राजनीति
"अबे, तूने ये क्या तमाशा लगाया है! हिंदुस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद?" राहुल ने यूनिवर्सिटी कैम्पस में भीड़ देख मोहन से पूछा।
"अबे, तूने ये क्या तमाशा लगाया है! हिंदुस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद?" राहुल ने यूनिवर्सिटी कैम्पस में भीड़ देख मोहन से पूछा।
मोहन फुसफुसा के बोला, "कुछ नहीं यार, तू
तो जानता है मुझे राजनीति में जाना है।
कई साल से देशभक्ति के नारे लगा रहा हूँ, कोई ध्यान ही नहीं देता। आज जरा ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ क्या बोला, तू सामने भीड़ देख। और तो और, मीडिया वाले भी जमघट लगाएँ है!"
"अबे गधे जेल जाएगा ।"
"गधा होगा तू। इतनी-सी बात तेरी समझ नहीं आ रही? जेल जाते ही हीरो बन जाऊँगा। सब अखबारों में छा जाऊँगा। फिर
अपनी बात से पलट जाऊँगा। बेरोजगारी की
झुँझलाहट का जामा पहनाऊँगा और किसी न किसी बड़ी पार्टी का टिकट पा जाऊँगा। अब हट साईड में। टाइम मत खराब
कर। हिंदुस्तान मुर्दाबाद… पाकिस्तान जिंदाबाद।"
शादीशुदा
वो ट्रेन में मेरे सामने की सीट पर बैठी थी। इतनी खूबसूरत थी कि सब उसे ही देख रहे थे। मेरी नजर भी बार-बार उसके मासूम चेहरे पर जा रूकती। अगले स्टेशन पर डिब्बा लगभग खाली हो गया। मैंने बड़े अपनत्व से उससे पूछा, "बहन, तुम बहुत सुंदर हो। कौन हो तुम, कोई फिल्म वाली ?’’
वो खोखली हँसी के साथ बोली, "मैं शरीर हूँ…
बिना आत्मा का, जिसे कभी मिनटों, कभी घंटों के हिसाब से खरीदा जाता है
और इस्तेमाल कर वापिस दुकान में सजा दिया जाता है ।"
मुझे कहीं दूर, सोच में गुम देख वो पुन; बोलीं,
"क्यों, मेरा गणित समझ नहीं आया न/"
"नहीं बहन, समझ न आने जैसा इसमें क्या है1 हमारे समाज की ज्यादातर
औरतों का गणित यही है। बस बहन, तुम्हारे ग्राहक
रोज बदल जाते है और मैं शादीशुदा हूँ।"
गरीब
"अरे राजू! सुना तूने, कल फिर राम मंदिर बनाने को लेकर जुलूस निकाला गया। जाने कितनों के सर फट गए और दो तो जान से ही चले गए।"
"हाँ दीनू! पता है, उस इलाके में बहुत ही टेंसन है । पता नही इस दंगा-फसाद
से कौन-से भगवान खुश होने वाले हैं? चल छोड़ ये सब; गाड़ी लग गई है स्टेशन
पर। सवारी आती होंगी ।"
"ओ रिक्शे वाले! भईया, राम लला जन्म
स्थान जाना है?"
"नहीं बाबूजी, वहाँ नहीं जाऊँगा।"
"नहीं बाबूजी, वहाँ नहीं जाऊँगा।"
"अरे, फालतू पैसे ले लियो।"
"नहीं बाबूजी, फिर भी नही जाऊँगा।"
"क्यों रे मुसलमान है क्या तू?????"
"गरीब हूँ बाबूजी। हिंदू, मुसलमान तो
बाद की बातें है। वहाँ बहुत टेंसन है। जिंदा रहा तो बच्चों को रोटी दूँगा न।"
और राजू अगली सवारी की ओर बढ़ गया।
सुषमा गुप्ता (डॉ॰) का
आत्मकथन
मुझे लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हुए बहुत वक्त नही हुआ। पहले लॉ एवं
एचआर (law n HR) पढ़ाती थी। मेरी बहुत-सी लघुकथाएँ हैं जो
अप्रकाशित हैं। मुझे पता ही नहीं कहाँ-कहाँ और कैसे भेजनी है। कृपया मेरा मार्ग
दर्शन करें। अगर आप अनुमति दें तो मैं अपनी कुछ लघुकथाएँ आपको भेजती हूँ । अगर
आपको उनका स्तर ठीक लगे तो ही मेरा मार्गदर्शन कीजिएगा अन्यथा त्रुटियाँ बताइएगा
ताकि भविष्य में और मेहनत कर उन्हें सुधार पाऊँ और अच्छा लिख पाऊँ ।
संक्षिप्त परिचय
21 जुलाई को दिल्ली में जन्म। एम कॉम (दिल्ली
विश्वविद्यालय), एमबीए(आई एम टी, गाजियाबाद), एलएलबी, पीएच डी ( चौधरी
चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ); 2007
से 2014 तक आई एम टी, गाजियाबाद में कानून एवं मानव संसाधन
की व्याख्याता।
सम्मान : हिंदी सेवी सम्मान 2017
प्रकाशन : समाचार पत्रों में कुछ रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।
प्रकाशाधीन साझा संग्रह( जे एम डी प्रकाशन ) *नारी काव्य सागर *भारत के श्रेष्ठ युवा रचनाकार
स्थाई पता : 327 / सेक्टर 16A, फरीदाबाद, हरियाणा
सम्मान : हिंदी सेवी सम्मान 2017
प्रकाशन : समाचार पत्रों में कुछ रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।
प्रकाशाधीन साझा संग्रह( जे एम डी प्रकाशन ) *नारी काव्य सागर *भारत के श्रेष्ठ युवा रचनाकार
स्थाई पता : 327 / सेक्टर 16A, फरीदाबाद, हरियाणा
2 comments:
अच्छी लघु कथाएं आप से भविष्य में बड़ी संभावनाएं बनती हैं
सुषमा गुप्त जी की लघुकथाओं का कथ्य समसामयिक है । कहन बहुत प्यारा व सटीक है । उनमें उभरता हुआ कथाकार छिपा है । उनमें संभावनाएँ हैं इसलिए उनसे अपेक्षाएँ भी हैं । बधाई ।
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