Saturday, 20 March 2021

लघुकथा की विकास-यात्रा में उ.प्र. का योगदान-3 / डॉ. उमेश महादोषी

(दिनांक 20-3-2021 के बाद)

लम्बे लेख की तीसरी कड़ी

     अरविन्द बेलवाल की भूमिका बरेली लघुकथा सममेलन 1989 में महत्वपूर्ण थी। उनके एक

डॉ. उमेश महादोषी

लघुकथा संग्रह ‘धूमकेतु’ की जानकारी प्राप्त है। निर्मला सिंह निरंतर लघुकथा सृजन करती रही हैं। उनके निजी संग्रहों व संपादित संकलनों में बबूल का पेड़, साँप और शहर, यूज एण्ड थ्रो, माँ, शामिल हैं। वरिष्ठ साहित्यकार बन्धु कुशावर्ती (लखनऊ) ने भी लघुकथा की विकास यात्रा में अश्विनीकुमार द्विवेदी के साथ चौमासा पत्रिका ‘लघुकथा’ (1974) के माध्यम से योगदान किया। लेकिन इस पत्रिका के मात्र दो अंक ही आ सके। अंकुर (आगरा/प्र.संपा. मंजुला सक्सेना) के लघुकथा विशेषांक-1982 तथा सामान्य अंकों लघुकथाओं के प्रकाशन के माध्यम से अजय सक्सेना का योगदान भी रहा है। लघुकथा पर रतनलाल शर्मा (बुलंदशहर) के विचार भी रूपसिंह चन्देल के लघुकथा संग्रह की भूमिका के रूप में सामने आये हैं।

       डॉ. उमेश महादोषी की पहली लघुकथा 1981 में एवं लघुकथा विषयक बलराम अग्रवाल से चर्चा 1988 में एवं पहला आलेख व कुछ अन्य समीक्षात्मक कार्य 1989 में प्रकाशित हुआ। वर्ष 2010 से अविराम/अविराम साहित्यिकी के अंक संपादक के रूप में लघुकथा विषयक अनेक महत्वपूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन किया है। अब तक अनेक लघुकथाएँ व समालोचनात्मक आलेख लिखे हैं। इंटरनेट पर अविराम ब्लॉग पत्रिका के माध्यम से भी लघुकथा में संपादकीय-समालोचनात्मक योगदान के साथ ‘मधुदीप की 66 लघुकथाएँ एवं उनकी पड़ताल (पड़ाव और पड़ताल खण्ड-19) का संपादन एवं डॉ. बलराम अग्रवाल के लघुकथा संग्रह ‘जूझते हुए धूप से’ का रचना-चयन किया है।

      इससे पहले कि हम उ.प्र. में लघुकथा की अगली पीढ़ी की उपस्थिति पर चर्चा करें, हमें वर्ष 2000 के बाद लघुकथा के सामान्य परिवेश पर दृष्टि डाल लेनी चाहिए। इससे हमें यह समझना आसान हो जायेगा कि लघुकथा के वर्तमान परिदृश्य में आये वृहद परिवर्तनों का स्रोत क्या है एवं नये लघुकथाकारों के लघुकथा से जुड़ने में समग्र परिस्थितियों एवं गतिविधियों की भूमिका क्या रही है।

      वर्ष 2000 तक आते-आते समकालीन लघुकथा के विकास की दिशा में यद्यपि आधारीय स्तर पर काफी कार्य हो चुका था, किन्तु उसके अपेक्षित प्रभाव के अभाव में लघुकथाकारों में समुचित उत्साह नहीं बचा था। ‘लघुकथा के माध्यम से साहित्य में बड़ा योगदान नहीं किया जा सकता’ जैसी अनुचित एवं नकारात्मक धारणा के कारण अनेक लघुकथाकार लघुकथा लेखन की ओर से निष्क्रिय हो चुके थे। लघुकथा की महत्वपूर्ण पत्रिका ‘लघु आघात’ (संपा. डॉ. सतीश दुबे/विक्रम सोनी) तो बन्द हो ही चुकी थी; 1993 में आरम्भ ‘जनगाथा’ (संपा. बलराम अग्रवाल / किरनचन्द्र शर्मा—ये दोनों ही उ॰ प्र॰ में बुलन्दशहर मूल के थे) भी अधिक लम्बे समय तक नहीं चली। नये रचनाकार बहुत कम संख्या में लघुकथा से जुड़ रहे थे। इसके बावजूद कुछ ऊर्जावान लघुकथाकारों ने साहस से काम लिया और लघुकथा की ज्योति जलाये रखी, अपनी-अपनी तरह से निरंतरता बनाए रखी। राष्ट्रीय स्तर पर इनमें डॉ. सतीश दुबे, भगीरथ परिहार, सुकेश साहनी, बलराम अग्रवाल, अशोक भाटिया, श्यामसुन्दर अग्रवाल, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, कमल चौपड़ा, सतीश राठी आदि प्रमुख थे। लेकिन वर्ष 2000 में दो महत्वपूर्ण घटनाएँ घटीं सुकेश साहनी जी के संयोजन में वर्ष 2000 में बरेली (उ.प्र.) में वृहद लघुकथा सम्मेलन का आयोजन एवं इण्टरनेट की सुलभता के कारण उन्हीं के द्वारा रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ के सहयोग से लघुकथा की पहली बेवपत्रिका ‘लघुकथा डॉट कॉम’ का संपादन-प्रकाशन आरम्भ करना। निश्चित रूप से लघुकथा की विकास-यात्रा में इसका बहुत सकारात्मक प्रभाव रहा। लघुकथा के क्षेत्र में हलचल बढ़ी और वेबपत्रिका के माध्यम से लघुकथा को अन्तरराष्ट्रीय फलक मिला, जो भविष्य के लिए एक आधार-स्तम्भ बना। किन्तु भारत में उन दिनों इण्टरनेट के काफी मँहगे होने और सर्वसुलभ न होने के कारण इस प्रयास का प्रभाव उस समय अपेक्षाकृत कुछ सीमित एवं मंद रहा। इसकी अगली कड़ी के रूप में दिल्ली से बलराम अग्रवाल ने इण्टरनेट पर क्रमशः 2007 में जनगाथा’, 2009 में कथायात्रा एवं लघुकथा-वार्ता इंटरनेट-चिट्ठों के माध्यम से इस फलक को और विस्तार देने का प्रयास किया। इससे लघुकथा पर विमर्श का दायरा बढ़ा। प्रिंट में ‘संरचना’ वार्षिकी (सं. कमल चौपड़ा), अनियतकालिक क्षितिज (सं. सतीश राठी), प्रतिनिधि लघुकथाएँ (सं. कुँवर प्रेमिल), ‘लघुकथा अभिव्यक्ति’ त्रैमासिकी (सं. मो. मुइनुद्दीन अतहर), शुभ तारिका (संपा. उर्मि कृष्ण) की निरंतरता के साथ कुछ अन्य पत्रिकाओं के विशेषांकों के प्रकाशन एवं अन्य गतिविधियों के माध्यम से वर्ष 2010 तक लघुकथा की विकास यात्रा में सुकेश साहनी, बलराम अग्रवाल एवं उक्त पत्रिकाओं के संपादकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। 2010 के बाद परिदृश्य में अन्य महत्वपूर्ण परिवर्तन आरम्भ हुए। मार्च 2010 में अविराम (अंक संपादक—उमेश महादोषी / पंजीकरणोपरांत 2012 से अविराम साहित्यिकी) का प्रकाशन आरम्भ हुआ। यद्यपि यह पत्रिका सभी विधाओं को लेकर चली किन्तु इसकी योजनाओं के केन्द्र में मुख्यतः लघुकथा ही रही। लघुकथा को कई तरह से प्रस्तुत करने, बड़ी संख्या में प्रतियों के निशुल्क व रणनीतिक वितरण, 2011 में इण्टरनेट पर इसके ब्लॉग संस्करण आदि के कारण यह पत्रिका बड़ी संख्या में साहित्यकारों तक लघुकथा को पहुँचाने व उनका ध्यान आकर्षित करने में सफल रही। 2013 में फेसबुक समूह के रूप में ‘लघुकथा साहित्य’ (संचालकबलराम अग्रवाल) के बनने के बाद सोशल मीडिया का व्यापक उपयोग लघुकथा के पक्ष में होने लगा। वर्ष 2014 एवं उसके बाद सोशल मीडिया पर अनेक लघुकथा समूह बनने से नयी पीढ़ी के लघुकथाकारों की सक्रियता में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई। 2013 के उत्तरार्द्ध में ही मधुदीप जी द्वारा महत्वपूर्ण ‘पड़ाव और पड़ताल’ शृंखला (जिसके अब तक 33 खण्ड आ चुके हैं) का प्रकाशन गुणवत्ता की दृष्टि से काफी प्रेरक वातावरण बनाने में सफल हुआ। वर्ष 2016 से अर्द्धवार्षिकी ‘दृष्टि’ (सं. अशोक जैन) आरम्भ हुई। 2018 से ‘लघुकथा कलश’ (सं. योगराज प्रभाकर/रवि प्रभाकर) के महाविशेषांकों के प्रकाशन ने सूक्ष्म संपादकीय दृष्टि के साथ विविधतापूर्ण आयोजनों से लघुकथा वातावरण को ऊर्जावान बनाने का काम किया। कई वरिष्ठ लघुकथाकारों के आलोचनात्मक ग्रन्थ एवं नई पीढ़ी द्वारा संचालित प्रश्नोत्तरी कार्यक्रमों एवं लघुकथा प्रतियोगिताओं (जिसमें कथादेश की महत्वपूर्ण प्रतियोगिता भी शामिल है) ने लघुकथा की हलचल को तो शिखर पर पहुँचाया ही, लघुकथा में विमर्श एवं अध्ययन-मनन की दृष्टि से संसाधनों की उपलब्धता भी सहज-सुलभ हो गई। इस प्रकार नये लघुकथाकारों को सीखने एवं स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए अन्य विधाओं के सापेक्ष लघुकथा में मंच की उपलब्धता एवं प्रोत्साहन की आपूर्ति बहुत तीव्र हुई है। इस सबका परिणाम अखिलभारतीय स्तर पर नये संभावनाशील रचनाकारों के लघुकथा में प्रवेश के रूप में दिखाई देता है। यदि विभिन्न क्षेत्रों में लघुकथा के स्थानीय फैलाव पर दृष्टि डालें तो जिन राज्यों में लघुकथाकार ढूँढ़ने पर भी मुश्किल से मिलते थे, वहाँ से कई अच्छे रचनाकार लघुकथा के क्षितिज पर अपनी उपस्थिति से पाठकों एवं समालोचकों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। जिन राज्यों में लघुकथा के लिए पहले से ही उर्वरा भूमि थी, वहाँ के परिदृश्य में भी काफी कुछ अतिरिक्त देखने को मिल रहा है।

      उ.प्र. में भी एक ओर बड़ी संख्या में लघुकथाकारों का उदय हुआ है, दूसरी ओर, कुछ अधीरता एवं तज्जनित अनपेक्षित चीजों के बावजूद लघुकथा में चिंतन-मनन के रचना-प्रक्रिया का हिस्सा बनने से शिल्प एवं कथ्य के स्तर पर नये लघुकथाकार सीमित समय में ही परिपक्व होते दिखाई देते हैं। इस कालखण्ड में कई वरिष्ठ साहित्यकारों ने भी लघुकथा में प्रवेश किया है। उपलब्ध विभिन्न पत्रिकाओं व अन्य स्रोतों में प्रकाशित रचनाकारों के संपर्क सूत्र के आधार पर इस कालखण्ड में उ. प्र. के जिन लघुकथाकारों की जानकारी मुझे प्राप्त हुई है, उनके नाम यहाँ दिये जा रहे हैं। इनमें नवोदित एवं वरिष्ठ- दोनों श्रेणी के रचनाकार हैं, किन्तु जहाँ तक मुझे जानकारी उपलब्ध हो पायी है, लघुकथा लेखन से ये वर्ष 2000 के बाद ही जुड़े हैं।

      अकारादि क्रम में उ.प्र. के ये लघुकथाकार इस प्रकार हैं—अंकिता कुलश्रेष्ठ (आगरा), अंजना बाजपेई (कानपुर), अंजुल कंसल ‘कनुप्रिया’ (लखनऊ), अनामिका शाक्य (मैनपुरी), अनिता ललित (लखनऊ), अनिल द्विवेदी ‘तपन’ (कन्नौज), अनुभूति गुप्ता (लखीमपुर खीरी), अनुराग (बाँदा), अन्नपूर्णा बाजपेई (कानपुर), अपर्णा थपलियाल (गा.बाद), अमन चाँदपुरी (अम्बेडकरनगर), अरविन्द अवस्थी (मिर्जापुर), अरुण कुमार गुप्ता (लखनऊ), अर्चना गंगवार (कानपुर), अर्चना तिवारी (लखनऊ), अर्पणा गुप्ता (लखनऊ), अर्विना गहलोत (बुलन्दशहर/नोएडा), अलका चन्द्रा (कानपुर), अलका प्रमोद (लखनऊ), अशोक ‘अंजुम’ (अलीगढ़), आकांक्षा यादव (गाजीपुर/आजमगढ़), आदित्य प्रचण्डिया (अलीगढ़), आभा अदीब राज़दान (लखनऊ), आभा खरे (लखनऊ), आभा चंद्रा (लखनऊ), आशीष कुमार (उन्नाव), इरा जोहरी (लखनऊ), उपेन्द्र प्रताप सिंह (लखीमपुर खीरी), उमेश मोहन धवन (कानपुर), उर्मिल थपलियाल (लखनऊ), उषा यादव (आगरा), ओमप्रकाश मंजुल (पीलीभीत), ओमप्रकाश हयारण ‘दर्द’ (झाँसी), कमला अग्रवाल (गा.बाद), कल्पना मिश्रा (कानपुर), कविता गुप्ता ‘काव्या’ (लखनऊ), कुमार आनन्द पाण्डे (बरेली), कुसुम जोशी (गाजियाबाद), कृष्ण कुमार यादव (आजमगढ़), कौशलेन्द्र पाण्डेय (लखनऊ), गीता कैथल (लखनऊ), गीता सिंह (नोएडा), गुडविन मसीह (बरेली), चित्रा राणा राघव (गा.बाद), छवि निगम (लखनऊ), जफर अहमद जाफरी (लखनऊ), जयति जैन ‘नूतन’ (झाँसी), जयराम सिंह गौर (कानपुर), जयेन्द्र कुमार वर्मा (फतेहपुर), जानकी बिष्ट ‘वाही’ (नोएडा), जितेन्द्र जौहर (सोभद्र), ज्ञानवती दीक्षित (सीतापुर), ज्योत्स्ना कपिल (बरेली), ज्योत्सना सिंह (लखनऊ), डा. मधु आंधीवाल (अलीगढ़), डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन (मु.नगर), डॉ. अनिल चौधरी (बिजनौर), डॉ. अनिल शर्मा ‘अनिल’ (धामपुर), डॉ. आशा सिंह (कानपुर), डॉ. ऊषा उप्पल (बरेली), डॉ. गोपाल बाबू शर्मा (आगरा), डॉ. जितेन्द्र जीतू (बिजनौर), डॉ. नितिन सेठी (बरेली), डॉ. नीरज शर्मा ‘सुधांशु’ (बिजनौर), डॉ. प्रभा दीक्षित (कानपुर), डॉ. मिथिलेश दीक्षित (लखनऊ), डॉ. लवलेश दत्त (बरेली), डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ (फतेहपुर), डॉ. संध्या तिवारी (पीलभीत), डॉ. सत्यकाम पहारिया (कानपुर), डॉ. सुधाकर ‘अदीब’ (लखनऊ), तनु श्रीवास्तव (लखनऊ), दीपक मशाल (जालोन/विदेश प्रवास), दीप्ति भारती (गाजियाबाद), देशपाल सिंह सेंगर (ओरैया), नज़्म सुभाष (लखनऊ), नरेन्द्र सिंह (कन्नौज), निधि अग्रवाल (झाँसी), निधि चतुर्वेदी (बदायूँ), निधि शुक्ला (लखीमपुर खीरी), निरंजन धुलेकर (झाँसी), निरुपमा कपूर (आगरा), निरूपमा अग्रवाल (बरेली), निर्देश निधि (बुलंदशहर), निवेदिता श्री (लखनऊ), निवेदिता श्रीवास्तव (लखनऊ), नीलम राकेश (लखनऊ), नीलम सिंह (शाहजहाँपुर), नेहा अग्रवाल ‘नेह’ (लखनऊ), पंकज जोशी (लखनऊ), पूनम गुप्ता (रामपुर), पूर्णिमा शर्मा (मुरादाबाद), प्रकाश सूना (मु.नगर), प्रतिभा मिश्रा (कानपुर), प्रतिमा प्रधान (नोएडा), प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा (लखनऊ), प्रभा रानी (वाराणसी), प्रवीण झा (नोएडा), प्रियंका गुप्ता (कानपुर), प्रेम बहादुर कुलश्रेष्ठ ‘विपिन’ (अलीगढ़), प्रेमबाला प्रधान ‘मोना’ (बरेली), प्रेरणा गुप्ता (कानपुर), बीना सिंह (गाजियाबाद), भावना कुँअर (गाजियाबाद/विदेश प्रवास), मंजू मिश्रा (मेरठ/विदेश प्रवास), मधु प्रधान (कानपुर), मनीष कुमार सिंह (गाजियाबाद), मनीषा सक्सेना (प्रयागराज), महेन्द्र कुमार (प्रयागराज), मीतू मिश्र (हरदोई), मीना अग्रवाल (बिजनौर), मीनू खरे (लखनऊ), मुकेश कुमार ऋषि वर्मा (आगरा), मुन्नूलाल (बलरामपुर), रचना श्रीवास्तव (लखनऊ/विदेश प्रवास), रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’ (वाराणसी), रजनीश त्रिपाठी (गोरखपुर), रविन्द्र कुमार रवि (शाहजहाँपुर), रश्मि बड़थ्वाल (लखनऊ), राकेश चक्र (मुरादाबाद), राजेन्द्र प्रसाद यादव (आजमगढ़), राज्यवर्धन सिंह ‘सोच’ (वाराणसी), रामकरन (बस्ती), राशि सिंह (मुरादाबाद), लता कादम्बरी (कानपुर), वर्षा अग्रवाल (अलीगढ़), विजयानंद सिंह (गाजीपुर), विधु यादव (लखनऊ), विनय कुमार सिंह (वाराणसी), विष्णु प्रिय पाठक (कुशीनगर), वी. के. शर्मा (कासगंज), शिखा कौशिक ‘नूतन’ (शामली), शिखा तिवारी (प्रयागराज), शिव अवतार पाल (इटावा), शिव प्रसाद कमल (मिर्जापुर), शिवानंद सिंह ‘सहयोगी’ (मेरठ), शुभ्रांश पाण्डेय (प्रयागराज), शैलबाला अग्रवाल (आगरा), संगीता शर्मा (आगरा), संजीव आहूजा (बाराबंकी), संदीप ‘सरस’ (सीतापुर), संदीप तोमर (खतौली), संयोगिता शर्मा (प्रयाग), सतीश चन्द्र शर्मा ‘सुधांशु’ (बदायूँ), सपना मांगलिक (आगरा), सरस दरबारी (प्रयागराज), सविता मिश्रा (आगरा), सियाराम भारती (लखनऊ), सीमा मधुरिमा (लखनऊ), सीमा सिंह (कानपुर), सुधा शुक्ला (लखनऊ), सुधीर द्विवेदी (कानपुर), सुधीर निगम (कानपुर), सुधीर मौर्या ‘सुधीर’ (उन्नाव), सुनीता त्यागी (मेरठ), सुनील कुमार चौहान (बदायूँ), सुबोध श्रीवास्तव (कानपुर), सुरेखा अग्रवाल (लखनऊ), सुरेश उजाला (लखनऊ), सुरेश बाबू मिश्रा (बरेली), सुरेश सौरभ (लखीमपुर), सुवेश यादव (कानपुर), सुशांत सुप्रिय (गाजियाबाद), सुषमा सिंह (आगरा), सुषमा सिन्हा (वाराणसी), सूर्य प्रकाश मिश्र (वाराणसी), सौरभ पाण्डेय (प्रयागराज), स्वधा पाण्डेय ‘उत्कर्शिता (लखनऊ), स्वेतांक गुप्ता (सोनभद्र), हनुमान प्रसाद मिश्र (अयोध्या), हेमंत राणा (बुलंदशहर) आदि।

शेष आगामी अंक में…

‘लघुकथा कलश’ (आलेख महाविशेषांक-1, जुलाई-दिसंबर 2020; संपादक:योगराज प्रभाकर) से साभार

डॉ॰ उमेश महादोषी : ‘अविराम साहित्यिकी’ के संपादक हैं। मोबाइल नं॰ 94589 29004

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