इस बार श्री श्याम सुन्दर अग्रवाल
इस प्रश्नावली का उद्देश्य किसी विवाद को जन्म देना नहीं, न ही किसी की भावना को ठेस पहुंचाना है। इसका मूल उद्देश्य पाठकों को लघुकथा के बारे में विस्तृत जानकारी देना है। लघुकथा लेखक इन प्रश्तों के उत्तर अपनी सोच और अनुभव के आधार पर देते हैं। इस बार पंजाबी लघुकथा पर बहुत ही विशिष्ट काम करने वाले लघुकथा के आधार स्तंभ श्री श्याम सुन्दर अग्रवाल तथा एक लम्बे समय से लघुकथा के विकास में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराने वाले श्री कृष्ण मनु जी से निम्न प्रश्न पूछे गए :
१. आपकी की दृष्टि में लघुकथा क्या है ?
२ लघुकथा के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं . आज भी लघुकथा की सर्वमान्य परिभाषा क्यों नहीं उभर कर आ रही है ?
३. क्या लघुकथा को शब्दों की सीमा में बांधना उचित है ? यदि हां तो अधिकतम कितने शब्द एक लघुकथा में होने चाहिए ?
४. लघुकथा और छोटी कहानी में मूलतः क्या अन्तर है ?
५. आज की लघुकथा और पुरानी जातक कथा, नीति कथा तथा प्रेरक प्रसंग में क्या अन्तर है? ६. आपकी की दृष्टि में प्रथम लघुकथा कौन सी है ?
७. लघुकथा में वैचारिकता का क्या स्थान है?
८. आज की लघुकथा का केन्द्रीय स्वर क्या है?
९. क्या आप लघुकथा के वर्तमान स्वरूप से संतुष्ट हैं?
१०. आपको आजकल प्रकाशित हो रही लघुकथाओं में क्या और कौन-कौन सी कमियां दिखाई देती हैं ?
११. आज भी जाने कितने साहित्यकार हैं जो लघुकथा को नकार रहे हैं। आपके विचार से इसका क्या कारण है ?
१२. आपकी दृष्टि में कौन-कौन से लेखक हैं जिन्होंने इस विधा को स्थापित करने में विशेष योगदान दिया है ?
१३. लघुकथा की वर्तमान स्थित क्या है ? १४. लघुकथा का क्या भविष्य है ?
१५. आज लघुकथा के क्षेत्र में जो सृजन हो रहा है क्या आप उससे संतुष्ट हैं ?
१६. लघुकथा की उन्नति और श्रीवृद्धि के लिए आप क्या सुझाव देना चाहेंगे ?
१७. आपकी दृष्टि में वर्तमान समय के महत्वपूर्ण लघुकथाएं लिखने वाले कौन-कौन से साहित्यकार है?
श्याम सुन्दर अग्रवाल
१. लघुकथा विशाल जिन्दगी के उन क्षणों वर्णन है जो उपन्यास तथा कहानी में गुम होकर रह जाते हैं। लघुकथा उन क्षणों को तीक्ष्णता के साथ पाठक के सम्मुख पेश करती है तथा उनके महत्व को दर्शाती है। लघुकथा में इसके नाम वाले दो मुल तत्व 'लघु' तथा 'कथा' तो होने ही के चाहिए ।
२. लघुकथा नई विद्या है। इस विधा के अधिकांश लेखक वे है जो मात्र पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित लघुकथाओं को ही पढ़कर रचनाएं लिख रहे है। विधा पर श्रेष्ठ आलेखों, आलोचनात्मक पुस्तकों का अभाव है, ऐसे मंच नहीं है जहां लेखक एवं समीक्षक एकत्र होकर सार्थक विचार विमर्श कर सके। न ही अकादमिक स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। एक स्थान पर एकत्र हुए बिना सर्वमान्य परिभाषा संभव नहीं है। पंजावी में पिछले पंन्द्रह वर्षों से लघुकथा पर नियमित रूप से एक मंच पर विचार-विमर्श हुआ है तथा एक सर्वमान्य परिभाषा लगभग तय हो गई है।
३. लघुकथा को शब्दों की सीमा में चौथना उचित नहीं हैं। यह तो कथ्य ही है, जिसने शब्द सीमा तय करनी है। देखने में आया है कि एक श्रेष्ठ लघुकथा पाँच-छः सी शब्दों से आगे नहीं जाती। इसमे अधिक शब्दो की रचना अपना प्रभाव खो देता हैं।
४. लघुकथाएं में अधिक घटनाएं एवं पात्र नहीं होने चाहिए। अगर कथ्य को उभारने के लिए आवश्यक हो तो घटनाओं में समय का अंतराल अधिक न हो। ऐसा न हो कि कथा का काल कई वर्षों में फैला हो। लघुकथा की तुलना सौ मीटर की दौड़ से की जा सकती है छोटी कहानी में ऐसी बंदिशे नहीं है। वह आठ सौ मीटर की भी दौड़ भी हो सकती है और दस हजार मीटर की दौड़ भी।
५. जातक कथाओं का संबंध तो है ही धर्म से। नीति कथा नीति की बात करती है तथा प्रसंग का उद्देश्य प्रेरणा देना है। संभव है इन बुद्ध प्रेरक रचनाओं में कहीं लघुकथा विधा का कोई तत्व नजर आ जाए, मगर ये पूर्ण रूप से भिन्न हैं इन रचनाओं का अलग रूप विधान है। लघुकथा कलात्मक ढंग से आधुनिक यथार्थ को प्रस्तुत करती है, सीधे-सीधे उपदेश नहीं देती।
६. आज लघुकथा की जो परिभाषा उभर कर सामने आ रही है। उस लिहाज से तो भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की रचना 'अंगहीन धनी' (वर्ष १८७६) को हिन्दी की प्रथम लघुकथा माना जा सकता है (पह रचना 'भारतेन्दु संग्रह' से हेमन्त शर्मा - प्रकाशक हिन्दी प्रचारक संस्थान, वाराणसी के तृतीय संस्करण के पृष्ट १०६७ पर दर्ज है)
७. रचना किसी भी विधा में हो, लेखक विचार तो उसमें विद्यमान रहते ही हैं। लघुक्या में भी वैचारिकता महत्त्वपूर्ण है, लेकिन वैचारिकता का संप्रेषण सीधे सपाट रूप में न होकर कथा के
८. भौतिक सुख-सुविधाओं की चाह एवं एक दूसरे की टेंगड़ी मार आगे निकल जाने की अंधी दौड़ हमारे समाज की नैतिकता का जो क्षरण कर रही है, वही आज की लघुकथा का मुख्य स्वर है। इसमें राजनैतिक एवं अधिकारियों में घर कर गया दोगलापन एवं भ्रष्टाचार, जनसाधारण की हो रही दुर्गति, परिवारिक एवं सामाजिक रिश्तों का अमानवीकरण एवं व्यक्ति के भीतर से गायब हो रही संवेदना मुख्य है।
९. वर्तमान सामाजिक हालात तथा अन्य विधाओं की स्थिति पर नजर डाले तो लघुकथा सरीखी नई विधा की स्थिति बुरी नहीं है 'सारिका' के जुलाई १९७३ अंक में प्रकाशित सत्तर लघुकथाओं को सामने रख आज की लघुकथाओं का अध्ययन करें तो अन्तर स्पष्ट हो जाता है। पता चलता है कि लघुकथा कितनी आगे निकल गई है। लघुकथा के वर्तमान स्वरूप से मैं तो संतुष्ट हूँ।
१०. लघुकथा का छोटा आकार इसकी सबसे बड़ी शक्ति है। मगर अकुशल एवं लेखक बनने का शार्टकट जान अधिकांश नए लेखकों ने इसे श्राप में बदल दिया। अनाड़ी संपादक पैसे लेकर ऐसे लेखकों का कूड़ा-कबाड़ संकलनों में छाप रहे हैं। वही नए लेखकों के लिए लघुकथा के मानदंड बन जाते हैं। लघुकथा के उपयुक्त कथ्य और उसके अनुरूप शैली कम ही देखने को ही मिलते हैं। लघुकथा का शीर्षक एवं अंत दोनों अक्सर कमजोर पाये जाते हैं।
११. भारत रुढीवादी लोगों का देश है। लघुकथा ही नहीं प्रत्येक नई विधा को पुरानी पीढ़ी के साहित्यकारों ने नकारा है। लघुकथा लिखना कहानी लिखने से कठिन कार्य है तथा बहुत से कहानी लेखक प्रयास करने के बावजूद श्रेष्ठ लघुकथाएं नहीं लिख पारे। इसलिए भी वे लोग इसका विरोध कर रहे हैं। जब-जब इनसे कुछ सवाल उठाए जाते हैं तो वे निरुत्तर हो जाते हैं। गजल के एक शेर में तो उन्हें सब कुछ नजर आता है मगर लघुकथा में नहीं!
१२. कमलेश्वर, रमेश बतरा, बलराम, विक्रम सोनी, सुकेश साहनी, बलराम अग्रवाल, सतीशराज पुष्करणा, सतीश दुबे, भगीरथ परिहार, शमीम शर्मा, कमल चोपड़ा, सुभाष नीरव, सतीश राठी, रूप देवगण, अशोक भाटिया, महेन्द्र सिंह महलान, अंजना अनिल, सुरेश जांगिड उदय, सुरेश शर्मा, श्यामसुन्दर दीप्ति आदि।
१३. लघुकथा की स्थिति संतोषजनक है समर्पित लोग प्रयत्नशील है तथा अच्छा लिख रहे हैं।
१४. लघुकथा का भविष्य पूरी तरह से उज्ज्वल है।
१५. लघुकथा के क्षेत्र में जो लेखक १५-२० वर्षों से डटे हुए है, गंभीर हैं, उनका सृजन पूरी तरह संतुष्ट कर रहा है तथा असीम संभावनाएं नजर आ रही हैं।
१६. लघुकथा की उन्नति के लिए व्यक्तिगत प्रयास काफी नहीं हैं। राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसे मंच की आवश्यकता है जिसका संचालन लघुकथा विधा को समर्पित ईमानदार लेखकों के हाथ में हो। लघुकथा विधा को समर्पित एक केंद्रीय पत्रिका हो। यह सब कार्य व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर किया | जाना चाहिए। पंजाबी पत्रिका 'मिन्नी' का उदाहरण सामने है। पिछले पन्द्रह वर्षों से 'मंच' एवं 'पत्रिका' दोनों कार्यों का निर्वाह 'मिन्नी' ने सफलतापूर्वक किया है। आत पंजाबी लघुकथा का स्तर किसी से छिपा नहीं है।
१७. सुकेश साहनी, सतीश दुबे, श्याम सुन्दर दीप्ति, बलराम अग्रवाल, कमल चोपड़ा, भगीरथ परिहार, रामेश्वर काम्बोज हिमाशुं, सूर्यकान्त नागर, पवन शर्मा, पृथ्वीराज अरोड़ा, अशोक भाटिया, बलराम, युगल, धर्मपाल साहिल, सतीश राज पुष्करणा, तारिक असलम तसनीम, सुरेश शर्मा आदि।
पोस्ट बाक्स नं.-४४,
नजदीक दसमेश पब्लिक स्कूल, कोटकपूरा (पंजाब)-१५१२०४
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