इस बार श्री कृष्ण मनु
सुरेश जांगिड 'उदय' प्रारंभिक दौर में लघुकथा के संवेदनशील रचनाकार और प्रकाशक रहे हैं। वर्षों तक 'अक्षर खबर' नामक मासिक पत्रिका का संपादन-प्रकाशन करते रहे हैं। यहाँ उक्त पत्रिका के जुलाई २००३ अंक से साभार प्रस्तुत है एक लम्बी परिचर्चा का दूसरा अंश।
लघुकथा को लेकर कई साथी बेहतर और गम्भीर काम कर रहे हैं। खूब अच्छी-अच्छी लघुकथाएं लिखी जा रही हैं। लेकिन लघुकथा के वैचारिक पक्ष को लेकर पहले भी बहुत ही कम काम हुआ है और आज भी इस पक्ष पर कोई बहुत अधिक काम नहीं हो रहा है। जिस कारण विधा का यह पक्ष काफी कमजोर साबित हो रहा है। हालाकि पिछले दिनों लघुकथा के प्रबल समर्थक और वरिष्ठ साहित्यकार श्री कमल किशोर गोयनका की एक बेहतर और सार्थक पुस्तक 'लघुकथा का व्याकरण' एक मील का पत्थर साबित हुई है। लेकिन लघुकथा के वैचारिक पक्ष पर बहुत काम करने की आवश्कता है। हम इस बारे बहुत अधिक गम्भीर है। लघुकथा पर कई रूपों में पुस्तकों पर काम चल रहा, जिसके बारे में समय समय पर घोषणाएं होती रहेगी।
इस प्रश्नावली का उद्देश्य किसी विवाद को जन्म देना नहीं, न ही किसी की भावना को ठेस पहुंचाना है। इसका मूल उद्देश्य पाठकों को लघुकथा के बारे में विस्तृत जानकारी देना है। लघुकथा लेखक इन प्रश्तों के उत्तर अपनी सोच और अनुभव के आधार पर देते हैं। इस बार पंजाबी लघुकथा पर बहुत ही विशिष्ट काम करने वाले लघुकथा के आधार स्तंभ श्री श्याम सुन्दर अग्रवाल तथा एक लम्बे समय से लघुकथा के विकास में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराने वाले श्री कृष्ण मनु जी से निम्न प्रश्न पूछे गए :
१. आपकी की दृष्टि में लघुकथा क्या है ?
२ लघुकथा के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं . आज भी लघुकथा की सर्वमान्य परिभाषा क्यों नहीं उभर कर आ रही है ?
३. क्या लघुकथा को शब्दों की सीमा में बांधना उचित है ? यदि हां तो अधिकतम कितने शब्द एक लघुकथा में होने चाहिए ?
४. लघुकथा और छोटी कहानी में मूलतः क्या अन्तर है ?
५. आज की लघुकथा और पुरानी जातक कथा, नीति कथा तथा प्रेरक प्रसंग में क्या अन्तर है? ६. आपकी की दृष्टि में प्रथम लघुकथा कौन सी है ?
७. लघुकथा में वैचारिकता का क्या स्थान है?
८. आज की लघुकथा का केन्द्रीय स्वर क्या है?
९. क्या आप लघुकथा के वर्तमान स्वरूप से संतुष्ट हैं?
१०. आपको आजकल प्रकाशित हो रही लघुकथाओं में क्या और कौन-कौन सी कमियां दिखाई देती हैं ?
११. आज भी जाने कितने साहित्यकार हैं जो लघुकथा को नकार रहे हैं। आपके विचार से इसका क्या कारण है ?
१२. आपकी दृष्टि में कौन-कौन से लेखक हैं जिन्होंने इस विधा को स्थापित करने में विशेष योगदान दिया है ?
१३. लघुकथा की वर्तमान स्थित क्या है ? १४. लघुकथा का क्या भविष्य है ?
१५. आज लघुकथा के क्षेत्र में जो सृजन हो रहा है क्या आप उससे संतुष्ट हैं ?
१६. लघुकथा की उन्नति और श्रीवृद्धि के लिए आप क्या सुझाव देना चाहेंगे ?
१७. आपकी दृष्टि में वर्तमान समय के महत्वपूर्ण लघुकथाएं लिखने वाले कौन-कौन से साहित्यकार है?
कृष्ण मनु
१. लघुकथा शब्दों में संतुलित ढंग से अभिव्यक्ति सम्प्रेषित करने की एक विधा है। चूंकि यह कथा कुल की विधा है, अतएव कथानक, कथ्य, कथोपकथन आदि कथा के सारे तत्य इसमें मौजूद हैं। हो लघुकलेवर के कारण कथानक का विस्तार सम्भव नहीं होता है।
२. आधुनिक लघुकथा का सर्वमान्य परिभाषा एक है। हाँ उसे व्यक्त करने के तरीके अलग-अलग है।
३. क्या उपन्यास, कहानी को सीमा में बाँधा गया है? फिर लघुकथा के शब्दों की सीमा में क्यों बांधा जाए? लघुकथा एक विशेष घटनाक्रम के केन्द्र में एक दृश्य फलक पर लिखी जाती है। अतएव यह स्वयं सीमित शब्दों में समाप्त जाती है। अगर ऐसा नहीं होता तो लघुकथा लेखक अयोग्य है।
४. वस्तुतः छोटी कहानी कोई विधा नहीं, यह कहानी है, छोटे कथानक वाली कहानी। लघुकथा और कहानी में संरचानत्मक स्तर पर कई अन्तर है।
५. आज की लघुकथा परिभाषित है, नियमों में बंधी है और जीवन मूल्यों से सीधे जुड़ी है। जबकि जातक कथा, नीति कथा और प्रेरक प्रसंग विशेष नियम से बंधे नहीं है। घटना पर घटना को जोड़कर बनी एक कथा जिसके माध्यम से धर्म, अध्यात्म, आदर्श, लोकाचार आदि नीतिगत बातें अभिव्यक्त की जाती हैं। इनका मूल स्वर आचरण परिष्कृत करना, आदर्श स्थापित करना है। जबकि लघुकथा आम जनता कि समस्याओं की आवाज है।
६. मेरी दृष्टि में वर्तमान लघुकथा का पूर्ण स्वरूप सातवें दशक के उत्तरार्द्ध और आठवें दशक के पूवार्द्ध में विकसित हुआ। पहली लघुकथा कौन सी है, यह शोचाथियों को ढूंढना चाहिए।
७. वैचारिकता बिना अभिव्यक्ति का कोई अर्थ नहीं है। अभिव्यक्ति के पहले वैचारिकता जन्म लेती है और वैचारिकता का जो स्थान साहित्य की दूसरी विधाओं में है वही लघुकथा में भी है।
८. आज की लघुकथा का केन्द्रीय स्वर विरोधात्मक है। गिरते मानव मूल्यों, क्षरित चरित्रों, अन्याय, अत्याचारों के विरोध का स्वर लघुकथा का स्वर है।
६. लघुकथा के वर्तमान स्वरूप से तभी संतुष्ट हुआ जा सकता है जब तमाम लघुकथाओं के स्वरूप में समानता हो। वे निर्धारित फार्म में लिखी गई है यहा अनियमितता अभी भी बनी हुई हो। लघुकथा शीर्षकों से कई चीजें ऐसी छप रही है जो लघुक्या है ही नहीं। गद्योज, चुटकले, कहानी, लोककया आदि को लघुकथा शीर्षक तले छापा जा रहा है। यहां तक की लघुकथा (एक शब्द) को 'लघु-कथा' या लघु कथा (दो शब्द) में छापी जाती हैं जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
१०. प्रश्न क्रमांक ९ में उत्तर निहित है।
११. हर नये प्रयास का विरोध किया जाता है। इसमें नई बात नहीं है। परम्परावादि साहित्यकार नई चीजों से परहेज करते रहते हैं। लेकिन किसी के नकारने से कुछ नहीं होता। पाठक जिसे अपना ले वह स्थापित हो जाता है। जैसा कि लघुकथा के साथ हुआ। देर सवेरे वे भी अपनी जिद परित्याग पर इसे अपना लेगे।
१२. कई लेखक हैं केवल चन्द लेखकों का नाम लेकर में दूसरों को नाराज नहीं करना चाहता। १३. लघुकथा की वर्तमान स्थिति तो ठीक है लेकिन भविष्य के प्रति अनिश्चितता बनी हुई है। जो चुस्ती आठवें दशक में देखने को मिली और लेखकों ने जिस निष्ठा, लगन और आत्मसमर्पण द्वारा अच्छी-अच्छी लघुकथाएं सृजित की, वैसी ही चुस्ती, निष्ठा और लग्न की जरूरत है। अभी लघुकथा में लेखकों की बाढ़ है। बाढ़ में गंदगी, कचरे जमा होते ही हैं लेकिन एक दिन बाड़ थमेगी तब गंदगी, कचरे से लघुकथा भी मुक्त होगी।
१४. प्रश्न १३ में उत्तर देखा सकता है।
१५. मैं संतुष्ट नहीं हूँ।
१६. लघुकथा खेमे बाजी, गुट बाजी से हो। लघुकथा लेखको को उचित (भेदभाव प्रोत्साहन दिया जाए। निष्पक्ष समीक्षाएं लिखी मुक्त बिना) जाएं। सहयोग स्तर पर निकलने वाले सतही संग्रहों को बंद किया जाएं। गोष्ठियां हो लेकिन एक दूसरे की पीठ ठोकने, एक दूसरे को सम्मानित करने की हास्यस्पद प्रथा की भरपूर भर्त्सना की जाए। सग्रहों की ब्रिकी की व्यवस्था की जाएं।
१७.बहुत सारे आएंगे। हैं। नाम दिए गए तो कई पृष्ट रंग केवल चंद साहित्यकारों के नामोल्लेख उचित नहीं।
मोबाइल:99393 15925
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