Friday 11 February, 2022

सीमा व्यास की पति-पत्नी केन्द्रित लघुकथाएँ

'हम-तुम', पति -पत्नी के खट्टे-मीठे जीवन क्रम की लघुकथाएँ कथाकार सीमा व्यास की लेखनी से। 

1. कहो ना प्यार है

पत्नी : तुमने मुझसे आज तक नहीं कहा कि तुम्हें मुझसे प्यार है।“

पति : अरे...कितनी बार तो कहा !

पत्नी : अच्छा बताओ जरा कब कहा ?

पति : उस दिन, जब तुम मम्मी के साथ मॉल में थी और अचानक मुझे देखकर चौंक गई थी। वो फटी आँखें देखकर मैंने कहा था...

पत्नी : जनाब, कहा कुछ नहीं था। चुपचाप गायब हो गए थे वहाँ से।

पति : और उस दिन जब मैं तुमसे मिलने की जल्दी में अलग-अलग रंग की जुराबें पहनकर आ गया था। कैसे दोहरी होकर हँस रही थीं तुम। तब मैंने...

पत्नी : हाँ याद है मुझे। तब तुमने कहा था, तुम खुलकर हँसती हुई कितनी खूबसूरत लगती हो!

पति : अच्छा, तो जब हम दोनों मंदिर गए थे और तुमने लाल चुनरी सिर पर डाली थी। तब मैंने... 

पत्नी : ओ... तब तुमने कहा था तुम्हारा ये रूप कितना अलग है। जी चाहता है तुम्हें सदा ऐसे ही देखूँ।

पति : अरे यार, छोड़ो सब बीती बातें। चलो आज, अभी ही कह देता हूँ।

पत्नी : सच ? तो जल्दी से कहो ना! 

पति : ओह ! तुम्हारी ये बेसब्र आँखें कितनी कमाल लगती हैं।

2. सुंदरता 

पत्नी  : दो साल हो गए हमारी शादी को। बताओ मैं तुम्हें सबसे सुंदर कब लगी ?

पति : तुम तो हमेशा ही सुंदर लगती हो।

पत्नी : सुंदर नहीं, सबसे सुंदर। बताओ न, सबसे सुंदर कब लगी थी मैं ?

पति  : अं... चलो तुम ही बताओ। तुम्हारा रूप मुझे कब सबसे सुंदर लगा होगा ?“

पत्नी : हमारी शादी की पहली सालगिरह पर ? जब मैं फिर दुल्हन की तरह तैयार हुई थी ?

पति : नहीं.....तब नहीं ।

पत्नी : तो जब हम शिमला गए थे और मैं भीगे बालों में तुम्हारे करीब आई थी तब ?

पति : ना...ना...तब भी नहीं।

पत्नी : अबकी बार तो बिलकुल सही बताऊँगी। जब हमारी बिटिया परी आनेवाली थी और मेरा रूप निखर आया था तब ?

पति : न....न...रहने दो तुम नहीं बता पाओगी। चलो मैं ही बताता हूँ। याद है जब हम हनीमून पर षिमला गए थे और वहाँ एक मंदिर में दर्शन करने के बाद सीढ़ियों पर बैठे थे। तब एक बूढ़ी महिला को देख तुम्हें अपनी दादी की याद आ गई थी। और तब दादी की दी हुई सीखों, हिदायतों के बारे में बताते हुए तुम इतना खो गईं कि मुझे तुममें दादी का प्रतिरूप नजर आने लगा। सच...तब इतनी सुंदर लगी तुम कि मैंने धीरे से तुम्हारे चरण छू लिए थे।

3. हिसाब 

पति : दस बार समझाया तुम्हें, घर खर्च का पूरा हिसाब रखा करो। पर नहीं। आज बता ही दो, आखिर क्या परेशानी है तुम्हें? क्यों नहीं रखती हिसाब ?

पत्नी : रखती हूँ ना ! चौबीस घंटों के हर पल का हिसाब रखती हूँ। परिवार के सभी सदस्यों की सेहत की गिनती लगाती हूँ। ताकि हमारे सुख में जरा भी घाटा न हो। भरपेट भोजन बनाकर सबके चेहरे से टपकती संतुष्टि को जोड़ती हूँ। माँ-बाबूजी की हर इच्छा की सूची बनाती हूँ, फिर गिनकर पूरी करने का प्रयास करती हूँ। बच्चों की खुशियों का गुणा-भाग भली तरह आता है मुझे। परिवार के सुख में लाभ के लिए अपने शौक और इच्छाओं को बेदर्दी से कई बार काट देती हूँ और आप कहते हैं कि... रही पैसों के हिसाब की बात, तो उसके लिए आप हैं न !”

4.  तुम हो न 

पत्नी : सच, कितने लापरवाह हो तुम! कोई चीज सँभालकर नहीं रख सकते। कभी तौलिया पलँग पर फेंकोगे तो कभी जुराबें टेबल पर होंगी। समझ नहीं आता कैसे समझाऊँ? आज बता ही दो, आखिर चीजें सँभालकर रखने में समस्या क्या है तुम्हें ?

पति : कितनी शिकायत करती हो। मैं हर चीज तो सँभालकर तो रखता हूँ। देखो, सबकी मुस्कुराहट तह करके मन की अलमारी में रखता हूँ। घर की सारी चिंताएँ वो दरवाजे के पीछे खूँटी पर टाँग रखी हैं मैंने। छोटी-बड़ी समस्याएँ तो ये काँधे पर लेकर ही घूमता हूँ मैं। तुम्हारी सारी हिदायतें तो देखो कैसे जेब में ठूँसकर रखी हैं मैंने। सब सदस्यों की खुशी हथेली पर लिए फिरता हूँ। थोड़े बहुत दुख-दर्द बिखर जाते हैं जीवन में, उन्हें समेटकर बीते समय की डस्टबीन में डाल देता हूँ। और ऊपरवाले का शुक्रिया अदा करते हुए सुकून के पलों को अंजुरी में छिपा लेता हूँ... रही तौलिये और जुराबों की बात, तो उनके लिए तुम हो न !”

5. समझ का फेर 

पत्नी : हलो, हाँ माँ प्रणाम। अरे सौ साल जियेंगी आप। सच... आ रही हैं ? तो बताइए न... मैं इन्हें लेने भेज दूँगी। बिलकुल... आप यकीन नहीं करेंगी मुझे आपकी किस कदर याद आ रही थी। कल ही मैंने इनसे कहा भी। अरे माँ... क्यों याद आ रही थी... यह तो आपके आने पर ही बताऊँगी। बस आप जल्दी से आ जाइए। ठीक है। रखती हूँ। आने का समय जरूर बताइए। हम दोनों आ जाएँगे आपको लेने। नहीं... कुछ लाने की जरूरत नहीं। आप आ तो रही हैं। जी... प्रणाम माँ।

पति : ओ हो ! माँ आ रही हैं ? तुम्हें इतनी याद आ रही थी तुम्हारी माँ की? और तुमने मुझे कब बताया कि माँ की बहुत याद आ रही है? झूठी कहीं की। अच्छा बताओ, कब लेने जाना है मुझे सासुजी को?

पत्नी : सुनो, मेरी माँ नहीं मेरी सासुजी आ रही हैं। सुबह सात बजे रेल्वे स्टेशन लेने चलना है। और मुझे झूठी क्यों कहा?  मैंने कल ही तो आपसे कहा था कि माँ के हाथ की पुरनपोली खाने का बहुत मन हो रहा है। हैं ? (ठंडी सांस लेते हुए) मैंने तो कब से इस परिवार को अपना मान लिया और आप हैं कि....।

6. मैं नहीं थी न

पति : तो अचानक तुमने नौकरी करने का फैसला कैसे कर लिया ?”

पत्नी : अचानक नहीं। कई बार पूछा था तुमसे। मेरी शिक्षा का उपयोग न होने से लेकर घर की बढ़ती जरूरतों तक पर बात होती थी। पर कल रात के बाद तो...

पति : कल रात को ऐसा क्या कह दिया मैंने ? और कहा भी तो...

पत्नी : कल रात तुमने हर बार की तरह उलाहना दिया कि मैं पिता के घर से खाली हाथ चली आई। भिखारियों के घर से दया करके उठा लाए मुझे। और...

पति : अरे यार, मेरा वो मतलब नहीं था।

पत्नी : यह भी कहा कि तुम गँवार हो। जिंदगीभर पड़ी रहोगी मेरी छाती पर। कल तुम्हारे भीतर का बहुत-कुछ आ गया सामने।”

पति : हैं ? अब छोड़ भी दो जान, तुम जानती हो मैं कल नशे में था।”

पत्नी : पर मैं नहीं थी न !

7. फ़िक्र

पत्नी : कितनी बार कह चुकी हूँ कि मेरी स्कूटी को हाथ मत लगाया करो। पर तुम हो कि मानते ही नहीं। हर संडे क्या जरूरी है कि मेरी स्कूटी लेकर ही क्लब जाओ? तुम्हारे पास अपनी कार है, बाइक है। फिर ? सुनो, मैंने शुरू से ही कह दिया था कि मेरी स्कूटी सिंगल हेंडेड रहनी चाहिए। मैं तो ऑफिस में भी किसी को गाड़ी की चाबी नहीं देती। तुमसे भी आज आखिरी बार कह रही हूँ, अगले संडे से मेरी स्कूटी को हाथ...

पति : अरे, थोड़ा ब्रेक लगाकर जरा मेरी बात भी तो सुन लो। मैं जानता हूं, तुम्हें ऑफिस लेने-छोड़ने की मेरी परेशानी को देखते हुए डरते-डरते तुमने स्कूटी सीखी। तुम सँभलकर, सुरक्षित तरीके से चला भी लेती हो। इतना बहुत है मेरे लिए। पर गाड़ी के इंजन में कहीं खराबी तो नहीं आ रही, ब्रेक सही तरीके से काम कर रहे हैं या नहीं, ऑइल खतम तो नहीं हो गया, कोई पुरजा आवाज तो नहीं कर रहा, बस यही सब देखने के लिए हफ्ते में एक बार स्कूटी से क्लब चला जाता हूँ। कोई खराबी होती है तो तुरंत ठीक भी करवा देता हूँ। पेट्रोल तक डलवा देता हूं संडे को। अं... और तुम क्या कह रही थीं आखिरी में ? अगले संडे से मेरी स्कूटी को हाथ लगाया तो ...!!!

8. दुर्गा 

पति : "कितनी प्यारी बेटी है न हमारी। पापा बन गया मैं। सुनो, तुम बाकी लोगों की बातों पर ध्यान मत दो। मैंने तो पहले ही कहा था लड़का हो या लड़की मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं तो दोनों में खुश हूं। देखना, यह हमारे घर को खुशियों से भर देगी। लक्ष्मी रूप में आई है हमारी बेटी। लक्ष्मी  रखेंगे इसका नाम। है न ?‘ 

पत्नी : "नहीं। दुर्गा।"

9. मिट्टी 

पति, ‘आजकल देख रहा हूं, कोई कुछ भी बोल दे तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। परसों बड़े जीजाजी ने निशि की शादी पसंद के लड़केे से करने पर ताने दिए। कल पड़ोसन तुम्हें सादगी से रहने पर कैसा लेक्चर दे रही थी। बच्चे भी बेसिर पैर की कितनी बहस करते हैं तुमसे। तुम जवाब क्यों नहीं देती ? आखिर किस मिट्टी की बनी हो तुम ?‘

पत्नी ,‘मिट्टी तो मेरी मां के घर की ही थी। पर उसे आपके घर के पानी ने साना और समय की आंच ने पकाकर मजबूत कर दिया। अब कोई कुछ भी कहे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। सच कहूं तो अब इस तरह की बांतें सुनाई ही नहीं देती मुझे। सुनकर करना भी क्या है ? औंधा घड़ा नहीं हूं, पर माटी पककर इतनी मजबूत हो गई है कि हर मौसम सह जाती है।‘   

10. चाह

"अरे, आपने फिर खिड़की खोल दी? ठंडी हवा आएगी न! अभी हफ्तेभर बाद तो लौटे हो अस्पताल से। मना करने पर भी बच्चों की तरह बार-बार खिड़की खोल देते हो। सर्दी लग गई तो ? क्यों इतना परेशान करते हो मुझे। आखिर चाहते क्या हो ?”

”कि खिड़की बंद करने के बहाने तुम बार-बार मेरे सिरहाने तक आती रहो और तुम्हारा ये पल्लू मेरे चेहरे से... बस इसीलिए।” 

11. शर्त 

पति "कब तक यूं मुंह फुलाए रहोगी ? बताओ तो? क्या कभी बात करोगी ही नहीं ? एक तो मैं रिटायर ठहरा और ऊपर से अबोला। ना बाबा, तुमसे बोले बिना तो मेरा गुजारा मुश्किल है। बोलो ना, कब बोलोगी मुझसे ? अच्छा बताओ, मैं क्या करूँ ? तुम जो बोलोगी, उसका अक्षरश: पालन करूँगा। बताओ, ऐसी कौन-सी बात है जो मैं तुमसे न कहूं?"

पत्नी, "जरा चुप रहो।"

12. नजरिया 

"कोई पेट से दुःख लेकर थोड़े ही आता है।” 

(गहरी होती रात में दीवार-घड़ी देखती बूढ़ी पत्नी ने बल्ब की हल्की पीली रोशनी में बीते समय को पढ़ते हुए कहा।)

"सुख लेकर भी तो नहीं आता।” 

(दूसरी करवट लेटे बूढ़े पति ने खिड़की से आधा चाँद निहारते हुए कहा।)

पत्नी : पहले-पहल की लड़की इसी घर में हुई।

पति : हाँ, शादी के बाद पाँच साल से लटका बाँझ का बोझ तेरे सिर से हटा दिया।

पत्नी : फिर छोरा भी तो आया पीठ लगे।

पति : हाँ, कुलदीपक भी तो तू ही माँगती थी।

पत्नी : छोरी तो होती ही है पराया धन। अपना तो छोरा भी ...

पति : अरे, तूने ही तो बरत रखे थे, छोरा कमाने खाने लग जाए। अब लायक बनेगा तो बाहर जाएगा ही।

पत्नी : तो क्या बहू, पोते से भी आस न रखूँ ?

पति : आस ही सगरे दुःख का मूल है। बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी है। काहे का दुःख ?

पत्नी : तो ? तुम्हें कोई दुःख नहीं ?

पति : ना। सुख और दुःख में तो बस अनुभव करने का फेर है। न कोई दुःख लेकर आता है, न सुख लेकर जाता है।

बूढ़े की बात पर गौर करती बुढ़िया ने धीरे से करवट चाँद की ओर कर ली।

13. लुगड़ा 

/1/

 पत्नी : ( कांपते हाथों में दो साड़ियां लिए पति से पूछती है) ‘कां को लुगड़ो पेरूं ? लीलो कि पीलो ?'

पति : (कांपते हाथों से अखबार हटाकर ) ‘आज यो लीलो पेरी ले।‘

/2/ 

पत्नी : (एक साड़ी हाथ में और एक कंधे पर डाले कुबड़ी लेकर धीरे-धीरे आते हुए) ‘कां को लुगड़ो पेरूं ?'

पति : (लेटे-लेटे मुश्किल से गर्दन टेढ़ी करके) यो, लाल।

(पति की मृत्यु हो चुकी है। पत्नी आसपास खड़े लोगों को अचरज से देख रही है। फिर शून्य में ताकते हुए पुनः पति की ओर देखती है।)

पत्नी ‘कां को लुगड़ो पेरूं ?'

--------------------

सीमा व्यास

 

 







सम्प्रति : समन्वयक, शारदा मठ, इंदौर

लेखन के क्षेत्र में :  तीस वर्षों से। 

प्रकाशन एवं प्रसारण :

कहानी संग्रह - 'क्षितिज की ओर',  

लघुकथा संग्रह - 'पोटली',

सोद्देश्य साहित्य की 45 पुस्तकें।

साझा लघुकथा संकलन - शिखर पर बैठकर में 11 लघुकथाएं

फिल्म्स डिविजन मुंबई हेतु लोकनृत्य राई पर पटकथा लेखन।

राष्ट्रीय चैनल पर प्रसारित धारावाहिक की 52 कड़ियों में सह-लेखन।

आकाशवाणी द्वारा कहानियों व नाटकों का प्रसारण।

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 400 से अधिक कहानी व आलेखों का प्रकाशन।

तीन पटकथाओं पर लघु फिल्मों का निर्माण।

सम्मान  : अक्षर आदित्य सम्मान। 

डाॅ. हेमलता दिखित स्मृति सम्मान। 

सम्पर्क  : 562 ए.एम. स्कीम नं.140

पिपलिया हाना, इंदौर (मप्र)

मोबाइल : 9406852215

ईमेल : seemasrc@gmail.com

No comments: