Sunday, 12 July 2020

रंग एक—लघुकथाएँ तीन

 ॥1॥
पहचान / अशोक भाटिया
डॉ॰ अशोक भाटिया
-        आप कौन हैं ?
-        आदमी।        
-        मेरा मतलब, किस धर्म से हैं ?
-        इन्सानी धर्म ।
-        नहीं, मतलब हिन्दू, मुसलमान, ईसाई वगैरा ।
-        हिन्दू धर्म से !’ कहकर वह मुस्कुराया ।
-        हिन्दुओं में कौन हैं ?
-    हिन्दुओं में हिन्दू ही तो होंगे |
-    मेरा मतलब, ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य वगैरा?
-        ओह! क्षत्रिय हूँ ।
-        क्षत्रियों में कौन हैं ?
-        क्या मतलब ?
-        यानी खत्री या अरोड़ा ?
-        खत्रीकहकर वह हंसा |
-        खत्रियों में कौन हैं ?
-        क्या मतलब, खत्रियों में खत्री ही तो होगा |
-        नहीं, ऐसा नहीं है |
-        तो खत्री क्या खत्री नहीं होता ?
-        मेरा मतलब खत्री में जाति। जैसे - मलहोत्रा, सल्होत्रा, गिरोत्रा वगैरा, तनेजा, बवेजा, सुनेजा वगैरा.....
-        हम मल्होत्रा हैं |’ वह अब गंभीर हो गया था |.
-        सनातनी हो या आर्य समाजी ?
-        मैं कोई - सा नहीं |
-        किस देवी - देवता को मानते हो ?
-        किसी को नहीं |
-        पीछे से कहां से आए ?
-        क्या मतलब ?
-        मतलब, पीछे से पाकिस्तान से आए या यहीं के हो ?
-        पता नहीं |
-        जिला कौन-सा था ?
-        पता नहीं |
-        गांव कौन सा था ?
-        पता नहीं |
-        सूर्यवंशी हो या चंद्रवंशी ?
-        पता नहीं |
-        राजपूत हो या नहीं ?
-        पता नहीं |
-        शाकाहारी हो या मांसाहारी ?
-         जब शाक-सब्जी खाता हूँ तो शाकाहारी हूँ। जब मांस-मछली खाता हूँ तो मांसाहारी हूँ।      (प्रश्नकर्ता थोड़ी देर चुप हुआ)
-        तुम्हारा गोत्र क्या है?
-        वो क्या होता है?
-        तुम्हें अपना गोत्र ही नहीं पता! कैसे आदमी हो तुम?
-        (खीझकर...) जीता-जागता आदमी तुम्हारे सामने खड़ा हूँ कि नहीं ? फिर इन बेकार सवालों का क्या मतलब?

  ॥2॥
चमरुवा / रामकुमार घोटड़
डॉ॰ रामकुमार घोटड़
उस रेल-डिब्बे में सिर्फ चार यात्री ही बैठे थे। बोरियत दूर करने के लिए, खामोशी तोड़ते हुए उनमें से एक ने कहना शुरू किया, “साथियो, आपस में एक-दूसरे की कुछ जानकारी हो जाये मैं एक ब्राह्मण… गौड़ गौत्र से हूँ और रहने वाला हूँ यू. पी. का... । और आप...?” उसने सामने वाले यात्री की ओर इशारा किया।
            “मैं हरियाणा का चौधरी हूँ।
            “जाति से...?”
            “जाट... ।
            “किस गोत्र से हो...?”
            “सांगवान.... ।
            “पच्चीसी से हो या बावन से....?”
            “बावन से... ।
            “बहुत अच्छा; हरियाणा के जाट तो दिलेर होते है, ” फिर दूसरे साथी से पण्डित जी ने जानकारी चाही, “और आप...?”
            “मैं हूँ एक बणिया।
            “कौन-से...?”
            “महेश्वरी... ।
            “महेश्वरी में कौन...?”
            “मोहता... ।
            “मोहता में कौन-सा कुल गोत्र...?”
            “सारड़ा... ।
          “शाबाश... ! आपको तो अपने बारे में अच्छी जानकारी है, होनी भी चाहिए...।पण्डित जी ने तीसरे यात्री की तरफ देखते हुए कहा, “श्रीमानजी, आप भी कुछ अपने बारे में बतलाइये...।
          “मैं हूँ राजस्थान के सुदूर इलाके के एक आदिवासी क्षेत्र का निवासी... ।
          “किस साख से हो... ?”
          “अनुसूचित जाति से... ।
        “अनुसूचित जाति में कौन-सी जाति....?”
          “मेघवाल... ।
          “मेघवालों में भी चमार, बलाई, भाम्बी कई जातियाँ है; उनमें से...?”
          “आप आदमी हो या जामा...! पीछे ही पड़ जाते हो? बाल की भी खाल निकालने लग गये!” उसमें चिड़चिड़ापन आ गया।
          वो बताने में शर्म-संकोच महसूस कर रहा था और पण्डित जी नि:संकोच सब-कुछ समझ गये था।

॥3॥
जन्नत कौन जाएगा? / भारत यायावर 
डॉ॰ भारत यायावर
एक मौलाना मेरे बगल बैठकर ट्रेन में सफर कर रहे थे। ये…ऽ…लम्बी दाढ़ी। बात-बात पर जन्नत की दुहाई दे रहे थे। मैंने कहा कि हकीकत में जन्नत होता ही नहीं। वे बिगड़ गए, "अम्मा मियां! कैसी बात कर रहे हो ? मैं आलिमोफाजिल हूँ । मेरे से ज्यादा इस बारे में तुम जानते हो? इस जहां में रहकर जन्नत को ही तो पाना है; और तो फ़ानी ये ज़माना है!"
मैंने कहा, "लेकिन मिर्ज़ा ग़ालिब ने कहा है, कि ‘हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन / दिल के बहलाने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है!"
मौलाना गुस्से से लाल-पीले हो गए। बोले, "मिर्ज़ा ग़ालिब पियक्कड़ था। उसे क्या मालूम? जन्नत है! जन्नत है! जन्नत है! बेशक जन्नत है।"
मैंने पूछा, "चलिए मान लिया जन्नत है! लेकिन जन्नत में आखिर क्या ऐसा है जो…?"
मौलाना ने कहा, "जन्नत में अल्लाह रहता है और एक-से-एक हूर रहती है ।"
तब मैंने बात को मोड़ देते हुए कहा, "लेकिन यह बात आपको कैसे मालूम है?"
"मैं मौलाना हूँ, आलिमोफाजिल हूँ। मुझे सब-कुछ मालूम है!"
मैंने सोचा कि जब इस मौलाना को सब मालूम है तो अपनी जिज्ञासा को प्रकट किया जाए। इस तरह सफर भी ठीक से कट जाएगा। पूछा, "मौलाना साहब, तब तो आपको यह भी मालूम होगा कि जन्नत में कौन जाएगा, कौन नहीं?"
मौलाना ने डटकर उत्तर दिया, "बेशक< मुसलमान ही जाएगाI"
मैंने कहा, "ठीक है! लेकिन कौन मुसलमान? शिया या सुन्नी?"
"बेशक सुन्नी, जनाब।"
"जी, सुन्नी में कौन? मुकल्लिद या गैर-मुकल्लिद ?"
"बेशक मुकल्लिद !"
मैंने फिर पूछा, "जी, मुकल्लिद में तो चार हैं। उनमें से कौन ?"
मौलाना ने इसका उत्तर भी बेधड़क दिया, "बेशक हनफी, और कौन?"
तब मैंने सब-कुछ जानने वाले उन मौलाना से फिर पूछा, "जी, पर हनफी में तो देबबंदी और बरेलवी दोनों हैं । उनमें जन्नत कौन जाएगा?"
मौलाना ने कहा, "बेशक, देबबंदी ही जाएँगे !"
"बहुत शुक्रिया, पर देबबंदी में भी तो हयाती और ममाती दोनों हैं, उनमें से कौन?"
मौलाना साहब इस सवाल पर उलझकर रह गए। तब मैंने उनसे पूछा, "अच्छा छोड़िए; यह बताइए कि बाकी लोग कहाँ जाएँगे?"
मौलाना ने जोश में भरकर कहा, "बेशक जहन्नुम जाएँगे!"
तब मैंने मौलाना से पूछा, "…और ये जेहादी?"
इसके बाद, मौलाना जो सीट से गायब हुए तो दोबारा दिखे ही नहीं। लेकिन उनका 'बेशक' गूँजता रह गया और शक ही शक पैदा कर गया। वहीं एक कवि बैठा था। वह ग़ज़लें घोंटता रहता था। मौलाना की बातों पर वह दुष्यंत कुमार का यह शेर तरन्नुम में गाने लगा—
रौनके-जन्नत ज़रा भी मुझको रास आई नहीं।
मैं जहन्नुम में बहुत खुश हूँ मेरे परवरदिगार॥





6 comments:

Writerdivya Sharma said...

जन्नत कौन जायेगा पहले भी पढी थी।यह बेहतरीन लघुकथा है।
पहचान व चमरूवा ऐसी लघुकथाएं हैं जो समाज में व्याप्त विसंगतियों पर करारा प्रहार कर रही हैं।

पवन शर्मा said...

तीनों लघुकथाएं अपने कथ्य और शिल्प, भाषा और सम्वाद में अलग अलग हैं. तीनों के अपने अपने अलग अलग रंग हैं.

जितेन्द्र 'जीतू' said...

कभी कभी सोचता हूँ कि जनगाथा के साथ कॉन्ट्रैक्ट कर लूं। यह मुझे लघुकथा उपलब्ध कराए और मुझे उनपर लिखने का मौका प्रदान करें। अच्छी लघुकथाएं ढूंढने में जो समय लगता है वो समय मेरा बचेगा। आप मोती ला ही रहे हैं चुन चुन कर।

शाम लाल मेहता said...

बहुत सुंदर लगी। तीनों रचनाएं दिल को छूने वाली हैं।

--। शाम लाल मेहता

Bhunesh chaurasiya said...

तीनों लघुकथा एक से बढ़कर एक ।

Deepak Vohra said...

All the stories are really fantastic and excellent. Stupendous satire on caste system and religion.