(27 जनवरी 2007 को कथाकार कमलेश्वर के जाने ने डाॅ. सतीश दुबे को कितना व्यथित किया था, इसे दर्शाता 29 जनवरी 2007 को लिखा एक पत्र।)
डॉ. सतीश दुबे
766, सुदामा नगर, इन्दौर-452009
दूरभाष : (0731) 2482314
--------------------------------------------------
इन्दौर, दिनांक : 29/1/07
आत्मीय बलराम भाई
नमस्कार।
कमलेश्वरजी के चले जाने से लग रहा है जैसे लघुकथा के आसपास मंडराने वाला साया एकदम लुप्त हो गया है। कहानी के साथ लघुकथा को "सारिका" के माध्यम से चर्चित कर जो नये आयाम रचे, उसे कथा-इतिहास भुला नहीं पायेगा। मुझे जितना भी सानिध्य-लाभ मिला, उसके साक्ष्य पर मैंने पाया कि वे एक श्रेष्ठ इंसान थे।
लघुकथा की वर्तमान स्थितियों पर आपकी चिंता से उद्भूत परिचर्चा पर अपनी बात कहने की कोशिश की है। आपकी प्रतिक्रिया की तत्संबंधी प्रतीक्षा रहेगी।
विलम्ब की वजह केवल यही रही कि जिस शलाका-पुरुष ने लघुकथा लिखी ही नहीं, उसकी रचनाओं को कटघरे मे खड़ा कर, उस पर चर्चा करना क्या उचित होगा? फोन पर आपने द्वारा की गई स्पष्ट-साफगोई के बाद मन बन पाया।
दिग्गज समालोचक/चिंतकों के साथ आपने मेरी उपस्थिति ज़रूरी समझी, आभारी हूँ। विश्वास है, यह आत्मीयता प्राप्त होती रहेगी।
"समकालीन सौ लघुकथाएँ" के पृष्ठ पलटने के लिए श्रीमती अग्रवाल, बहू-भाभी से कहें तथा बताएँ कि ये रचनाएँ उन्हीं टेड़ी-मेड़ी उंगलियों से तराशी गई हैं जिन्हें प्रत्यक्ष देखकर उन्होंने चिंता तथा सहानुभूति व्यक्त कर हौसला बढ़ाया था।
शेष यथावत ।
याद करते रहेंगे तो शक्ति मिलेगी।
आपका
(हस्ताक्षर सतीश दुबे)
सदा सा
#यहां से प्रकाशित दैनिक 'नई दुनिया' के साप्ताहिक साहित्यिक 'कथाकविता' के संपादक श्री सरोज कुमार ने अंक में लघुकथाएँ नियमित देने का निर्णय लिया है। इस हेतु उन्होंने दस श्रेष्ठ लघुकथाओं में मैने आपकी 'जहर की जड़ें' को सम्मिलित किया है। प्रकाशित होने पर अंक तथा मानदेय आप तक सीधे प्रेस कार्यालय से पहुँचेगा।
1 comment:
अति उत्तम।
Post a Comment