दिनांक 02-10-2020 से आगे
समीक्षा की कसौटियाँ और लघुकथा
5वीं समापन किस्त
उक्त तथ्य को कतिपय सुस्पष्टतर करने के उद्देश्य से लघुकथा के काल-खण्डों पर दृष्टिपात आवश्यक है। काल-क्रम की दृष्टि से लघुकथा को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया जाता है—प्रथम, मध्य एवं उत्तर। प्रारम्भिक काल में लघुकथाओं का स्वरूप लोककथाओं आदि का है। दूसरा, मध्य काल की लघुकथाएँ हिन्दी साहित्य के प्रारम्भिक दौर की हैं तथा तीसरा 19वीं सदी से आगे जो आधुनिक एवं उत्तर-आधुनिक है। यदि भाषा, कथ्य, शिल्प, पात्र, संवाद, काल, परिस्थिति की दृष्टि से इनका विश्लेषण हो तो तीनों कालों में सभी के स्वरूप एक-दूसरे से भिन्न नजर आएँगे।
अतः, एक फिक्स्ड पैटर्न कभी भी लघुकथा समीक्षा की कसौटी नहीं बन सकता। उक्त तथ्य विविध विचारकों के विचारों एवं सिद्धान्तों द्वारा भी पुष्ट होता है।
अस्तु, यह निष्कर्षित होता है कि लघुकथा में आनन्द तत्त्व, रसोद्रेक की उपलब्धि हेतु जिन तत्त्वों की तलाश की जाएगी वे ही उसकी समीक्षा के मुख्य बिन्दु होंगे।
यथा—
- प्रेरक एवं उपयोगी हो
- अनुरंजक हो
- सत्य सन्निहित हो।
- विरेचन में सहायक हो।
- सहज सम्प्रेषणीय हो।
- कल्पना एवं सत्य का सन्तुलित समन्वय हो।
- वागाडम्बर, अपरिपक्वता भाषा में न हो।
- प्रबल भावों एवं संवेगों से समन्वित हो।
- उच्च विचारों की सशक्त अभिव्यक्ति हो।
- उत्कृष्ट कथ्य हो।
- भाषा एवं शैली में कलात्मक उत्कर्ष एवं आकर्षण हो।
- कृति का तथ्यगत विश्लेषण किया जाए।
- प्रभावोत्पादकता का स्वरूप उत्कृष्ट हो।
- मानव-मूल्यां की संरक्षक हो।
- प्रच्छन्न अर्थ का समावेश हो।
लक्ष्य तक पहुँचानेवाले उन तत्त्वों की तलाश के लिए समीक्षक को निम्न माध्यम स्वीकार करने होंगे—
- ‘कला जीवन के लिए’ एवं ‘कला कला के लिए’—इन दोनों दृष्टियों से समीक्षक समन्वित हो।
- अप्रस्तुत एवं प्रच्छन्न की तलाश के लिए समीक्षक भावों-अनुभवों का कोष हो।
- अन्य शास्त्रों एवं विज्ञानों का सम्मिलन एवं समन्वय तलाशना होगा।
- भाव-पक्ष एवं कला-पक्ष के समन्वित रूप का विश्लेषण एवं प्रभावोत्पादकता का आकलन करना होगा।
- शस्त्र एवं शास्त्र के रूप में उपयोगिता की तलाश।
- मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण।
- तुलना द्वारा श्रेष्ठता एवं उपयोगिता का आकलन।
- श्रेष्ठता एवं उसके कारणों की तलाश।
- कृति का स्वतन्त्रा विश्लेषण।
अतः आनन्द तत्त्व-लक्ष्य की सिद्धि के लिए विविध तत्त्वों का सहयोग अपेक्षित है जिसकी तलाश समीक्षक कुछ माध्यमों की सहायता से करता है। अतः लक्ष्य, लक्ष्य के साधक तत्त्व एवं उन तत्त्वों की तलाश के माध्यम ही समीक्षा-बिन्दुओं की सम्पूर्णता की राह प्रशस्त करते हैं।
सम्पर्क : हिन्दी विभागाध्यक्ष, वाई.एन. कॉलेज, दिघवारा, सारण-841301 (बिहार)
मो. : 098350 93696
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