लघुकथा संकलन 'शब्दों की हांडी में संवेदनाएं' की सम्पादक स्नेह गोस्वामी लिखित पुरोवाक्
मेरी बात
स्नेह गोस्वामी |
आज के समय में साहित्य की सबसे लोकप्रिय विधा है लघुकथा । आज से लगभग तीस वर्ष पहले तक चुटकुले प्रहसन और फिलर के रूप में जानी जाने वाली लघुकथा अब सभी छोटी बड़ी पत्रिकाओं , समाचारपत्रों , संग्रहों और संकलनों के माध्यम से साहित्य जगत में स्थापित हो चुकी है । लगभग सभी पत्रिकाएं लघुकथा विशेषांक निकाल रही हैं या निकाल चुकी हैं तो इसका श्रेय 1 इसकी संक्षिप्तता, 2 रोचकता, 3 मारक पंचलाइन, 4 गठी हुई भाषा शैली और विषय वैविध्य को दिया जा सकता है ।
लघुकथा की शब्द सीमा, आकार, पंचलाइन और कालदोष निर्धारण को लेकर समय-समय पर विभिन्न विद्वानों में मतभेद और तर्क-वितर्क भी सामने आए पर लघुकथाकार अपने तीर-तरकश संभाले इसका रूप संवारने में दत्त-चित्त होकर डटे रहे । परिणामस्वरूप आज हम लघुकथा का एक सर्वमान्य स्वरूप देख पाते हैं । कथानक और कथ्य (भावपक्ष) के रूप में लघुकथा विधा की स्वीकार्यता हो जाने के बाद लघुकथाकारों का ध्यान इसकी कथन शैलियों की ओर गया और वे लघुकथा का रूप संवारने और उसका श्रृंगार करने को कटिबद्ध हो गये । फिर क्या था, हर रोज नये-नये प्रयोग होने लगे । हर रोज नये-नये शब्द, नये प्रतीक और नई लघुकथा शैलियां अस्तित्व में आने लगीं। वैसे तो वर्णनात्मक शैली सभी कथाकारों की प्रिय शैली है जिसमें स्थान-स्थान पर रचकर सजाए गये संवाद आभूषण में जङे हीरों की तरह झिलमिलाते हुए पहले से ही दिखाई देते थे। फिर इस शैली को नाम दिया गया मिश्रित शैली। इसके साथ ही मात्र संवाद शैली में भी बहुत-सी लघुकथाएं लिखी गईं।
अब तो हरि अनंत हरि कथा अनंता के अनुसार, लघुकथा की कई शैलियां दृष्टिगोचर हो रही है यथा–आत्मकथा शैली, एकालाप शैली, डायरी शैली, काव्य शैली, टैलीफोन शैली, तोता मैना शैली, विक्रम बेताल शैली, पत्र शैली, एकांकी शैली, विज्ञापन शैली, समाचारपत्र शैली, पैरोडी शैली, साक्षात्कार शैली, नाट्य शैली, चैट शैली, मानवेतर शैली और प्रतीकात्मक शैली । हालांकि इन सब शैलियों में अभी बहुत कम रचनाएं सामने आई हैं पर लघुकथाकार इन सभी शैलियों में विभिन्न प्रयोग कर रहे हैं और शीघ्र ही हमें अन्य नये प्रयोग भी देखने को मिल सकते हैं ।
यह मेरे हाथ में लिया हुआ संकलन लघुकथा में पत्र शैली की लघुकथाओं पर आधारित है। जब मैंने इस संकलन को संपादित करने का निर्णय लिया तो संशय मन में छाया था । आजकल पत्र लिखने की परंपरा छूट रही है । पत्र लेखन बङे धैर्य का काम था । घर का कोई एकांत कोना तलाशना, फिर कागज कलम दवात का जुगाङ बैठाना और फिर मन की भावनाएं उस कागज पर उंड़ेल देना। कई घंटे की मेहनत से कोई पत्र लिखा जाता, पर पढ़ने पर पता चलता कि ये सब तो लिखना ही नहीं था । तब कागज चिंदी-चिंदी कर फाड़कर फेंक दिया जाता और दोबारा से लिखना शुरु । कई खत तो सात-सात दिन तक लिखे जाते। फिर उनको डाक में डाला जाता। जब पत्र अपने गंतव्य तक पहुँचता तो पत्र पाने वाला उस पत्र को बीसियों बार पढ़ डालता ।
आज मोबाइल के इस मशीनी युग में वह पत्र लेखन के लिए अपेक्षित धैर्य और भावुकता कहाँ। अब तो वाटसएप्प पर, फोन पर दो लफ्जों में ही बात समाप्त हो जाती है । सब शुभकामनाएं और बधाइयां उधार के संदेशों के सहारे चलती हैं । यहाँ से कट, वहाँ पेस्ट या सीधे ही फारवर्ड कर दिया जाता है । ऐसे माहौल में नई पीढ़ी ने तो कभी पत्र लिखा ही नहीं, न पढ़ा । ऐसे में पत्र में लघुकथा शायद आकाश-कुसुम छूने की कल्पना ही न साबित हो । फिर सोचा, कोशिश करने में क्या हर्ज है । कहीं दिमाग में घूम रहा था कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
और सही में, मेरा विश्वास जीत गया । एक सप्ताह के भीतर ढेर सारी पत्र शैली की लघुकथाएं प्राप्त हुईं। उनमें से कुछ लघुकथाएं बहुत खूबसूरती से लिखी गई थी ।
प्राप्त हुई वे सभी लघुकथाएं इस संकलन में शामिल नहीं हो पाई । कुछ लघुकथाएं पत्रशैली के फार्मेट में नहीं थीं। कुछ लघुकथाओं में मात्र पत्र था, लघुकथा नदारद थी । कुछ मित्रों ने मुझ पर दया करके दो-तीन लघुकथाएं भेजी थीं, उनमें से एक ही लघुकथा ले पाई हूँ । आप सब को मेल से ही सूचना दे दी गई है । इन सब लघुकथाओं को न ले पाने का मुझे दुःख है पर मेरी और इस संकलन की अपनी सीमाएं हैं, आशा है आप इसे अन्यथा नहीं लेंगे ।
संकलन में कई लघुकथाओं में हल्की-फुल्की कलम भी चलानी पङी है, कोशिश की है कि कम से कम कलम चले । कुल चौंसठ लघुकथाओं से सजा यह संकलन आप सब के हाथ में है । आप सब की रचनाएं आप सब को 'त्वदीयं वस्तु त्वदीयं समर्पयामि' के भाव से समर्पित कर रही हूँ। स्वीकार करें ।
पसंद तो आप करेंगे ही, ऐसा विश्वास है । पढ़कर जरूर मेल के जरिए या जैसा भी आपको सुविधा हो (फेसबुक, वाटसएप, मसैंजर इंस्टाग्राम) जहाँ भी आपका मन चाहे, बताइएगा कि संकलन कैसा बन पड़ा है ।
स्नेह गोस्वामी
8054958004
1 comment:
आलेख बहुत ही रोचक और पठनीय है।
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