Wednesday, 16 March 2016

नीलिमा शर्मा की तीन लघुकथाएँ



'जनगाथा' के इस अंक में प्रस्तुत हैं नवोदित कथाकार व कवयित्री नीलिमा शर्मा की तीन लघुकथाएँ। इन्हें पढ़कर आप मान जाएँगे कि नीलिमा के पास अपने अहसासों को शब्द देने का प्रशंसनीय कौशल है। गत दिनों उनके सम्पादन में एक लघुकथा संकलन प्रकाशित हो चुका है, जो उनके उत्साह के साथ-साथ अन्यान्य कारणों से भी खासा चर्चित रहा। मील का पत्थर न होकर भी साहित्यिक यात्रा में हर पत्थर की अपनी स्वतंत्र हैसियत होती है। किसी न किसी के लिए तो वह भी प्रस्थान बिंदु होता ही है। 'मुट्ठी भर' ही सही 'अक्षर' आखिर बीज होते हैं, अनुकूलता पाकर फूटते जरूर हैं। नीलिमा के अपने लेखन में काफी सम्भावनाएँ हैं, बशर्ते वह धीरज से लेखन करें।----बलराम अग्रवाल
 
अतीत की रिंग टोन
आज फिर सर्द हवाए चल रही हैं कपडे धूप में सुखाने के लिय बाल्टी उठायी ही थी कि लैंडलाइन फ़ोन की घंटी बजी लैंडलाइन की घंटी बजना यानी किसी अपने काफ़ोन होगा आजकल इस नंबर को कौन याद रखता है सब अपने-अपने सेल में एक नंबर फीड कर लेते हैं और उस पर नाम चस्पां कर देते हैं, फलां का नंबर। और अगर कभी सेल फ़ोन बीमार प जाए तो वो नंबर भी बीमार प जाता है। से पाने के लिजान-पहचान वालों के वे नंबर मिलाने पते हैं जो संयोग से याद रह जाँ। घंटी एक बार बंद होकर दुबारा बजनी शुरू हुई। पक्का कोई अपना ही है, बेसब्र बेताब सा……। गीले कपड़ों के साथ भीतर जाना पडेगा--सोचती हु मनीषा शाल उठाकर भीतर कमरे में चली ग। जैसे ही उसने फ़ोन उठाया, वह बंद हो गया। गुस्से से चुपचाप लाल फ़ोन को घूरती रही कि कौन होगा! फिर से फ़ोन की घंटी बजी। उसने एकदम से फ़ोन उठाया और 'हेल्लो…'हा।
एक ख़ामोशी-सी थी दूसरी तरफ उफ्फ्फ्फ़ 'हेल्लो हेल्लो…' बार बार कहने पर भी उधर से कोई आवाज़ नहीं आई। वह सोचने लगी--क्या पता उनकी आवाज़ नहीं आ रही हो मुझ तक, मेरी तो जा रही होगी न…। तो एकदम-से बोली, "सुनिये, आप जो भी हैं, मुझे आपकी आवाज़ नही आ रही है। अगर आपको मेरी आवाज़ आ रही है तो या तो फिर से कॉल मिला या मेरे सेल फ़ोन पर कॉल करें …" कहकर मनीषा ने फ़ोन रख दिया और इंतज़ार करने लगी। क्या पता फिर बजे फ़ोन …… पर फ़ोन नही बजा।
फ़ोन के पहली बार खाली बजने और उसके दुबारा बजने के बीच के समय में घर की सूनी दीवारें भी बात करने लगती हैं; और कल्पना होने लगती हैं कि उसका फ़ोन होगा, इसका फ़ोन होगापता नहीं क्या बात होगी जो लैंडलाइन पर फ़ोन आया! यह नंबर तो सिर्फ फलाने-फलाने के पास हैफ़, नहीं आ रहा कोई फ़ोन-वोन--सोचते हुए उसने बाहर आकर बाल्टी उठायी और कपड़ों को सुखाने चल दी। ………….कौन हो सकता है? हर गीले कपड़े को झटकते हुए उसका मन एक नाम लेता और उसे झटक भी देता कि नहीं, उसका नहीं हो सकता। आजकल घंटिया कुछ ज्यादा ही बजने लगी हैं। कहीं किसी बीमा पालिसी वाले एजेंट का ही नंबर न हो!!!
सुनहरी धुप धीरे-धीरे सुरमई शाम में तब्दील हो गयी। रसोई में सब्जी बनाती मनीषा गीत गुनगुना रही थी कि फिर से घंटिया बजने लगीं। उसने झट-से आंच धीमी की और कमरे में जाकर खिन्न भाव से फ़ोन उठाकर थोड़े रूखे स्वर में कहा, "हेल्लो!" 
उधर से सिर्फ सांसें सुनाई दीं उसका गुस्सा और बढ़ गया
देखिये, आप जो भी हैं, बात करिए या कॉल मत करिए…….हेल्लोहेल्लो …..देखिये, अब अगर फ़ोन किया तो मैं पुलिस में शिकायत कर दूँगीकहकर जैसे ही उसने फ़ोन रखना चाहा, एक आवाज़ सुनाई दी, “मणि!"
और हाथ से उसके रिसीवर गिर गया!
मणि!!!! इस नाम से तो मुझे ……….उफ़! मेरा नंबर उसको कहाँ से मिला? हाँ, सांसें भी वही थीं गहरी सी!!! कभी जिन सांसों से एक पल में पहचान जाती थी किसका फ़ोन है…जिसके फ़ोन करने के तरीके से वो घंटियों की भाषा पढ़ लेती थी...मिस्ड कॉल की एक घंटी तो 'मिस्सिंग यू', दो घंटी तो 'लव यू', तीन घंटी तो 'कॉल मी'; और आज भूल गयी उन सांसो की थिरकन को!!!
उधर से 'मणि… मणि…' की आवाज़ के साथ 'हेल्लो… हेल्लो' सुनाई दिया इस बार तो उसने ूलते रिसीवर को झट-से उठाया, "देखिये, यहाँ कोई मणि नहीं रहती। आज के बाद यहाँ कॉल न किया करें ……।" कहकर रिीवर को फोन पर पटक दिया; और इधर-उधर देखते हुए अपनी धडकनों को सम्हालने की असफल कोशिश करने लगी।
उसे मंगवाना ही पड़ेगा अब तो कॉलर ऑय दी वाला फ़ोन
  
परायी  महक 
कितनी मुश्किल से मनाया था उसको मिलने के लिए। एक वक़्त था, एक दिन भी बिना मिले रह नही पाती थी। बस यही कह देती थी कि मेरी गली का एक चक्कर लगा जाओ बाइक से; और इस बार मिन्नतें करनी पड़ रही थीं! ना जाने कितने वादे लिए उसने, ना जाने कितनी बार समय सीमा की गुहार की…..कितनी बार दिन तय करने के बाद मुकर गयी
ये लडकियाँ जब जिन्दगी में होती हैं तब भी दर्द देती हैं; जब नहीं होती तब भी बेदर्दी होकर ता-उम्र दर्द देती हैं।  पहले सुबह उठते ही याद आता था--उफ़, उसकी छुट्टी हो गयी होगी ट्यूशन सेऔर भागकर चन्नी की दुकान पर जा खड़ा होता था ब्रेड लेने के बहाने और अम्मा से रोजाना गालियाँ खाता था कि रोटी नहीं खायी जाती तेरे से, जो रोजाना यह मैदा उठा लाता हैं। 
आह! और कितना इंतज़ार करना होगा उसका? आएगी या नहीं! कहीं इस बार ी मैं उसके ठे वादे पर विश्वास कर गया!!
आज आगी वो। विश्वास कर मैं एक घंटा पहले ही पहुँच गया था। देखना चाहता था--अब कैसी लगती है। दस साल हुए उसे देखे, पहचान भी पाऊँगा या नहीं? उसकी आँखें क्या आज भी वैसे ही चमक उठेंगी जैसे तब चमकती थीं? क्या आज भी वो गोलगप्पे खाने की जिद करेगी न्यू मार्किट में?--सोचों में गुम था कि घर से फ़ोन आ गया। सुनते-सुनते अचानक लगा--कोई है पीछेजैसे मैंने मुड़कर देखा--आहा !!! नीले सूट में पहले से भी ज्यादा खूबसूरत। उफ़! उस वक़्त कितना अफ्सोस हुआ अपनी किस्मत पर मैं जानता हूँ या मेरा रब
आर्किड रेस्त्रां की पहली मंजिल पर हम पहले भी घंटों बैठा करते थे। पर अब उसने कहा--नहीं, यहीं नीचे ही ठीक हैं; उप्पर तो………। समझ आ गया मुझे--वही, उसका पराया होना। … मेरी आँखें कुछ ढूढ़ रही थीं, पर नहीं ढूढ़ पा रही थीं। क्या था जो छूट गया था।… उसकी हंसी आज भी दिलकश थी पर उसमें खनक गायब थी उसकी रंगत आज भी गुलाबी थी पर उसमें मेरा रंग नहीं था। उसकी महक आज भी मादक सी थी, पर करीब आने को आमंत्रित नही कर रही थी।
पूरे बीस मिनट तक वो मेरे साथ थी; न उसने ज्यादा कुछ बोला न मैंने कुछ ज्यादा पूछा। बस यही कि "वक़्त कैसे गुजरता है?" मैंने कहा, "गुजर ही रहा है बस तुम्हारे बिन।"
उसने कहा, "वक़्त ही कहाँ मिलता है मुझे अबदेखो, आज कितना मुश्किल से आई हूँ।"
सच है, पुरुष वक़्त निकाल ही लेते हैं और स्त्रियाँ वक़्त काट ही लेती हैं सोचता था--जब मिलेगी तो यह बात करूंगा, वो बात करूंगा; पर बात ही कुछ न हुई और उसकी समय-सीमा ख़तम हो गयी। एक महक जो मैं कई बरसो से भीतर समाये था अपने; आज वहीं छोड़ आया हूँ। वो महक अब मेरी-सी नहीं थी
मुझे जीना  होगा अब उस  महक को सीने से लगाकर, जो पिछले 5 साल से एक फ्रेम में जड़कर मेरे सिरहाने मुस्कुराती है; और मेरे साथ वाले बिस्तर पर चुपचाप सो जाती हैं…अक्सर उदास-सी।


तुम भी तो
“कौन कमबख्त सोयेगा, जब तुम मेरे घर आ जाओगी!!!……देखो तो, तब तुमने क्या लिखा था खत में!” काया हँसते हुए बोली।

शादी की 25वीं वर्षगाँठ पर पुराने खतों की पेटी निकालकर पति-पत्नी पढ़ रहे थे।

“और, यह देख मोटी! तूने भी तो लिखा था—मैं हमेशा ऐसी ही बनी रहूँगी, जैसी अब हूँ; कभी बदलूँगी नहींऔर देख तो आईना—कितना बदल गई!!!”  हँसते हुए सुनील ने कहा तो बात दिल को लग गई। बात भावनाओं के न बदलने की कही थी, शारीरिक संरचना की नहीं
आईना भी चुगली कर रहा था—आँखों के नीचे काले घेरे…कमर के चारों तरफ मोटा टायरनुमा घेरा…डबल गरदन। …आँखें नम हो आईं काया की।
“उफ्! मैं ही कौन-सा सलमान खान लग रहा हूँ। हम दोनों जैसे भी लग रहे हैं, परफेक्ट हैं मेरी मोटो!”  कहते हुए सुनील ने उसे बाँहों में भर लिया; और वह भाव-विभोर हो सोचने लगी—मैंने तो कभी ध्यान ही नहीं दिया कि इनके सिर पर भी अब उतने बाल नहीं!!!
“आ, चल ना; अगला खत पढ़ते हैं
 

नीलिमा शर्मा
स्वकथ्य :  माँ ने अक्षरों से प्रेम सिखाया था जो शब्दों तक पहुंचा फिर प्रेम जूनून बनता गया। शब्द जब खुद बाहर आना चाहते हैं तभी लिखती हूँ, उनको जबरन कागज पर उतारने  की कोशिश नहीं करती। कुछ समय तक अध्यापन किया परन्तु घर-परिवार-बुजुर्ग ज्यादा  जरुरी कुछ  रुपयों से। सो, सरकारी शिक्षिका की  जॉब छोड़कर घर पर रहती हूँ।  दो बेटों की माँ हूँ। पति बैंक में जॉब करते आकड़ों में उलझे रहते, फिर भी मेरी कविताएँ, लघुकथाएँ पढ़ते-सराहते हैं। कहानी लिखना बेटों के कहने से शुरू किया था क्योंकि उनको  कविताएं समझ नहीं आती थीं। गत 25 बरस से देहरादून में थी अब दिल्ली हूँ, ना जाने  कब तक......15 साँझा  काव्य संग्रहों में कविताएं आई हैं। 'लघुकथा अनवरत' में लघुकथाएँ संग्रहीत। एक लघुकथा संकलन 'मुट्ठी भर अक्षर' का संपादन किया। वेब और प्रिंट की कई पत्रिकाओ में कहानी, कविताओं का प्रकाशन लगातार। प्रतिलिपि कथा सम्मान में पहली बीस कहानियो में मेरी कहानी को 11वाँ स्थान मिला। 
सम्पर्क :
नीलिमा शर्मा निविया, C/2-133,  जनकपुरी, नयी दिल्ली

मोबाइल8510801365 / 9411547430




21 comments:

LAGHUKATHA VRITT - RNI- MPHIN/2018/77276 said...

संवेदनशीलता की गहराई लिए हुए आपकी तीनो लघुकथाएँ बेहतरीन है . बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय नीलिमा जी इस सार्थक पड़ाव के लिए .

nayee dunia said...

बहुत अच्छी कथाएँ....बधाई निलिमा जी

shobha rastogi shobha said...

नीलिमा की लघुकथाएँ औरत के घुटे छुपे दर्द को पूरी संवेदना के साथ संप्रेषित करती हैं । कथ्य मे प्रवाह और पकड़ लघुकथाओं की उत्कृष्टता को बयां करता है । शिल्प मे कसाव है । केंद्रीय भाव कहीँ भी छिटकता नहीं है ।

Unknown said...

बहुत ही बढ़िया कहानी और शब्द ऐसे कि जैसे कहानी में हम खुद उत्तर गए����नीलिमा u r d best writer

Priyanka pandey said...

बहुत ही सुंदर संवेदनापूर्ण लघुकथाएं..मानोभावों अहसासों का सुंदर चित्रण।

राजेश उत्‍साही said...

पहली लघुकथा अच्‍छी लगी। कथ्‍य, भाषा और उसके प्रवाह के कारण। लेकिन मेरे हिसाब से इसमें अंतिम वाक्‍य की जरूरत नहीं है। बल्कि वह लघुकथा के पूरे प्रभाव को समाप्‍त कर देता है।

Rewa Tibrewal said...

sidhe saral shabdon mey umda kathayein

Neelima sharma - nivia said...

बलराम जी बहुत बहुत आभारी हूँ इस सम्मान के लिय | आपने मेरी लिखी लघुकथाओं को एक सम्मानीय मंच प्रदान किया | आपके इस विश्वास की रक्षा का दायित्व अब मुझ पर हैं | तहे दिल से आभार उन सभी पाठको का भी जिन्होंने लघुकथाये पढ़ी और मुझे वापिस सन्देश भेजे फ़ोन किये | उम्मीद करती हैं भाविष्य में भी मेरी लघुकथाओं को आपका प्यार सम्मान मिलता रहेगा \ नमस्कार

Malhotra vimmi said...

नीलिमा जी बहुत ही बेहतरीन कहानियाँ ।
एक एक शब्द चलचित्र के समान घूमते नज़र आए । प्रस्तुति हेतु धन्यवाद 🙏 ।
शुभकामनाएँ 💐।

Anju Tiwari said...

नीलिमा दी तीनों ही कथाएं प्रभाव छोड़ती हैं, तीसरी कथा दिल के ज्यादे करीब है नही दूसरी या पहली कहना मुश्किल है। बहुत शुभकामनाएं।😊

Neelima sharma - nivia said...

आभार कांता जी आप बहुत सक्रिय हैं लघुकथा लेखन में , आपका स्नेह इसी तरह मिलता रहे आशान्वित हूँ

Neelima sharma - nivia said...

शुक्रिया उपासना जी

Neelima sharma - nivia said...

आभार शोभा जी
आभार रेवा जी
आभार सीमा व्यास
आभार प्रियंका जी
आभार विम्मी जी
आभार राजेश उत्साही जी

मुकेश कुमार सिन्हा said...

सरल सहज शब्दों में अपनी बातों को रखना और पाठक तक पहुँच पाना बहुत बड़ी बात होती है ......आप सक्षम हो ! बधाई !!

Asha pandey said...

हर लघु कथा अपने आप में मुकम्ल बधाई आप को नीलिमा जी । शब्द जब चित्र बन जाए तो कुछ कहने को नहीं रह जाता वैसेय ही ये कथाएँ

Meena Pathak said...

बहुत सुंदर लघुकथाएं ..बहुत बहुत बधाई नीलिमा सखी

Jyoti khare said...

नीलिमा जी के लिए आदरणीय बलराम जी कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया
नीलिमा जी जमीन से जुडी एक संवेदनशील रचनाकार हैं
इधर तीनों लघु कथाओं में इनकी सोच और रचना धर्मिता साफ़ झलकती है,
मन को छूती कथाएं
बलराम जी को साधुवाद सार्थक संयोजन हेतु
सादर

Neelima sharma - nivia said...

आभार ज्योति जी

k m dubey sagar said...

बहुत बहुत बधाई नीलिमा जी
एक और कदम आगे बढ़ गईं

अतीत की रिन्गटोन सबसे अधिक अच्छी लगी 👍

सीमा स्‍मृति said...

बहुत भावपूर्ण लघुूकथाओं के लिए नीलिमा जी आप को हार्दिक बधाई ।

Anonymous said...

आपके ब्लाॅग की सामग्री पठनीय और रोचक है। आपके ब्लाॅग को हमने यहां लिस्टेड किया है। Best Hindi Blogs