हड़बड़ा गया!
पिताजी हँसे,मैंने सब सुन लिया। तुम इतने मूर्ख हो, यह मैं नहीं जानता था।

बराबरी
मुंडूर कृष्णन कुट्टी
यह जमीन-जायदाद खरीदने-बेचने की जगह है। हम रजिस्ट्रार कार्यालय के कर्मचारी हैं।
घूस इतनी मिलती है कि शाम तक हमारी तिजौरी भर जायेगी। छोटे और बड़े ओहदों के अन्तर को भूलकर दिन ढलते ही हम रिश्वत की रकम को बाँट लेते हैं। उसमें बराबरी है। इसके अलावा और किसी भी ममले में हम न्याय नहीं करते।
कर्मचारियों में से करीब आधे सत्तारूढ़ दल के अनुयायी हैं और बाकी विपक्षी दल के। परस्पर विमर्श के द्वारा हम ही तय करते हैं कि किस कर्मचारी को किस यूनियन का सदस्य बनना है।
कल एक नया आदमी सर्विस में आया। उसे हमने अभी-अभी गठित गौरी अम्मा यूनियन का सदस्य बनाया। इस तरह उस पार्टी की भी एक शाखा कार्यालय में खड़ी हो गयी।
भेदभाव ठीक नहीं है न!


7 comments:

सहज साहित्य said...

मलयालम लघुकथाएँ जनगाथा में देकर महत्त्वपूर्ण कार्य किया है । अब लगने लगा है लघुकथा भौगोलिक सीमाओं को पार करने लगी है। बहुत साधुवाद !
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

Devi Nangrani said...

Balraam ji
Malayam laghukatahon ka anuwadit swaroop bahut hi beshkimti hai, shaili aur shilp mein bhi kuch mehek hai, pahli laghukatha apne pitta ke antim vidha nibhate hue..Bahut hi satyarth se bheeni hui achi lagi.

Devi nangrani

सुधाकल्प said...

बलराम जी
मलयालम लघुकथाओं का हिन्दी अनुवाद जनगाथा में एक प्रशंसनीय कदम है I यह साहित्य की सशक्त विधा होती जा रही है इस विश्वास की जड़ें गहरा उठी हैं
सुधा भार्गव I

Anuj Kumar said...

ब्लॉग की दुनिया में अभी नया नया ही प्रवेश किया है। बहुत अधिक जानकारी नहीं है॥ सुभाष नीरव जी से सीख रहा हूँ। आपके ब्लॉग भी उनके ही ब्लॉग से पता चले हैं। मलयालम की लघुकथाएं अच्छी हैं। क्या आपने सीधे मलयालम से अनुवाद किया है ?
आपका कार्य सराहनीय है।

प्रदीप कांत said...

श्रेष्ठ चयन

Ashish said...

सभी लगु कथाए अची है अंकल जी

महावीर said...

'जनगाथा' पर मलयालम लघुकथाओं के हिंदी अनुवाद पढ़कर बहुत अच्छा लगा.
सारी कथाओं के कथ्य बहुत सुन्दर हैं. साधुवाद!