Tuesday, 18 August 2009

'हिन्दी लघुकथा' का लोकार्पण

-->
हिन्दी लघुकथा की वरिष्ठ लेखिका डॉ शकुंतला किरण के बहुप्रतीक्षित शोध हिन्दी लघुकथाका पुस्तक रूप में प्रकाशनोपरांत लोकार्पण दिनांक 26 जुलाई 2009, जवाहर ऑडीटोरियम, अजमेर में लघुकथा के वरिष्ठ कथाकार भगीरथ व बलराम अग्रवाल ने किया। साथ ही उनके कविता-संग्रह एहसासों के अक्सका लोकार्पण राजस्थान उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश वरिष्ठ गीतकार कुमार शिव व ताराप्रकाश जोशी ने किया।
इस अवसर पर बोलते हुए प्रो. अनन्त भटनागर ने कहा कि यह एक प्रामाणिक शोध प्रबंध है, जिसमें लेखिका का श्रम स्पष्ट झलकता है। हिन्दी लघुकथा के साथ-साथ अन्य भाषाओं की कथाओं का लेखा-जोखा भी लेखिका ने प्रस्तुत किया है। उन्होनें पुस्तक के पहले,चौथे और पांचवे अध्याय का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि पहले अध्याय में उन राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों का वर्णन किया गया है जो लघुकथा के उदय में महत्वपूर्ण साबित हुई है लघुकथा के तात्विक विवेचन में उन्होने परिभाषा, बोधकथा, भावकथा, दंतकथा, लतीफा, कहानी आदि की अवधारणा को स्पष्ट किया है। पाँचवे अध्याय में लघुकथा की विशेषताओं और छठे में जीवन मूल्यों पर चर्चा की है।
हिन्दी लघुकथापर आगे चर्चा करते हुए बलराम ने कहा कि शोध का विषय सन् 1975 में ही स्वीकृत हो गया था और 1981 तक थिसिस स्वीकृत भी हो गई थी लेकिन प्रकाशन करीब तीन दशक बाद हुआ। इस महत्वपूर्ण पुस्तक को प्रकाशन के प्रति लेखिका उदासीन ही रही। लेकिन जब इन्दौर के डा. सतीश दुबे ने बताया कि आपकी शोध के अंशों की चोरी होती जा रही है तो मित्रों के आग्रह पर उन्होने इसे अन्ततः प्रकाशित करने का मन बनाया, सौभाग्य का विषय है कि प्रथम लघुकथा संग्रह गुफाओं से मैदान की ओरके सम्पादक भगीरथ व हिन्दी लघुकथाकी पहली शोध पुस्तक की लेखिका डा. शकुन्तला किरण आज दोनों मंच पर विराजमान है और दोनों राजस्थान से है। हमारे लिए यह गर्व का विषय है। इस पुस्तक की सबसे महत्वपूर्ण बात है कि जो मानदंड डा. शंकुतला किरण ने दिये वे आज भी लघुकथा में मान्य है।
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए भगीरथ ने कहा कि यह पुस्तक गहन अध्ययन, मनन, चिंतन व विशलेषण का परिणाम है । ऐसे समय जब लघुकथा आकार ग्रहण कर रही थी, जब साहित्यकार इसका नाम आते ही नाक-भौं सिकोड़ते थे, विश्वविद्यालय द्धारा इस विषय को स्वीकृती देना निश्चय ही महत्वपूर्ण रहा । इसके लिए शोधार्थी एवं राज. विश्वविद्यालय धन्यवाद के पात्र है । इनका शोध कॉपी-पेस्ट या कट-पेस्ट नहीं है जैसे कि डाॅ भटनागर ने कहा यह एक प्रमाणिक ग्रन्थ है। लघुकथा जगत में इस पुस्तक का जबरदस्त स्वागत हो रहा है और आगे के शोधार्थी इस पुस्तक के सन्दर्भ के बिना अपना शोध पूरा न कर पायेंगे । यह आलोचना की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसका आने वाले कई वर्षो तक लघुकथा विमर्श में विशिष्ट स्थान रहेगा।
डा. शंकुतला किरण ने अपने वक्तव्य में कहा कि वह लघुकथा की तरफ तेजी से आकृष्ट हुई और लघुकथा लेखन में संलंग्न हो गई । जब शोध के विषय के चयन की बात आई तो सबसे पहले मानस पर लघुकथा का विषय ही रहा । वह लघुकथा जगत से जुड़ी हुई थी इसलिए संदर्भ सामग्री के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं पड़ी, जब आपातकाल के दौरान सारिकाके लघुकथा विशेषांक की कई रचनाओं पर सेंसर ने काली स्याही पोत दी तब उन्हें लगा कि यह एक शक्तिशाली विधा है, और वह इस शोध पर जुट गई । व्यवस्था के विकृत रूप देखने हो और उनके प्रति आक्रोश व्यक्त करना हो तो लघुकथा एक सशक्त विधा है। प्रकाशन में देरी के कारण बताते हुए कहा कि सक्रिय राजनीति और फिर आध्यात्म की ओर झुकाव ने उन्हें साहित्य के प्रति उदासीन बना दिया था लेकिन अब अहसासों के अक्सकविता संग्रह और हिन्दी लघुकथाके प्रकाशन के साथ ही पुनः साहित्य में प्रवृत हूँ क्योंकि अध्यात्म की तरह साहित्य भी सुकून देता है।

1 comment:

PRAN SHARMA said...

Dr.SHAKUNTLA KIRAN KEE PUSTAK
" HINDI LAGHUKATHAA" KAA SWAAGAT
HAI.