दिनांक 26-3-2021 से आगे दूसरी किस्त
2 संपादित लघुकथा संग्रह—भगीरथ परिहार-गुफाओं से मैदान की ओर (1974), राजस्थान की चर्चित लघुकथाएँ (2004), पंजाबी की चर्चित लघुकथाएँ (2004), पड़ाव और पड़ताल खंड-4 (2014), मैदान से वितान की ओर (2020), प्रभाकर आर्य-युगदाह(1979), नंदकिशोर नंद-प्रेरणा ( 1983), महेंद्रसिंह महलान, मोहन योगी-सबूत-दर-सबूत (1984), स्नेह इन्द्र गोयल-वकील साहब (1985), दर्पण (1988), माधव नागदा-पहचान (1986), मोहन सोनी ‘अनंत सागर’-यथार्थ (1988), मूलवर्द्धन राजवंशी-विश्वगंधा (1989), महेंद्रसिंह महलान, अंजना अनिल-राजस्थान का लघुकथा संसार (1998), राजस्थान की महिला लघुकथाकार (2004), इमारत (2007),
डॉ.रामकुमार घोटड़-प्रतीकात्मक लघुकथाएँ (2006),
पौराणिक संदर्भ की लघुकथाएँ (2006),
अपठनीय लघुकथाएँ (2006),
दलित समाज की लघुकथाएँ (2008),
भारतीय हिन्दी लघुकथाएँ (2010),
देश-विदेश की लघुकथाएँ (2010),
राजस्थान के लघुकथाकार (2010),
भारत का हिन्दी लघुकथा संसार (2011),
कुखी पुकारे (2011),
एक सौ इक्कीस लघुकथाएँ (2011),
हिन्दी की समकालीन लघुकथाएँ (2012),
किसको पुकारूँ (2012),
आज़ाद भारत की लघुकथाएँ (2012),
गुलाम भारत की लघुकथाएँ (2014),
पड़ाव और पड़ताल खंड-12 (2015),
हिन्दी की प्रतिनिधि लघुकथाएँ (2016),
दलित जीवन की लघुकथाएँ (2017),
लघुकथा सप्तक (2018),
लघुकथा सप्तक-दो (2019),
लघुकथा सप्तक भाग तीन से सात (2020),
दलित संदर्भ की लघुकथाएँ (2020),
आधुनिक हिन्दी लघुकथा का पूर्वार्द्ध काल (2020),
आनंद प्रकाश त्रिपाठी ‘रत्नेश’-वतन
के लिए (2009),
रचना निगम,
अंजना अनिल-यही सच है (2011),
अंजीव अंजुम-लहर और लहर (2011),
शब्द और नाद (2011),
त्रिलोक सिंह ठकुरेला-आधुनिक हिन्दी लघुकथाएँ (2012),
समसामयिक हिन्दी लघुकथाएँ (2016), प्रबोधकुमार
गोविल-पड़ाव और पड़ताल खंड-8 (2014),
कीर्ति शर्मा-आधुनिक हिन्दी साहित्य की चयनित लघुकथाएँ (2017),
डॉ.रामकुमार
घोटड़,
डॉ.लता अग्रवाल-किन्नर
समाज की लघुकथाएँ (2019)
3 लघुकथा विमर्श—इस श्रेणी में वे पुस्तकें ले सकते हैं जो लघुकथा विधा के सैद्धान्तिक अथवा आलोचना पक्ष पर प्रकाश डालती हैं । इस दिशा में अभी तक अधिक कार्य नहीं हुआ है । फिर भी जो पुस्तकें आई हैं वे इस प्रकार हैं :
( i
) डॉ.रामकुमार घोटड़ द्वारा संपादित ‘लघुकथा
विमर्श’
।
2009 में प्रकाशित इस पुस्तक में लघुकथा मनीषियों द्वारा लघुकथा के विभिन्न आयामों
को उजागर करने वाले 23 महत्वपूर्ण साक्षात्कार संकलित किए गए हैं।
( ii ) हिन्दी लघुकथा के सिद्धान्त—भगीरथ परिहार-2018
लघुकथा समीक्षा—भगीरथ परिहार-2018
कथाशिल्पी सुकेश साहनी की सृजन-संचेतना—भगीरथ परिहार-2019 । इस पुस्तक में भगीरथ ने सुकेश साहनी की 40 लघुकथाओं की वस्तुपरक समीक्षा की है । साथ में वे लघुकथाएँ भी संकलित हैं जिनका पुस्तक में विवेचन किया गया है ।
( iii ) समकालीन हिन्दी लघुकथा और आज का यथार्थ—माधव नागदा-2019 । यह आलोचनात्मक पुस्तक तीन खंडों में विभक्त है- आलेख, समीक्षा और साक्षात्कार ।
लघुकथा कार्यक्रमों का आयोजन—राजस्थान के लघुकथाकार लघुकथा गोष्ठियाँ, समारोह और सम्मेलन का निरंतर आयोजन करते रहे हैं । स्वयं भी प्रदेश के बाहर इस प्रकार के आयोजनों में भाग लेकर राजस्थान का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं ।
राजस्थान की प्रथम लघुकथा संगोष्ठी 1975 में
ब्यावर शहर में आयोजित हुई । इस संगोष्ठी में मोहन राजेश ने लघुकथा के शिल्प और
विन्यास विषय पर पत्रवाचन किया तथा सत्य शुचि,
डॉ.एस.के.रावत,
रामप्रसाद कुमावत ने अपने विचार रखे । 1971 से 1977 तक ब्यावर में प्रतिमाह लघुकथा
विचार गोष्ठियाँ आयोजित होती रही थी । इसी प्रकार अजमेर और नसीराबाद में भी लघुकथा
विषयक आयोजन होते रहते थे जिसका श्रेय मोहन राजेश,
सत्य शुचि,
विष्णु जिंदल,
राजेश जागेरिया,
डॉ. के.एस. रावत,
राम प्रसाद कुमावत,
अर्जुन कृपलानी प्रभृति लघुकथा प्रेमियों को जाता है ।
24 अप्रेल 1977 को रावतभाटा (चित्तौड़गढ़) में रावतभाटा
शिक्षा समिति और ‘अतिरिक्त’
पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में समकालीन लघुकथा विषय पर प्रो.कृष्ण कमलेश की
अध्यक्षता में गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें भगीरथ,
रमेश जैन,
श्याम विजय और वरुण परिहार ने पत्रवाचन किया ।
श्रीगंगानगर में मदन अरोड़ा की पहल पर 1983 से
1995 तक लगातार लघुकथा विचार गोष्ठियाँ आयोजित होती रही थी जिसकी रिपोर्टिंग
स्थानीय समाचार पत्र लोकमत,
दैनिक प्रताप और सीमा संदेश में प्रकाशित होती थी ।
अक्तूबर 1996 में कोटा की विकल्प संस्था द्वारा
शचीन्द्र उपाध्याय की अध्यक्षता में गोविंद गौड़ के लघुकथा संग्रह ‘प्रहार’
का लोकार्पण समारोह का आयोजन किया गया । इस अवसर पर ‘लघुकथा:विकास
एवं संभावना’
विषय पर चर्चा गोष्ठी भी रखी गई । समारोह में अशोक भाटिया,
बलराम,
मधुदीप,
भगीरथ,
महेंद्र नेह और हितेश व्यास ने समीक्षात्मक आलेख पढ़ते हुए निर्धारित विषय पर भी
अपने विचार व्यक्त किए । संस्था के
अध्यक्ष शिवराम ने उद्बोधन दिया । इसी प्रकार 3 जून 1997 को विकल्प संस्था द्वारा
ही भगीरथ के प्रथम लघुकथा संग्रह ‘पेट
सबके हैं’
का लोकार्पण किया गया । पुस्तक का लोकार्पण करते हुए वरिष्ठ कथाकार हेतु भारद्वाज
ने लघुकथा विधा को बीसवीं सदी के उत्तरार्ध की नए अंदाज़ की विधा की संज्ञा देते
हुए इसकी संभावनाओं पर प्रकाश डाला । भगीरथ ने ‘लघुकथा:विकास,
परंपरा एवं सामयिक महत्व’
विषय पर अपना वक्तव्य दिया । गोष्ठी में गोविंद गौड़,
सरला अग्रवाल,
राधेश्याम मेहर,
कृष्णाकुमारी,
विजय जोशी तथा विकल्प संस्था के अध्यक्ष शिवराम उपस्थित थे । 16 अक्तूबर 2002 को
कोटा की ही एक और साहित्यिक संस्था समर समागम मंच गोरधनपुरा एवं ‘समरलोक’
पत्रिका,
भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में एक चर्चा गोष्ठी का आयोजन किया गया । इसमें कोटा
अंचल से भगीरथ,
गोविंद गौड़,
विजय जोशी,
पुरुषोत्तम ‘यकीन’
एवं कृष्णाकुमारी तथा राज्य से बाहर के लघुकथाकार आलोक कुमार सत्पुते,
राजकमल सक्सेना और ओमप्रकाश काद्यान की लघुकथाओं पर चर्चा की गई । साथ ही गोष्ठी
में ‘समकालीन
लघुकथा:औचित्य और संभावना’
विषय पर पत्रवाचन भी हुए । 16-17 मई 2003 को रावतभाटा की पलाश संस्था द्वारा कोटा
में लघुकथा केंदित दो दिवसीय कथावार्ता कार्यक्रम आयोजित किया गया । इस महत्वपूर्ण
कार्यक्रम में बलराम अग्रवाल,
अशोक भाटिया,
जसवीर चावला,
सतीश राठी,
सुकेश साहनी जैसे देश के नामचीन लघुकथाकारों ने भाग लिया । पाँच सत्रों में आयोजित इस दो दिवसीय कार्यक्रम
में स्थानीय लघुकथाकार एवं साहित्यकार भगीरथ,
गोविंद गौड़,
शिवराम,
रमेश जैन,
राधेश्याम मेहर,
क्षमा चतुर्वेदी,
बृजेन्द्र कौशिक,
महेंद्र नेह,
दिनेश राय,
शचीन्द्र उपाध्याय,
अंबिकादत्त,
शांति भारद्वाज राकेश भी उपस्थित थे ।
17 नवंबर से 20 नवंबर 2005 तक कहानी लेखन महाविद्यालय
अंबाला द्वारा अजमेर में आयोजित चार दिवसीय लेखक मिलन शिविर के अंतिम दिन एक सत्र
लघुकथा पर चर्चा का भी रखा गया जिसकी अध्यक्षता महाविद्यालय की संचालिका उर्मी
कृष्ण ने की । कार्यक्रम का संचालन विकेश निझावन ने किया । चर्चा में प्रबोध कुमार
गोविल,
अशोक कुमार निराला,
सत्यनारायण सत्य तथा डॉ.सूरज मृदुल ने भाग लिया । इस अवसर पर प्रसिद्ध लघुकथाकार
डॉ.रामकुमार घोटड़ ने ‘लघुकथा:काल
विभाजन’
आलेख का वाचन किया ।
27-28 जुलाई 2007 को हिन्दी पुस्तकालय समिति,
डीग(भरतपुर) के स्थापना दिवस पर डीग में ही दो दिवसीय साहित्यिक आयोजन किया गया
जिसमें एक सत्र लघुकथा चर्चा पर केन्द्रित था । इस सत्र की अध्यक्षता रामनिवास
मानव ने की और संयोजन गोपालप्रसाद मुद्गल ने किया । इस अवसर पर दौसा के युवा
लघुकथाकार अंजीव अंजुम ने लघुकथा के पक्ष में ओजपूर्ण भाषा में अपने विचार व्यक्त
किए ।
राजस्थान साहित्यकार परिषद, कांकरोली की स्थापना मधुसूदन पाण्ड्या और क़मर मेवाड़ी की पहल पर 1985 में हुई थी । तब से आज तक इसकी मासिक गोष्ठियों में अन्य रचनाओं के साथ लघुकथा पाठ भी होता आ रहा है । प्रस्तुत लघुकथाओं पर समालोचनात्मक चर्चा भी की जाती है । लघुकथा पाठ करने वालों में प्रमुख होते हैं—माधव नागदा, भँवर ‘बॉस’, मधुसूदन पाण्ड्या, जवानसिंह सिसोदिया, किशन कबीरा और नगेन्द्र मेहता । प्रायः चर्चा में भाग लेते हैं—क़मर मेवाड़ी, त्रिलोकी मोहन पुरोहित, मुरलीधर कनेरिया, शेख अब्दुल हमीद, नरेंद्र ‘निर्मल’, ईश्वरचन्द्र शर्मा आदि ।
राजस्थान साहित्य अकादमी,
उदयपुर(राजस्थान) लघुकथा विधा को बराबर महत्व देती रही है । जब डॉ.अजित गुप्ता
अकादमी की अध्यक्ष थी तो लघुकथा विधा पर एक पुरस्कार भी आरंभ हुआ था परंतु बाद में
किसी कारणवश यह पुरस्कर बंद कर देना पड़ा । अकादमी की पत्रिका मधुमती लघुकथाएँ
प्रकाशित करती रही है । अक्तूबर 2013 में मधुमती का लघुकथा विशेषांक निकला था
जिसका सम्पादन लब्धप्रतिष्ठ लघुकथाकार डॉ.रामकुमार घोटड़ ने किया था । उस समय
वेदव्यास अकादमी अध्यक्ष थे । अकादमी समय-समय पर लघुकथा केन्द्रित कार्यक्रम भी
आयोजित करती है जो पर्याप्त चर्चित होते हैं । 22
और
23 सितंबर 2007 को अकादमी ने अजमेर में दो दिवसीय लघुकथा सम्मेलन रखा था जिसका उद्घाटन
अकादमी अध्यक्ष डॉ.अजित गुप्ता ने किया तथा अजमेर जिला प्रमुख श्रीमती सरिता गैना
ने दीप प्रज्ज्वलन किया । सुलोचना रांगेय राघव,
गोपाल प्रसाद मुद्गल,
भगवान अटलानी विशिष्ट अतिथि थे । डॉ.नरेंद्र
सिंह,
डॉ.रामकुमार घोटड़,
रत्नकुमार सांभरिया,
उमेश चोरसिया,
बद्रीप्रसाद पंचौली,
अभिजीत कुमावत ने लघुकथा के विभिन्न पहलुओं पर गंभीर चर्चा की । डॉ. रामकुमार घोटड़
ने ‘लघुकथा:विकास,
परंपरा
और संभावना’ विषयक
आलेख का वाचन किया ।
5 मार्च 2018 को राजस्थान साहित्य अकादमी और
मरुदेश संस्थान,
चूरू के संयुक्त तत्वावधान में ‘हिन्दी
साहित्य में लघुकथा का वर्तमान’
विषय पर एक साहित्य संगोष्ठी चूरू में रखी गई । तीन सत्रों में सम्पन्न इस
संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता डॉ.घनश्यामनाथ कच्छावा ने की । इस सत्र के
मुख्य अतिथि कन्हैयालाल डूंगरवाल तथा मुख्य वक्ता अकादमी के सदस्य डॉ.सुरेन्द्र
डी. सोनी थे । द्वितीय सत्र की अध्यक्षता डॉ.रामकुमार घोटड़ ने की तथा पत्रवाचन
किया राजेन्द्र शर्मा और डॉ.वीरेन्द्र भाटी ने । तृतीय सत्र चर्चा सत्र था जो
भंवरसिंह सामौर की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ । चर्चा में पंडित मोहन चैतन्य
शास्त्री,
हीरालाल गोदारा,
मोहन सुराणा,
ओंकार पारीक,
मधुसूदन अग्रवाल सहित कई साहित्यकारों ने भाग लिया ।
7 अगस्त 2018 को राजस्थान साहित्य अकादमी और
साहित्य मण्डल,
नाथद्वारा के संयुक्त तत्वावधान में लघुकथा संगोष्ठी आयोजित की गई जो दो सत्रों
में चली । प्रथम सत्र की अध्यक्षता अकादमी अध्यक्ष डॉ.इंदुशेखर तत्पुरुष ने की ।
अशोक भाटिया ने बीज वक्तव्य देते हुए लघुकथा ‘क्या,
क्यों,
कहाँ’
इन तीन बिन्दुओं की विस्तृत विवेचना की । उन्होंने राजस्थान के लघुकथा परिदृश्य पर
टिप्पणी करते हुए माधव नागदा की लघुकथा ‘आग’
का वाचन किया । इसी सत्र में माधव नागदा ने ‘राजस्थान
की हिन्दी लघुकथा में सामाजिक सरोकार’
और अंजीव अंजुम ने ‘कैसे
बढ़े युवा पीढ़ी में लघुकथा के प्रति रुझान’
विषयक पत्र वाचन किए । जितेंद्र सनाढ्य(नाथद्वारा) एवं परितोष पालीवाल(कांकरोली)
ने लघुकथा पाठ किया । विशिष्ट अतिथि
आकाशवाणी के पूर्व निदेशक डॉ.इंद्रप्रकाश श्रीमाली थे । द्वितीय सत्र की अध्यक्षता
प्रखर वक्ता और शिक्षाविद जयदेव गुरजरगौड ने की । सत्र के मुख्य अतिथि रामेश्वर
शर्मा तथा विशिष्ट अतिथि समालोचक डॉ.मंजु चतुर्वेदी एवं पंडित मदनमोहन अविचल थे । इस
सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए बलराम अग्रवाल ने
लघुकथा के उद्भव,
विकास तथा महत्व पर प्रकाश डाला । इसके पश्चात रेखा लोढ़ा ‘स्मित’
ने ‘समकालीन हिन्दी साहित्य
में लघुकथा का बढ़ता प्रभाव’
पर पत्र वाचन किया एवं नारायणसिंह राव ‘निराकार’
ने लघुकथा पाठ किया ।
शेष आगामी अंक में… 'लघुकथा कलश' आलेख महाविशेषांक-1 (सं॰ योगराज प्रभाकर से साभार)
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