गतांक से आगे...
।।छह।।
"हमें सुमन पसंद है,इतनी पढ़ी लिखी, गृहकार्य में दक्ष, सच्चचरित्र, मृदुभाषी व शांत बहू पाकर हम धन्य हो जायेंगे।" सौरभ के पिता ने कहा।
सुमन व सौरभ का विवाह संपन्न हुआ, सुमन विदा होकर घर आयी, गाँव की औरतों का ताँता लग गया मुँह देखने को नई-नवेली दुल्हन का।
पड़ोस से ताई आई और पर्दा उठाकर सुमन का मुँह देख कर बोली :
"अरे ये तो हमारे सौरभ के सामने १९ छोड़ो १७-१८ भी ना है, लल्ला के तो करम फूट गए।"
"अरे ताई आपने पर्दा उठा चेहरा तो देख लिया, पर आप बहू के भीतर का पर्दा उठा, उसके ह्रदय में ना झाँक सकीं, वर्ना आपको दिखती उसके भीतर की अभूतपूर्व सुंदरता। ऊपरी सुंदरता स्थायी नहीं, पर भीतरी सुंदरता तो चिरकालिक है।
उस अनमोल सुंदरता को देखने के लिए नजर चाहिए नजर।"
कल ही विदा होकर आई नई बहू के सर का आँचल बार-बार फिसल कर कंधे पर सरक जा रहा था I
परेशान-सी वह बार-बार सर पर रखती पर सँभाल न पाती !! उर्मिला काफी देर से ये देख रही थी, इससे बहू और असहज हो उठती थी I
तभी उर्मिला ने उसे अपने पास बुलाया तो वह डर गयी, अब तो पक्का डाँट पड़ेगी !! किन्तु आशा के विपरीत उन्होंने उसे पास बिठाया। बोलीं, " बेटा, इस पर्दे की कोई आवश्यकता नहीं, परेशान मत हो, वैसे भी शर्म व लिहाज का परदा तो आँखों में होता है, सर पे रखे आँचल से नही !! और हां, यह तुम्हारा अपना घर है, अपना परिवार है तो डरने की जरूरत नहीं।"
इतना कहकर वह हौले से मुस्कुरा दी !!
मेघा का सारा डर असीम श्रद्धा में तब्दील हो गया वह उनका हाथ थामकर बोली, "माँ, आपका भरोसा कभी नहीं टूटने दूंगी !! "
"जानती हूँ।" और दोनों मुस्करा दीं।
।।आठ।।
पगफेरे के लिए भाई के आने का सन्देशा पाकर उमंग से नव वधू सास के कमरे में गई।वहाँ किसी अजनबी को देखकर एकदम से उसने घूँघट खींच लिया और उलटे पाँव अपने कक्ष में आ गई।
कुछ ही समय में यह खबर फ़ैल गई की बहु आगंतुक को नहीं जानती। सब सन्न रह गए । यह क्या....?
अब जाकर विक्रम को याद आया की बारात की विदाई के समय तूफ़ान आया था और सबने एक धर्मशाला में जाकर शरण ली थी।जहाँ एक और बारात के लोग भी गिरते पड़ते दौड़े आये थे।
इस नामुराद परदे की वजह से बहुएं बदल गई थीं।
।।नौ।।
जब कोई भी विकल्प नहीं रहा तो कामिनी संत शोभाराम जी के आश्रम में आ गई।पति के ऐक्सिडेंट के बाद बिल्कुल असहाय हो गई थी।उपर से इकलौती बेटी की परवरिश।
आश्रम में कामिनी संत महाराज की बिशेष दासी बना दी गई। उसकी खूबसूरती ही उसकी योग्यता का सबब बना।संत जी उसका शारीरिक शोषण करते रहे और वह चुपचाप सहती रही ।प्रवचन में हजारों की भीड को देखकर कभी विरोध करने का साहस नहीं हुआ पर मन ही मन यह जरूर कहती - ' ये सारे लोग या तो बेबकूफ हैं या पागल ।भगवान का सच इन्हें कहां मिलेगा जो इंसान के सच को नहीं पहचानते । सबके आंखों पे परदा पङा है ।
कामिनी की बेटी गर्मी की छुट्टियों में मां से मिलने आई । पितातुल्य संत महाराज का चरण स्पर्श की । आशीष हेतु संत महाराज के हाथ सिर्फ सर पे ही नही बल्कि गालों पे भी फिरने लगे । कामिनी तब सहम गई । संत महाराज के आंखों में वही हवस देखी जो पहली बार अपने लिए देखी थी।
संत महाराज दीक्षा हेतु उसे अपने कमरे में ले जाने लगे । सांवली तैयार भी हो गई पर कामिनी ने तुरंत कहा -- " महाराज जी, सांवली अभी अभी जवान हुई है --कल रात ही ' मासिक' हुआ है , ऐसी हालत में पूजा की बेदी पे कैसे बैठ सकती है --बस दो-चार दिन रुक जाईये।तर्क सटीक था अतः महाराज मान गये ।
नगर की एक नौटंकी मे...
चक्रवर्ती सम्राट अशोक!!
परदा गिरा और सम्राट अशोक भागा चेंज रुम की तरफ..
कपड़े बदले और लग गया लाईन में..
आज का मेहताना मिले तो खरीदे बीमार बीवी की दवा
औरबच्ची के लिए ..क्या?
सोचा और सर झटकार दिया..
न! उतना सारा पैसा थोड़ी न मिलेगा!
गुड़िया अगली बार!!
जब एक जंग और जीतेगा...
चक्रवर्ती सम्राट अशोक!!
और गिरेगा परदा...
तब!
(यह रचना कविता के शिल्प में है और शैली भी कविता की ही है। हमारे अग्रज कथाकार स्व॰ पारस दासोत का प्रभाव लगता है।)
(फोटो : साभार गूगल) आगे जारी.....
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