Saturday, 30 May 2009

लघुकथा-लेखन में राजस्थान का योगदान

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महेन्द्र सिंह महलान
पत्र-पत्रिकाएँ
नवरी 1971 में मोहन राजेश ने ब्यावर से प्रकाशित पवित्रा में चार लघुकथाएँ प्रकाशित करना आरम्भ किया। रावतभाटा(वाया कोटा) से 1972 में भगीरथ व रमेश जैन ने लघुकथा को समर्पित देश की प्रथम पत्रिका अतिरिक्त में न केवल प्रकाशित किया बल्कि एक सार्थक दिशा भी दी। लघुकथा को व्यवस्थित रूप देने में इस पत्रिका का बहुत योगदान रहा। ब्यावर से ही मोहन राजेश के संपादकत्व में 1974 में डिक्टेटर साप्ताहिक का दीपावली के अवसर पर अच्छा विशेषांक प्रकाशित हुआ। इससे लघुकथा की पहचान और भी स्पष्ट हो गई। इसी पत्रिका का दूसरा विशेषांक 12 अगस्त, 1976 को भँवर शर्मा और सत्य शुचि के संपादकत्व में आया। यह अंक भी उपयोगी सिद्ध हुआ। जयपुर से प्रकाशित अग्रगामी(संपादक:जुगल किशोर टकसाली) का एक लघुकथा-विशेषांक जून 1977 में कृष्ण कमलेश के अतिथि-संपादन में प्रकाशित हुआ जो बहुत ही चर्चित व उल्लेखनीय रहा। इसमें 29 लघुकथाएँ थीं तथा लघुकथा विषय पर केन्द्रित 3 लेख भी सम्मिलित थे। इस अंक की प्राय: सभी लघुकथाएँ श्रेष्ठता की गिनती में आती हैं।
प्रभाकर आर्य के संपादन में हिंडौन सिटी से प्रकाशित होने वाली पत्रिका युगदाह का भारी-भरकम विशेषांक कृष्ण कमलेश के अतिथि-संपादकत्व में सन 1979 में निकला। इसमें मुलम्मा, बड़ा आदमी, संवेदनशील, हिस्से का दूध, स्थगन, नियति, नसीहत आदि लघुकथाएँ विशेष रूप से अपने तेवर के कारण प्रभावित करती हैं। भगीरथ व पुष्पलता कश्यप के लघुकथा-विषयक लेख इस अंक की विशेष उपलब्धि हैं। ये लघुकथा के विकास और स्वरूप पर पर्याप्त प्रकाश डालते हैं। यह देश का प्रथम लघुकथा-विशेषांक है जिसमें लघुकथारों का सचित्र परिचय प्रकाशित किया गया।
ए हुसैन और क़मर मेवाड़ी के संपादन में कांकरोली से प्रकाशित सम्बोधन ने 1982 के अपने अंक में प्रतियोगिता में पुरस्कृत लघुकथाएँ प्रकाशित कीं। भारत, प्रत्याक्रमण, खेल जैसी कालजयी लघुकथाएँ इसी अंक की उपलब्धि हैं। वर्ष 1988 में सम्बोधन ने लघुकथा-विशेषांक भी प्रकाशित किया जिसमें मनुष्य के चरित्र-पतन, घनीभूत होती कठिनाइयों, मुखौटाग्रस्त तथा अवसरवादी एवं पलायनवादी प्रवृत्तियों को अनावृत्त करने वाली सशक्त लघुकथाएँ, सटीक समीक्षाएँ, स्तरीय बातचीत व आलेख थे।
प्रताप सिंह शेखावत के संपादन में जयपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका कर्म चिन्तन का जनवरी 1983 में लघुकथा-प्रतियोगितांक प्रकाशित हुआ। इसमें गिरोह का आदमी(कालीचरण प्रेमी), आउट(कमल चोपड़ा), पेट पर लात(विक्रम सोनी), आटा और जिस्म(सतीश राठी), थूक सने चेहरे(महेन्द्र सिंह महलान), कुत्ता-पाठ एक(राजकुमार सिंह) जैसी यादगार रचनाएँ इस अंक की देन हैं। कर्म चिन्तन का जनवरी 1985 का अंक लघुकथा-विशेषांक के रूप में निकला। सम्बोधनकर्म चिन्तन के ऊपर लिखित अंक बहुत चर्चित एवं प्रशंसित रहे। इनके साथ ही युवा हस्ताक्षर(हिण्डौन सिटी) तथा लहर(अजमेर) के लघुकथांक भी कम महत्वपूर्ण नहीं थे।
वर्ष 1987 में हनुमानगढ़ से महेश संतुष्ट के संपादन में राजस्थान साहित्यिक का एक लघुकथा-विशेषांक तथा एक मिला-जुला साहित्यांक छपा। लघुकथांक में राष्ट्रीय व राज्य स्तर के कुछ चोटी के लेखकों की रचनाओं के अलावा श्रीगंगानगर जिले के कई उदीयमान लेखकों की रचनाएँ भी थीं। जिले के लघुकथाकारों को प्रकाश में लाने की दृष्टि से इन दोनों ही अंकों की उपयोगिता विशेष परिलक्षित होती है। वर्ष 1979 में मोहन योगी व महेन्द्र सिंह महलान के संपादकत्व में राजस्थान सावित्री के अंकों में रमेश सिंह राणावत व श्रीराम मीणा की व्यंग्य-प्रधान तीखी लघुकथाएँ थीं। श्रीगंगानगर से स्नेह इन्द्र गोयल के संपादन में प्रकाशित होने वाले स्नेहिल संदेश में लगातार श्रेष्ठ रचनाएँ देखने में आती रही हैं। श्रीगंगानगर से ही छपने वाले लोक सम्मत, दैनिक प्रताप, नियति आदि में भी लघुकथा पर उपयोगी सामग्री प्रकाशित होती रही है।
जयपुर से प्रकाशित होने वाली प्रदेश की मुख्य साप्ताहिकी इतवारी पत्रिका ने शुरू-शुरू में यद्यपि लघुकथाओं से परहेज किया, लेकिन 1978-79 में पहली बार इस पत्रिका ने पुष्पलता कश्यप की लघुकथाएँ धारावाहिक रूप से 11-11 की संख्या में सचित्र छपीं। ये लघुकथाएँ अत्याधिक चर्चित व प्रशंसित हुईं और इन्होंने राजस्थान प्रदेश के पत्रों में छाई जड़ता को तोड़ने व इस विधा को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण कार्य किया। जयपुर से प्रकाशित दैनिक नवज्योति में भी स्तरीय लघुकथाएँ छपती रहीं हैं।
राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर की पत्रिका मधुमती में श्रेष्ठ लघुकथाएँ छपती रही हैं। इस अकादमी और युगधारा के संयुक्त तत्वावधान में नवन्बर 1992 में अकादमी के सभागार में एक लघुकथा-संगोष्ठी का आयोजन किया गया था।
इन पत्र-पत्रिकाओं के अलावा अलवर विचार टाइम्स, विवेक विकास, सूर्यमुखी, निरन्तर कालबोध, प्रताप केसरी, तटस्थ, आसंगिनी, परिदृष्टा, लोक शासन, प्रभासिका, बात तो चुभेगी, युवादृष्टि, राजस्थान शिक्षक, शिविरा, लोक संपर्क, श्रमोपदेशक, अपूर्ण, राही, जगमग दीप ज्योति, राजस्थान विकास, विश्वम्भरा, वरदा, गुलजस्ता, परिणय संदेश, वातायन, सीमा संदेश, राजस्थान सुजस तथा शेष इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं ने भी लघुकथा के प्रकाशन एवं प्रचार-प्रसार में सहयोग देकर राजस्थान की साहित्यिक एकजुटता का परिचय दिया है।
राजस्थानी भाषा की पत्र-पत्रिकाएँ
राजस्थानी भाषा में लघुकथा का अंकुरण किशोर कल्पनाकांत द्वारा संपादित ओलमो के सन 1954 में प्रकाशित प्रवेशांक में छपी मुरलीधर व्यास की प्रभु से धरम तथा ललित कुमार की आवाजभेद शीर्षक लघुकथाओं के रूप में दिखाई देता है। यद्यपि इन लघुकथाओं में लघुकथा के सभी आधुनिक गुण मौजूद नहीं हैं, फिर भी इन्हें लघुकथा की श्रेणी में रखने से नकारा नहीं जा सकता। इस अंक में ये रचनाएँ नानकड़ी कांणी यानी छोटी कहानी स्तंभ के अन्तर्गत प्रकाशित हुई थीं। डॉ रावत सारस्वत द्वारा संपादित मरुवाणी(अंक 2, 1956) में शान्ति शर्मा की रचना बिचारो दिनकर लघुकथा के रूप में दृष्टिगत है। 1956 में ही अद्भुत शास्त्री द्वारा संपादित कुरजा-1 में लघुकथा स्तंभ के अन्तर्गत श्रीलाल नथमल जोशी की रचना गोथळी रा लाड छपी। अगस्त 1973 में रमेश बतरा के संपादन में तारिका का लघुकथा-विशेषाँक प्रकाशित हुआ। विविध भाषाओं के इस विशेषांक में राजस्थानी भाषा की लघुकथाएँ भी थीं।
राजस्थली त्रैमासिक के सितम्बर-दिसम्बर 1980 अंक को उसके संपादक श्याम महर्षि ने लघुकथांक के रूप में प्रकाशित किया। इसमें हिन्दी और राजस्थानी भाषा की लघुकथाएँ राजस्थानी में छापी गई थीं। इनमें मुकुट सक्सेना की धर्मालु, श्रीकांत मंजुल की अक्कलवान एवं भगीरथ की बगलो भगत उल्लेखनीय रहीं। बीकानेर से प्रकाशित होने वाली राजस्थानी भाषा एवं साहित्य संगम की पत्रिका जागती जोत में भी लघुकथाएँ छपती रही हैं। रूपराम आशादीप के संपादकत्व में श्रीगंगानगर से प्रकाशित त्रैमासिक गोरबंद के 1988-89 के संयुक्तांक में प्रदीप नील, सेवासदन मनोज, मदन अरोड़ा, जया नर्गिस, निरंजन जमींदार, शराफत अली खान तथा महेन्द्र सिंह महलान की हिन्दी लघुकथाओं के राजस्थानी भाषा में सुन्दर अनुवाद देखने को मिलते हैं।
जोधपुर से प्रकाशित मासिक माणक राजस्थानी भाषा की व्यापक प्रसार-प्रचार वाली एक उत्कृष्टपत्रिका है। इसमें लघुकथा स्तम्भ के अन्तर्गत प्राय: स्तरीय लघुकथाएँ प्रकाशित होती रही हैं।
(शेष आगामी अंक में…)

2 comments:

अजय कुमार झा said...

mahendra bhai...badi hee durlabh aur upyogee jaankaaree dee aapne...

बलराम अग्रवाल said...

बहुत उपयोगी लेख। महेन्द्र सिंह महलान का वर्तमान पता और फोन/मो0 नं अगर उपलब्ध हो जाता तो अच्छा रहता।