Sunday, 4 August 2024

लघुकथा पर सुरेश जांगिड़ उदय की सुस्थापित लघुकथा लेखकों से बातचीत-3

इस बार  श्री युगल  



सुरेश जांगिड 'उदय' प्रारंभिक दौर में लघुकथा के संवेदनशील रचनाकार और प्रकाशक रहे हैं। वर्षों तक 'अक्षर खबर' नामक मासिक पत्रिका का संपादन-प्रकाशन करते रहे हैं। यहाँ उक्त पत्रिका के जुलाई २००३ अंक से साभार प्रस्तुत है एक लम्बी परिचर्चा का तीसरा अंश।

लघुकथा को लेकर कई साथी बेहतर और गम्भीर काम कर रहे हैं। खूब अच्छी-अच्छी लघुकथाएं लिखी जा रही हैं। लेकिन लघुकथा के वैचारिक पक्ष को लेकर पहले भी बहुत ही कम काम हुआ है और आज भी इस पक्ष पर कोई बहुत अधिक काम नहीं हो रहा है। जिस कारण विधा का यह पक्ष काफी कमजोर साबित हो रहा है। हालाकि पिछले दिनों लघुकथा के प्रबल समर्थक और वरिष्ठ साहित्यकार श्री कमल किशोर गोयनका की एक बेहतर और सार्थक पुस्तक 'लघुकथा का व्याकरण' एक मील का पत्थर साबित हुई है। लेकिन लघुकथा के वैचारिक पक्ष पर बहुत काम करने की आवश्कता है। हम इस बारे बहुत अधिक गम्भीर है। लघुकथा पर कई रूपों में पुस्तकों पर काम चल रहा, जिसके बारे में समय समय पर घोषणाएं होती रहेगी।

इस प्रश्नावली का उद्देश्य किसी विवाद को जन्म देना नहीं, न ही किसी की भावना को ठेस पहुंचाना है। इसका मूल उद्देश्य पाठकों को लघुकथा के बारे में विस्तृत जानकारी देना है। लघुकथा लेखक इन प्रश्तों के उत्तर अपनी सोच और अनुभव के आधार पर देते हैं। इस बार पंजाबी लघुकथा पर बहुत ही विशिष्ट काम करने वाले लघुकथा के आधार स्तंभ श्री श्याम सुन्दर अग्रवाल तथा एक लम्बे समय से लघुकथा के विकास में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराने वाले श्री कृष्ण मनु जी से निम्न प्रश्न पूछे गए :

१. आपकी की दृष्टि में लघुकथा क्या है ?

२ लघुकथा के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं . आज भी लघुकथा की सर्वमान्य परिभाषा क्यों नहीं उभर कर आ रही है ?

३. क्या लघुकथा को शब्दों की सीमा में बांधना उचित है ? यदि हां तो अधिकतम कितने शब्द एक लघुकथा में होने चाहिए ?

४. लघुकथा और छोटी कहानी में मूलतः क्या अन्तर है ?

५. आज की लघुकथा और पुरानी जातक कथा, नीति कथा तथा प्रेरक प्रसंग में क्या अन्तर है? ६. आपकी की दृष्टि में प्रथम लघुकथा कौन सी है ? 

७. लघुकथा में वैचारिकता का क्या स्थान है?

८. आज की लघु‌कथा का केन्द्रीय स्वर क्या है?

९. क्या आप लघुकथा के वर्तमान स्वरूप से संतुष्ट हैं?

१०. आपको आजकल प्रकाशित हो रही लघुकथाओं में क्या और कौन-कौन सी कमियां दिखाई देती हैं ?

११. आज भी जाने कितने साहित्यकार हैं जो लघुकथा को नकार रहे हैं। आपके विचार से इसका क्या कारण है ?

१२. आपकी दृष्टि में कौन-कौन से लेखक हैं जिन्होंने इस विधा को स्थापित करने में विशेष योगदान दिया है ?

१३. लघुकथा की वर्तमान स्थित क्या है ? 

१४. लघुकथा का क्या भविष्य है ?

१५. आज लघुकथा के क्षेत्र में जो सृजन हो रहा है क्या आप उससे संतुष्ट हैं ?

१६. लघुकथा की उन्नति और श्रीवृद्धि के लिए आप क्या सुझाव देना चाहेंगे ?

१७. आपकी दृष्टि में वर्तमान समय के महत्वपूर्ण लघुकथाएं लिखने वाले कौन-कौन से साहित्यकार है?

युगल

१ लघुकथा समय की मांग के फलस्वरूप उपजी छोटे कलेवर की कथात्मक रचना है, जो उद्देश्य-साधित होती है। कथ्य को सटीक सीधे तौर से सामने लाने के लिए शब्दाडंबर की जरूरत नहीं होती। वाक्य-जाल में कथ्य का प्रभाव उलझ जाता है, इसलिए शब्द यहां कम, लेकिन शब्दों के तासीर अलग होते है। यहां डिटेल्स की जरूरत नहीं। गाथा नहीं। कथा-बंद मुट्टी की तरह कसी हुई कथा। रसोद्रेक और उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्ध।

दरअसल आजादी के बाद हमारे जनतंत्र ने हिपोक्रीट नेताओं के कारण जो रूप लिया और जिस के फलस्वरूप राजनीति में औपचारिकता आई और उस ने सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा व्यक्ति के संवेदनात्मक संबंधों को प्रभावित करना शुरू किया, उसी की पड़ताल करने और उसे उजागर करने और उसके विरोध में बोध जगाने के लिए ही वर्तमान लघुकथा 'स्वरूप' में आयी। यह मात्र लेखन ही नहीं, विद्रुपताओं और असंगतियों के खिलाफ आवाज भी रही।

शास्त्रीय दृष्टि से लघुकथा के जो तत्व निरूपित किये गये हैं, उन्हीं के अनुसार कहानी के भी प्रमुख तत्वों को निर्दिष्ट किया गया है। कथ्य, उद्देश्य, आकार और शिल्प, भाषा, शीर्षक आदि तत्वों पर काफी चर्चा की जा चुकी है। इन पर और कुछ कहने की मैं आवश्यकता नहीं समझता।

२ लघुकथा अपनी प्रारंभिक स्थितियों से वाहर आ चुकी है। दो ढ़ाई दशकों में इसके रूप, आकार, परिभाषा आदि पर बहुत बार बहुविध विचार किये जा चुके हैं और एक मान्य परिभाषा भी गृहीत हुई है। अव परिभाषा विमर्श का विषय नहीं रह गयी। कुछ लोग अपनी डफली अलग बजावें, तो विद्वानों की मतिर्भिन्नता की स्वतंत्रता तो है ही।

३ लघुकथा का आकार सामान्यतः छोटा तो होना चाहिए ही। शब्दों की संख्या निर्धारित करना फॉर्म के शिकंजे में कसना होगा, जो कथात्मकता और अपेक्षित चित्रण के लिए निरापद नहीं होगा।

४ इधर बड़े आकार की भी लघुकथाएं लिखी जाने लगी हैं, जो कभी-कभी दो से तीन पन्नों तक फैली हुई होती हैं। भी प्रायः यही होता है। छोटी कहानियों का आकार इसलिए लघुकथा में छोटी कहानी का भ्रम होने लगता है। छोटी कहानियां भी लघुकथा के नाम पर छप जाती हैं। स्वयं लघुकथाकार भी अपनी रचना में साफ नहीं होते कि वह जो लिख रहे हैं, वह लघुकथा है या कहानी। यह स्थिति उन लेखकों के साथ पैदा होती है, जो कहानी की विधा से लघुकथा-लेखन में आए हैं। उनके द्वारा लघुकथा के मानक टूटते रहते हैं और बहक में कहानी की पटरी पर चले जाते हैं। संतुलन नहीं रह जाता। लघुकथा की मर्यादा डिटेल्स में नहीं त्वरा में हैं। चिड़िया अभिप्रेत और दृष्ट खाद्य पदार्थ के लिए आकाश का चक्कर नहीं काटती। वह पंख की कम उड़ान में ही खाद्य की तरफ झपटती है। यह झपट, यह त्वरा ही लघुकथा को लघुकहानी से अलग करती है। लघुकथा में जादू होता है और छोटी कहानी में इन्द्रजाल।

५ यह स्वतंत्र लेख का विषय बनता है।सामान्यतः जातक कथा में महात्मा बुद्ध के विभिन्न पूर्व जन्म की कथाएं हैं। किस योनि में उन्होंने क्या कर्म किए, इसी का वर्णन है। ये सामान्य कथाएं हैं।

नीति कथा का संबंध नैतिक भावों और आचारों से है। कथा के मार्फत नैतिक मूल्यों का निथ् रिण किया जाता है। अमुक राजा, ऋषि, ब्राह्मण या अमुक व्यक्ति ने अपने आचरण अथवा कार्यों एवं कृतियों से किस प्रकार नैतिक और मानवीय मूल्यों को कायम रखा, जो समाज के हित के लिए आदर्श और आचरणीय था।

किसी व्यक्ति के आदर्श आचरण, मानवीय संवेदना-पूरित व्यवहार, त्याग आदि के वर्णन जब मनुष्य की भावनाओं को ऊंचे आदर्श की ओर प्रेरित करते हैं, तो ऐसे चित्रण प्रसंग कहलाते हैं।

६ इस संबंध में मेरा व्यक्गित शोध नहीं है। अतः इस संबंध में कुछ कहना समीचीन नहीं होगा। वैसे लघुकथा का इतिहास ढूंढने वालों में से कुछ लोगों का मानना है कि लघुकथा का आरंभिक स्वर माधव राव सप्रे की 'टोकरी भर मिट्टी' में मुखरित हुआ है। दरअसल लघुकथा का वर्तमान भाषित रूप तो १९६० के बाद सामने आया है।

७ कथ्य सामान्यतः लेखक के विचार और तत्संबंधी दृष्टि का ही निरूपण करते हैं। लेकिन लघुकथा की मर्यादा है कि विचार यहां उदग्र न हो। विचार उचक कर शब्द रूप में लोगों के सामने आवें। विचार, ध्येय और उद्देश्य कथा में ही संगुंफित हौं। शब्दों के मार्फत जब लेखक रचना में आ बैठता है, तो निष्पक्षता और तटस्थता और निस्संगता बाधित हो जाती है। कोई भी कथात्मक रचना इय वाचालता को अनपेक्षित ही मानती है। वैसे ही रचना विचार के लिए ही उद्देश्य गर्भित होती है।

८ लघुकथा में केंद्रीय स्वर की बात करना, स्वर को नाहक केंद्रित करना होगा अपनी आरंभिक स्थितियों में राजनीतिक कल्मष, क्षुद्रता, औपचारिकता, व्यवस्था की निरंकुशता एवं सामाजिक विसंगतियां एवं विडंबनाओं को केन्द्र में रखकर  । लघुकथा पाठकों तक पहुंची थी। इस पर बहुत लिखा में गया। कथ्य का बहुत दुहराव हुआ। इससे हटते हुए लघुकथाकारों ने आयामों और स्थापनाओं पर ध्यान दिया। फलक का विस्तार हुआ। कथ्य में विविधता आयी। राजनीति, समाज, धर्म, अर्थ, काम, प्रेम, भूख, पीड़न, अत्याचार मानवीय मूल्यों का विघटन, व्यक्तिगत संबंधों का स्खलन, भूमंडलीयकरण, बाजारवाद, सांस्कृतिक विद्रूपन, जीवन पर बढ़ते संश्लिष्ट दबाव ये सब लघुकथा के वर्ण्य विषय बने। जहां आरम्भ में लघुकथा का केन्द्रीय स्वर असंगत विरोध था। कालांतर में जब उसका विकेंद्रीकरण हुआ। अब पोजीटिव एप्रोच और संवेदनात्मकता आदि की भाषिक विविधता आयी है।

९ संतोष गत्यात्मकता का, प्रगति का, सक्रियता का बाधक होता है। दृष्टि के विस्तार और फैलाव का रोधक होता है। संतोष आया कि सक्रियता गयी। रचनात्मकता बाधित हुई। लघुकथा अभी जुम्मा-जुम्मा आठ दिनों की है। संतुष्ट होना पालथी मारकर बैठ जाना होगा। पिछले तीन दशकों में इसने कई केंचुल छोड़े हैं। वर्तमान जो है इतना संतोष तो जरूर है कि अभी यह वर्तमान रूप में साहित्य की सम्मानित विधाओं में अपनी पैठ बना चुकी है।

१० व्यावसायिक पत्रिकाओं के ट्रेंड बदल गये हैं। इसलिए रुझान भी बदले हैं। सूचना के साथ-साथ वे जनता तक ऐसी चीजें पहुंचा रहे हैं, जो उनके व्यावसायिक लाभ के लिए अपेक्षित हैं। उनकी मान्यता है कि साहित्य कोई नहीं पढ़ता। टी. वी., सी.डी. से वे अपनी हल्की-फुल्की प्यास की जरूरतें पूरी कर लेते हैं। इसलिए बड़े घरानों और प्रतिष्ठानों से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिकाएं बंद कर दी गयी हैं। समाचार पत्रों में जो साहित्य का पन्ना होता था, उसे सीमित कर दिया गया। वहां खेल के पन्ने हैं, सिनेमा के पन्ने हैं। व्यापार और शेयर के पन्ने हैं। नहीं है, तो रचनात्मक साहित्य का पन्ना। अतः वहां कभी कभार ही लघुकथाएं छप पाती है, तो वे नामलेवा ही होती हैं। मुख्यतः छोटी पत्रिकाएं ही लघुकथाएं छाप रही हैं। छोटी पत्रिकाओं के संपादक बंधुओं में कम ही ऐसे लोग हैं, जो लघुकथा के शास्त्रीय एवं कलात्मक पक्ष की कसौटी पर ध्यान देते हैं। फलतः उनमें निम्नलिखित कमियां रह जाती है--(क) समुचित और नव्य कथ्य का अभाव (ख) दृष्टि विस्तार का अभाव (ग) विचारों का पिष्टपेषण (घ)। अनगढ़ शिल्प (ङ) निष्प्राण और त्रुटिपूर्ण भाषा (च) संदर्भ-गर्भित शीर्षक के चुनाव में असावधानी; यही सब।

११ कुछ वरिष्ठ कथाकार तथा मठाधीश समालोचक यह मानते हैं कि लघुकथा एक मेहमान विधा है। आयी है, तो कुछ मनोरंजन कर और उछल-कूद मचाकर चली जाएगी। कुछ बुजुर्गों को नये के प्रति ग्रंथिजन्य कुंठा होती है। इस लोकप्रिय हो चली विधा के अस्वीकार के अन्य कोई कारण तो मेरी समझ में नहीं आते। हो सकता है कुछ कचरा लघुकथाओं ने उनकी यह मानसिकता तैयार की हो।

१२ लघुकथा पर अपनी कलम चलाने वाले बहुत लेखक रहे हैं। मैंने ऐसे लेखकों के बारे में भी सुना है, जो प्रतिदिन नियमित रूप से लेखन के लिए सिटिंग देते हैं और एक बैठक में चार-पांच लघुकथाएं लिख मारते हैं। इस तरह उन्होंने हजारों लघुकथाएं लिख मारी हैं। ऐसे में ही बहुत-कुछ कचरा निकल आता है। संख्या की दृष्टि से अधिक लिखना ज्यादा सरहानीय नहीं कहा जा सकता। प्रतिबद्ध रूप से निरत रहकर अच्छी रचनाएं देना ही महत्वपूर्ण होता है। वैसे लघुकथा के प्रणयन, विकास और प्रचार तथा रचनाशीतलता के लिए सन्नद्ध रहने वालों में कुछ नाम अवश्य लेखनीय हैं। जगदीश कश्यप, सतीशराज पुषकरणा, सुकेश साहनी, सतीश दुवे, कलम चोपड़ा, अशोक लव, बलराम, बलराम अग्रवाल, राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी 'बंधु', रामयतन प्रसाद यादव, मराठी और हिन्दी के साथ साथ लिखने वाले शंकर पुणतांबेकर, मैं अपना नाम लूं तो आप और पाठक क्या सोचेंगे? दूसरों द्वारा उल्लिखित नाम ही नाम होते हैं। और भी बहुत सारे नाम हैं, जो लघुकथा के समर्पित लेखक हैं। उनके योगदान को भी सम्मान की दृष्टि से ही देखा जाएगा। श्यामसुंदर दीप्ति, कृष्णानंद, अब्ज, रूप देक्गुण, इंदिरा खुराना, मीरा दीक्षित, नरेंद्र प्रसाद, निजात, तारिक असलम तस्नीम आदि के कार्यों को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

१३ उत्कर्षपूर्ण ही कहा जा सकता है। यदि कचरा लेखक अपने को सम्भाल लें। वैसे नहीं छप पाने के कारण कुछ लेखकों का उत्साह घटता दिख रहा है।

१४ मैंने तो दर्ज किया है कि लघुकथा एक नयी विधा है। इसके जीवन और नियति के संबंध में कोई भविष्यवाणी देना समय सम्मत नहीं होगा। लेकिन लेखकों का उत्साह कायम रहे और उन्हें प्रोत्साहन मिलता रहे, इसकी योजना हमें मिल बैठकर सोचनी है।

१५ कुछ लोग तो अच्छा लिख रहे हैं। नये लोग भी अपने को मांज रहे हैं। इसे संतोष की स्थिति कहा जा सकता है। गुणात्मक और अपने प्रभावों की छाप और याद छोड़ जाने वाली लघुकथाएं ही इस विधा को संपुष्ट और समुन्नत करेंगी।

१६ राजनीति, व्यवस्था, और रूढ़िवादी समाज द्वारा जो उत्पीड़न की स्थिति पैदा की गयी है, विसंगतियों और विद्रूपताओं का जो दबाव विविध दिशाओं से व्यक्ति पर बढ़ता गया है और आदमी को निरुपाय करता गया है, उन्हें उजागर उनके प्रति पाठक के मन में बोध पैदा करना और अवांछनीय स्थितियों के प्रति चिन्ता ओर बेचैन आक्रोश पैदा करना ही लघुकथा का उद्देश्य रहा है। व लघुकथा के कलेवर को देखते हुए लोगों ने इससे अधिक इसमें गुंजाइश भी नहीं मानी थी। इधर लघुकथा ने अपने वर्ण्य विषय को स्फालित किया है, उसमें विविधता आयी है। यह शुभ है। और भी विधियां ढूंढी जाएं और ईमानदारी से प्रतिबद्ध होकर व उन्हें रचनात्मक रूप दिया जाए, लघुकथा के भविष्य के लिए और इसकी प्रवृद्धि के लिए स्वस्थ सोपान होंगे। लघुकथा लेखक इसे ऐयाश लेखन के रूप में न लेकर उद्देश्यमूलक मिशनरी भावना से लिखने में जुटें यही कल्याणप्रद होगा।

युगल जी


जन्म : 1925 की दीपावली (17-10-1925)

देहावसान : 26 अगस्त,  2016)

No comments: