Monday 7 November, 2022

लघुकथा-समीक्षा / बबीता कंसल

समीक्षित संग्रह : अस्तित्व की यात्रा

कथाकार  : कांता रॉय 

लघुकथा संग्रह 'अस्तित्व की यात्रा' समाज में व्याप्त विसंगतियों, विडम्बनाओं को पहचान कर संवेदानाओं में रची भिन्न कथानकों, चरित्रों में बसी हुई, नयी राह पर चलने का मार्ग दिखाती हैं। भाषा सहज, सरल है। पंच लाइन से लेखिका की पैनी व सूक्ष्म दृष्टि का पता चलता है।  लघुकथाएं पाठक के मन को गहरे तक पैठ बनाती हैं, जिनको पढ़ते हुए हुए मैं कितनी ही बार नि:शब्द सी रह विचार करती रह गयी।

कांंता राॅय
मैंने कान्ता जी की लघुकथा को पढ़ा ही नही घूंंट-घूंट पिया भी हैं। यही कारण है कि पाठकीय प्रक्रिया देने में देरी हुई। उनकी लघुकथाओं पर समीक्षा करना मेरे वश में नहीं, ना ही उनकी लघुकथाओं पर समीक्षात्मक प्रक्रिया देने की सामर्थ्य मुझ में है । पर सत्य को जीवन्त करती हुई उनकी लघुकथाएं पढ़कर प्रतिक्रिया दिये बिना कैसे रह सकती थी।

'अस्तित्व की यात्रा' लघुकथा संग्रह का आवरण पृष्ठ प्रभावी हैं, जिसे देखकर पुस्तक को पढनें का मन होता हैं।

इस संग्रह में 160 लघुकथाएँ हैं, जिनमें पहली लघुकथा 'सावन की झड़ी' बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी लघुकथा हैं। इसमें चीनू अपनी भाभी से जानवर पर निबंध लिखवाने को कहता है। वह जब अपनी बहन के प्रेमी को बाऊजी द्वारा जानवर कहे जाने को लेकर बहन को परेशान देखता है तो अपनी भाभी से बातों ही बातों में निबंध के माध्यम से, हृदय की संवेदनाओं को प्रकट करता है। बच्चे के मुख से सहज सत्य कहलाकर पाठक के मन को अन्दर तक छू लेने वाली लघुकथा है। 

एक गरीब लड़की कैसे असमय प्रौढ़ बन जाती है। घर में मां, दादी की कही बातों को बिना जाने ही मान जाना और मालकिन से भी उसे मानने को कहना। उसकी मासूमियत को 'कतरे हुए पंख' लघुकथा में बहुत प्रभावी रूप से दर्शाया गया है। मालकिन का उसे स्कूल भेजना, साथ ही पगार भी देते रहना, उसके उड़ने को पंख लगा देता हैं।

'विभाजित सत्य' एक स्त्री और जमीन का आपसी संवाद जिसमें स्त्री जमीन से कहती हैं कि "मैं तुम्हारा दर्द समझती हूँ। जमीन बिकने के बाद भी अपना स्वभाव और स्थान नही बदलती, जबकि स्त्री को मालिक के अनुसार बदलना पड़ता हैं।" लघुकथा की हर पंक्ति पाठक को  सत्य से जोड़ती है।

'खटर -पटर'।  पाठक पति पत्नी के बीच की लड़ाई को औरत और मर्द के रुप में जब देखता है, उसका नजरिया ही बदल जाता है।

ऐसे ही, 'श्रम की कीमत' आरम्भ से अंत तक पाठक को बांधे रखती है। मजदूर के हाथों की फटी हथेलियों को देख मजदूर के बिना कुछ कहे ही पूरा पारिश्रमिक दे देता है। आखिर मेहनत की अनदेखी नहीं कर पाता।

"स्वभाववश" सांप और नेवले की लघुकथा, जिसमें दोनों अपनी लड़ाई से उकताकर भगवान से एक ही प्रजाति में जन्म लेने की इच्छा रखते हैं ताकि साथ रहें और एक-दूसरे से प्रेम भी करें। दूसरे जन्म में तब एक स्त्री और एक पुरुष बना यानी मनुष्य जाति में भी एक-दूसरे के विपरीत।

"परिमलतुम कहां गये" में एक बिगड़ैल बेटे को मां अपना बेटा मानने से मना कर देती है। अच्छी लघुकथा ।

'अहिल्या का सौन्दर्य', जमीर की हिफाजत', 'बदनीयत', 'तालियां', 'नशे', बन्दगी', 'आहुति', 'इंजीनियर बबुआ', 'जंगली', 'रंडी', 'पगहा', विविध विषयों और समाज में उभरती विसंगतियों पर चोट करती लिखी गयी, पाठक के मन पर प्रभाव छोड़ती लघुकथाएं हैं। ये लघुकथाएँ पाठक के मन में चिंतन-मनन का धरातल बुनती हैं और पाठक विचलित हो सोचने पर मजबूर हो जाता है। हर लघुकथा में अपने आसपास के परिवेश का प्रभाव दिखता है। इस तरह ये अपना अर्थपूर्ण संदेश देने में  कामयाब रही हैं ।

मुझे विश्वास है कि कान्ता जी का लघुकथा संग्रह पाठकों को अवश्य ही पसन्द आयेगा और वो संग्रह को अपना पूरा स्नेह देंगे।

मैं इस लघुकथा संग्रह के लिए कान्ता जी को प्रणाम करती हूँ। हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं देती हूँ। इसी तरह उनकी लेखनी निरंन्तर चलती रहें और हम उनकी  पुस्तक पढ़कर लाभान्वित होते रहें।

बबिता कंसल, दिल्ली


 

 

 

 

 

 

 

 

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