Tuesday 12 June, 2018

एक शोधात्मक दस्तावेज / सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा

संदर्भ : परिंदों के दरमियां

दिल्ली व आसपास स्थित कुछ मित्रों को 'परिंदों के दरमियां' इस अनुरोध के साथ कि 3 जून को 'क्षितिज लघुकथा सम्मेलन' में इसके लोकार्पण से पहले किसी भी सोशल साइट पर कृपया कुछ न लिखें। सभी ने इस अनुरोध का मान रखा, मैं आभारी हूँ। सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा जी की ये पंक्तियाँ 6 जून, 2018 को प्राप्त हो गयी थीं जिन्हें अब यहाँ स्थान दिया जा रहा है। बहुत सम्भव है कि निकट भविष्य में वे इस टिप्पणी को विस्तार दे दें। बलराम अग्रवाल
सुरेंद्र कुमार अरोड़ा
यह एक शोधात्मक दस्तावेज है। इसमें न केवल लघुकथा, अपितु समस्त साहित्यिक विधाओं के सृजन के लिये मार्गदर्शन तो मिलता ही है, लेखक / रचनाकार के सामाजिक व सांस्कृतिक सरोकार के साथ उसके दायित्व भी स्पष्ट होते  हैं। जैसे-जैसे इस संग्रह को पढ़ते हुए आप आगे बढ़ते हैं, आप अपनी रचनाधर्मिता की यात्रा का मूल्यांकन करते हुए, स्वयं को स्वयं से  अवगत करता हुआ पाते हैं। आप समझने लगते हैं कि आप अभी तक कितना चले हैं और  अब तक वो कौन सा पड़ाव था जो आपसे छूटा रहा एवं  वो कौन सा लक्ष्य है, जिसे आपको पाना है या स्वांत:सुखाय रचनाधर्मिता का सुख भोगते  हुए भी आप  पा  सकते हैं।
बलराम जी द्वारा सृजित  इस श्रमसाध्य  मार्गदर्शक शोध ग्रन्थ को एक संग्रह की तरह नहीं एक मनीषी द्वारा दिया गया अपना अब तक का सर्वोत्तम अनुभव कहना अधिक सटीक लगता है मुझे।
                                                                                                                                              मोबाइल ; 9911127277

No comments: