लघुकथा शोध केंद्र भोपाल म.प्र. (वर्ष:१, अंक:१ )
समीक्षा मेरी कलम से --- मिन्नी मिश्रा
सम्पादकीय—(कान्ता रॉय)
लघुकथा को हमें आकाश–कुसुम नहीं बनाना है ---
जागरूकता के अभाव में भारत की अधिकाँश आबादी, अंधविश्वास एवं कुरीतियों से जकड़ी हुई है। रूढ़ता पर कुठाराघात करने के लिए लघुकथा औषधि के समान है। लघुकथा टाइम्स , समाचार पत्र, केवल लघुकथा हितों की साधना करना के लिए प्रतिबद्ध होकर काम करेगी |बलराम अग्रवाल अक्सर कहते हैं कि “नये प्रयोग होने चाहिए ताकि विधा विकासशील रहे। हमें क्लोन नहीं बनने देना है।”
लघुकथा में मेरे प्रयासों को संबल देने के लिए जो दो मजबूत हाथ सामने आगे बढ़कर आये थे वो, दोनों हाथ डॉ. मालती वसंत जी के थे। लघुकथा शोध-केंद्र का पहला प्रकाशन ‘परिंदे पूछते हैं’ लघुकथा विमर्श, (लेखक-अशोक भाटिया) के प्रकाशन दौरान प्रेस काम्प्लेक्स में एक दैनिक अखवार को अपनी सामने छपते देखना ... .....मन को हठात जैसे दिशा मिल गयी थी। अब लघुकथा एवं इसकी महत्ता को जनसामान्य तक पहुंचाना होगा। लघुकथा को हमें आकाश कुसुम नहीं बनाना है, बल्कि हर आंगन में उगने वाली तुलसी बनाना है जो समाज के लिए गुणकारी एवं हितकारी है।
मध्य प्रदेश की लघुकथाएं ---
१.हमारे आगे हिन्दुस्तान (सतीश दुबे )---“कुछ भी खाते हैं तो कोई नहीं देखता, पर कुछ भी पहनते हैं तो सब देखते हैं।” सड़क पर चल रहे पति-पत्नी के बीच की बातें, इस लघुकथा में बहुत कुछ कह गई।
२.उसका अट्टहास –(संतोष सुपेकर )—गीता-कुरान पर हाथ रखकर, जब शपथ ली जाती है तो सत्य को किसतरह से हमेशा अपमानित होना पड़ता है ... इस लघुकथा के माध्यम से यही बताया गया है।
३.पीली शर्ट वाला—( डॉ. रामबल्लभ आचार्य ), ४. हिस्सा (कविता वर्मा ), ५.अंतहीन सिलसिला (विक्रम सोनी), ६.पेट (पारस दासोत), ७.त्याग (अरुण अर्णव खरे ) ८. केक्टस में फूल (नयना कानिटकर), ९. समाज का प्रायश्चित्य (संजीव बर्मा सलिल )—इस कथा में स्वगोत्री प्रेम विवाह करने के चलते... नव दम्पति ने गांव वालों से डरकर गाँव छोड़ दिया। अंतर्राष्ट्रीय खेल स्पर्धा में चयनित होने के कारण, उनदोनों का उसी गाँव में भव्य स्वागत किया गया ...जहाँ कभी, वही गाँव वाले उन दम्पति के जान के दुश्मन बने थे।
यहाँ मैं, मिन्नी मिश्रा, क्षमा सहित ... लेखक से कहना चाहूंगी, सकारात्मक संदेश होने के बावजूद , कथा में स्वगोत्री (सगोत्री ) विवाह को किसी भी कीमत पर मान्य नहीं दिखाना चाहिए। स्वगोत्री विवाह वैज्ञानिक तथ्य के आधार पर ...स्वास्थ के लिए हानिकारक है।
लघुकथा के विशिष्ट परिंदे ---आ.सुनील वर्मा की उत्कृष्ट लघुकथाएं ---
१.रिटायरमेंट २. मर्दानी ३. छिलके ४.चुभन ५. चतुर्भुज ६. कोई अपना सा।
आदरणीय, “छिलके”—कई बार पढने का बाद भी... मुझे इस लघुकथा के शीर्षक का सही अर्थ समझ में नहीं आया।
लघुकथा और शास्त्रीय सवाल ---(डॉ. अशोक भाटिया )
महत्वपूर्ण बातें—
वो सिद्धांत जो रचना को बेहतरी की ओर न ले जाएँ या व्यवहारिक न हो व्यर्थ होते हैं |
लघुकथा में रचना एक हो सकती है, एक से अधिक भी और एक भी नहीं। बिम्ब रचना के सौंदर्य में वृद्धि तो करता है लेकिन कई रचनाओं में इसको लाना उसकी गतिशीलता में बाधक बन जाता है। इसलिए एक घटना और एक बिंब का सिद्धांत कोई मायने नहीं रखता। संवाद स्वंय में रचना का महत्वपूर्ण तत्व है। इससे कई बार बहुत बड़ी बात कही जा सकती है। लेकिन संवादों का होना कोई शर्त नहीं है। संवादों का प्रयोग लेखक व रचना पर निर्भर करता है। लघुकथा में काल को लेकर लेखक पर बंधन नहीं लगाना चाहिए। एक उद्देश्य के हिसाब से लेखक जहाँ जाना चाहेगा जाएगा ही।
श्रेष्ठ रचना तो वो है...जिसमे पाठक की सोच, भावना और संवेदना को सही दिशा में प्रभावित करने की क्षमता हो |
नारी संघर्ष से नारी सशक्तिकरण तक ----( उप-सम्पादक---सुनीता प्रकाश )
समकालीन लघुकथाएं—
भीतर का सच, अस्तित्व की यात्रा, रक्षक भक्षक और पिता (पूनम डोगरा ) कसौटी (सुकेश साहनी)
१.भीतर का सच (अशोक भाटिया )---“अच्छा एक बात बताओ ...अगर हमारा पहला बच्चा लड़का होता , तो भी क्या दूसरे का बारे में सोचते ? “ इस लघुकथा में पति-पत्नी के बीच का साधारण सा संवाद,... सच में दिल को छू गई।
२.अस्तित्व की यात्रा (कान्ता रॉय)---“उसे कहाँ मालुम था कि समय बीतने पर वह इन्हीं बातों के कारण स्त्री कहलाएगी।” इस लघुकथा में...स्त्री को कमजोर एवं हीन मानने के दृष्टिकोण पर कठोर प्रहार किया गया है।
लघुकथा एक विचार (उप-सम्पादक---गोकुल सोनी )
‘लघुकथा’ अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का एक श्रेष्ठ और सफल माध्यम है | इसमें सम्प्रेषणशीलता अत्यधिक तीव्र और आडम्बर-मुक्त होती है | कालान्तर में यह रोपित विचार व्यक्ति की निर्णय-क्षमता पर व्यापक प्रभाव डालता है |
लघुकथाएं विदेश से ---मंटो की लघुकथाएं ---(६)
बंटवारा, करामात, सफाई पसंद, हैवानियत, साम्यवाद, हलाल और झटका |
शशि बंसल (उप-सम्पादक)—
लघुकथा देखने में जितनी छोटी और आसान होती है, लिखने में उतनी ही गंभीरता, समर्पण, पैनापन मांगती है। व्यंग्यात्मक लघुकथा की बात करें तो लेखक की जिम्मेवारी और भी बढ़ जाती है। हास्य , जहाँ मनोरंजन प्रदान करता है, गुदगुदाता है, वहीँ व्यंग्य एक ऐसा नुकीला तीर है जो सीधे हृदय और मस्तिष्क में जाकर चुभता है।
१.अपना-पराया( हरिशंकर परसाई ) २.इंसानियत मरी नहीं (विनोद दवे ) ३. इंटरव्यू (मधुकांत) ४.स्वप्नभंग (अशोक बर्मा )---- सभी व्यंग्य लघुकथाओं पर शशि बंसल की बेबाक टिप्पणी पढने को मिली।
(डॉ. मालती बसंत )---
लघुकथा हिंदी साहित्य में वामन अवतार है। मन की वृहद संवेदनाओं के क्षणों का बृहद रूप है। यह मानव जीवन की क्षणों की व्याख्या है। इसलिए जीवन के यथार्थ का अधिक निकट है। जैसे परमाणु में ब्रह्माण्ड...पानी की एक बूंद में पूरा समुद्र समाया होता है।
पहली हिंदी लघुकथा (बलराम अग्रवाल)
पहली लघुकथा होने की दौड़ मे बहुत-सी लघुकथाओं को सूचीबद्ध किया गया है...जिसमें---
अंगहीन धनी (परिहासिनी,१८७६ )भारतेंदु हरिश्र्चंद्र --का पहला स्थान है |
अद्भुत् संवाद ( परिहासिनी,१८७६ )भारतेंदु हरिश्र्चंद्र --का दूसरा स्थान है |
वस्तुतः ये दोनों ही रचनाएं भारतेंदु की प्रतिभा और देश-काल सापेक्ष जीवन-दृष्टी की गहराई को प्रस्तुत करती हैं| जहाँ ‘अंगहीन धनी’ गंभीर कथा है...वहीं ‘अद्भुत् संवाद’ में मखरेपन है |
जया आर्या (उप-सम्पादक)----लघुकथा पढने वालों के लिए नशा है, लिखने वालों के लिए कर्तव्य बोध। लघुकथा हठात जन्म लेती,अक्सात जन्म लेती है।
आर्यावर्त से --------
लघुकथाएं---
संवाद (आभा सिंह), मुक्ति मार्ग (अशोक जैन), तब क्या होगा ? (अशोक शर्मा ‘भारती), अपना-अपना नशा (सुभाष नीरव), बिरादरी का दुख (कुमार नरेंद्र), फटी चुन्नी (सत्या शर्मा कीर्ति मिठाई (डॉ.नीना छिब्बर), घरोंदा (शोभना श्याम), अनावरण (डॉ.उपमा शर्मा), इतनी दूर (डॉ.कमल चोपड़ा), अभावों के रंग (अशोक मनवानी), हिस्से का दूध (मधुदीप), नशे (कमलेश भारतीय ) गिद्ध (श्याम सुंदर अग्रवाल), कीमती पल (प्रेरणा गुप्ता), हवा के विरुद्ध (डॉ. शील कौशिक ), मूल्यांकन (डॉ.सूर्यकांत नागर ), पाप और प्रयाश्चित (बलराम) अप्रत्याशित (डॉ. शकुन्तला किरण), जगमगाहट (डॉ.रूप देवगुण ), ऊंचाई (रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, वैशाखियों के पैर (भगीरथ), विश्वास (युगेश शर्मा), अल्टीमेट गोल (चित्रा राणा राघव), देश बिकाऊ है (डॉ. मोहन आनन्द तिवारी), शनिदेव की माँ (डॉ.वर्षा ढोबले), नजरिया (ओम प्रकाश क्षत्रिय प्रकाश), हार-जीत(कपिल शास्त्री), मदर’स डे(अरुण कुमार गुप्ता) , समझ पाने की समझ (चंद्रा सायता), कथनी और करनी (ज्योति शर्मा), फिर आएगा नया साल (पूर्णिमा वर्मन), स्मार्ट (डॉ.कुमकुम गुप्ता )
१.मुक्ति मार्ग (अशोक जैन )---दीपक की लौ के साथ अंधकार की लड़ाई चल रही है... पतिंगे उस लौ के प्रति आकर्षित हो रहा है | आखिरकार , हवा.. पतिंगे को जलने से बचाने में सफल हो जाता है | सरल भाव से लिखी गई बेहद सुंदर लघुकथा है |
२.तब क्या होगा ? (अशोक शर्मा ‘भारती’ ) – जब किसी के बेटी का अपहरण होता है...मोहल्ले वाले सब कुछ देखते हुए भी खामोश रह जाते हैं | समसामयिक घटना पर लिखी गई ... संवेदनशील , बेहद प्रभावशाली लघुकथा है |
लट उलझी सुलझा जा ---(बंधु कुशावर्ती )
“मैं अपना मत समझा दूँ कि लघुकथा का हमारे भारतीय वाकम्यसे नाभि-नाल का सम्बन्ध है। मेरे इस कथन कायह मतलब नहीं कि हिंदी लघुकथा की जड़ों और उत्स को वेदों और पुरानों में ही खोजने का मैं समर्थक हूँ। हाँ, यह भी एक स्रोत है।”
डॉ. सूर्यकांत नागर–लघुकथा में लोक मांगलिक चेतना होना जरूरी है। लघुकथा को किसी नियमावली में नहीं बांधा जा सकता। शिल्प के स्तर पर निरंतर प्रयोग हो रहे हैं, और प्रयोग से ही प्रगति होती है।
मैं नागर जी की इनबातों से बेहद प्रभावित हूँ।
पंजाब का लघुकथा संसार ----(श्याम सुंदर अग्रवाल )
लघुकथा को हिंदी पंजाबी में “मिन्नी कहाणी” के रूप से जाना जाता है | पंजाबी लघुकथा के उन्नयन के लिए वर्ष १९८८ में एक मंच का गठन हुआ | त्रैमासिक पत्रिका “मिन्नी” का प्रकाशन भी इसी वर्ष हुआ है | पत्रिका मिन्नी की और से हर वर्ष “अंतर्राष्ट्रीय लघुकथा सम्मेलन “ का आयोजन किया जाता है | अबतक ऐसे २६ लघुकथा सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं |
लघुकथा और सांझा संकलनों की महत्ता ----(डॉ.उपमा शर्मा )
आने वाला समय निश्चित ही लघुकथा का होगा | ‘दृष्टी’ अर्धवार्षिक लघुकथा पत्रिका में शकुन्तला किरण का साक्षात्कार ---“बहुत उज्ज्वल ! आज लघुकथा को लेकर जगह-जगह प्रतियोगिता हो रही है | ..........भले ही वो किसी धुन में हो रही हो, हलचल तो हो रही है |
पुस्तकों की बातें ---
‘दृष्टि’ (महिला लघुकथाकार अंक ) -–सम्पादक, आ.अशोक जैन ,अतिथि सम्पादक- आ. कान्ता रॉय।
आ. पवन जैन सर-- की समीक्षा पढ़कर, मैं बेहद प्रभावित हुई, सादर आभार | उन्होंने सभी रचनाकारों की कथा पर टिपण्णी करके उनका मनोबल बढ़ाया है, जो काबिलेतारीफ है तथा रचनाकारों के प्रति उनकी उदारता का परिचय भी |
इस पत्रिका में आ. बलराम अग्रवाल जी ने ८८ सन्दर्भ पुस्तकों, संकलनों एवं पत्रिकाओं से खोज ५८९ महिला कथाकारों की सूचि बनाने का श्रम साध्य कार्य किया है |यह शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज़ हो गया है |
आ. डॉ. अशोक भाटिया जी ने ‘हिंदी में लेखिकाओं का लघुकथा संसार’ में १४६ विभिन्न महिला लघुकथाकारों की रचनाओं से परिचित कराया है , जो अपने आप में एक विशद कार्य है। महिला की रचना धर्मिता को देख कर अंततः उन्होंने कहा कि, इक्कीसवीं सदी में महिला लेखन की जोरदार दस्तक एक बड़ी घटना है , जो भविष्य की लघुकथा पर निश्चय ही बड़ा प्रभाव छोड़ेगी।”
लघुकथा के आयाम---(मुकेश शर्मा) लघुकथा साहित्य के लिए बहुत जरूरी किताब
“मनुष्य अब युगों का सुख क्षणों में पा लेना चाहता है, इसलिए लघुकथा भी समय की मांग है। अतः साहित्य में इसका स्थान स्थायी रूप से रहेगा।”(विष्णु प्रभाकर)
“लघुकथा मानव की संवेदना, उसकी दिकभ्रमिता, उसके टूटन बिखराव आदि को प्रस्तुत करने की सूक्ष्म से सूक्ष्मतर यथार्थवादी कला है।” (पद्मश्री दादा रामनारायण उपाध्याय)
महिमा वर्मा (उप-सम्पादक)---मन को झकझोरती इस नन्हीं-सी विधा को भले ही आज इतनी प्रसिद्धि मिली हो, पर छोटी कथा के रूप में लघुकथा नें भी प्रारम्भ से ही अपना स्वरूप कर लिया था।
धरोहर
१.एक टोकरी-भर मिटटी (माधवराव सप्रे)--गरीब विधवा और जमींदार के ऊपर लिखी गई बेहद संवेदनशील, लंबी लघुकथा है।
२.बंद दरवाजा (प्रेमचंद)---छोटे बच्चे के मनोभाव को सहजता से दर्शाती अनुपम रचना है। प्रेमचंद हमारे हिंदी साहित्य के अद्भुत सितारे क्यों माने जाते हैं...सच में उनकी रचना को पढने के बाद ही पता चलता है।
३.आम आदमी ( शंकर पुणताम्बेकर ) नेता अपने भाषण के द्वारा आम आदमी को किसतरह से प्रभावित कर लेता है , इस लघुकथा में यही दर्शाया गया है।
४.उंचाई (खलील जिब्रान )---मात्र चार पंक्तियों की बेहद प्रभावशाली लघुकथा है।
इस लघुकथा टाइम्स में प्रकाशित सभी लघुकथाओं को पढकर, मैंने बहुत कुछ सीखा और समझा... उसके लिए सभी रचनाकारों का दिल से आभार। सभी नवोदित लघुकथाकारों को यह लघुकथा समाचार पत्र जरुर पढ़ना चाहिए। खासकर... लघुकथा के लिए समर्पित, आ. कांता रॉय जी ... के अथक परिश्रम व लगन के प्रति मैं तहेदिल से आभार व्यक्त करती हूँ। अभिनंदन और साधुवाद।
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