Friday 23 December, 2016

2016 : लघुकथा का समृद्ध परिवेश / कान्ता रॉय



दोस्तो, 2016 अपने अन्तिम सप्ताह में प्रविष्ट होने को है। कल इस साल का अन्तिम रविवार होगा। इस बीच 'साहित्य अमृत' का लघुकथा विशेषांक छपकर मेरे हाथों में आ गया है। हर्ष का विषय है कि सन् 2017 की शुरुआत 'लघुकथा विशेषांक' से हो रही है। इस अंक में लगभग 45 नये लघुकथाकारों ने जगह बनाई है। नि:सन्देह, इनमें से अनेक ऐसे भी हो सकते हैं, जिनकी पहली ही लघुकथा इतने बड़े मंच पर आई हो। उन्हें इस मंच पर लाने के लिए मैंने कुछ असम्मानजनक समझौते भी किए। बहरहाल, 'लघुकथा' के हित में कड़ुआहट भुलाइए और कुछ नए कदमों का स्वागत कीजिए।
लघुकथा विशेषांक : जनवरी 2017
इस लघुकथा विशेषांक में प्राचीन ग्रंथों से 5 लघुकथाएँ पहली बार उद्धृत हुई हैं। इनके साथ-साथ कुछ हिन्दीतर भाषाओं की लघुकथाएँ तथा कुछ विश्व साहित्य की भी लघुकथाएँ हैं। प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, विष्णु प्रभाकर और हरिशंकर परसाई के साथ पहला मौका है जब रामधारीसिंह दिनकर की भी एक लघुकथा किसी विशेषांक में आई है। स्मृतिशेष कथाकारों में श्रीयुत पृथ्वीराज अरोड़ा, सुरेश शर्मा, रमेश बतरा, विक्रम सोनी, युगल, जगदीश कश्यप, पारस दासोत, सुरेन्द्र मंथन, एन उन्नी, कालीचरण प्रेमी और रघुनंदन त्रिवेदी को याद रखा है। हिन्दी के मूर्द्धन्य साहित्यकार रामदरश मिश्र ने इस विशेषांक के लिए अपनी लघुकथाएँ देकर इस विधा को अपना आशीर्वाद दिया है। 'साहित्य अमृत' के इस लघुकथा विशेषांक में कुल मिलाकर 170 से ऊपर लघुकथाएँ हैं; साथ में लघुकथा के विभिन्न बिंदुओं पर विचार करते 8 आलोचनापरक लेख ।
उक्त अंक से सबसे पहले प्रस्तुत है कान्ता राय का आलेख--'2016 : लघुकथा का समृद्ध परिवेश'।  

कान्ता राय


हिन्दी लघुकथा के सन्दर्भ में वर्ष 2016 कुछेक बड़ी हलचलों और उपलब्धियों से भरा रहा। लेखन में तकनीक व  शिल्प-शैली को लेकर जितनी इस साल  चर्चायें हुईं उतनी शायद ही कभी हुई हों। 

नुक्कड़ लघुकथा गोष्ठी : विश्व पुस्तक मेला
वर्ष के पहले माह से ही लघुकथा को लेकर एक अच्छी शुरुआत हुई। 14 जनवरी 2016 को ‘नुक्कड़ लघुकथा पाठ’ का आयोजन शोभा रस्तोगी की एक सार्थक परिकल्पना थी जिसको विश्व पुस्तक मेले में साकार किया गया। अनेक वरिष्ठ व नये लघुकथाकारों की उपस्थिति और रचना-पाठ भी सराहनीय था। मौसम खराब होने के कारण यह आयोजन पार्क के अंदर खुले में न होकर हॉल नंबर 12 ए में ‘दिशा प्रकाशन’ के स्टाल पर संपन्न हुआ। सुश्री छवि निगम, नीलिमा शर्मा, डॉ नीरज शर्मा, शोभा रस्तोगी, कांता राय, नीता सैनी, हरनाम शर्मा, अशोक वर्मा, डॉ सतीशराज पुष्करणामधुदीप, सुभाष नीरव और सूरज प्रकाश ने लघुकथा पाठ में हिस्सा लिया और अपनी दो-दो लघुकथाएं सुनाईं। कथाकार सूरज प्रकाश ने बिना पढ़े अपनी दो दमदार लघुकथाएं सुनाईं। अच्छी बात यह रही कि लघुकथा क्षेत्र में बिलकुल नये लेखकों ने अपनी बेहद सशक्त और कसी हुई लघुकथाओं का पाठ किया जिन्हें सभी ने सराहा। मधुदीप और अवधेश श्रीवास्तव ने कुछ लघुकथाओं पर अलग से अपनी-अपनी राय भी प्रकट की। करीब डेढ़ घंटे चली इस लघुकथा गोष्ठी का संचालन सुभाष नीरव ने किया। ‘नुक्कड़ लघुकथा’ गोष्ठी के समापन के बाद इस बात पर भी विचार किया गया कि आगामी विश्व पुस्तक मेले में बड़े स्तर पर लघुकथा को लेकर आयोजन रखा जाए, जिस पर सभी उपस्थित लेखकों ने अपनी सहमति प्रकट की।
अंतर्जाल  के द्वारा देश के विभिन्न भागों से लेकर सुदूर विदेशों में बैठे लघुकथाकारों ने एक-दूसरे से जुड़कर विधा में सशक्त उपस्थिति दर्ज की है। यही कारण है कि इस साल लगभग तेरह लघुकथा-संग्रह प्रकाशित हुए जो इस प्रकार हैं— अंदाज़ नया: अशोक गुजराती, जीवन काप्रवाह : कल्पना विजयवर्गीय, आँगन-आँगन हरसिंगार: कमल कपूर, पथ का चुनाव : कान्ता रॉय, अनसुलझा प्रश्न : किशनलाल शर्मा, एक पेग ज़िन्दगी : पूनम डोगरा, रिंगटोन : ब्रजेश कानूनगो, सम्यक लघुकथाएँ : मीरा जैन, एक सेल्फी रिश्तों की : रश्मि प्रणय वागले, किसी और देश में : विनय कुमार, इत्रफ़रोश : रोहित शर्मा, उद्गारों का कलश : कमल नारायण मेहरोत्रा, ततः किम : संध्या तिवारी, बालमन की लघुकथाएँ : डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति, मूंछोवाली : डा. मधुकांत। इन संग्रहों में आठ नये लघुकथाकारों की पुस्तकें हैं जो विधा संदर्भ में एक मिशाल है। गौर करने वाली बात यह भी है कि ये सभी नये लेखक समर्पित लघुकथाकार हैं। कथा लेखन के क्षेत्र में 'समर्पित लघुकथाकार' ढूँढना समुद्र में मोती ढूँढने जैसा ही है क्योंकि जाने-अनजाने ही सही, कथा-आलोचकों द्वारा अनदेखी लघुकथाकारों का मनोबल तोड़ती है। वे समझने लगते हैं कि कहानी व अन्य विधा  विशिष्ट दर्जा दिलवाने में अधिक कारगर साबित होगी, इसलिये उनका लघुकथा-विधा से अन्य विधाओं की ओर पलायन हो जाता है। भोपाल में साहित्य अकादमी के पूर्व निदेशक व निराला सृजन पीठ के वर्तमान निदेशक देवेंद्र दीपक जी ने लघुकथा रचनापाठ 'तिलक' के आयोजन पर विधा  की महत्ता बताते हुए लघुकथा की गम्भीरता पर एक विस्तृत उद्बोधन देते हुए कहा कि विधा चाहे कोई भी हो, वह अपने आप में विशिष्ट होती है। लघुकथा विधा के लिए उपेक्षाभरे इस काल में वरिष्ठ आलोचक डॉ॰ कमल किशोर गोयनका की आलोचना पुस्तक ‘लघुकथा का समय’ का आना लघुकथाकारों के मनोबल को बढ़ाने वाला सिद्ध होगा।

'लघुकथा साहित्य' की देयता
अंतर्जाल के द्वारा साहित्यिक अनुष्ठान को सार्थकता का जामा पहनाया—जून 2013 में स्थापित फेसबुक समूह ‘लघुकथा साहित्य’ ने जिसके वर्तमान एडमिन वरिष्ठ लघुकथाकार बलराम अग्रवाल  और श्याम सुंदर अग्रवाल हैं। यहाँ वक्त-वक्त पर लघुकथा पर संज्ञान व उचित मार्गदर्शन का प्रयास होता है। 2016 में भी नव-लेखकों के लिये यहाँ से विविध पहलुओं पर लघुकथा विधा-सम्मत काम हुआ है। देश-विदेश में घटित लघुकथा पर विधा सम्मत हलचल की समस्त जानकारी लेखकों के लिये उपलब्ध करवाई गयी। नवीन संग्रहों व संकलनों  का प्रकाशन, विविध पहलुओं पर आलोचना सम्बन्धी जानकारियाँ यहाँ प्रदान की जाती हैं। अंतर्जाल पर 'लघुकथा साहित्य' विधा संदर्भ में मुझे यह हमारा हेड ऑफिस प्रतीत होता है।

साहित्य अकादमी : 15 मार्च 2016 : किला फतह
कथाकार सुभाष नीरव द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित ‘लघुकथा पाठ’ के सन्दर्भ में है तो दूसरी रिपोर्ट हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा आयोजित ‘साहित्योत्सव’ में सम्पन्न ‘लघुकथा पाठ’ के सन्दर्भ में। पहली रिपोर्ट के अनुसार—‘लघुकथा साहित्य के लिए इस साल की सबसे बड़ी उपलब्धि साहित्य अकादमी द्वारा ‘लघुकथा’ को अपने आयोजन में शामिल करना रहा। 15 मार्च 2016 को साहित्य अकादेमी के सभागार में साहित्य अकादेमी केराजभाषा मंचके अन्तर्गत देवेन्द्र कुमार देवेश के संचालन में एक सफल और सार्थक संगोष्ठी संपन्न हुई! इस संगोष्ठी में हिंदी के वरिष्ठ चार सशक्त लघुकथा लेखकों  सर्वश्री बलराम अग्रवाल(दिल्ली), सुकेश साहनी (बरेली- उत्तर प्रदेश), अशोक भाटिया(करनाल, हरियाणा) और मधुदीप (दिल्ली) ने खचाखच भरे सभागार में अपनी-अपनी लघुकथाओं का पाठ किया। चारों लेखकों द्वारा पढ़ी गई लघुकथाओं द्वारा अपना-अपना श्रेष्ठ देने का प्रयास किया और वे सफल  भी रहे। विषयों की विभिन्नता लिए अपने समय और समाज की धड़कनों को संजोये लघुकथाओं को श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ खूब सराहा और एक बात साफ़ हुई कि लघुकथा केवल पठनीय विधा नहीं है, वह कहानी की भांति सुनने की भी विधा है। पढ़ी गई लघुकथाओं पर राम कुमार आत्रे, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, सुभाष नीरव, राजकुमार गौतम, डॉ शेरजंग गर्ग अपने अपने विचार रखे। इस आयोजन का हिस्सा दिल्ली के अलावा, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आये लघुकथा प्रेमी भी बने। हरियाणा से राम कुमार आत्रे, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, राधेश्याम, बिजनौर (उत्तर प्रदेश) से डॉ नीरज सुधांशु तथा उनके पति डॉ सुधांशु, गुड़गांव से विभा रश्मि, दिल्ली से वरिष्ठ साहित्यकार शेरजंग गर्ग, कथादेश के संपादक हरिनारायण, बलराम, डॉ रूपसिंह चन्देल, अवधेश मिश्र, राजकुमार गौतम, अशोक वर्मा, नीलिमा शर्मा, शोभा रस्तोगी, डॉ विवेकानन्द, भूपाल सूद श्रीमती सूद आदि अनेक लघुकथा प्रेमियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करके इस आयोजन को सफल मनाया। इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि इसका साहित्य अकादेमी की वेब साइट पर लाइव प्रसारण भी हुआ। नि:संदेह साहित्य अकादेमी के इस आयोजन को लघुकथा की विकास यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव मानते हुए हमेशा याद रखा जाएगा।

हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा भी लघुकथा पर पहला आयोजन
दूसरी रिपोर्ट के अनुसार—‘हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा 26-28 मार्च, 2016 तक आयोजित किए गये ‘शहीद भगत सिंह साहित्य महोत्सव’ में 27 मार्च, 2016 को एक सत्र हिन्दी लघुकथा पाठ के लिए भी रखा गया। इसमें लघुकथाकार बलराम अग्रवाल, मधुदीप, सुभाष नीरव, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, बलराम, शोभा रस्तोगी, हीरालाल नागर, पूरन सिंह और अशोक भाटिया ने श्रोताओं से खचाखच भरे विशाल सभागार में मंच से अपनी-अपनी लघुकथाओं का पाठ किया। इसका सफल संचालन अशोक भाटिया ने किया। लघुकथा को लेकर हिन्दी अकादमी, दिल्ली का यह पहला आयोजन था।’

पड़ाव और पड़ताल
दिशा प्रकाशन के बैनर तले सन् 2014 के विश्व पुस्तक मेले से लघुकथा संकलन ‘पड़ाव और पड़ताल’ के प्रकाशन की एक महत्वपूर्ण योजना का शुभारम्भ हुआ था। दिसम्बर 2015 तक इस योजना के 15 खण्ड प्रकाशित हो चुके थे। जनवरी 2016 में सम्पन्न विश्व पुस्तक मेले में यह शृंखला नये रूप में अवतरित हुई। शृंखला का 16वाँ और 17वाँ खण्ड इस पुस्तक में मेले में एकल लघुकथाकार की 66 लघुकथाओं और उनकी पड़ताल पर केन्द्रित था। 16वाँ खण्ड भगीरथ की 66 लघुकथाओं पर केन्द्रित था और 17वाँ खण्ड बलराम अग्रवाल की 66 लघुकथाओं पर केन्द्रित था। इनके अतिरिक्त इस शृंखला के अब तक 23 खण्ड प्रकाशित हो चुके हैं। शृंखला में प्रकाशित अन्य लघुकथाकारों के नाम इस प्रकार हैं—अशोक भाटिया, सतीशराज पुष्करणा, कमल चोपड़ा, मधुदीप, सतीश दुबेमधुकांतकी 66 लघुकथाएँ और उनकी पड़ताल को चिह्नित किया गया है। यह एक शोधग्रंथ-सा अवर्णनीय कार्य हुआ है। यहाँ वरिष्ठ लघुकथाकार मधुदीप का समर्पण प्रणम्य है।


लघुकथा अनवरत
देश की पहली लघुकथा-केन्द्रित वेब पत्रिका ‘लघुकथा डॉट कॉम’ के सहित 'लघुकथा अनवरत' रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु' और सुकेश साहनी के सम्पादन में कई नये हस्ताक्षरों ने अच्छे लघुकथाकार होने का गौरव पाया है। हिन्दी लघुकथा में आप दोनों 'सम्पादक द्वय' व भूपी सूद जी को इस अहम भूमिका के लिये याद किया जायेगा। प्रगति मैदान में लगने वाले विश्व पुस्तक मेला 2016 में अयन प्रकाशन द्वारा 'लघुकथा अनवरत ; फेसबुक मित्रों की लघुकथाएँ’  का विमोचन हुआ है। आभासी दुनिया में चल रहे लघुकथा-लेखन को चिह्नित करने के मद्देनजर यह संकलन एक अद्वितीय पहल है।

बूँद बूँद सागर
इस बार 'बूँद बूँद सागर' लघुकथा संकलन, जिसका सम्पादन डॉ. नीरज सुधांशु व जितेन्द्र जीतू ने किया है। यह पुस्तक भी चर्चा का विषय बना है। इस पुस्तक में अधिकतर लघुकथाकार पहली बार प्रकाशित हुए थे। नव-लेखकों के प्रोत्साहन के संदर्भ में यह  अनुपम पहल थी। 2016 में ही अशोक भाटिया द्वारा सम्पादित लघुकथा संकलन  'हरियाणा से लघुकथाएँ' में 61 लघुकथाकारों ने अपनी सशक्त उपस्थिती  दर्ज (की)।
समसामयिक हिंदी लघुकथाएँ: त्रिलोक सिंह ठकुरेला (सं.) के इस संकलन में 11 सशक्त लघुकथाकार और उनकी 11- 11 लघुकथाओं को शामिल किया गया है। आँखों देखी लघुकथा : विकास मिश्र (सं.) गाजियाबाद से प्रकाशित संकलन है जिसमें सिर्फ 8 लघुकथाकारों की 88 लघुकथाओं को शामिल किया गया है।  आदिम पुराकथाएँ (पुराकथा संकलन) वसन्त निरगुणे (सं.) और चलें नीड़ की ओर : कान्ता राय (सं.) का प्रकाशन भी उल्लेखनीय है।

दृष्टि : लघुकथा की नई अर्द्धवार्षिक पत्रिका
वरिष्ठ लघुकथाकार कमल चोपड़ा सन् 2008 से लघुकथा की एक वार्षिक पत्रिका ‘संरचना’ का सम्पादन व प्रकाशन कर रहे हैं। वर्ष 2016 में संरचना का आठवाँ अंक प्रकाश में आया। इस वर्ष कथाकार अशोक जैन ने लघुकथा विधा को समर्पित अर्द्धवार्षिक पत्रिका 'दृष्टि' का सम्पादन व प्रकाशन गुड़गाँव से किया है। पत्रिका की शुरुआत ‘पारिवारिक लघुकथा विशेषांक’ से हुई है। इसके पहले अंक में नये-पुराने करीब 58 लघुकथाकार अपनी स्तरीय लघुकथाओं के साथ उपस्थित हैं। सतीशराज पुष्करणा और सुकेश साहनी जी के आलेख पत्रिका के इस अंक की सार्थकता को कायम करने में सफल रहे हैं। इसी वर्ष कथाकार विकेश निझावन के सम्पादन में 'पुष्पगंधा' त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ने भी 'लघुकथा विशेषांक' का प्रकाशन किया, जो उल्लेखनीय है। यह पत्रिका मेरे हाथ नहीं आ पायी है अब तक, लेकिन आदरणीय मार्टिन जॉन जी के अनुसार—‘विकेश निझावन ने 'पुष्पगंधा' के अद्यतन अंक को गम्भीरतापूर्वक लघुकथा के नाम सपर्पित करने का श्रमसाध्य कार्य किया है।  प्रस्तुत अंक में किसी न किसी रूप में लघुकथा लेखन से जुड़ी तीन पीढ़ियों को समेटने का स्तुत्य प्रयास किया गया है। एक और जहाँ हरिशंकर परसाई (प्रख्यात व्यंग्याकार) विष्णु प्रभाकर, चित्रा मुदगल, हिमांशु जोशी, सुधा ओम ढींगरा, संतोष श्रीवास्तव की लघुकथाओं ने इस अंक को गरिमामय स्वरूप प्रदान किया है  वहीं वरिष्ठ लघुकथाकारों—कमल चोपड़ा, मधुदीप, रूप देवगुण, जयश्री रॉय, उर्मि कृष्ण, शमीम शर्मा, राजकुमार गौतम, मुकेश शर्मा, अशोक भाटिया, अशोक जैन,रामकुमार आत्रेय, पूरन सिंह, केदारनाथ सविता, रामनिवास मानव, सिद्धेश्वर, फजल इमाम मल्लिक, सैली बलजीत, मृत्युंजय तिवारी, महावीर रवांल्टा, मार्टिन जॉन, डा.मुक्ता,शराफत अली खान  की उत्कृष्ट लघुकथाओं ने भी अंक को समृद्ध किया है। समकालीन लघुकथा परिदृश्य में अपनी रचनात्मक ऊर्जा के साथ उपस्थिति दर्ज़ कराने वाले लघुकथाकार अरविन्द कुमार खेड़े, रणजीत टाडा, अरविन्द मुकुल, अशोक दर्द की प्रतिनिधि लघुकथाएँ भी प्रस्तुत अंक को उम्दा बनाती हैं ।
   लब्ध प्रतिष्ठित व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई और 'सारिका' के संपादक अवध नारायण मुदगल से लघुकथाकार मुकेश शर्मा की लघुकथा विषयक दुर्लभ बातचीतअग्रिम पंक्ति के लघुकथाकार कमल चोपड़ा का एकमात्र सारगर्भित आलेख निश्चित रूप से इस अंक की उपलब्धि है।

28 वाँ लघुकथा सम्मेलन, पटना
अप्रैल माह में अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथा मंच ,पटना के तत्वावधान में हुए 28वें लघुकथा सम्मेलन का आयोजन जो बिहार ललित अकादमी के सभागार में आयोजित हुआ, वह भी अपनी सार्थकता को कायम करने में कामयाब रहा। एक दिन में ही चार सत्र का रखा जाना और चर्चाओं में विविधतायें, देशभर के वरिष्ठ लघुकथाकारों का जमावड़ा, लेख, आख्यानों का दौर, आलेखों पर चर्चाओं का सत्र और लघुकथा पाठ व उस पर विस्तारपूर्ण समीक्षा विधा पर  उत्कृष्ट कार्यशाला को चिन्हित करने में सफल रही। किलकारी समूह के बच्चों द्वारा लघुकथा वाचन आयोजन को नया आयाम मिला।

हिन्दी लघुकथा के सफर में चीन
साहित्य अकादमी में लघुकथा को कथाकार बलराम अग्रवाल के लम्बे प्रयासों के परिणामस्वरूप वहाँ के विशेष कार्याधिकारी डॉ॰ देवेन्द्र कुमार देवेश ने प्रविष्टि दिलायी तथा हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा आयोजित ‘साहित्य महोत्सव’ में श्री विकास नारायण राय व डॉ॰ अशोक भाटिया के प्रयासों ने इसे पहुँचाया।
हिन्दी लघुकथा का चीन तक पहुँचना भी इस साल की उपलब्धि रही है। चीन से प्रकाशित होने वाली हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका 'इंदु संचेतना' में इसे पहुँचाया है- डॉ॰ गंगा प्रसाद शर्मा 'गुणशेखर' ने जो इस पत्रिका के संपादक हैं। पत्रिका के इस अंक के अतिथि संपादक हैं--श्री राहुल देव। डॉ॰ गुणशेखर व राहुल देव के साथ-साथ इस सत्कार्य के लिए पत्रिका के संरक्षक श्री चोंग वेई ह तथा प्रबंध संपादक श्री हू रुई। 'इंदु संचेतना' ने बलराम अग्रवाल की लघुकथाओं के प्रकाशन से इस कार्य की शुरुआत की।

आकाशवाणी भोपाल से लघुकथा का पहली बार प्रसारण
इसी साल भोपाल ने भी नये पहलुओं से  विधा की गर्माहट को महसूस किया। लघुकथाकार कान्ता रॉय की छह लघुकथाओं का पाठ 'आकाशवाणी भोपाल केन्द्र' से प्रसारण हुआ जो लघुकथा विधा पर यह पहली बार हुआ है। आकाशवाणी भोपाल की इस पहल से लघुकथा विधा संदर्भ में कई नयी चर्चा को सार्थकता मिली है।

मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग में पहली बार लघुकथा की उपस्थिति
इसी साल मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग, भारत भवन की इकाई निराला सृजन पीठ में रचनापाठ 'तिलक' के अंतर्गत पहली बार लघुकथा पाठ के लिये कान्ता रॉय को आमंत्रित किया गया जो एक सार्थक पहल था।

द्वितीय ग्लोबल लिटरेरी फेस्टिवल और लघुकथा का सेशन
द्वितीय ग्लोबल लिटरेरी फेस्टिवलनोएडा 2016 में अन्य साहित्यिक कार्यशाला के साथ ही लघुकथा-विधा पर कान्ता रॉय का डेढ़ घंटे का सेशन रखा गया था जिसमें लघुकथा लेखन का उद्देश्य और उसका शिल्प विधान पर व्यापक चर्चा हुई।

ऑनलाईन पुस्तक विमोचन साहित्यिक परिवेश में सार्थक पहल
‘लघुकथा के परिंदे’ मंच पर एक अलग अनुभव, तकनीक और साहित्य का मेल लघुकथा पुस्तक का ऑनलाईन विमोचन के अवसर पर मिला। 'एक पेग ज़िंदगी' कथा संग्रह पर चर्चाओं के दौरान 24 पुस्तक समीक्षाओं की आमद हुई जो पूरे देश के अलग-अलग शहरों से वरिष्ठ लघुकथाकारों व साहित्यकारों द्वारा पोस्ट की गयी थी। इस विराट चर्चा-उत्सव को  'ऑनलाईन पुस्तक विमोचनमें सकारात्मक नजरिये से आयोजन की पहल को  संदर्भित कर गया है।

'सत्य की मशाल' और लघुकथा का स्थायी स्तम्भ
'सत्य की मशाल' पारिवारिक मासिक पत्रिका में लघुकथा को स्थायी स्तम्भ के रूप में स्थापित कर विधा  के लिये तीन पृष्ठ को सुरक्षित रखा गया। प्रिंट मीडिया में लघुकथा को  मुख्य धारा में लाने का सामाचार पत्रिका की सम्पादक कान्ता रॉय की तरफ से अपनी तरह का यह पहला कदम है। हालांकि मैं यहाँ यह भी संदर्भित करना चाहूँगी कि साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश की मासिक पत्रिका 'साक्षात्कार' अन्य विधाओं की बराबरी के साथ लघुकथा को भी  स्थायी स्तम्भ के रूप में सम्पूर्ण पन्ने के साथ जगह देती है।

ओपन बुक्स ऑनलाईन
इस साल लघुकथा विधा पर किये गये सार्थक प्रयासों में 'ओपन बुक्स ऑनलाईन' का  अलग-अलग शहरों भोपाल और लखनऊ में आयोजित 'साहित्योत्सव आयोजनों' में 'लघुकथा-सत्र' पर वृहत चर्चा उल्लेखनीय प्रयास है। ओबीओ लघुकथा चैप्टर’ कानपुर की स्थापना मुख्य रूप से लघुकथा विधा पर वहाँ के लेखकों के रुझान व एकाग्र होकर समर्पण के मद्देनजर ही हुआ है। अन्नपूर्णा वाजपेयी के संरक्षण में 'लघुकथा मासिक गोष्ठी' संचालित हुई है।
इस साल जहाँ  हिन्दी लेखिका संघ मध्यप्रदेश भोपाल में लघुकथा गोष्ठी व लघुकथा-पुस्तक विमोचन से विधा-सम्मत काम करने से भोपाल की पृष्ठभूमि मजबूत हुई है वहीं दूसरी ओर जबलपुर में भी आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ की अध्यक्षता में एक मासिक गोष्ठी का आगाज़ हुआ है जिनमें प्रभात दूबे सहित कई प्रखर लघुकथाकार शामिल हुए।

'मिन्नी कहानी मंच' द्वारा 25वाँ अन्तर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन
कथाकार सुभाष नीरव की ही एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार—‘पंजाबी की त्रैमासिक लघुकथा पत्रिका ‘मिन्नी’ (संपादक : श्याम सुंदर अग्रवाल और डॉ॰ श्याम सुंदर दीप्ति) के संयोजन में 25वां अंतर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन 23 अक्टूबर, 2016 को पिंगलवाड़ा, अमृतसर में सम्पन्न हुआ जिसमें दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब से भारी संख्या में आए लघुकथा लेखक इक्ट्ठा हुए। सत्र सम्मान समारोह और पुस्तक विमोचन के रूप में रहा जिसमें मिन्नी त्रैमासिक का 113वां अंक, पछाण ते पड़चोल (दूसरा भाग-संपादक : दीप्ति, अग्रवाल, नूर व खेमकरनी) आथण वेला (श्याम सुन्दर अग्रवाल का तीसरा लघुकथा संग्रह), कैक्टस ते तितलियां (बलराम अग्रवाल का पंजाबी में लघुकथा संग्रह, अनुवादक: श्याम सुन्दर अग्रवाल), मेरियां प्रतिनिधि मिन्नी कहानियां (श्याम सुन्दर दीप्ति का नया लघुकथा संग्रह) ठीक किहा तुसीं (गुरसेवक सिंह रोड़की का लघुकथा संग्रह), पंजवा थम्म (संपादक: जगदीश राय कुलरियां), गल्पी विधा लघुकथा: सिद्धांत ते विचार (डॉ कुलदीप सिंह दीप), तारा मंडल (अशोक भाटिया का पंजाबी में लघुकथा संग्रह, अनुवादक: जगदीश राय कुलरियां), ‘पथ का चुनाव’ (कांता राय का लघुकथा संग्रह) पुस्तकों का विमोचन हुआ।  इस अवसर पर सीमा जैन और कुलविन्दर कौशल को ‘लघुकथा किरण’ सम्मान, श्रीमती आशा ठाकुर को ‘ललिता अग्रवाल स्मृति सम्मान-2016, डॉ अशोक भाटिया को श्री बलदेव कौशिक स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। ‘जुगुनूओं के अंग-संग’ नामक दूसरे सत्र में हिन्दी और पंजाबी के लगभग पचास से भी ऊपर लेखकों ने अपनी-अपनी लघुकथा का पाठ किया। पठित पंजाबी लघुकथाओं पर डॉ. पवन हरचंदपुरी, डॉ. अनूप सिंह और डॉ. कुलदीप ‘दीप’ तथा हिन्दी लघुकथाओं पर डॉ. अशोक भाटिया व डॉ. बलराम अग्रवाल द्वारा सारगर्भित दो टूक निष्पक्ष टिप्पणियाँ प्रस्तुत की गईं।’

सेतु का प्रकाशन
जून 2016 में अमेरिका से प्रकाशित होने वाली इस पत्रिका में लघुकथा को स्थायी स्तम्भ के रूप में स्थापित किया गया है। दीपक मशाल और अनुराग शर्मा द्वारा सम्पादित 'सेतु' का प्रकाशन आरम्भ होना लघुकथा विधा में नयी आमद है।

विश्व मैत्री मंच
संतोष श्रीवास्तवकी अध्यक्षता में ‘विश्व मैत्री मंच’ ने लघुकथा विधा के संदर्भ में देश-विदेश में अपनी सार्थक चर्चाओं के दौरान कई गोष्ठियाँ आयोजित की हैं। 
भूटान में विश्व मैत्री मंच के द्वारा महिला लघुकथाकारों का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें नेपाल, बिहार तथा भारत के कई प्रदेशों से महिला लघुकथाकारों ने शिरकत की। एक दिवसीय इस सम्मेलन में लघुकथाओं पर विस्तृत चर्चा हुई। विश्व मैत्री मंच के वाट्स एप समूह के द्वारा भी प्रति शनिवार लघुकथा की वर्कशॉप आयोजित की जाती है। जिसमें 210 सदस्यों द्वारा लघुकथाएँ लिखी जाती हैं और उन पर खुलेपन से आलोचनापरक विचार प्रस्तुत किये जाते हैं। विश्व मैत्री मंच समूह में लिखी गई लघुकथाओं का एक संग्रह भी  प्रकाशित हो चुका है। इसका लोकार्पण विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली, 2017 में होगा।

हिन्दी लघुकथा का मनोविज्ञान
3 अक्टूबर 2016  से लघुकथा केन्द्रित अपने हिन्दी ब्लॉग 'लघुकथा-वार्ता' पर बलराम अग्रवाल ने ‘हिन्दी लघुकथा का मनोविज्ञान’ शीर्षक के अन्तर्गत ‘हिन्दी लघुकथा : परम्परा और विकास'शीर्षक पहले अध्याय की शृंखलाबद्ध प्रस्तुति प्रारम्भ की। इस शृंखला में  लघुकथा विकास पर पैनी दृष्टि अवलोकित हुई है। अपने एक अन्य ब्लॉग के माध्यम से उन्होंने सन् 1971 ई. से 2016 ई. तक प्रकाशित लघुकथा संग्रहों व लघुकथा संकलनों की सूची,  लघुकथा गोष्ठियों व सम्मेलनों सहित अन्य गतिविधियों पर व्यापक रूप से समग्र जानकारी उपलब्ध करवायी है जो अपने आप में भागीरथी प्रयास है। अंतर्जाल पर लघुकथा पर पूर्णत: केन्द्रित एकमात्र वेब पत्रिका ‘लघुकथा डॉट काम’ ने इस साल अध्ययन कक्ष में सतीशराज पुष्करणा, कमल चोपड़ा, बलराम अग्रवाल इत्यादि लघुकथाकारों के महत्वपूर्ण आलेखों का प्रकाशन किया है।
इस लेख में मैंने नवम्बर 2016 के अन्तिम पखवाड़े तक सम्पन्न लघुकथा से जुड़ी अधिकतम सूचनाओं को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।
कान्ता रॉय, मकान नम्बर-21, सेक्टर-सी, सुभाष कॉलोनी, नियर हाई टेंशन लाईन, गोविंदपुरा, भोपाल-462023   फोन- 9575465147ई ई-मेल- roy.kanta69@gmail.com





4 comments:

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

एक सारगर्भित लेख जिसमे लघुकथा से सम्बंधित सभी समाचारों को संग्रहित किया गया है ।कांता जी आपका लेख संग्रहणीय है 2016 में लघुकथा विधा ने एक नए आयाम को प्राप्त किया है । 2017 में लघुकथा विधा में नए प्रयोग हो नए रचनाकार सामने आये उसके लिये शुभकामनाये

मधु जैन said...

वर्ष2016का लधुकथा विधा पर बढिया लेखा जोखा प्रस्तुत किया आदरणीय कांता राय जी ने।बहुत बहुत बधाइयाँ

ashokdard said...

khoobsoort aalekh ke liye hardik badhai

Kapil shastri said...

तमाम लघुकथा साहित्यिक गतिविधियों की सुन्दर समीक्षा।