Sunday, 30 January 2022

सकारात्मकता का सुदर्शी सन्देश देती लघुकथाएँ-2 / कल्पना भट्ट

गतांक से आगे...

पुस्तक  : ६६ लघुकथाकारों की ६६ लघुकथाएँ और उनकी पड़ताल  (पड़ाव और पड़ताल खंड ३०) 

आलोचक  :  कल्पना भट्ट


सम्पादक : मधुदीप 

सकारात्मकता का सुदर्शी सन्देश देती लघुकथाएँ-2


३. वैचारिक लघुकथाएँ : ऐसी लघुकथाएँ जिनके कथानक कुछ सोचने हेतु  विवश कर दें , ऐसी लघुकथाओं को मैंने इस श्रेणी के शामिल किया है। इनमें  ‘उसकी पींग’, ‘सिक्सटी प्लस’, ‘कठपुतली’, ‘लिहाज’ ‘प्रतिशोध’, ‘संवेदना’, ‘आईनेवाला डिसूजा’, ‘पड़ाव’, ‘रिश्तों की भाषा’, ‘शहर की रफ़्तार’, ‘मोक्ष-श्लोक’, ‘चिड़िया उड़’ और ‘गाय-माँ’ का शुमार किया है |  

अशोक वर्मा की लघुकथा ‘उसकी पींग’ लघुकथा में कथानायक एक पार्क में अपने पोते को झूला झुलाता है, वहीँ एक गरीब बच्चा भी आता है और उसको झूले को पींग डालने को कहता है| परन्तु कथानायक उसकी गरीबी को देखते हुए उसकी बातों को अनसुनी कर देता है | गरीब बच्चा पुनः प्रयास करके झूले पर चढ़ जाता है और हवा से बातें करते हुए आनंदित हो उठता है| वह झूले पर से गिर न जाए अब यह चिंता उसको सताती है परन्तु वह चलते झूले से कूद कर मिट्टी में गिर जाता है और हँसते हुए वहाँ से चला जाता है| कथानायक को लगता है जैसे वह गरीब बच्चा उसकी अमीरी का उपहास करके चला गया है | इस कथानक के द्वारा लेखक अमीर लोगों की गरीबों के प्रति हीनभावना  पर विचारनीय प्रश्न खड़ा कर रहा है | उषा भदौरिया की लघुकथा ‘सिक्सटी प्लस’ का कथानक उन बुजुर्गों के इर्द-गिर्द घूम रहा है जो अपने परिवारवालों से उपेक्षित हो जाते हैं, ऐसे में इस कथा के बुज़ुर्ग अपना एक व्हाट्सअप ग्रुप बना लेते हैं और एक दूसरे की कुशल-क्षेम लेते रहते हैं और अगर कोई ग्रुप में नहीं आ पाता तो उसकी खोज-खबर लेने उसके घर पहुँच जाते हैं, और जरूरत पड़ने पर उसको अस्पताल पहुँचा देते हैं | ऐसा ही कुछ इस लघुकथा की कथानायिका के साथ हुआ जो एक बुज़ुर्ग  महिला है जिसका बेटा उसको देखने अस्पताल आता है, क्योंकि माँ को माइनर स्ट्रोक आता है, पूछताछ करने के बाद इस सिक्सटी प्लस व्हाट्सअप ग्रुप का पता चलता है, बेटा माँ से आधे घंटे की दूरी पर रहता है परन्तु बेटा व्यस्तता का बहाना बनाता है, “पर माँ ने उसे कभी नहीं बताया।” कथानायिका के साथी उसको उसकी लापरवाही का आईना दिखाकर उसको आशीर्वाद देकर चले जाते हैं| यह एक सुलझी हुई, समाज को  आईना दिखानेवाली  एक सुन्दर लघुकथा है| स्वाभाविक भाषा-शैली, प्रवाहमयी संवादों से यह लघुकथा उत्कृष्टता के पायदान पर खड़ी मिलती है।

बड़ी विनम्रता से कहना चाहती हूँ कि अगली लघुकथा ‘कठपुतली’ इन पंक्तियों की लेखिका की है |  इस लघुकथा के विषय में मैं क्या कहूँ ? इस लघुकथा पर डॉ.ध्रुव कुमार ने इसके शीर्षक को प्रतीकात्मक कहा है जो अपनी सार्थकता को गहराई तक जाकर सिद्ध करता है | वह कहते हैं, “ यह लघुकथा शनैः –शनैः घनी एवं सुष्ठु बुनावट के साथ क्रमशः विकास पाती है और क्षिप्रता के साथ अपने गंतव्य पर पहुँचकर पाठकों को संवेदना से भर देती है|” रूप देवगुण के अनुसार– “यह लघुकथा उद्देश्यपूर्ण, रोचक तथा सार्थक है।”

कुमार गौरव की लघुकथा ‘लिहाज’ उन भटके हुवे युवा वर्ग पर आधारित लघुकथा है जो सिगरेट फूँकने में नहीं झिझकते परन्तु अपने बड़ों की मर्यादा रखते हैं और उनसे अपनी आदात को छिपाने का प्रयास करते हैं| यह दो पीढ़ियों की आपस की समझ-बूझ पर आधारित एक श्रेष्ठ लघुकथा है | दिव्या राकेश शर्मा की 8लघुकथा ‘प्रतिशोध’ के माध्यम से लेखिका ने यह सन्देश देने का सद्प्रयास किया है कि ‘प्रतिशोध’ लेना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है| महाभारत के पात्र अश्वत्थामा को प्रतीक बनाकर अत्मत्काथात्मक शैली में लिखी गयी  एक श्रेष्ठ लघुकथा है| इसकी भाषा-शैली कथ्य के अनुरूप है | नंदकिशोर बर्वे की लघुकथा ‘संवेदना’  पुराणों के पात्रों के माध्यम से वर्तमान के संवेदनहीन सरकारी यंत्र को चित्रित करती है। मुकेश शर्मा की लघुकथा ‘आइनेवाला डिसूजा’ में आईने को बिम्ब बनाकर लेखक ने इस सत्यता को चित्रित करने का सद्प्रयास किया है कि, ‘सुख के सब साथी, दुःख में न कोय’ | इसका प्रस्तुतीकरण प्रशंसनीय है , लेखक को इसके शीर्षक पर पुनः विचार करना चाहिए ऐसा मेरा मत है | योगराज प्रभाकर की लघुकथा ‘पड़ाव’ पति-पत्नी के बीच सच्चे प्रेम को दर्शाती एक संवेदनशील लघुकथा है | इस लघुकथा का शिल्प तथा संवाद की भाषा-शैली ने इस लघुकथा के कथ्य को उत्कृष्टता प्रदान की है | इसका शीर्षक भी कथा के अनुरूप है | विरेन्दर ‘वीर’ मेहता की लघुकथा ‘रिश्तों की भाषा’ संवाद-शैली में लिखी गयी एक उत्कृष्ट लघुकथा है जिसमें लेखक यह बताना चाह रहा है कि दैहिक प्रेम क्षणिक होता है परन्तु आत्मिक प्रेम सच्चा होता है और सफल भी | इसका शीर्षक भी कथ्य के अनुरूप है | सतीशराज पुष्करणा की लघुकथा ‘शहर की रफ़्तार’ में लेखक ने यह चित्रित करने का सद्प्रयास किया है कि गाँव से जब कोई व्यक्ति पहली बार किसी शहर आता है तो यहाँ के कोलाहल में वह यहाँ आने का कारण तक  भूल जाता है, और संवेदनहीन लोगों के मध्य आकर अपने गाँव के लोगों के निश्छल प्रेम को कहीं खो देता है और इसी शहरी जीवन में प्रताड़ित हो जाता है| इस लघुकथा का कथ्य, भाषा-शैली सभी उत्तम हैं और शीर्षक भी कथा के अनुरूप है | सतीश दुबे की लघुकथा ‘मोक्ष-श्लोक’ आध्यात्मिक विषय पर लिखी गयी एक दुरूह रचना है जिसमें पति-पत्नी के मध्य शरीर और आत्मा को लेकर वार्त्तालाप हो रहा है कि इन्सान की मृत्यु के पश्चात् उसकी आत्मा भी संग जायेगी अगर पति-पत्नी के बीच आध्यातिक प्रेम हो तब| यह एक मिथ्या बात है| इस लघुकथा के कथ्य से पूर्ण रूप-से मेरी सहमति नहीं बन पा रही है| संध्या तिवारी की लघुकथा ‘चिड़िया उड़’ में लेखिका ने माँ के वात्सल्य भाव को चित्रित करने का सुन्दर सद्प्रयास किया है कि माँ की आँखों में प्यार की जितनी गहराई होती है वह अन्य कहीं नहीं मिल सकती | ‘चिड़िया उड़’ बच्चों के एक खेल को प्रतीक बनाकर लेखिका ने माँ के प्यार को सर्वाधिक  उत्कृष्ट बतलाया है जो लेखिका के लेखन-कौशल को प्रदर्शित कर रहा है | हरनाम शर्मा की लघुकथा ‘गाय-माँ’ के माध्यम से लेखक ने समाज के उस वर्ग पर करारा प्रहार किया है जो गाय को माँ तो कहता है परन्तु वह सिर्फ इसलिए कि गाय एक उपयोगी प्राणी है, वरना उसकी देखभाल करने में वह कतराता है |  इसका कथानक, भाषा-शैली लघुकथा के अनुरूप हैं और इस कथा को उत्कृष्टता प्रदान करने में सहायक बने हैं | इसका शीर्षक भी सटीक है| 

४. अन्यान्य लघुकथाएँ : अध्य्यनोपरांत इस पुस्तक में सम्मिलित सभी लघुकथाओं में दो लघुकथाएँ ऐसी लगीं जो  व्यंग्यात्मक एवं मनोवैज्ञानिक हैं| ऐसी लघुकथाओं को मैंने इस श्रेणी में लिया है| ‘भीड़तन्त्र’ और ‘दोजख की आग’ | 

तेजवीर सिंह ‘तेज’ की लघुकथा ‘भीड़तन्त्र’ व्यंग्यात्मक लघुकथा है जिसमें सरकार और पुलिसिया विभाग की कार्यप्रणाली और उनकी पदवी का दुरूपयोग करने  वालों  पर करारा व्यंग्य किया गया है | इसका विषय नया नहीं है,  परन्तु संवाद कथानुरूप हैं और शीर्षक भी | राजेन्द्रकुमार गौड़ की लघुकथा ‘दोजख की आग’ आतंकवाद को आधार बनाकर लिखी हुई है, जिसमें  लोगों को भरमाकर आतंकवादी बना दिया जाता है और गुमराह कर दिया जाता है| पर जब उनकी आँख खुलती है तब तक बहुत देर हो जाती है | 

अब मैं पड़ाव और पड़ताल खण्ड ३० में धरोहर स्तम्भ के अंतर्गत मलयालम भाषी हिन्दी लघुकथाकार एन. उन्नी की उन ग्यारह लघुकथाओं पर संक्षेप में चर्चा करना चाहूँगी | वे लघुकथाएँ क्रमशः इस प्रकार हैं- ‘कबूतरों से भी खतरा है’, ‘सर्कस’, ‘दूध का रंग’, ‘मरीज’, ‘तलाश’, ‘तबाही’, ‘वाह री दाढ़’, ‘सपनों में रावण’, ‘राम-राज्य’ और ‘पागल’| 

एन. उन्नी की सभी लघुकथाओं को गहराई से अध्ययन करने के पश्चात् जहाँ तक मैं समझ पायी हूँ, ये सभी लघुकथाएँ वैचारिक हैं  जो पठनोप्रांत चिंतन-मनन हेतु किसी भी संवेदनशील पाठक को विवश कर देती हैं|  इनकी पहली लघुकथा ‘कबूतरों से भी खतरा है’ में परतंत्रता से स्वतंत्रता की राह दिखाती लघुकथा कबूतरों को प्रतीक बनाकर लिखी गयी श्रेष्ठ रचना है| इसे लघुकथा माने या न माने यह विचार का विषय है |  कारण यह लघुकथा कालत्व दोष की शिकार है| दूसरी लघुकथा ‘सर्कस’ है जिसमें बन्धुवा मजदूरों को स्वतंत्रता की राह दिखाती तथा समुचित अधिकार के प्रति सतर्क करती है, निश्चित रूप से एक श्रेष्ठ लघुकथा है| ‘दूध का रंग’ लघुकथा में सरकारी विद्यालयों की पढ़ाई एवं छात्र-छात्राओं के स्तर को संप्रेषित करने का प्रशंसनीय प्रयास किया गया है, किन्तु यदि इसके आरंभिक भाग को क्षिप्र कर दिया जाए और कालत्व दोष से इसे मुक्त कर दिया जाए तो यह लघुकथा प्रशंसा की पात्र बन सकती है|  इनकी चौथी लघुकथा दुरूह है किन्तु गहरे पानी पैठने पर बल देती इस लघुकथा में व्यावसायियों की स्वार्थपरकता पर गंभीरता से विचार किया गया है कि इस वर्ग को किसी के दुःख-दर्द से कोई सरोकार नहीं है उन्हें तो मात्र और मात्र अपने लाभ से मतलब है| पाँचवीं लघुकथा में यह सुन्दर विचार अभिव्यक्त किया गया है कि सच्चाई की राह पर चलने वाले कभी गद्दी की चिन्ता नहीं करते | वे जीवन-पर्यन्त इस हेतु संघर्ष करते ही रहते हैं| छठी लघुकथा में दवा के धंधे पर प्रहार किया गया है कि दवा में मिलावट के कारण नायक की पत्नी उसे संतान का मुँह दिखाये बिना इसी मिलावट के कारण दिवंगत हो जाती है| सातवीं लघुकथा ‘वाह री दाढ़’ में दाढ़ को प्रतीक बनाकर यह सन्देश संप्रेषित करने का प्रयास किया गया है कि व्यक्ति को मात्र सुनना ही नहीं, अपितु देश की समस्याओं पर पढ़ना एवं उस पर चिंतन-मनन भी करना चाहिए| यह भी एक दुरूह लघुकथा है  जो गंभीरता से कई बार पढ़ने एवं स्वयं पर विचार करने की माँग करती है| आठवीं लघुकथा व्यवसायियों के सोच को प्रत्यक्ष करती है कि यह वर्ग मात्र अपने स्वार्थ एवं अधिकाधिक धन कमाने में विश्वास करता है| उनके इस सोच से गरीबों पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा इससे उन्हें कोई वास्ता नहीं है | इनकी नौवीं लघुकथा ‘सपनों में रावण’ है जिसमें रावण को प्रतीक बनाकर भ्रष्टाचारियों के सोच को उजागर किया गया है| तात्पर्य यह है कि  हमारे देश में वर्तमान नेताओं के चरित्र की पोल खोलते हुए यह स्पष्ट करने का सफल प्रयास किया गया है कि ये लोग जनता का हित करने की अपेक्षा उन्हें धोखा देते हैं, ठगते हैं और स्वयं राजसी आनंद उठाते हैं और जनता को ‘राम-राज्य’ के स्वप्न दिखाते हैं| 

इनकी अन्तिम लघुकथा ‘पागल’ में दो बहनों में उत्पन्न ईर्ष्याभाव को प्रत्यक्ष करते हुए यह स्पष्ट करने का सद्प्रयास है कि जब कोई व्यक्ति किसी निकटतम व्यक्ति को प्रगति की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए देखता है, तो वह उससे ईर्ष्या करने लगता है| 

कुल मिलाकर मैं उन्नी की लघुकथाओं के विषय में यह कहना चाहूँगी कि इनमें कथात्मक रचनाएँ श्रेष्ठ हैं, जिन्हें विचार करने की दृष्टि से पढ़ा जाना चाहिए, किन्तु यदि हम वर्तमान हिन्दी-लघुकथा की बात करें तो इनकी अधिकांश लघुकथाएँ कालत्व दोष की शिकार हैं  जिनपर विद्वानों को गहराई तक जाकर विचार करना चाहिए | 

अब यदि पड़ाव और पड़ताल के ३० वें खण्ड में प्रकाशित लघुकथाओं पर सामूहिक रूप-से निष्कर्ष निकालें तो कतिपय अपवादों को छोड़कर प्रायः सभी लघुकथाएँ उत्कृष्ट हैं जो आने वाली पीढ़ी को श्रेष्ठता के उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत की जा सकेंगी | अतः अपने अन्य खण्डों की भाँति ही यह तीसवाँ खण्ड भी न मात्र उपयोगी है, अपितु प्रत्येक लघुकथाकार के पास होने की आवश्यकता पर भी बल देता है| 

कल्पना भट्ट,

भोपाल (मप्र)


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