Monday, 23 November 2020

लघुकथा : साहित्य के आकाश पर/कमलेश भारतीय

सन् 1974 के बाद फिर मैदान में भगीरथ परिहार-नये लघुकथा संग्रह मैदान से वितान की ओर । सन् 1974 में संपादित संग्रह दिया था--गुफाओं से मैदान की ओर । इतने सालों बाद मैदान से वितान की ओर । दोनों नाम बहुत सार्थक । पहले गुफा काल था लघुकथा का । अब लघुकथा साहित्य के आकाश पर पहुंच चुकी है । सभी विधाओं के बीच अपना आकाश पा चुकी है । हालांकि यह शीर्षक बलराम अग्रवाल ने दिया है पर सोच विचार सांझी रही । 

आधुनिकता के बोध और अपने समय की युग चेतना से युक्त माना और कहा है बलराम अग्रवाल ने लघुकथा को  । यह बहुत आसान विधा भी नहीं , जैसे कि इसके लघु आकार को देख कर नये लेखक उछल पड़ते हैं । इसमें सकारात्मक मानवीय दृष्टि होना भी बहुत जरूरी है । इस संकलन में 115 लघुकथाएं संकलित हैं जो ज़िंदगी की बुनियादी  सच्चाइयों से टकराती हैं । हमारा सामना करवाती हैं । यह भूमिका में कहा बलराम अग्रवाल ने । 

भगीरथ परिहार का चयन का आधार कि जब जब कोई लघुकथा पसंद आई वे इसे अलग से रखते गये और इस  पसंद में मेरी लघुकथा किसान भी शामिल । मेरे लिए खुशी की बात । पर इतने दिन इस संग्रह को मिले हो गये । मैं सुबह सवेरे उठकर इनको पढ़ता और आनंद के साथ साथ लघुकथा की यात्रा को जानता रहा । बहुत अलग लघुकथाएं हैं । कुछ लघुकथाएं अपनी धर्मपत्नी को जगा जगा कर सुनाईं और वह जल्दी जगाने से नाराजगी भूल गयी । सचमुच हेमंत राणा की दो टिकट एक अलग तरह की प्रेम कथा है । अरूण कुमार की स्कूल हमारी आधुनिक शिक्षा पर चोट करती है । अंजना अनिल हो या अंतरा करवड़े , अपराजिता अनामिका, अर्चना तिवारी, चंद्रेश कुमार छतलानी, चित्रा मुद्गल, चित्रा राणा राघव , चैतन्य त्रिवेदी, सुरेंद्र मंथन , सुकेश साहनी , बलराम अग्रवाल कितने नये पुराने रचनाकारों ने अलग से कहा और अपनी बात पाठक तक पहुंचाने में सफल रहे । बहुत सार्थक लघुकथा संग्रह । साबित कर दिया कि लघुकथा आकाश क्यों छू रही है । 

बहुत बहुत बधाई भगीरथ और बलराम अग्रवाल ।

1 comment:

Kamlesh bhartiya said...

शानदार संपादन के लिए बधाई