गोलियाँ खत्म होने पर संगीन की मुठभेड़-सा करतब, लघुकथा बखूबी निभा सकती है
हिन्दी साहित्य के विविध विधाओं में लघुकथा विधा तीक्ष्णता और निहित गहरी संवेदना के कारण आजकल सबसे लोकप्रिय बन गई है| लघुकथा क्षण विशेष की घटना ,न सिर्फ हमारे जीवन से उपजी विसंगतियों को उभार कर सामने लाती है, बल्कि उन विसंगतियों से बाहर निकालने का हमें सही राह भी दिखलाती है|
धारदार , संवेदनशील लघुकथा कैसे लिखी जाए ? नए विषय पर कलम चलाना क्या होता है ? कसावट, सशक्त शैली, मारक अंत किसे कहते हैं ? प्रतीक का लघुकथा में क्या महत्व है ? इन तमाम महत्वपूर्ण बिन्दुओं को भलीभाँति समझने के लिए सभी लघुकथा लेखकों को... रमेश बत्तरा की लघुकथाएँ पढ़ना नितांत आवश्यक है| सहज प्रवाह के कारण सभी वर्गों के लिए यह पुस्तक पठनीय है ।
रमेश बत्तरा लघुकथा के लिए समर्पित थे, जिसका प्रत्यक्ष दृष्टांत पुस्तक के शुरू में ही पढ़ने से मिला-- 'वो 'तारिका' और 'साहित्य निर्झर' के लघुकथा विशेषांक के संपादक रह चुके हैं|’
*दो शब्द आपसे-- 'लघुकथा के विकास में रमेश बत्तरा की महत्वपूर्ण रचनात्मक भूमिका रही है, अधिकतर लघुकथा-लेखक भी उनकी लघुकथाओं के विषय में बहुत कम जानते हैं| रमेश का लघुकथा-साहित्य रचना और आलोचना दोनों धरातलों पर, आज भी लेखकों के लिए आकाशदीप की भांति दिशा दिखाने वाला है|’ अशोक भाटिया का ऐसा लिखना काबिलेगौर है|
*मत-अभिमत--विशिष्ट साहित्यकारों ने अपने -अपने अनुभव के आधार पर रमेश बत्तरा के बारे में अलग-अलग विचार प्रकट किए हैं | यथा--जया रमेश (अपने प्रति लापरवाह थे रमेश) 'रमेश लेखक भी थे, पत्रकार भी और सिद्धहस्त संपादक भी| लेखन के प्रति एक सचेत जागरूकता जगाती कलाम को हथियार बनाने की परिपाटी वो गढ़ते रहे |’ प्रो.फूलचंद मानव (हमने तमाम उम्र अकेले सफर किया), सुशील राजेश (कहानीकार के भीतर 'लघुकथाकार' ), अशोक जैन (रमेश जैसा कोई न है, न होगा, पर वैसी किस्मत न मिले किसी को), 'रमेश बत्तरा और सिमर सदोष नहीं होते मेरी प्रारंभिक लेखन यात्रा में ...तो शायद मैं इतना लंबा समय नहीं दे पाता |’ अशोक जैन का ऐसा लिखना हमें बताता है कि साहित्यिक- यात्रा में सभी को एक काबिल गुरू की जरूरत होती है । भगीरथ (मनुष्य की अंतरात्मा को संबोधन), 'रमेश बत्तरा ने लघुकथाएँ भले कम लिखीं लेकिन लघुकथा को पुख्ता जमीन देने के उनके प्रयास बड़े थे|’ बलराम , सुभाष नीरव, अशोक भाटिया ( रमेश बत्तरा : लघुकथा की रचनात्मक धारा के प्रतीक ) ,रमेश बत्तरा के बारे में लिखते हैं।
*रचना-संसार (रमेश बत्तरा की 24 लघुकथाएँ) सचमुच मैं इनमें खो गई |मुझे लगा , इनके कथानक, शैली, कथ्य एवं ततैये के डंक जैसा विचलित करने वाला अंत, मारे जैसे सभी पाठकों के मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ने में निश्चित रूपेण सफल होंगे| इनकी धारदार , संवेदनशील लघुकथाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगीं , जितनी रचनाकाल में रही होंगी |इनकी कालजयी लघुकथा 'कहूँ कहानी' इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है| अधिकांश लघुकथाएँ आम आदमी की ज़िंदगी से संबन्धित है जिन्हें सांप्रदायिक, पारिवारिक, भूख, हत्या आदि जैसे संवेदनशील कथानक के रंगों से बखूबी उकेरा गया है | 'हालात’, 'खोया हुआ आदमी’ , 'संदर्भ’, 'अनुभवी', 'कहूँ कहानी' ,'खोज’, 'सूअर’, 'लड़ाई’, 'राम-रहमान, 'अंधा खुदा के बंदे’, 'दुआ, चलोगे' ... जिनके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं | ये लघुकथाएँ मेरे अंतस को झकझोर गईं |मेरी समझ से 'नई जानकारी' और 'स्वाद' जैसी कुछेक साधारण लघुकथाओं को छोड़कर बाकी सभी लघुकथाएँ एक से बढ़कर एक है | दो लघुकथाओं के शीर्षक मेरे समझ से परे रहीं, वो हैं-- 1. 'सिर्फ एक?’ (बेशक यह अलहदा लघुकथा है , लेकिन शीर्षक में प्रश्नवाचक चिह्न लगा है ! ) 2.'माँएँ और बच्चे' |
*आलोचना संसार (रमेश बत्तरा के पाँच आलेख / टिप्पणियाँ ) "लघुकथा नहीं" - में एक जगह ऐसा वर्णित है, ‘....चुटकियों में उलझाकर हिजड़ा किस्म की कोई ...’ यहाँ 'हिजड़ा' शब्द का प्रयोग मुझे अच्छा नहीं लगा ! मेरी समझ से इसकी जगह यदि "छिछोरा" लिखा होता , वा कोई दूसरा शब्द, तो बढ़िया | क्योंकि हम साहित्यकार 'हिजड़ा ' को सम्मानजनक दृष्टि से देखते हैं | लघुकथा :किस लिए और क्यों ? - ‘लघुकथा लेखन के लिए शब्द संख्या नहीं ,शब्दों की संवेदना और संरचना महत्वपूर्ण है |’ ...में उद्धृत यह पंक्ति पढ़कर मुझे बहुत अच्छी लगी | .लघुकथा : संवेदना का सूत्र, लघुकथा की साहित्यिक पृष्ठभूमि : संदर्भ और सरोकार, लघुकथा : बारीकी, सलीका और करीना|
पुस्तक के अंत में... साक्षात्कार ( रमेश बत्तरा से गौरीनन्दन सिंहल द्वारा लघुकथा - विषयक लंबी बातचीत) ,में लिखित यह पंक्तियाँ 'हिन्दी में लघुकथा का भविष्य किसी भी अन्य भाषा की अपेक्षा कहीं उज्ज्वल है | लघुकथा घटना नहीं बल्कि उसकी घटनात्मक्ता से प्रस्फुटित विचार हैं , जो यथागत पात्रों के माध्यम से उभरे | निष्कर्षतः 'सवाल-दर-सवाल' लघुकथा विधा के लिए मील का पत्थर साबित होगा | इस विधा के प्रति भाटिया सर का समर्पण सराहनीय एवं अनुकरणीय है | अशोक भाटिया सर को इस अनुपम कृति को प्रकाश में लाने हेतु हृदय तल से बधाई प्रेषित करती हूँ | □
समीक्ष्य कृति : सवाल-दर-सवाल
(रमेश बत्तरा का लघुकथा साहित्य)
पृष्ठ संख्या-112, मूल्य -₹ 175
प्रकाशक : भावना प्रकाशन,दिल्ली
मिन्नी मिश्रा
1 comment:
सुन्दर समीक्षा..!
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