दिनांक
27-3-2021 से आगे तीसरी समापन किस्त
डॉ. रामकुमार घोटड़ के अनुसार राजस्थान या राजस्थान से बाहर आयोजित लघुकथा प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत होने वाले राजस्थान के लघुकथाकारों की संख्या लगभग तीन दर्जन रही है ।
राजस्थान प्रांत से लघुकथा प्रतियोगिताओं का आरंभ नौवें दशक से आरंभ होता है । इन प्रतियोगिताओं का श्रेय पूरी तरह से महेंद्रसिंह महलान(स्व.) को जाता है । उनके दिशा निर्देशन में 1981 से लेकर 1986 तक लगातार लघुकथा प्रतियोगिताएँ आयोजित होती रही तथा प्रतियोगिता में सम्मिलित पुरस्कृत तथा स्तरीय लघुकथाओं को लेकर स्तरीय संकलन भी प्रकाशित किए गए । युवा रचनाकार समिति, फैफाना (श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़) द्वारा 1981 से 1983 तक आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में पुरस्कृत एवं स्तरीय लघुकथाओं का एक संकलन 1984 में महेंद्रसिंह महलान और मोहन योगी के सम्पादन में ‘सबूत-दर-सबूत’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ । इसी प्रकार 1984 से 1986 तक युवा समिति, अलवर द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में पुरस्कृत तथा देश भर में अन्य पुरस्कृत लघुकथाओं का संकलन महेंद्रसिंह महलान और अंजना अनिल के सम्पादन में ‘संघर्ष’ (1987) नाम से प्रकाशित हुआ ।
इसी प्रकार समय-समय पर लघुकथा प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत व स्तरीय लघुकथाओं के जो संकलन/पत्रिकाओं के विशेषांक प्रकाशित हुए वे निम्न प्रकार हैं—
सम्बोधन त्रैमासिक,
लघुकथा
प्रतियोगिता विशेषांक,1982 । संपादक-क़मर मेवाड़ी | (सम्बोधन के संपादक क़मर मेवाड़ी सदैव लघुकथा के पक्षधर रहे हैं । उन्होने सम्बोधन के
तीन लघुकथा विशेषांक निकाले-1982,
1983 और 1986 में ।)
‘प्रेरणा’,
संपादक-डॉ.अमर सिंह और नन्द किशोर ‘नन्द’ । प्रतियोगिता आयोजक-आदर्श भारतीय साहित्यकार परिषद,
जयपुर,
प्रकाशन वर्ष-1982 ।
‘कर्मचिंतन’ (मासिक पत्रिका, जयपुर), विशेषांक, 1983 । आयोजक ‘कर्मचिंतन’ मासिक पत्रिका ।
‘यथार्थ’, संपादक-मोहन सोनी ‘अनन्तसागर’ और प्रकाश पंकज । प्रतियोगिता आयोजक-गुलदस्ता मंच, लोढसर(सुजानगढ़, चूरू) । प्रतियोगिता आयोजन 1987 में, पुस्तक प्रकाशन 1988 में ।
‘वतन के लिए’, संपादक-डॉ.आनंदप्रकाश त्रिपाठी, प्रकाशन वर्ष 2009, आयोजक-जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनू (नागौर), आयोजन वर्ष-2005-06 । यह प्रतियोगिता केवल विश्वविद्यालय में अध्ययनरत हिन्दी साहित्य के विद्यार्थियों के लिए थी ।
पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथाएँ—राजस्थान से प्रकाशित होने वाली कई पत्र-पत्रिकाएँ सम्मानपूर्वक लघुकथाएँ प्रकाशित करती रही हैं । इनमें से प्रमुख हैं—सम्बोधन, लहर, सृजन कुंज, एक और अंतरीप, अक्सर, अभिनव सम्बोधन, मधुमती, तनिमा, शबनम ज्योति, अदबी उड़ान, शेष, चर्चा, निकष, तटस्थ, वातायन, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, दैनिक नवज्योति, जय राजस्थान, राष्ट्रदूत, जलते दीप, युगपक्ष, दैनिक प्रताप केसरी, सीमा संदेश, पवित्रा, दैनिक न्याय, विवेक विकास, अग्रगामी, इतवारी पत्रिका, कर्मचिंतन, अनुकृति, जयवर्द्धन, राजस्थान साहित्यिकी, स्नेहिल संदेश, लोकमत, रसमुग्धा, कथा मंजरी, सौगात, जगमग दीप ज्योति, शिविरा, शब्द सामयिकी, साहित्यांचाल, राजस्थान सुजस, साहित्य समर्था, अनुकृति, स्नेहिल संदेश, मरूक्षेत्र, रसमुग्धा, कंचनलता, सौगात, टाबर टोली, विचार टाइम्स, राजस्थान शिक्षक, राजस्थान विकास, लोकसम्पर्क, डॉ.अंबेडकर और बहुजन, अभयदीप, बाल वाटिका आदि | राजस्थान शिक्षा बोर्ड राजस्थान, अजमेर ने भी माध्यमिक स्तर पर अपने पाठ्यक्रम में लघुकथाएँ सम्मिलित कर इस विधा को गरिमा प्रदान की है ।
शोध कार्य—लघु आकार वाली तथा खास शिल्प वाली कथा रचनाओं लिए ‘लघुकथा’ संज्ञा का सर्वप्रथम प्रयोग बुद्धिनाथ झा ‘कैरव’ ने 1942 में किया था । 1960 आते-आते कई लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके थे । यह विधा ध्यान आकर्षित करने लगी थी । पिछली शताब्दी के छठे दशक से ही इस विधा में शोध कार्य आरंभ हो गए थे । डॉ.रामकुमार घोटड़ के अनुसार लघुकथा विधा में सर्वप्रथम शोध कार्य करने का श्रेय राजस्थान को ही जाता है ।
इस विधा में शोधोपाधि (पीएच.डी.) प्राप्त करने वाले राजस्थान के शोधार्थी हैं—
डॉ. सीता हाण्डा-1959 (राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से), डॉ.शकुंतला किरण, अजमेर-1982 (राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से) डॉ. (श्रीमती) नवनीत, बीकानेर-1996 (महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर से), किरण भटनागर,उदयपुर-2000 (राजस्थान विद्यापीठ, डीम्ड विश्वविद्यालय, उदयपुर से) ।
राजस्थान के लघुकथाकारों के व्यक्तिगत लघुकथा साहित्य पर जो शोध कार्य हुआ है वह निम्न प्रकार है—
कैलाश नारायण (मध्यप्रदेश), 2009-पारस दासोत के लघुकथा साहित्य पर ।
संतोष कुमार शर्मा (अलीगढ़), 2012-13-डॉ.रामकुमार घोटड़ के लघुकथा साहित्य पर ।
लघु शोध उपाधि(एम.फिल.)—लघुकथा में एम.फिल. करने वाले शोधार्थी निम्न हैं :
अभिजीत कुमावत (ब्यावर)-2003, संजय कोटनीश (बीकानेर)-2008, श्रीमती शर्मीला (श्रीडूंगरगढ़)-2008, त्रिलोकसिंह रेगर (झुंझनू)-2009, सुश्री अंजना गुप्ता (कोटा)-2009, नरेश कुमार (राजगढ़, चूरू)-2010 एवं श्रीमती रजनेश (राजगढ़ चूरू)-2011 आदि ।
राजस्थान
के लघुकथा साहित्य पर एम.फिल. करने वाले प्रांत से बाहर के शोधार्थी निम्न
प्रकार हैं—
राजकुमार (कुरुक्षेत्र, हरियाणा)-1998, राजेन्द्र सिंह राजपूत (भोपाल)-2004, विनोद सक्सेना (भोपाल)-2004, सुश्री शिव रजनी महपति (भोपाल)-2004, बलकार सिंह (कुरुक्षेत्र)-2011 आदि ।
राजस्थान
के लघुकथाकारों की कतिपय महत्वपूर्ण लघुकथाएँ—
राजस्थान के लघुकथाकारों की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता है । वे समकालीन सामाजिक यथार्थ का उद्घाटन करते हुए कभी कारुणिक हो उठते हैं तो कभी निर्मम । उनकी लघुकथाओं में संवेदनाओं और आक्रोश का संतुलित मेल होता है | हम यहाँ राजस्थान के लघुकथाकारों की कतिपय ऐसी लघुकथाओं का उल्लेख करेंगे जो प्रांत के बाहर भी प्रबुद्ध पाठकों का ध्यान आकर्षित करने में सफल हुई हैं ।
निम्न और श्रमिक वर्ग के प्रति करुणा—पेंट की सिलाई, रोटी की गंध (डॉ. रामकुमार घोटड़), पेट सबके हैं (भागीरथ), गर्मी (बुलाकी शर्मा), आटे की पुड़िया (रत्नकुमार सांभरिया), लोहा-लक्कड़ (अंजना अनिल), मिड डे मील (कृष्णा भटनागर), भारत (पारस दासोत), माफी (मुरलीधर वैष्णव), साथीड़ा (राधेश्याम मेहर), व्यथा (माणक तुलसीराम गौड़), गाँव बुआ (गोपालप्रसाद मुद्गल) आदि ।
पारिवारिक रिश्ते—सोते वक्त (भगीरथ), माँ (प्रबोधकुमार गोविल), राधा नाचेगी (गोविंद गौड़), मोतियाबिंद, शंकित पल (डॉ.रामकुमार घोटड़), माँ हो तुम (यादवेन्द्र शर्मा ‘चंद्र’), आफत (योगेन्द्र दवे), कोहरा (शकुंतला किरण), चुग्गा (मुरलीधर वैष्णव), बेबसी (पुष्पलता कश्यप), अनुत्तरित प्रश्न (महेन्द्रसिंह महलान), दूर होती दुनिया (गोविंद शर्मा), पश्चाताप (चंद्रेशकुमार छतलानी), बहन का लिफाफा (सत्यनारायण ‘सत्य’), माँ की तस्वीर (माणक तुलसीराम गौड़), बबूल का पेड़ (मनोहरसिंह राठौड़),लेक्चर (अब्दुल समद राही), जायदाद (गोविंद भारद्वाज), बाबूजी का श्राद्ध (रेणु चंद्रा), सपूत (पूर्णिमा मित्रा), राखी की चमक (कविता मुखर), अपने(संजय पुरोहित) आदि ।
भ्रष्ट व्यवस्था—एंटीकरप्शन (मोहन राजेश), दृष्टिकोण (अंजना अनिल), समस्या और समाधान (मदन केवलिया), स्पष्टीकरण (गोविंद गौड़), सरकारी (घनश्यामनाथ कच्छावा), उपवास (माधव नागदा), रेशम का कीड़ा (अपर्णा चतुर्वेदी ‘प्रीता’), एडजस्टमेंट (दिनेश विजयवर्गीय), भयभीत दर्पण (चंद्रेशकुमार छतलानी), कितना कारावास (मुरलीधर वैष्णव), जनहित (गोविंद शर्मा), खुदा (गोविंद भारद्वाज) आदि ।
मध्य
वर्ग की मजबूरियाँ और विरोधाभास—मितव्ययता (प्रकाश
तातेड़),
नौकरीपेशा (पारस दासोत),
इज्जत (सत्य शुचि),
अमरबेल (मोहन राजेश),
अलगाव (रमेश जैन),
अप्रत्याशित (शकुंतला किरण),
निन्यानवे का दंश (मुरलीधर वैष्णव),
रोशनी (नरेंद्र सिंह), क्रेडिट
कार्ड (भगीरथ परिहार),
स्मृतियों में पिता (रघुनंदन त्रिवेदी),
बादशाह (आभा सिंह) आदि |
नारी विमर्श—फूली, भाग शिल्पा भाग (भगीरथ), लड़की बोध, बुढ़ापे का सहारा (रामकुमार घोटड़), परिचय, वह चली क्यों गई (माधव नागदा), प्रति प्रहार (मुकुट सक्सेना), बावड़ी का दुख (कृष्णकुमार ‘आशु’), अभिशप्ता, (आभा सिंह), वर्चस्व (विभा रश्मि), कामवालियाँ (डॉ.संगीता सक्सेना), अदालत (संजय पुरोहित) आदि |
दलित विमर्श—वजूद, अहसास (रत्नकुमार सांभरिया), खामोशी (भगीरथ), पुरस्कार(महेंद्रसिंह महलान), आड़ी जात (अनिता वर्मा), हरिजन (दुर्गेश), अल्फ्रेड (पुष्पलता कश्यप), अछूत (मोहन राजेश), एक युद्ध यह भी (रामकुमार घोटड़), जात (कृष्णकुमार ‘आशु’), रीति-रिवाज (त्रिलोक सिंह ठकुरेला) और इन पंक्तियों के लेखक (माधव नागदा) की ‘डेड’, ‘रूपला कहाँ जाए’ आदि |
सांप्रदायिकता की समस्या—बांग (रत्नकुमार सांभरिया), ज़िंदगी और इमारतें (मदन अरोड़ा), वही लड़की (सत्य शुचि), मजहब (पुष्पलता कश्यप), पागल (हसन जमाल), बीच का दिन (अंबिकदत्त), तुम कौन हो (पारस दासोत), आतंक (भगीरथ), खौफ़, आग (माधव नागदा), धर्म प्रदूषण, मारते कंकाल (चंद्रेशकुमार छतलानी), रोटी का सवाल (रवि पुरोहित) आदि |
कन्या भ्रूण हत्या—निर्णायक क़दम (पुष्पलता कश्यप), भ्रूण हत्या पर (महेंद्रसिंह महलान), उपाय (त्रिलोक सिंह ठकुरेला), गर्भपात (गोविंद भारद्वाज), नाखून (विभा रश्मि), पश्चाताप (चंद्रेशकुमार छतलानी), हम हैं न (माधव नागदा) आदि | उल्लेखनीय है कि भ्रूण हत्या जैसे संवेदनशील विषय को लेकर डॉ.रामकुमार घोटड़ ने एक लघुकथा संग्रह ‘कुखी पुकारे’ का सम्पादन किया है |
कुछ अन्य विषय—दर्पण का अक्स (आभा सिंह)-इन्टरनेट की आभासी दुनिया, संवेदना (नदीम अहमद ‘नदीम’)-मीडिया की संवेदनहीनता, लुटेरे (हनुमानसिंह तमनाशक), तिलक और दहेज (दिलीप भाटिया)-दहेज की मनोवृत्ति, स्वर्ग का मार्ग (रत्नकुमार सांभरिया)-बगुला भक्तों का पाखंड, उधार की ज़िंदगी (हरदर्शन सहगल), घोडा ना बनो राजा (ओमप्रकाश भाटिया), नेटवर्क मार्केटिंग (घनश्याम नाथ कच्छावा)-उपभोक्तावाद और आर्थिक उदारीकरण, आशादीप (आभा सिंह), सपना (गोविंद शर्मा)-बाल मनोविज्ञान, फिर से मत आना (डॉ.रामकुमार घोटड़), विक्षिप्त किन्नर (अंजीम अंजुम), अखिलेश पालरिया (किन्नर), इंसान (गोविंद शर्मा), नपुंसक (नीना छिब्बर), तुमको नमन (पारस दासोत), मुक्ति (विभा रश्मि)—सभी किन्नर समाज की लघुकथाएँ ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि राजस्थान की हिन्दी लघुकथा का पृदृश्य बहुत आश्वस्तकारी है। यहाँ के लघुकथाकार हर क्षेत्र में कार्य करते हुए लघुकथा को निरंतर ऊँचाइयों पर पहुँचा रहे हैं । संख्यात्मक दृष्टि से ही नहीं, गुणात्मक दृष्टि से भी यहाँ लिखी जा रही लघुकथाएँ उल्लेखनीय हैं । कहना न होगा कि यहाँ का लघुकथाकार समय के साथ क़दम से क़दम मिलाते हुए आगे बढ़ रहा है ।
संदर्भ
:
1-
राजस्थान के
लघुकथाकार,
संपादक : डॉ.रामकुमार घोटड़
2-
राजस्थान की चर्चित
लघुकथाएँ / संपादक : भगीरथ
3-
राजस्थान की
लघुकथाएँ/संपादक:डॉ.अनिल शूर आज़ाद,
भूमिका:(डॉ.रामकुमार घोटड़)
4-
मधुमती,
अक्तूबर 2013,
अतिथि संपादक/डॉ.रामकुमार घोटड़
5-
समकालीन हिन्दी लघुकथा और आज का यथार्थ/माधव
नागदा
.....................
संपर्क : माधव नागदा,
लाल मादड़ी (वाया नाथद्वारा)-313301 (राजस्थान)
मोबाइल-9829588494
'लघुकथा कलश' आलेख महाविशेषांक-1 (सं॰ योगराज प्रभाकर से साभार)
2 comments:
अच्छी श्रृंखला! आपने रिश्तों पर आधारित लघुकथाओं में प्रबोध कुमार गोविल की लघुकथा "मां" का ज़िक्र किया है। इसी संदर्भ में निवेदन है कि यदि आपने प्रबोध कुमार गोविल को राजस्थान का लघुकथाकार माना है तो संदर्भ वश सूचना है कि साहित्य संगम, इंदौर की अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता में "प्रथम पुरस्कार" भी इसी लघुकथा को मिला था। आलेख में द्वितीय/तृतीय पुरस्कार का जिक्र है। प्रबोध कुमार गोविल अपनी वर्तमान आयु के 68 में से 48 वर्ष राजस्थान में ही रहे हैं, बीच बीच के वर्षों में अखिल भारतीय सेवा के कारण दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गोवा आदि प्रवास के कारण उनका उल्लेख शायद न हो पाता हो। ठीक भी है, किसी राज्य का नाम न जुड़ा होकर केवल "भारतीय" होने की इतनी सी सजा तो मिलनी भी चाहिए। बधाई।
अच्छी श्रृंखला! आपने रिश्तों पर आधारित लघुकथाओं में प्रबोध कुमार गोविल की लघुकथा "मां" का ज़िक्र किया है। इसी संदर्भ में निवेदन है कि यदि आपने प्रबोध कुमार गोविल को राजस्थान का लघुकथाकार माना है तो संदर्भ वश सूचना है कि साहित्य संगम, इंदौर की अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता में "प्रथम पुरस्कार" भी इसी लघुकथा को मिला था। आलेख में द्वितीय/तृतीय पुरस्कार का जिक्र है। प्रबोध कुमार गोविल अपनी वर्तमान आयु के 68 में से 48 वर्ष राजस्थान में ही रहे हैं, बीच बीच के वर्षों में अखिल भारतीय सेवा के कारण दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गोवा आदि प्रवास के कारण उनका उल्लेख शायद न हो पाता हो। ठीक भी है, किसी राज्य का नाम न जुड़ा होकर केवल "भारतीय" होने की इतनी सी सजा तो मिलनी भी चाहिए। बधाई।
Post a Comment