Sunday, 21 March 2021

लघुकथा की विकास-यात्रा में उ.प्र. का योगदान-4 / डॉ. उमेश महादोषी

 (दिनांक 22-3-2021 के बाद)

लम्बे लेख की चौथी व समापन कड़ी

      उपरोक्त लघुकथाकारों में से कई अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय रहे हैं। कई लेखकों ने सोशल मीडिया 

डॉ. उमेश महादोषी
पर लघुकथा के पक्ष में काम किया है, कई के संग्रह प्रकाशित हुए हैं। कई लेखकों ने संपादन के माध्यम से लघुकथा को आगे बढ़ाने में योगदान किया है। कुछ लेखकों के समालोचनात्मक योगदान की जानकारी भी मिली है। आइये उपलब्ध जानकारी के अनुरूप हम उनके योगदान की संक्षिप्त चर्चा भी कर लेते हैं।

      उर्मिल कुमार थपलियाल देश के जाने-माने नाटककार हैं। आपने कई मारक लघुकथाएँ लिखने के साथ लघुकथा पर कुछ समालोचनात्मक कार्य भी किया है। मुझमें मंटो, नारा, समाजवाद, गेट मीटिंग आदि उर्मिल जी की चर्चित लघुकथाएँ हैं।

      डॉ. संध्या तिवारी ने अपनी बिम्बधर्मी एवं प्रतीकात्मक लघुकथाओं और उनमें काव्यात्मक शैली के माध्यम से अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। कविता, अँधेरा उबालना है, चप्पल के बहाने, श्मशान-वैराग्य, अल्प-विराम, और वह मरी नहीं, कौआ हड़उनी, ग्रेड शेड, सिलवट, सम्मोहित, ब्रह्मराक्षस, 254/- आदि आपकी चर्चित लघुकथाएँ हैं। आपके प्रकाशित लघुकथा संग्रह हैं— राजा नंगा है (ई बुक), ‘ततः किम’ एवं ‘अँधेरा उबालना है’। अविराम साहित्यिकी की संपादकीय टीम में सक्रिय भूमिका। कुछ समालोचनात्मक व समीक्षात्मक कार्य भी किया है।

      डॉ. नीरज शर्मा ‘सुधांशु’ नई पीढ़ी की प्रतिनिधि लघुकथाकार, संपादक एवं प्रकाशक-आयोजक के तौर पर जानी जाती हैं। ‘निःशब्द नहीं मैं’ आपका प्रकाशित लघुकथा संग्रह है। बूँद-बूँद सागर, अपने-अपने क्षितिज, सफर संवेदनाओं का, लघुकथा में किसान आदि लघुकथा संकलनों का जितेन्द्र जीतू के साथ संपादन। वनिका पब्लिेकेशन के माध्यम से लघुकथा व अन्य विधाओं की अनेक पुस्तकों का प्रकाशन।

      डॉ. जितेन्द्र जीतू का सृजनात्मक लेखन व्यंग्यादि  अन्य विधाओं में अधिक, लघुकथा में कम है। किन्तु लघुकथा समालोचना के सौन्दर्य शास्त्र पर पीएच.डी. की उपाधि हेतु शोध के साथ हिन्दी लघुकथा पर समालोचनात्मक कार्य काफी किया है। लघुकथा के स्वतंत्र समालोचक के रूप में जाने जाते हैं। आपका शोधग्रंथ ‘समकालीन लघुकथा का सौंदर्यशास्त्र और समाजशास्त्रीय सौदर्य बोध’ तथा डॉ. नीरज शर्मा ‘सुधांशु’ के साथ संपादित- बूँद-बूँद सागर, अपने-अपने क्षितिज, सफर संवेदनाओं का, लघुकथा में किसान आदि लघुकथा संकलन प्रकाशित हुए हैं।

      जयेन्द्र कुमार वर्मा के दो लघुकथा संग्रह ‘और सब ठीक हैं’ व ‘भटका हुआ एक परिन्दा’ की जानकारी प्राप्त है।

      कृष्ण कुमार यादव (आजमगढ़) की लघुकथाएँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। आपने चर्चित पत्रिका ‘सरस्वती सुमन’ के लघुकथा विशेषांक का संपादन किया है। उमेश मोहन धवन का एक लघुकथा संग्रह ‘पीर पराई’ जानकारी में आया है।

      ज्योत्स्ना कपिल ने लघुकथा के सृजन और संपादन दोनों क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है। ‘लिखी हुई इबारत’  उनका लघुकथा संग्रह है। अविराम साहित्यिकी की संपादकीय टीम में सक्रिय भूमिका। आपने दो लघुकथा संकलनों ‘आस-पास से गुजरते हुए’ (डॉ. उपमा शर्मा के साथ) एवं ‘समकालीन प्रेम विषयक लघुकथाएँ’ का संपादन किया है।

      दीपक मशाल ने कई विधाओं में लेखनरत रहते हुए लघुकथा में पर्याप्त योगदान किया है। अनेक महत्वपूर्ण पत्रिकाओं एवं संकलनों में उनकी लघुकथाएँ अपरिहार्यतः प्रकाशित हुई हैं। आपका एक लघुकथा संग्रह ‘खिड़कियों से...’ प्रकाशित हुआ है। दीपक जी कुछ महत्वपूर्ण पत्रिकाओं एवं बेवसाइट्स के संपादन मण्डल से सम्बद्ध रहे हैं।

      वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मिथिलेश दीक्षित अनेक विधाओं में सृजनरत रहते हुए वर्तमान में लघुकथा में भी सक्रिय हैं। आपकी लघुकथाएँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं व संकलनों में प्रकाशित हुई हैं। कुछ आलोचनात्मक आलेख भी लिखे हैं।

     वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल बाबू शर्मा (आगरा) के दो लघुकथा संग्रह ‘काँच के कमरे’ एवं ‘तीस हजारी दावत’ प्रकाशित हुए हैं।

      मीनू खरे ने वर्ष 2000 के बाद के लघुकथा लेखकों के मध्य तेजी से अपना स्थान बनाया है। उनकी लघुकथाएँ अनेक पत्र-पत्रिकाओं एवं संकलनों में प्रकाशित हुई हैं। आपने केन्द्र प्रभारी/सहायक निदेशक के रूप में कार्य करते हुए आकाशवाणी बरेली से व्यक्तिगत एवं सामूहिक लघुकथा-पाठ के अनेक प्रशंसनीय कार्यक्रमों का प्रसारण कराया है।

      गाजियाबाद की डॉ. कुसुम जोशी की पृष्ठभूमि उत्तराखण्ड, जो पहले उ.प्र. में ही शामिल था, की है। अपनी लघुकथाओं में उत्तराखण्ड की भौगोलिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को वह बड़ी सहजता व कुशलता से बुनती हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं व संकलनों में उनकी लघुकथाएँ प्रकाशित हुई हैं। ‘उसके हिस्से की धूप’ आपका लघुकथा संग्रह है।

      सविता मिश्रा ‘अक्षजा’ की अनेक लघुकथाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व संकलनों में प्रकाशित हुई हैं। ‘रोशनी के अंकुर’ उनका प्रकाशित लघुकथा संग्रह है।

      नीलम राकेश अनेक विधाओं में सृजनरत वरिष्ठ लेखिका हैं। उनका लघुकथाओं का एक संग्रह प्रकाशित हुआ है- ‘गुरुदक्षिणा’।

      सीमा सिंह ने ओपन बुक्स ऑनलाइन के तत्वाधान में कानपुर शहर के विद्यालयों-महाविद्यालयों में लघुकथा के प्रचार व प्रसार के लिए सेमिनार, वर्कशॉप व प्रतियोगिताओं के आयोजन किये हैं। शक्ति ब्रिगेड संस्था के महासचिव के रूप में कक्षा छः से दस तक के छात्र-छात्राओं का लघुकथा से परिचय कराने तथा प्रोत्साहन हेतु भी प्रतियोगिताओं का आयोजन कराया है। सोशल मीडिया पर लघुकथा पर चर्चा में सहभागिता। ‘अनवरत वाणी’ में तीन वर्ष ‘लघुकथा खण्ड’ की प्रभारी रहीं, वर्तमान में ‘लघुकथा कलश’ की सम्पादकीय टीम से सम्बद्ध हैं। मन का उजाला, अन्नपूर्णा, पुनर्नवा आदि आपकी महत्वपूर्ण लघुकथाएँ हैं।

      उ.प्र. हिन्दी संस्थान के महत्वपूर्ण सम्मान ‘साहित्य भूषण’ से सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश बाबू मिश्रा ने अन्य विधाओं के साथ लघुकथा में भी पर्याप्त सृजन किया है। ‘सहमा हुआ शहर’ उनका प्रकाशित लघुकथा संग्रह है।  

      सुरेश सौरभ के दो लघुकथा संग्रह- ‘नोट बंदी’ व ‘तीस-पेंतीस’ प्रकाशित हुए हैं। समीक्षात्मक कार्य में भी योगदान कर रहे हैं।     

      अनिता ललित लघुकथा में सृजन के साथ लघुकथा समीक्षक के रूप में भी योगदान कर रही हैं।

      डॉ. लवलेश दत्त ने लघुकथा सृजन के साथ अपने संपादन में प्रकाशित पत्रिका ‘अनुगुंजन’ के लघुकथा विशेषांक के माध्यम से भी योगदान किया है। डॉ. नितिन सेठी (बरेली) स्वतंत्र समीक्षक के रूप में लघुकथा पर पर्याप्त कार्य कर रहे हैं।

      उ.प्र. से लघुकथा से जुड़े कुछ अन्य नामों की जानकारी भी वरिष्ठ साथियों से मिली है, इनमें योगन्द्र शर्मा, बी.आर. विप्लवी व चन्द्रमोहन दिनेश प्रमुख हैं, किन्तु इनके जनपद व अन्य जानकारी मुझे प्राप्त नहीं हो सकी है। 

      अन्य राज्यों को अपनी कर्मभूमि बना चुके डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा, सुमन ओबेरॉय, संदीप तौमर, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, डॉ. पूरन सिंह, शोभा रस्तोगी, पवित्रा अग्रवाल, डॉ. विनीत उपाध्याय आदि कई रचनाकार भी मूलतः उ.प्र. के ही हैं, जिन्हें आलेख की सीमाओं के दृष्टिगत चर्चा में शामिल नहीं किया गया है।

      इस आलेख में हमारी जानकारी में आये उ.प्र. के यथासंभव लघुकथाकारों की चर्चा करने का प्रयास किया गया है, तदापि सबसे बड़े एवं विशाल प्रदेश के सभी लघुकथाकारों से परिचित होना संभव नहीं है। यदि मेरे द्वारा फेसबुक पर दी गयी विज्ञप्ति पर लघुकथाकारों ने स्वयं से जुड़ी सूचनाएँ उपलब्ध करवाने में रुचि ली होती तो इसे और अधिक प्रासंगिक बनाना संभव हो सकता था।

      उ.प्र. के 1971 के बाद के इन लघुकथाकारों की

लघुकथा पर एक संक्षिप्त सामान्य दृष्टि डाली जाये तो राष्ट्रीय स्तर पर समकालीन लघुकथा में उभरकर आये तमाम शिल्प और कथ्य का सामान्य प्रतिबिम्बन इस क्षेत्र की लघुकथाओं में भी दिखाई देता है। जीवन की नयी चुनौतियाँ और बदलते जीवन मूल्य भी सामान्य स्तर पर समाहित हुए हैं। उ.प्र. के कई लघुकथाकारों की कलम से अनेक सार्वकालिक लघुकथाएँ सामने आई हैं। किन्तु क्षेत्रीय स्तर की भाषायी, सांस्कृतिक, राजनैतिक व भौगोलिक भिन्नताएँ और विषमताएँ, विशेषतः पूर्वी और पश्चिमी उ.प्र. के दूरस्थ क्षत्रों से जुड़ी, यहाँ की लघुकथा में बहुत अधिक रेखांकित नहीं हो पायी हैं; यद्यपि कुछेक लघुकथाकार कहीं-कहीं इस सन्दर्भ में अपनी स्थानिकताओं के प्रति जागरूक दिखाई देते हैं। चूकि ये स्थानिकताएँ जमीन से जोड़ने के साथ वैश्विक होती लघुकथा को वास्तविक और सामर्थ्यवान बनाती हैं, इसलिए इन्हें रचनात्मकता से जोड़ा जाना चाहिए।

      अन्त में उपलब्ध पत्र-पत्रिकाओं, बेव पत्रिकाओं, चिट्ठों, संकलनों-संग्रहों एवं विश्व हिन्दी लघुकथाकार कोश (सं. मधुदीप/बलराम अग्रवाल), जिनके अध्ययन के बिना यह आलेख संभव नहीं था, के संपादकों व लेखकों के प्रति विनम्र आभार प्रकट करता हूँ। कुछ छूट रहे महत्वपूर्ण नामों का स्मरण कराने के लिए अग्रज डॉ. बलराम अग्रवाल, सुकेश साहनी, रामेश्वर कॉबोज हिमांशु एवं भाई शराफत अली खान और इस आलेख के प्रेरक भाई योगराज प्रभाकर का भी आभार।

‘लघुकथा कलश’ (आलेख महाविशेषांक-1, जुलाई-दिसंबर 2020; संपादक:योगराज प्रभाकर) से साभार

संपर्क डॉ॰ उमेश महादोषी—121, इन्द्रापुरम, निकट बीडीए कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मो. 09458929004

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