Saturday, 15 August 2020

समकालीन हिन्दी लघुकथा इतिहास के पन्ने-3

 फलक : एक अचर्चित लघुकथा द्वैमासिकी

 

 

 

 बहुत कम लोग जानते हैं कि सन् 2004-2005 में कथाकार युगल ने 'फलक' नाम से 8 पेजी एक द्वैमासिकी का संपादन-प्रकाशन किया था। अपनी तरह का वह अनूठा ही प्रयास था। आज अचानक उसका अंक 13 (जनवरी-फरवरी 2005; भगवती प्रसाद द्विवेदी की लघुकथाओं पर केंद्रित) व अंक 14 (मार्च-अप्रैल 2005; मो. तारिक असलम 'तस्नीम') सामने आ गये। उनका मुखपृष्ठ प्रस्तुत है। किन्हीं मित्र के पास अन्य अंक भी हों, तो कृपया स्कैंड प्रति भेजें।



1 comment:

पवन शर्मा said...

जी, युगल जी का ये सराहनीय काम था.. बिल्कुल अनूठा... मेरे पास भी फलक के अंक आए थे.