उनके महत्वपूर्ण वक्तव्य के साथ
सन् 1992 में तारिका प्रकाशन, अम्बाला छावनी से आया था मेरा यह दूसरा लघुकथा संग्रह जिसमें आतंकवाद से जुड़ी लघुकथाएँ प्रमुख रूप से शामिल थीं । आज भाई बलराम अग्रवाल ने इसका कवर भेजा जो आर्ट्स काॅलेज, चंडीगढ़ के प्रेम सिंह ने बनाया था । पहले मैंने इसे 'कथा-कहानी' स्तंभ में किसी की कहानी के साथ लगाया और अचानक लगा कि मेरे संग्रह के लिए बहुत सटीक है । बस । प्रेम सिंह जी के घर गया और उनसे 'इस बार' लिखवाया। डाॅ. महाराज कृष्ण जैन को मेरे हस्ताक्षर बहुत पसंद आए और उन्होंने वही लगा दिए नाम की जगह। पर मेरे पास इसकी एक भी प्रति नहीं। संभवतः डाॅ. रामकुमार घोटड़, बलराम अग्रवाल या फिर अनिल शूर मुझे पहुँचा दें। सब के पास है और सबने वादा किया है। जो भी उपलब्ध करवायेगा, उस मित्र का हार्दिक आभार।
अभी अभी बलराम अग्रवाल ने अंतिम पृष्ठ पर प्रकाशित मेरा परिचय भी भेजा और पूरी पुस्तक भी वाट्स अप पर भेजी । हार्दिक आभार। आखिर भाई बलराम अग्रवाल ने अपने ब्लाॅग जनगाथा पर पूरी पुस्तक शेयर कर दी। बहुत बहुत आभार फिर से ।
3 comments:
आपका जवाब नहीं लाजवाब।
😍👍🏼👍🏼
बहुत सुन्दर । आपके ख़ज़ाने अभी और मोती मिलने बाकी हैं ।शानदार ।👏👏👏
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