Tuesday, 5 October 2021

लघुकथा की बहुकोणीय परख का प्रयास : उत्कण्ठा के चलते / सतीश राठी

सतीश राठी
लघुकथा की पड़ताल करने के उद्देश्य से लघुकथा की गुणवत्ता की समालोचना करने का बहुत सारा काम सारे देश में हुआ है, फिर भी लघुकथा की अपेक्षित गुणवत्ता अधिकांश लघुकथाओं में नहीं आई है और शायद इसके पीछे कारण यह है कि उस सारे कार्य को बमुश्किल देखा गया है। लघुकथा को जीवित रखने के लिए उसकी समालोचना के कार्य को लघुकथा लेखक के द्वारा देखा जाना बड़ा जरूरी काम है। 

लघुकथा के परिंदे के माध्यम से कांता राय ने और परिंदे पूछते हैं के माध्यम से डॉ अशोक भाटिया ने बहुत सारा काम किया है। डॉ॰ राम कुमार घोटड ,बलराम अग्रवाल ,कल्पना भट्ट ने भी अपने स्तर पर इस क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण कार्य प्रस्तुत किया है। श्री बी एल आच्छा जी, माधव नागदा, सुकेश साहनी, जितेंद्र जीतू और बहुत सारे नाम इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश से क्षितिज संस्था ने तो लघुकथाओं की विवेचना करते हुए सार्थक लघुकथाएं पुस्तक प्रकाशित की है। इसी क्रम में उज्जैन के प्रतिष्ठित लघुकथाकार संतोष सुपेकर ने लघुकथा पर साक्षात्कार और विमर्श के जरिए एक महत्वपूर्ण पुस्तक का प्रकाशन किया है। इस पुस्तक का शीर्षक है 'उत्कंठा के चलते'। यह पुस्तक डॉक्टर सतीशराज पुष्करना एवं रवि प्रभाकर को समर्पित की गई है। इस पुस्तक में डॉ॰ योगेंद्र नाथ शुक्ल ने साक्षात्कारों के माध्यम से लघुकथा का परिदृश्य बदलने की उम्मीद जताई है। डॉ॰ उमेश महादोषी ने लघुकथा के संदर्भ में लेखक और पाठक के मध्य संवाद के महत्व पर अपनी बातचीत की है। लघुकथा में लेखक का परकाया प्रवेश जरूरी है, यह बात साक्षात्कार के विभिन्न प्रश्नों के माध्यम से सतीश राठी ने स्थापित करने की सफल कोशिश की है। प्रो॰ शैलेंद्र कुमार शर्मा ने लघुकथाकार को यह जिम्मेदारी बताई है कि उसे थोड़े में बहुत-कुछ कहना होता है। लघुकथा के अनुवाद परिदृश्य पर अंतरा करवड़े का साक्षात्कार महत्वपूर्ण है। कांता राय लंबे अरसे से लघुकथा में लेखक, समालोचक और संपादक के रूप में बहुत सारा महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं । उनसे लिया गया साक्षात्कार इस विधा के भीतर तक उतरकर बहुत सारे प्रश्नों के जवाब खोजने में कामयाब हुआ है। समालोचक श्री पुरुषोत्तम दुबे आलोचना के संदर्भ में अपने साक्षात्कार में कुछ महत्वपूर्ण बातों को स्थापित करने में सफल हुए हैं। स्त्री विमर्श पर लघुकथा के संदर्भ में श्रीमती वसुधा गाडगिल ने अपने साक्षात्कार में महत्वपूर्ण चर्चा की है। वरिष्ठ लघुकथाकार श्री सूर्यकांत नागर अपने साक्षात्कार में एक पूरे कालखंड को समेटेकर अनुभवजन्य रचना को सार्वलौकिक बनाना आवश्यक मानते हैं और इस संदर्भ में उनका विचार पक्ष बड़ा प्रबल है। व्यंगकार पिलकेन्द्र अरोड़ा ने भी लघुकथा के सोशल मीडिया के साथ संबंध में अपनी बात कही है। प्रसिद्ध चित्रकार श्री संदीप राशिनकर ने अभिव्यक्ति में निहित संवेदनशीलता पर अपनी बात प्रस्तुत की है। अमेरिका निवासी श्रीमती वर्षा हळवे ने लघुकथा में साइंस फिक्शन के बाबत बात कही है । एक पाठक के रूप में श्रीसंजय जोहरी के विचार भी पुस्तक में समाविष्ट किए गए हैं । 

इस प्रकार इस पुस्तक को लेखक, पाठक, संपादक, समालोचक, व्यंग्यकार, चित्रकार आदि व्यक्तित्व के माध्यम से

संतोष सुपेकर

एक समग्र स्वरूप में प्रस्तुत करने की ईमानदार कोशिश श्री संतोष सुपेकर ने की है जिसमें वह सफल रहे हैं। पुस्तक का मूल्य सिर्फ ₹100 है और इस तरह ₹100 की गागर में बड़ा-सा सागर प्रस्तुत किया गया है। 

प्रत्येक लघुकथा लेखक और पाठक को यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए।

समीक्ष्य पुस्तक : उत्कण्ठा के चलते (लघुकथा साक्षात्कार एवं विमर्श)

सम्पादन, संयोजन : सन्तोष सुपेकर 

प्रथम संस्करण : 2021

मूल्य- ₹100/-

प्रकाशक : एचआई पब्लिकेशन, 

302-303, तीसरी मंजिल, शान्ति प्लाजा, होटल समय के सामने, 

फ्रीगंज, उज्जैन (म.प्र.)- 456007 / 

मो. 9754131415

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