Monday, 5 July 2021

लघुकथा में समालोचना का भविष्य-2/ रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु'

दिनांक 04-7-2021 के बाद दूसरी, समापन कड़ी

अच्छा लेखन या संकलनों का प्रकाशन कौन महत्त्वपूर्ण है? रमेश बतरा का कोई लघुकथा-संग्रह नहीं छपा; लेकिन उनके रचनाकर्म का वैविध्य उन्हें हिन्दी के श्रेष्ठ रचनाकारों की श्रेणी में रखता है। दूसरी ओर सुभाष नीरव ने उत्कृष्ट लघुकथाएँ लिखने के साथ-साथ पंजाबी की लघुकथाओं का हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया। इन्होंने ‘प्रयास’ नाम की साइक्लोस्टाइल पत्रिका सन 1980 के आसपास प्रारम्भ की थी। एक लम्बे अर्से के बाद इस वर्ष 2012 में इनका संकलन आया है। इनकी लघुकथाएँ अपने उल्लेखनीय कथ्य, आम आदमी की ज़िन्दगी के सरोकार को बड़ी शिद्दत से पेश करती हैं। इनको केवल अनुवादक तक सीमित करना अनुचित ही कहा जाएगा ।

जिनकी लघुकथा के तात्त्विक विवेचन पर गहरी पकड़ है , वे भी जान-बूझकर अपने समकालीन लेखकों का उल्लेख करने से बचते हैं। वे अपने आलेख की शुरुआत विष्णु नागर या असगर वज़ाहत से करेंगे। शायद समकालीन अन्य लेखकों से बचने का इससे बेहतर कोई संकटापन्न मार्ग नज़र न आता हो। 'नई दुनिया' का सम्पादन करते समय लघुकथाएँ दी गईं, पर ‘लघुकथा’ शब्द से परहेज़ किया गया। यही नहीं, विष्णु प्रभाकर जैसे रचनाकार की लघुकथा से उनका नाम भी हटा दिया गया । फोन पर जब इसका कारण पूछा तो सम्पादक महोदय ने इसे अखबार का नीतिगत मामला बताया। किसी ज़माने में स्तरीय लघुकथा छापने वाला 'हिन्दुस्तान' आज लघुकथा के नाम पर कुछ भी छाप देता है। इण्टरनेट ने तो और भी सुविधा जुटा दी है । 'गद्यकोश' से किसी भी लेखक की लघुकथा उठाओ और छाप दो। न सम्पादन का झमेला, न टाइप कराना, न प्रति भेजना न मानदेय देना। कलकत्ता के 'सन्मार्ग' में लघुकथा के कालम को देखने वाले सज्जन यही काम कर रहे हैं। कभी-कभी तो 'हंस' जैसे मासिक में भी ऐसी रचना लघुकथा के नाम पर छप जाती है, जो कहीं से भी, लघुकथा छोड़िए, चुटकुला भी नहीं होती है ।

आज कमलेश्वर और रमेश बतरा जैसे सम्पादक नहीं हैं ; जिनके चयन और सम्पादन का लेखक लोहा मानते थे । आज कमज़ोर सम्पादकों के चलते अपनी किसी अखबार में छपी रचना को लेकर गलतफ़हमी पालने वाले बहुत से लेखक घटना -लेखन को ही लघुकथा-लेखन समझकर कुछ भी लिखे जा रहे हैं। कुछ तो दो वाक्य लिखकर और उसे सबसे छोटी लघुकथा समझकर खुद ही अपनी पीठ ठोंक रहे हैं, जबकि लघुकथा लेखन सन्तुलित दृष्टि, संयमित भाषा और गम्भीर चिन्तन के बिना सम्भव नहीं है। लघुकथा डॉट कॉम के ‘मेरी पसन्द’ कॉलम के माध्यम से यह प्रयास किया गया था कि लेखक, समीक्षक या प्रबुद्ध पाठक अपनी पसन्द की दो लघुकथाओं की तात्त्विक विवेचना प्रस्तुत करें। कुछ लेखक ऐसे भी सामने आए जो अपने समकालीन लेखकों को न तो पढ़ते हैं और न समझते हैं और न दो वाक्य से ज़्यादा लिखने की स्थिति में खुद को पाते हैं । कुछ विगत चार साल से आग्रह करने पर भी दो पंक्तियाँ लिखने में असमर्थ हैं । कुछ अपने साथ उठने-बैठने वाले को छोड़कर किसी अच्छे लेखक की अच्छी रचना पर नहीं लिखना चाहते। यह लघुकथा के लिए शुभ नहीं है। आज इस दिशा में गम्भीरता से सोचना होगा कि लघुकथा में समालोचना का भविष्य कैसे सँवारा जाए। लघुकथा सम्मेलनों में जो सार्थक चर्चा हो, उसका प्रकाशन ज़रूर किया जाए। पटना के सम्मेलन में प्रो निशान्तकेतु और प्रो रवीन्द्रनाथ ओझा की चर्चाएँ, महत्त्वपूर्ण हुआ करती थीं। उन चर्चाओं का (उनके पठित आलेख के अतिरिक्त) आज अभिलेख उपलब्ध नहीं है। इस दिशा में पंजाब के सम्मेलनों में डॉ अनूपसिंह की चर्चाएँ भी उपयोगी रहीं। इनके कुछ विचार प्रकाशित रूप में उपलब्ध हैं। 'मिन्नी' त्रैमासिक की चर्चाएँ और लघुकथा विषयक चिन्तन आज भी महत्त्वपूर्ण है। आज आवश्यकता है स्वस्थ दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की। अगर हमारे लेखक खुद ही आगे बढ़ना चाहते हैं, तो आने वाली पीढ़ी को कौन प्रोत्साहित करेगा? संकीर्ण विचारधारा के चलते समकालीन लेखकों के रचनाकर्म को अगर हम स्वीकार नहीं करेंगे तो, ऐसा करने से वे लेखक महत्त्वहीन नहीं हो जाएँगे, बल्कि हम ही सिरे से गायब हो जाएँगे ।आने वाला समय किसी का सही मूल्यांकन सही रचना के द्वारा ही करेगा । अत: आज की आवश्यकता है ,अच्छे रचनाकारों को पाठकों तक पहुँचाना । -0-

रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

जन्म : 19 मार्च 1949, हरिपुर, जिला-सहारनपुर शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), बी. एड्.

प्रकाशित रचनाएँ: माटी, पानी और हवा (प्रौढ़ शिक्षा विभाग उ.प्र. द्वारा प्रकाशित) अँजुरी भर आसीस, कुकहूँ कूँ. हुआ सवेरा, मैं घर लौटा, तुम सर्दी की धूप, बनजारा मन (कविता संग्रह) मेरे सात जनम, माटी की नाव, बन्द कर लो द्वार (हाइकु संग्रह) तीसरा पहर (ताँका-सेदोका- चोका संग्रह), मिले किनारे (ताँका और चोका संग्रह संयुक्त रूप से डॉ. हरदीप सन्धु के साथ), झरे हरसिंगार (ताँका संग्रह), धरती के आँसू, (उपन्यास), दीपा, दूसरा सवेरा (लघु उपन्यास) असभ्य नगर (लघुकथा-संग्रह-दो संस्करण). खूँटी पर टंगी आत्मा (व्यंग्य संग्रह 3 संस्करण), बाल भाषा व्याकरण, नूतन भाषा-चन्द्रिका, (व्याकरण) लघुकथा का वर्तमान परिदृश्य (लघुकथा समालोचना), सह-अनुभूति एवं काव्य शिल्प काव्य समालोचना) हाइकु आदि काव्य-धारा (जापानी काव्यविधाओं को समालोचना), फुलिया और मुनिया (बालकथा हिन्दी और अंग्रेजी), राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित हरियाली और पानी (बालकथा) का 'हो', 'असुरी', उड़िया, पंजाबी और गुजराती में अनुवाद, झरना, सोनमरिया, कुआँ (पोस्टर बाल कविताएँ), रोचक बाल कथाएँ।

सम्पादन : 37 पुस्तकें, विभिन्न पत्रिकाओं के 14 विशेषांकों का संपादन, अनूदित 2 पुस्तकें।

ई-मेल: rdkamboj@gmail.com



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