Monday, 14 February 2022

परदा : कुछ लघुकथाएँ—1


 ‘परदा’ विषय-केन्द्रित ये लघुकथाएँ सन् 2015 की एक फाइल में मिली हैं। ये किसने मुझे भेजी होंगी, मालूम नहीं है।

लघुकथाएँ बहुत सशक्त नहीं हैं, लेकिन हैं। कृपया बताएँ।

मूल फाइल पर भी किसी का नाम नहीं है।

पाँच-पाँच लघुकथाओं की पहली कड़ी…

॥एक॥

घर भर में तूफ़ान मचा थाजितने मुंह उतनी बातें। नई दुल्हन को कुछ समझ नहीं रहा था कि इतना हो-हल्ला क्यों ?

आखिर नव्या ने दूर से आती एक लड़की को रोककर पूछा, "इतना शोर क्यों हो रहा है?
"
भाभी! तुमने घूँघट नहीं लिया ना इसलिए। ये छोटा सा गांव है और सोच भी। बुजुर्गों का कहना मान सबका अपमान किया है तुमने।"

तभी बड़ी बहू घूँघट डाले सास-ससुर को खूब खरी-खोटी सुनाती हुई कह रही थी—“और लाओ पढी-लिखी बिन पर्दे वाली बहू ……!”
नव्या समझने की कोशिश में सोच रही थी कि आँख का और लाज-सम्मान का पर्दा बड़ा है या सामने दिख रहा घूँघट मे लिपटा बदजुबान पर्दा !!

 ॥दो॥

घर भर में तूफ़ान मचा था | जितने मुंह उतनी बातें। नई दुल्हन को कुछ समझ नहीं रहा था कि इतना हो-हल्ला क्यों ?

आखिर नव्या ने दूर से आती एक लड़की को रोककर पूछा, "इतना शोर क्यों हो रहा है?
"
भाभी! तुमने घूँघट नहीं लिया ना इसलिए। ये छोटा सा गांव है और सोच भी। बुजुर्गों का कहना मान सबका अपमान किया है तुमने।"

तभी बड़ी बहू घूँघट डाले सास-ससुर को खूब खरी-खोटी सुनाती हुई कह रही थी—“और लाओ पढी-लिखी बिन पर्दे वाली बहू ……!”
नव्या समझने की कोशिश में सोच रही थी कि आँख का और लाज-सम्मान का पर्दा बड़ा है या सामने दिख रहा घूँघट मे लिपटा बदजुबान पर्दा !!

  ॥तीन॥

"बेटी तेरे ससुराल वालों के यहाँ पर्दा है। उनके घर की सभी औरतें उस पर अमल करती हैं। उन्होंने विशेष रूप से कहला भेजा है कि तू भी उसकी इज्ज़त रखना। किसी को भी तेरा तो बोल सुनाई दे और मुंह ही दिखाई देना चाहिए।"

विदा होती बेटी ने माँ की सीख पर अनमने मन से सिर हिलाकर सहमति जताई|

ससुराल की देहरी पर कदम रखते  ही उसने देखा कि बाहरी दरवाजे पर थेगलियाँ टँका हुआ एक पुराना चीकट पर्दा फड़फड़ा रहा है| उसकी दुर्गंध नथुनों से टकराते ही उसे ऊबकाई-सी आने लगी जिसे वह बामुश्किल ही रोक पाई|

घर के अंदर दाखिल करके उसे एक जगह पर बैठा दिया गया। कुछ देर बाद सामान्य होने पर चोर निगाहों से उसने घर का जायजा लिया। कमरे के पार खुला आंगन था। स्नानघर, शौचालय। सामान करीने से लगा था लेकिन सारा का सारा गंदा और पुराना-सा। घर का हर कोना  उसे बेबस और हर दीवार लाचार नजर आई। कहीं पर चूहों ने बिल खोद रखा था तो कहीं उखड़े प्लास्टर के पीछे खड़ी ईंटें अपनी दुर्दशा का रोना रो रही थीं। अजीब-सी जुगुप्सा छा गई उस पर।

अब उसे घर के मुहाने पर लटकते पर्दे पर जरा भी आश्चर्य नहीं रहा। उसने स्नेहभरी नजरों से उसकी ओर ताका और उसकी इज्जत रखने का संकल्प मन ही मन दोहराया।

॥चार॥


"
यहाँ कोई बैठा है क्या?बुर्के में मुँह ढाँपे आई लड़की ने तीन सवारियों वाली सीट पर बैठे दो लड़कों धीमे स्वर में पूछा ! 
“जी कोई नही।“ कहते हुए एक ने थोड़ा खिसककर सीट छोड़ दी ! लड़की उसकी बगल में बैठ गई !
“आपको कहाँ जाना है? "  पहले ने बात छेड़ते हुए पूछ।
“जी, तिलक नगर। "  लड़की ने संक्षिप्त-सा उत्तर दिया !
"
अच्छा! मेरा घर भी उधर ही है !" उसने बात बढ़ाई !
बातें करते-करते वह उसकी तरफ झुकता चला गयालड़की ने प्रतिरोध नहीं किया तो वह उसके और-करीब आता गया ! 
बस चलती जा रही थी ! एकाएक दूसरे ने कोहनी मारकर पहले के कान में फुसफुसाकर पूछा, “बात बनी या नहीं?"
पहले ने भी जवाब में उसे जोर से कोहनी मारी और कहा, "साला कबाब में हड्डी!  तुझे अभी बोलना था!"
इतने में बस तिलक नगर पहुँच गई ! वे दोनों भी लड़की के  पीछे-पीछे बस से उतर गए!

तीनों एक ही दिशा में बढ़े जा रहे थे। आगे-आगे वह बुर्काधारी लड़की और पीछे-पीछे ये दोनों !
"
यारक्या मस्त चाल है ! एक बार बात बन जाय... बस," लड़की के पीछे चल रहे पहले ने दूसरे से कहा।
“हाथ इतने गोरे हैं,  तो चेहरा तो पूरनमासी के चाँद जैसा होगा चमकीला होगा!”  दूसरे ने कहा !

“कमाल है यार, यह तो मेरी ही गली में घुस रही है!” एकाएक पहले के मुँह से निकला।

फिर उन दोनों ने देखा कि वह पहले के घर की ओर ही बढ़ने लगी है।

या-अल्लाह!—पहले के मुँह से निकला।
अब, जैसे-जैसे वह पहले के घर की ओर बढ़ती गई, वैसे-वैसे वे उससे दूरी भी बनाते गए। और उस समय तो, जब वह ऐन उसके घर की तरफ मुड़ी, उसके जैसे तोते ही उड़ गए।
गेट पर पहुँचकर लड़की पीछे की ओर घूम पड़ी। चेहरे पर लटके नकाब को उसने सिर पर पलट दिया और गली में झाँकते हुए बोली, "आदाब अर्ज है भाईजान!…आ जाइए।"

लेकिन पहला तो दूसरे को घसीटता हुआ गली से कब का गायब हो चुका था !

॥पाँच॥

आज शिवांगी का 38वाँ जन्मदिवस था। पति अरुण ने उसको टचस्क्रीन वाला नया स्मार्ट फ़ोन गिफ्ट किया जिसके लिए वह कई दिनों से लालायित थी। अरुण से शिवांगी ने शुरु-शुरु में नए मोबाइल की कार्यप्रणाली समझी। धीरे-धीरे उस पर कार्य करने में वह पारंगत हो गयी। कई एप्प डाउनलोड कर लिए जिनमें फेसबुकव्हाट्सएप्प भी शामिल थे। पोस्ट पढ़नासर्च करना और लिखना भी उसने सीख लिया। स्वाभाविक रूप से उसने पहला फेसबुक मित्र अरुण को ही बनाया। उसके बाद एक से एक मित्रों की शृंखला बढ़ती चली गयी। फोटो पोस्ट की तो सैकड़ों ‘लाइक’ मिले। अच्छी-अच्छी टिप्पणियाँ भी मिलीं। धीरे-धीरे इस चमकीले परदे के प्रति शिवांगी का सम्मोहन बढ़ता गया 

अरुण का एक दोस्त था—विकास। वह हर सुबह उसे ‘गुड मॉर्निंग’ भेजता। उसके हर फ़ोटो पर मन लुभावनी टिप्पणियाँ भेजता। धीरे-धीरे शिवांगी उसकी ओर खिंचती चली गयी। शनै: शनै: दोनों ‘’विकासजी’ और  ‘शिवांगीजी’ से ‘विकास’ और ‘शिवांगी’ ही रह गए; और फिर ‘विक्की’ और ‘शिवु’ बन गए। विकास उसके लिए बड़ी-बड़ी कसमें खाता और मिलने के लिए बार बार आग्रह करता 

एक दिन अरुण को किसी काम से आगरा जाना था  उसको गए आधा-पौना घंटा ही हुआ होगा कि शिवांगी और अरुण के मोबाइल पर उनके बेटे नकुल के स्कूल से सन्देश आया कि उनके बेटे की तबियत खराब है। शिवांगी घबरा गयी। उसने विकास मोबाइल पर सन्देश भेजा—“मेरे बेटे नकुल की तबियत खराब हैमेहरबानी करके उसको विद्यालय से अस्पताल ले जाओ।विकास का सन्देश आया—“शिवु, माफ़ी चाहूँगा। अभी मैं किसी काम से शहर से बाहर आया हुआ हूँ। मुझे पहुँचने में तक़रीबन 3 घंटे लग जाएँगे।"

शिवांगी किंकर्तव्यविमूढ़-सी स्थिति में थी कि अरुण का फ़ोन आया, "मुझे नकुल के विद्यालय से सन्देश मिला है उसकी तबियत ख़राब हैशायद तुम्हारे पास भी सन्देश आया होगा। 

मैं अभी रवाना नहीं हुआ हूँ। मेरी ट्रेन लेट है।शिवांगी तुम विद्यालय पहुँचोमैं भी सीधे वहीँ पहुँचता हूँ "


दोनों नकुल को लेकर विद्यालय से अस्पताल जा रहे थे कि रास्ते में अनायास ही एक जूस की दूकान पर शिवांगी की नज़र गई। 

वहाँ विकास किसी महिला के साथ जूस पी रहा था और दोनों हँस-हँस कर बातें कर रहे थे 

शिवांगी अरुण से बिलकुल सट गयीउसका स्पर्श मोबाइल के स्पर्श परदे से ज्यादा तसल्ली दे रहा था।

(फोटो : साभार  गूगल)              आगे जारी...

5 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सारी लघु कथा बेहतरीन लगीं ।
आने लिखा है कि ये सारी लघु कथा 1915 की एक फाइल में मिलीं । एक बार चेक कर लें । 2015 होगा शायद । क्यों कि स्मार्ट फोन की बात तो अभी की हो सकती है ।

मन की वीणा said...

बहुत ही सुंदर लघु कथाएं।
सारगर्भित।

मन की वीणा said...

बहुत सुंदर लघु कथाएं।
सारगर्भित, सार्थक।

बलराम अग्रवाल said...

ठीक कर दिया है। धन्यवाद।