दिनांक 10-10-2020
लघुकथा की संरचना एवं समीक्षा-बिन्दु-1
पहली कड़ी
लघुकथा के समीक्षा-बिन्दु पर विस्तार से चर्चा करने से पूर्व लघुकथा को अन्य अनेक मनीषियों ने जिस तरह परिभाषित किया है क्रमशः उनकी परिभाषाओं को देख लेना न्यायसंगत होगा—
आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री—‘‘जैसे महाकाव्य के आंशिक गुणों से युक्त काव्य को खण्ड-खण्ड अथवा गीतिकाव्य कहा जाता है उसी प्रकार कथा शिल्प के आरम्भ से चरमबिन्दु तक के अनेक तत्त्वों को प्रभावशाली ढंग से आत्मसात् कर जो विधा प्रकाश में आई उसे हम लघुकथा कहते हैं।’’
विष्णु प्रभाकर—‘‘लघुकथा अपने आपमें एक स्वतन्त्रा, सशक्त विधा है, सतसैया के दोहरे, ‘देखन में छोटे लगें घाव करें गम्भीर’वाली बात सही नहीं है, इसकी शक्ति के पीछे सामाजिक परिवर्तन की पूरी प्रक्रिया है। वह अन्य विधाओं की तरह जीवन के यथार्थ को अंकित करती है और जीवन की आलोचना भी करती है...लघुकथा की विशेषता चौंकाना नहीं है, न मात्रा स्तब्ध करना है। वह तो सूत्रा रूप में विराट जीवन की व्याख्या करती है। उसकी अपनी भाषा होती है, न भावुकता, न उफहापोह, न आसक्ति, पर अर्थ-वहन की क्षमता में अपूर्व।’’
डॉ. सतीश दुबे—‘‘लघुकथा मानव-मन की अभिव्यक्ति को कुछ शब्दों में प्रभावशाली ढंग से कह डालनेवाली सशक्त विधा है। इसकी मारक शक्ति उतनी तेज तथा संवेदना के तन्तुओं को प्रभावित करनेवाले तत्त्व इतने शक्तिशाली होते हैं कि उनका प्रभाव अभूतपूर्व होता है।’’
डॉ. शंकर पुणताम्बेकर—‘‘लघुकथा आकार में लघु, किन्तु अपनी गहन अर्थगर्भी शैली के द्वारा समाज व्यवस्था के व्यापक सन्दर्भों से जुड़ी ऐसी कथा है जिसकी सघन संवेदना चेता को एकदम स्पन्दित कर देती है।’’
डॉ. कृष्ण कमलेश—‘‘लघुकथा एक सुगठित विधा है। सामान्यतः यह सीधी, पैनी और कंडेस्ड होती है। यह अपने आपमें किसी बेहतर पफॉर्म की तलाश है जो हर तौर पर कहानी के समीप है और इसकी सार्थकता इसके विचार सम्प्रेषण में निहित है।’’
मधुदीप—‘‘लघुकथा में उद्देश्य पर सीधा प्रहार होता है।’’—‘‘यह विस्तृत से अणु की ओर यात्रा है और उस अणु का सही-सटीक वर्णन करना ही लघुकथा का अभीष्ट है।’’
पृथ्वीराज अरोड़ा—‘‘प्रामाणिक अनुभूतियों पर आधारित किसी एक क्षण को सुगठित आकार के माध्यम से लिपिब( किया गया प्रारूप लघुकथा है।’’
भगीरथ—‘‘लघुकथा में जीवन के किसी जीवन्त क्षण, लघु किन्तु महत्त्वपूर्ण अनुभव, अनुभवजन्य विचार एवं संवेदना तथा कथ्य की स्वतन्त्र रूप में कम-से-कम शब्दों में सशक्त अभिव्यक्ति कर सकने की क्षमता होती है।’’
डॉ. स्वर्ण किरण—‘‘लघुकथा जीवन के घनीभूत मर्मस्पर्शी प्राण का द्रव रूप है जिसमें सहृदय पाठक को बाँधने और बँधने की क्षमता युक्त है। आकारिक लघुता, व्यंग्यता एवं लक्ष्य बन्धकता लघुकथा के प्राण हैं।’’
नरेन्द्र प्रसाद ‘नवीन’—‘‘हृदय तथा मानस तन्त्र की एक झंकार से उत्पन्न अल्प शब्दात्मक कथा भाव प्रेषणीयता ही लघुकथा है।’’
डॉ. माहेश्वर—‘‘दरअसल कम-से-कम शब्दों में, कापफी पुरअसर ढंग से जिन्दगी का एक तीखा सच कथा में ढाल दिया जाय तो वह लघुकथा कहलाएगी।’’
पूरन मुद्गल—‘‘उपन्यास को यदि हम रमणीय उद्यान कहें और कहानी को एक ऐसा गमला जिसमें एक ही पौधे का समुन्नत रूप दृष्टिगोचर हो, तो लघुकथा को डाली से तोड़े हुए ताजा फूल की उपमा दी जा सकती है।’’
महावीर प्रसाद जैन—‘‘लघुकथा कम-से-कम शब्दों में असरदार ढंग से कही गई किसी भी संवेदना की प्रस्तुति है।’’
कृष्णानन्द कृष्ण—‘‘आज की व्यवस्था की विसंगतियों में कई-कई स्तरों पर खण्डित और जटिल होते क्षणों को तेजाबी तेवर और मर्मान्तक पीड़ा के साथ, कैमरे के क्लिक के साथ कैद करके प्रस्तुत करती हैं, आधुनिक लघुकथाएँ।’’
डॉ. शकुन्तला किरण—‘‘लघुआकारीय, गद्य कथात्मक रूप से जीवन के किसी ज्वलन्त क्षण/सूक्ष्म सत्य की तरह वह अभिव्यक्ति जो अपने प्रखर ताप/तीखेपन से पाठकीय चेतना को झकझोर दे, उन्हें कोई गम्भीर चिन्तन-बीज दे सके।’’
रमेश बतरा—‘‘यह लघुकथा किसी प्रकार का सार संक्षेप न होकर कहानी की ही पृष्ठभूमि पर उसके स्वरूपात्मक सन्दर्भों से जुड़ी वह लघु रचना है, जिसमें केवल शब्द ही सीमित होते हैं, चिन्तन नहीं। इसके कथानक प्रतिबन्धित नहीं, अपितु मर्यादित होकर कथ्य का निर्वाह करते हुए सीधे और सपाट ढंग से विषय में निहित मर्म का प्रतिपादन करते हैं।’’
डॉ. कमल चोपड़ा—‘‘लघुकथा एक माइक्रोस्कोपिक पफोकस है जो एक अणु की तरह अपरिमित उफर्जा अपने में समाए रखती है और ‘स्पॉट लाइट’ की तरह एक स्थिति पर ही रौशनी का एक गोल घेरा छोड़ती है और पूर्णतया जगमगा देती है।’’
डॉ. शमीम शर्मा—‘‘लघुकथा दिग्भ्रमित मुसाफिर की उँगली पकड़कर मंजिल तक नहीं छोड़कर आती...बस दूर से ही मंजिल की ओर संकेत मात्रा कर देती है।’’
बलराम—‘‘कोई कथ्य जिसे संक्षेप में कहा जा सकता है, वही लघुकथा का कथ्य होगा।’’
विक्रम सोनी—‘‘जीवन का सही मूल्य स्थापित करने के लिए व्यक्ति और उसका परिवेश, युगबोधों को लेकर कम-से-कम और स्पष्ट सारगर्भित शब्दों में असरदार ढंग से कहने की विधा का नाम लघुकथा है।’’
मन्नू भण्डारी—‘‘लघुकथा को एक स्वतन्त्र विधा के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए क्या? आन्तरिक शक्ति का विकास कर लेने के बाद यह स्वतन्त्र विधा बन भी सकती है, इसके लिए कोई नियम नहीं बनाए जा सकते।’’
पुष्पलता कश्यप—‘‘अण्डे की खोल और उसकी सफेदी के अतिरिक्त उसमें जो जर्दी निहित है यानी जो सूक्ष्म है, आच्छादित है और सार्थक है, वही लघुकथा है।’’
धीरेन्द्र शर्मा—‘‘लघुकथा का गम्भीर प्रभाव ‘सतसैया के दोहरे’ की भाँति मन पर पड़ता है, कहाँ क्या हो रहा है, उस पर यह एक ‘स्पॉट लाइट’ डालती है, और क्या नहीं होना चाहिए इसे सोचने के लिए विवश करती है।’’
नन्दल हितैषी—‘‘छोटी कथा में कसाव के साथ कुछ न कहते हुए, बहुत कुछ संकेतों से कह जाना, कुछ इस कदर कि ‘समझदार की मौत’वाली कहावत चरितार्थ हो सके। यानी सही मायने में धारदार-सा अनकहापन रेखांकित हो, लघुकथा की पहली शर्त है।’’
सतीश राठी—‘‘लघुकथा घने काले बादलों में कौंधती बिजली-सी अभिव्यक्ति क्षमता लिए, दो-धारी तलवार-सी पैनी होती है, जो जीवन की तमाम क्रूर विसंगतियों पर वजनदार चोट करने में पूर्णतः सक्षम होती है।’’
राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’—‘‘लघुकथा एक बिलकुल सटीक एवं सार्थक अहसास है, जो यथार्थ के भूगोल को अपने में समेटे एकाएक ज्वालामुखी की तरह विस्पफोट करती है, जिसमें से निकली चिंगारियों का एक-एक लघु अंगार जीवन में व्याप्त छुपी-अछुपी विसंगति, भ्रष्टाचार तथा कुण्ठा का प्रत्येक सजीव चित्र रेटीना पर विश्वसनीय कथ्य लेकर बिलकुल स्पष्ट रूप से खिंच जाए, जो हृदय को स्पन्दित कर दे और मस्तिष्क को मजबूर कर दे कि वह कुछ देर तक अवश्य ही सोचे।’’
डॉ. सतीशराज पुष्करणा—‘‘समाज में व्याप्त विसंगतियों में किसी विसंगति को लेकर सांकेतिक शैली में चलनेवाला सारगर्भित, प्रभावशाली एवं सशक्त कथ्य जब किसी झकझोर/छटपटा देनेवाली लघुआकारीय कथात्मक रचना का आकार धारण कर लेता है तो, लघुकथा कहलाता है।’’
इन सारी परिभाषाओं का अध्ययन करने पर एक बात तो स्पष्ट होकर सामने आती है कि लघुकथा स्थूल से सूक्ष्म की कथात्मक यात्रा है। हालाँकि इसे मैं अपनी परिभाषा के रूप में अनेक बार लिख चुका हूँ। मेरे अनेक-अनेक मित्रा भी इस परिभाषा को बिना मेरा नाम दिए कभी समाचार-पत्रों या अन्य-अन्य स्थानों पर उपयोग कर लेते हैं। खैर...
शेष
आगामी अंक में…………
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