'जनगाथा' में इस बार प्रस्तुत हैं डॉ॰ उपमा शर्मा की लघुकथाएँ। डॉ॰ उपमा दन्तरोग विशेषज्ञ हैं। वह मृदुभाषिणी हैं। दो चंचल और खूबसूरत बच्चियों की माँ हैं। कुशल गृहिणी हैं। …और इस सब के साथ-साथ बेहद संवेदनशील भी। यहाँ प्रकाशित उनकी ये लघुकथाएँ भाई श्याम सुन्दर अग्रवाल के सौजन्य से प्राप्त हुई हैं। उन्हें धन्यवाद।
॥1॥ आकांक्षा
“नन्हीं रुचिका का अभिनय
बहुत दमदार रहा। फिल्म में बड़े-बड़े कलाकारों के रहते भी उसने अपनी उपस्थिति दर्ज
करा दी। दर्शकों का मन मोह लिया। उसके नाम की बड़ी चर्चा है। आपको कैसा लग रहा है?” एक टी.वी चैनल का संवाददाता रुचिका की माँ से
पूछ रहा था।
“बेटी की कामयाबी से जो खुशी
मिली, उसे बयाँ करना कठिन है। माता-पिता जब बेटा-बेटी के नाम से पहचाने जाते हैं
तो उन्हें बहुत गर्व होता है।” शैली ने खुश होते हुए जवाब
दिया।
“अभी रुचिका बहुत छोटी है।
वह अपना ध्यान पढ़ाई में लगाएगी या फिर अभिनय जारी रखेगी?”
“पढ़ाई भी करेगी, लेकिन अगर
कहीं अच्छी फिल्म में रोल मिला तो जरूर करेगी।”
“शैली जी, क्या मैं रुचिका
से बात कर सकता हूँ?”
“हाँ, क्यों नहीं…रुचिका बेटे, जरा इधर आना।”
दूसरे कमरे से रुचिका आई तो संवाददाता बोला, “रुचिका बेटे, कैसी हो?”
“ठीक हूँ अंकल।”
“अच्छा यह बताओ, आपको क्या-क्या अच्छा लगता है?”
“मुझे…रिया, दिया के साथ खेलना, पार्क में जाना और साइकिल चलाना…और खूब सारा
पिज्जा खाना बहुत अच्छा लगता है।”
“और आप बड़ी होकर क्या बनना चाहती हो?” संवाददाता ने मुस्कराते हुए पूछा।
“मैं तो टीचर बनूंगी, टीचर न सबको डाँट सकती है…” बोलते हुए उसकी नज़र अपनी
माँ की ओर गई तो वह सकपका गई, “…नहीं अंकल…मैं तो न…बड़ी कलाकार बनूँगी, दीपिका
जैसी।” घबराते हुए रुचिका अटक-अटक कर बोली।
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॥2॥ धर्म
"बहुत प्यास लगी है बेटी, क्या थोड़ा
पानी मिलेगा?" रहमान ने स्कूल से लौट घर में
प्रवेश कर रही एक लड़की से कहा।
"जी अवश्य बाबा। आज तो वैसे
भी निर्जला एकादशी है। माँ ने कहा
है, किसी को पानी के लिए मना मत करना। प्यासे को
पानी पिलाने से पुण्य मिलता है।”
“ठीक कह रही हो बेटी, प्यासे को पानी पिलाना तो अच्छा
काम है।" रहमान बोला।
"हाँ जी, आप बिल्कुल
सही कह रहे हो, यह तो धर्म का काम है।” पीछे दरवाजे पर खड़ी लड़की की माँ भी बोली।
लड़की पानी का गिलास ला रहमान
को पकड़ाने लगी तो वह बोला, "बेटी, मैं मुसलमान
हूँ, कहीं मुसलमान को पानी पिलाने से तुम्हारा धर्म खराब न हो जाये।"
"बेटी का दिया पानी पी लो बाबा। ‘धर्म’ से मेरा भाव
पुण्य से ही था। वैसे न पानी का कोई धर्म होता है, न प्यासे का।"
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॥3॥ भविष्य
"प्रोफेसर साहब, जल्दी ही मेडिकल-काउंसिल की इंस्पैक्शन होने वाली है। आपके विभाग में मरीजों
की संख्या काफी कम है। कालेज काउंसिल के स्टैंड्रड पर खरा नहीं उतरा तो
मान्यता रद्द हो जायेगी। हम सबका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।"
विभाग प्रमुख से कालेज के डीन ने कहा।
"जी सर, लेकिन करें क्या? मैडीकल-कैंप भी लगवाये, पर खास लाभ नहीं हुआ। अब मरीज समझदार हो गया है, स्टूडैंट्स से इलाज नहीं करवाना चाहता।"
"तो इलाज डॉक्टरज से
करवाइये।"
"डॉक्टर स्ट्रैंथ तो
पहले ही कम है, वे भी इलाज में लगे रहेंगे तो स्टूडैंट्स को पढ़ायेगा कौन?"
“फिर
क्या हल है?”
"कालेज मैनेजमैंट से
कहिए, नए डाक्टर भर्ती करें। अच्छे डाक्टर होंगे तो ही मरीज आएँगे।
"लेकिन इससे तो बजट
बिगड़ जायेगा।"
"बजट बढ़ाने के लिए
स्टूडेंट्स पर नए चार्जिज लगाएँ। आखिर सब उन्ही के भविष्य के लिए ही तो कर रहे
हैं।"
“आपकी बात मैनेजमैंट तक पहुँचा दूँगा। फिर भी मरीज
बढ़ाने का कोई और उपाय?”
“रोजाना पाँच-सात फर्जी मरीज दाखिल हुए दिखा देते हैं।
इसी तरह कागजों में बैड भर देते हैं। काउंसिल को सत्तर परसेंट बैड-आकुपेंसी ही तो
चाहिए।”
“इंस्पैक्शन के वक्त क्या करेंगे?”
“तब मज़दूरों, भिखारियों, रिक्शावालों को दिहाड़ी पर
लाकर लेटा देंगे।” प्रोफैसर ने मुस्कराते हुए कहा।
॥4॥ संकल्प
लाल बत्ती पर कार
रुकी तो मैले-कुचैले कपड़ों वाली एक बच्ची हथेली फैलाए सामने आन खड़ी हुई। सुमन ने
कई बार ‘न’ में सिर हिलाया
तथा “परे हटो!” कहा। जब वह ढीठ बनी बार-बार “कुछ दे दो, कुछ दे दो!” कहती-रिरियाती खड़ी रही तो सुमन ने कार
का शीशा ऊपर चढ़ा लिया।
"अरे, ये क्या किया
सुमन? शीशा क्यों ऊपर कर दिया? लाखों की
मालकिन हो, अगर भीख में पांच रुपए इस बच्ची को दे भी दोगी तो कौन-सा कमी आ जाएगी! तुम इतनी
बेदर्द कब से हो गई?" भिखारन बच्ची के प्रति अपनी सखी
की इतनी रुखाई देख सारिका से चुप न रहा गया।
"ये बेदर्दी
नहीं है, सारिका। इन्हें भीख न देना
बच्चों के भले में ही है।”
“बच्चों का भला कैसे?”
“इनमें से अधिकतर गरीब परिवारों के वे बच्चे होते हैं, जिनका इस काम के लिए ही अपहरण
हुआ होता है। बेचारे बंधुआ मजदूर जैसे हैं, मात्र दो
वक्त का भोजन ही मिलता है इन्हें। इनपर रहम कर जितनी अधिक भीख देंगे, कमाई के लिए उतने ही अधिक
बच्चों का अपहरण होगा। मैं नहीं चाहती कि किसी माँ का मासूम बच्चा उससे छिन जाए।”
हरी बत्ती हो गई थी। कार चल
पड़ी। सारिका का मन सुमन की बात से सहमत नहीं हो पा रहा था। सुमन भी समझ रही थी।
कुछ ही देर बाद कार फिर से एक चौराहे पर रुकी। वैसी ही एक बच्ची फिर कार की खिड़की
के सामने थी। अबकी बार सुमन ने पूछा, “तुम्हारी माँ
कहाँ है?”
लड़की से कोई जवाब देते न बना।
वह सुमन की ओर देखती भर रही। सुमन ने दोबारा पूछा तो उसकी आँखों में आँसू आ गए।
सुमन ने सारिका की ओर देखा तो
वह चुपचाप लड़की की ओर देख रही थी। उस लड़की में वह अपनी काम वाली बाई की गुम हुई
लड़की खोज रही थी।
॥5॥ सज़ा
केदारनाथ पहुंचकर
सुनयना और साकेत ने राहत की सांस ली।
लम्बी
और दुर्गम यात्रा। लेकिन प्रकृति की गोद में पहुँचते ही सारी थकान उतर गयी। साकेत यहाँ के पहाड़ों व नैसर्गिक
सुंदरता की बहुत तारीफ करता था। इसलिए ही सुनयना उसके साथ यहाँ आने से स्वयं को
रोक नहीं पाई।
"साकेत, यहाँ भी इतने ऊँचे-ऊँचे भवन! मैँ तो सोच रही थी, यहाँ केवल पहाड़ ही होंगे।"
"हां सुनयना। अब बहुत परिवर्तन आ गया है।
पहले तो पहाड़ों के बीच से बहती दूधिया मंदाकिनी कितनी सुंदर दिखाई देती थी। नदी
के ऊपर नीले पहाड़ ऐसे दिखते थे, जैसे खिले हुए पुष्प
की पंखुड़ियाँ। हल्की बूँदा-बाँदी के समय काली घटा यूँ लगती जैसे कोई पहाड़ी
स्त्री काली चूनर ओढ़े खड़ी हो। सब कुछ बहुत सुंदर और स्वपनिल…।"
"सुंदर तो अब भी लग ही रही है साकेत।”
“पहाड़ों को काटकर रास्ते बनाने से
आना-जाना सुविधाजनक हुआ है…ऊँचे-ऊँचे भवनों से
यहाँ की भव्यता बढी है, लेकिन वे कुदरती
नज़ारे…”
“तुम्हें ज्यादा पता है, मैं तो पहली बार…”
"सुनयना, तेज
बारिश के आसार लग रहे हैं। लग रहा है जैसे पहले भी काफी बारिश हुई है। तभी तो
मंदाकिनी में पानी खतरे के निशान तक पहुँच गया है। जल्दी चल, होटल चलते हैं।"
तेज बारिश के साथ
पानी का रेला आया और पहाड़ियाँ जलमग्न हो गयीं। मंदाकिनी ने गहरी झील का रूप धार
लिया। तेज बहाव में वह सब कुछ बहा ले जा रही थी, ऊँचे-ऊँचे
भवनों को भी। हर कोई जान बचाने को
सहारा ढूँढ रहा था। चारों ओर तबाही का
मंजर था। बहुत संघर्ष के बाद
स्वयं को किसी तरह बचा लेने वाले साकेत के मुख से निकला, “सुनयना, प्राकृति
से छेड़छाड़ की सजा बहुत भयावह होती है।”
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डॉ॰ उपमा शर्मा
दन्त रोग विशेषज्ञ (बीडीएस)
बी-1/248, यमुना विहार,दिल्ली-110053
3 comments:
बहुत खुशी का पल है मेरे लिए यह । दिल से बधाई तुम्हें इस सार्थकता के लिए ।
बहुत सुन्दर लघुकथाएं उपमा जी। बहुत बहुत बधाई आपको
उपमा तुम्हें बहुत-बहुत बधाई ।सभी लघुकथाएँ पढ़ीं सटीक हैं।शुभकामनायें लो ।
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