गतांक से आगे...
।।ग्यारह।।
"अरे कमला जी, आप तो बहुत भाग्यवान है जो इतनी संस्कारी बहू मिली है आपको, यह लम्बा परदा करके आती है छत पर भी!"
"सही कह रही हो प्रिय पडोसन! बहू तो बहुत अच्छी है मेरी, पर परदा वो समाज से नहीं सूर्यदेव से करती है।"
(यह रचना भी कविता ही अधिक है।)
।।बारह।।
वो छोटा-सा हॉल 20-25 लोगों के बैठने को पर्याप्त था। एक छोटी-सी पार्टी का आयोजन था।
एडमिन के प्रयासों से संभव हो पाया था उस ग्रुप के उन 20-25 सदस्यों का साक्षात मिलना जो साल भर के वार्तालाप के बाद आपस में हँसते-खिलखिलाते नज़र आते थे।
पर यहाँ नज़ारा दूसरा था।सतीश शुभ्रा को और शुभ्रा पाखी को, अर्थात सभी एक दूसरेको देखकर हैरान-परेशान नज़र आ रहे थे।
वयस्कों की भांति मनोभावों को सभी ने वश में कर सभा को चलने दिया।आभासी दुनिया के अभिन्न स्वयं को ठगा महसूस कर रहे थे।
पार्टी ख़त्म होने पर लौटते हुए सभी के मन में एक ही विचार था--"काश ये पर्दा यूं ही पड़ा रहता!"
(अस्पष्ट है।)
।।तेरह।।
इन दिनों काफी नयी लड़कियाँ आ जाने के कारण किसी न किसी बात पर कोहराम-सा मच जाता है। सोना देवी, जो इनकी मुखिया हैं, बीच-बचाव न करती तो....। भारी हाय-तौबा से बचने के लिए काम को आखिरकार उसने 3 पालियों में बाँट दिया। सभी लड़कियों से 8-8 घंटे की तीन पालियों में काम लिया जाने लगा।
आज से उसकी पाली बदली थी। इसलिए सुबह-सुबह उठकर नहा चुकी थी। उसे राजधानी में, लालकिले के पास बसी, इस कालोनी में एक दलाल लाया था। माँ-बाप की मौत के बाद चाची ने उसे पाला था, शायद जवान होने के लिए ही। शुरू-शुरू में बहुत रोती रही। बदबूदार पसीने में नहाए मजदूर, शराबी, बूढ़े, अपाहिज कैसे-कैसे लोग झेले थे उसने...। आज उन दिनों को याद करती है तो उसे अजीब नहीं लगता, क्योंकि अब तो यह उसका रोजमर्रा का काम हो गया है।
नहाने के बाद वह सीधी अपने कमरे में आ गयी। कुछ दूसरी लड़कियों की आवाजें बाहर आ रही थीं। उसने साड़ी पहनी। आईने के सामने खड़ी होकर बालों को संवारा। चेहरे पर खुशबूदार क्रीम लगाई। बगलों में डिओ स्प्रे किया; और बाकी शरीर पर इत्र छिड़का। माथे पर गोल-मटोल बिन्दिया चिपकाई। दायें-बायें और पीछे की ओर घूम-घूम कर खुद के करीने को देखा। फिर कमरे की खिड़की के पास गयी और झटके के साथ उस पर लगे पर्दे को एक तरफ हटा दिया।
आज के पहले ग्राहक का इन्तजार शुरू हो गया था।
।।चौदह।।
"देखो भई, मैं तो महिलाओं के परदे में रहने के सख्त खिलाफ़ हूँ। आखिर हमारी स्वतंत्रता का सवाल है। वो ज़माने लद गए जब औरतें दिनभर मुँह ढके हुए घर का सारा काम निबटाती रहती थीं।" सारिका ने ताश का पत्ता फेंकते हुए कहा।
किटी पार्टी पूरे शबाब पर थी।
"हाँ मै भी कुछ ऐसा ही मानती हूँ।" वंदना ने हाँ में हाँ मिलाई।
तभी शन्नो ने चाय-नाश्ते के साथ कमरे में प्रवेश किया।
"मेमसाब, साहब भी चाय माँग रहे हैं।दे आऊँ उनके कमरे में?"
"हाँ दे आ।अच्छा, रुक एक मिनट।" फिर कुछ सोचते हुए सारिका उठकर शन्नो के पास आ गयी। उसके आँचल को छाती पर ठीक करते हुए सर पर पल्लू डालकर धीरे से बोली, "साहब के कमरे में जरा ढंग से जाया कर।"
।।पन्द्रह।।
टी वी के एक शो में राजनीति पर गर्मागर्म बहस चल रही थी।दो विरोधी पार्टियों के सदस्य एक दूसरे पर खूब आरोप प्रत्यारोप लगा रहे थे, मामला इतना गर्म था कि जैसे दोनों हाथापाई पर उतर आयेगे। जैसे तैसे संचालक ने स्थिति संभाली और शो को नियंत्रित कर लिया।
आश्चर्यजनक !पर्दे के पीछे दोनों महाशय एक दूसरे के गले मिल रहे थे ।
(फोटो : साभार गूगल) आगे जारी...
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