Monday, 17 December 2018

लघुकथा : मैदान से वितान की ओर-08

आठवीं किश्त के रूप में यह पूरक पोस्ट

भगीरथ जी ने ये चार लघुकथाएँ और उपलब्ध करायी हैं, जिन्हें वस्तुत: पहली से सातवीं किश्त में किसी स्थान पर होना चाहिए था। इन्हें इसीलिए पूरक कड़ी के रूप में पेश कर रहा हूँ। आठवीं कड़ी भी इसे ही मान लिया जाए, ताकि तारतम्य न बिगड़े…

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अर्चना तिवारी
   मोबाइल पर सन्देश चमका। कोई वीडियो था। साथ ही एक नोट था, “इसे अकेले में देखें।
सन्देश देखते ही मेरी बाँछें खिल गईं। मैंने वीडियो चालू किया।
पलट इसे, चेहरा देखना है!एक अकड़दार आवाज कड़की। उसके साथ ही दिखा कि एक औरत औंधे मुँह जमीन पर पड़ी है। उसके शरीर पर कपड़े न के बराबर थे।
औरत है साहेब, कोई चादर-वादर ऊपर डाल देते तो पलटते!यह दूसरी आवाज थी।
अरे पलट ना...वह मर चुकी है!आवाज दोबारा कड़की।
फिर भी साहेब...है तो औरत ही न... !
अरे बेवकूफ! पलट ना...पता तो चले कि यह है कौन....!
कुछ हाथ औरत को सीधा करने लगे। मन हुआ कि वीडियो बंद कर दूँ। लेकिन फिर अजीब सी उत्सुकता ने ऐसा करने से रोक दिया। एकाएक वीडियो ब्लर होने लगा। मैं खिसिया गया।
कुछ देर बाद वीडियो साफ हुआ तो उत्सुकता फिर बढ़ी। कैमरा औरत के चेहरे को जूम करता हुआ आहिस्ता-आहिस्ता नीचे आने लगा। लेकिन कुछ ही क्षणों बाद वीडियो समाप्त हो गया। 
"ओफ्फ़ोह !" मैं झुँझला उठा। झुँझलाहट में अकस्मात मोबाइल का कैमरा ऑन हो गया।
उसमें अपना चेहरा देखते हुए मैं चौंक गया। मुझे खुद पर घिन हो आई।

 संपर्क : 1/217, विराट खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ-226010

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अशोक वर्मा 

स्वप्न भंग 
पूरे घर में आज उत्साह का वातावरण है|
     रमेश ने ऑफिस से लौटते ही अपनी पहली तनख्वाह पिताजी के चरणों में रख दी थी| नीले रंग के कितने ही सौ-सौ के नोट-एक साथ! रिटायर्ड पिता मन-ही-मन ईश्वर का धन्यवाद कर गद्गद्  हो उठे थे|                                         
रात्रि के भोजन में विशेष पकवान बनवाये गये| माँ ने भगवान को भोग लगाया| फिर सभी खाना खाने बैठ गये| कौर चबाते हुए रमेश ने कहा, “पिताजी, आप देखना, जल्दी ही मैं घर का नक्शा बदल दूँगा|”                                   
कैसे भईया?” आश्चर्य से आँखें फैलाये छोटी बहन ने पूछा|
अरे दीदी! तुम्हारा भाई इंजीनियर है और वह भी सिविल...लाखों के कोंट्रेक्ट हैं!बड़े-बड़े ठेकेदार तलुवे चाटते हैं आकर;लेकिन मैं किसी साले को घास नहीं डालता|”            
      मुझे तुम पर नाज है बेटे! मेहनत और ईमानदारी से काम किये जाओ बस्स!पिताजी ने सगर्व कहते हुए किसी पारखी-सी दृष्टि से उसे घूरा|                                                                                                     रात गये देर बाद अपने बराबर वाले कमरे में हो रही फुसफुसाहट सुनकर रमेश के कान जमकर रह गये| पिताजी कह रहे थे, “रमेश की माँ ! अब जल्दी ही हमारे दलिद्दर दूर हो जायेंगे|...रमेश की पढाई के दौरान लिया हुआ कर्ज भी चुक जायेगा ...रेखा और बिंदिया की शादी भी ... बड़े-बड़े ठेकेदारों से वास्ता पडता है उसका|”                    
लेकिन वो तो किसी को भी घास नहीं डालता|” माँ ने रुआँसे स्वर में कहा|
          यही तो मैं सोच रहा हूँ |” कहते-कहते पिता की आवाज बुझसी गई थी|

संपर्क : 8383046067
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जब समय केवल एक बिन्दु होगा
         लोगों से खचाखच भरे हॉल की बायीं साइड में खड़े मॉन्गलम की दृष्टि डायस पर बैठी उन तीन महिलाओं में से मध्य में विराजमान महिला के दीप्तिमान चेहरे पर टिकी हुई थी। तभी शिवॉय उसके पास आया और उसी साइड के मध्य गेट के बाहर ले गया। बाहर से ही वे दोनों आयोजन को देखने-सुनने लगे। लेकिन मॉन्गलम की दृष्टि उस महिला के चेहरे से हट नहीं रहीे थी। कार्यक्रम के संचालक ने तमाम अतिथियों को एक-एक कर डायस पर आमंत्रित करते समय उसका परिचय लिटरेरी स्माइल एरोज संस्था की अब तक की यंगेस्ट चेयरपर्सन के रूप में देते हुए उसका नाम मधु शि क्रॉय बताया था। शिवॉय ने उस क्षण मॉन्गलम का कन्धा दबाया, जिसका उसने कोई नोटिस नहीं लिया। मॉन्गलम को मिस क्राय के चेहरे में खोया देखकर शिवॉय भी झीनी-झीनी मुस्कान के साथ उसकी मनःस्थिति को एन्ज्वॉय करता रहा, बोला कुछ नहीं।
      ‘‘
डियर शिवॉय, क्या तुम्हें नहीं लगता कि इस आकर्षक महिला मधु शि क्रॉय का चेहरा मिनी टिनॉज, जो कल तुम्हारे साथ डेट पर थी, से मैच हो रहा है।’’
      ‘‘
ओ मॉय यंग फ्रेन्ड! इससे क्या फर्क पड़ता है! तुम तो क्रॉय को एन्ज्वॉय करो बस!’’

      ‘‘
फर्क पड़ता है डियर शिवॉय! यदि तुम्हारी मिनी से इसका कोई सीधा कनेक्शन हो तो वह क्रॉय से मेरी डेटिंग कराने में मदद कर सकती है। हिन्दोस्तान में अभी-भी इतना तो चलता ही है!’’

           ‘‘तुम सोच तो ठीक रहे हो, मॉन्गलम! मैं जरूर तुम्हारी मदद करने के लिए मिनी को तैयार करूँगा।’’

  ‘‘
इसका मीनिंग हुआ, उसका इससे कोई कनेक्शन है?’’
      ‘‘
हाँ, मिनी ने बताया है मुझे कि उसको क्रॉय ने अपने सेकेन्ड लिव इन ब्यायसे जन्म दिया था। और यह भी कि आजकल क्रॉय उसके पड़ोस में ही रहती है और पिछले एक वर्ष से अकेली है।’’

      ‘‘
ओह! इट मीन्स, इन ओल्डर सेन्स, मिनी इज दा डॉटर ऑव दिस हैंडसम क्रॉय!’’
      ‘‘
ओह! शिट् यार!! इस तरह इतिहास में घुसोगे तो तुम डेट पर एन्ज्वॉय कैसे करेागे?’’

      ‘‘
ह्वाट! क्या प्राब्लेम है इसमें?’’

      ‘‘
क्योंकि उस सेन्स में तुम भी क्रॉय के बेटे हो जाओगे!’’

      ‘‘
हाउ..ऽ..?...?? क्या कह रहे हो तुम...?’’ मॉन्गलम बुरी तरह चौंक पड़ा।
      ‘‘
यही सच है, डियर! क्रॉय का पहला लिव इन ब्यायमैं और मेरी पहली लिव इन गर्लक्रॉय थी। अब से करीब वाईस वर्ष पूर्व हम दोनों दो वर्ष साथ रहे। खूब एन्ज्वॉय किया। उसी बीच तुम दुनिया में आये। हम दोनों ने एग्रीमेंट के मुताबिक चाइल्ड केयर हॉस्टल को अपने-अपने हिस्से के पच्चीस-पच्चीस लाख रूपये डोनेट करके तुम्हारी देखभाल की व्यवस्था की और अलग हो गये।’’
      ‘‘
वाह! हाउ मच इन्ट्रेस्टिंग दिस!! डियर शिवॉय, इट मीन, यू आर माय डैड! ...डैड!! ...डैड!!!’’ उमंग से उछलता हुआ-सा मॉन्गलम शिवॉय को अपनी बाहों में भींचने ही वाला था कि लोगों की शिकायती नजरों का आभास होने के कारण अपने को नियंत्रित किया!

     
शिवॉय ने भी उसे एक तरफ खींचते हुए नसीहत दी‘‘जरा धीमे बात करो और खुद को कन्ट्रोल में रखो। और हाँ, तुम इस तरह इतिहास में नहीं खो सकते मॉन्गलम! आज समय एक फैला हुआ प्लॉट नहीं, केवल एक बिन्दु है, जिसे हम अपने तरीके से एन्ज्वॉय करते हैं।’’
      ‘‘तुम ठीक कहते हो शिवॉय! लेकिन इस समय बिन्दु पर मेरे लिए यह जानना बेहद इन्ट्रेस्टिंग और एक्साइटिंग होगा कि क्रॉय  मॉम के रूप में और तुम डैड के रूप में एक साथ मेरे प्रति कैसे वीहैव करते हो! मेरे अन्दर यह जानने की बेचैनी हो रही है कि सौ वर्ष पूर्व, जब समय एक फैला हुआ प्लॉट होता था, मॉम-डैड के साथ होने पर एक सन को कैसा लगता था!’’

संपर्क : 9458929004

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कान्ता रॉय


अस्तित्व की यात्रा
उसका अपना साथी जो उसके मुकाबले अब अधिक बलिष्ठ था, उसका ही शिकार करने के उद्देश्य से उसे घूर रहा था. हृदय कांप गया।
सहमति हुई, वह याद करने लगी उन दिनों को जब दोनों एक साथ शिकार करते, साथ मिलकर लकडियाँ चुनकर लाते, आग सुलगाते, मांस पकाते, साथ-साथ खाते और सहवास के दौरान एक-दूसरे का बराबरी से सम्मान करते थे।
तब वे दोनों असह्य, अविकसित जीव शिकारी होकर भी परिपूर्णता को जिया करते थे। उस दिन जब उसके गर्भवती होते ही दूसरे ने उसके लिए घर बनाने का सोचा था, प्रसवित जीव को केन्द्र में रखकर दोनों ने जब अपने लिए कार्यक्षेत्र का विभाजन किया था। तभी से वह प्रसवित जीव की देखभाल करने के लिए घर बनाकर उसमें रहने लगी और शनैः-शनैः कोमल शरीर धारण करने लगी थी, उसे कहाँ मालूम था कि समय बीतने पर वह इन्हीं बातों के कारण स्त्री कहलाएगी।
उसने पनियाई आँखों से उसके शिकार को उद्दत अपने साथी की बलिष्ठ भुजाओं की ओर देखा, फिर अपने कमजोर शरीर पर नजर फेरी। वह ठिठकी, आँखों में कठोरता उतर आयीवह फिर से प्रसवित जीव को अपने साथ ले, घर से बाहर शेरनी बनकर स्वयं के पोषण के लिए शिकार करने निकल पड़ी। वह अब स्त्री नहीं कहलाना चाहती थी। 
संपर्क : मकान नं 21, सेक्टर सी, सुभाष कालोनी, हाई टेंशन लाइन के निकट, गोविन्द पुरा, भोपाल-462023 मप्र


और अंत में यह लघुकथा उनकी रेगुलर फाइल से 5 लघुकथाओं की प्रस्तुति बनाए रखने की दृष्टि से…

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पूरन  मुद्गल

अबीज 
अजनबी ने गेहूँ की एक पकी बाल तोड़ी।
''बहुत मोटी है यह बाल।'' उसने किसान से कहा। किसान ने बाल से कुछ दाने निकालकर अपने हाथ पर रखे  और बेमन से कहा, ''देखो।''
देखते-देखते सब दाने दो-दो  टुकड़ों  में खिल गए। अजनबी हैरान हुआ: पूछा, ''ये दाने साबुत क्यों नहीं रहे?''
''यह नए बीज की फसल है। पिछले पांच सालों से हम यही खा रहे हैं। चार-पांच गुना झाड़ है इसका, लेकिन....''
किसान के चेहरे पर अनजाने में किसी गलत दस्तावेज पर किए दस्तखत जैसी लिखाई उभरी।
''क्या ....?
''यह बीज विदेशी हैं। मेरे बेटे इसे बाहर से लाए है। इसकी फसल तो अच्छी होती है, पर बीज के काम नहीं आती।''
क्यों?''
''
देखा नहीं तुमने! बाल से निकलते ही हरेक दाने के दो  टुकड़े  हो जाते हैं। मेरे लड़के निक्का और अमली चोरी छिपे ले आते हैं यह बीज|''
''लेकिन जिस फसल से बीज न बने, वो किस  काम की ! किसी  साल  विदेश से बीज न आया तो......?'' अजनबी ने वही बात कह दी जो किसान की परेशानी का बायस बनी हुई थी। लोग फसल काटने में व्यस्त थे। निकट ही हवा में तैर रही ढोल की आवाज किसान को अप्रिय लगी। वह अपनी हथेली पर रखे गेंहू के   टुकड़ा-टुकड़ा  दानों को देखने लगा, जिनका धरती से रिश्ता  टूट गया था।
संपर्क : 9253100377

1 comment:

शोभना श्याम said...

तीसरी और बढ़िया होती अगर अजीब नामों में न उलझती