पत्रिका:सरस्वती सुमन(लघुकथा विशेषांक, सितम्बर 2011), संपादक:कुँवर विक्रमादित्य सिंह, अतिथि संपादक:कृष्ण कुमार यादव, पत्राचार कार्यालय : ‘सारस्वतम्’, 1-छिब्बर मार्ग(आर्यनगर), देहरादून-248001(उत्तराखंड) अंक पर मूल्य अंकित नहीं है।
‘सरस्वती सुमन’ के प्रस्तुत लघुकथा विशेषांक में ‘अतिथि संपादक की कलम से…’ लिखा गया है कि—‘इस अंक हेतु कुल 482 लोगों ने लघुकथाएँ/लेख भिजवाए, पर सभी को शामिल करना हमारे लिए संभव भी न था। इस स्नेह और विश्वास के लिए उन सभी का आभार अवश्य व्यक्त करना चाहूँगा। फिलहाल, 126 लघुकथाओं और 10 सारगर्भित लेखों को समेटे इस अंक में स्थापित एवं नवोदित लघुकथाकारों दोनों को समान रूप से स्थान दिया गया है, आखिर आज के ‘नवोदित’ ही तो कल के ‘स्थापित’ होंगे।’
तथ्य यह है कि अंक में 126 लघुकथाएँ नहीं, लघुकथाकार(न कि लघु-कथाकार) सम्मिलित हैं और लघुकथाओं की कुल संख्या है—276। जब संपादकीय के प्रूफ का यह हाल है तो अंदर की सामग्री के प्रूफ का हाल बताने की आवश्यकता नहीं रह जाती है।
रचनाकारों को उनके नामों के अनुरूप अकारादि क्रम में स्थान दिया गया है। रचना की स्तरीयता और रचनाकार की वरिष्टता—दोनों के दम्भ से बचने का संपादक के पास यह सरलतम अस्त्र है।
रचनाओं और रचनाकारों की गणनात्मक प्रस्तुति के कारण ही नहीं बृहद आकार और ध्यानाकर्षक वज़न के कारण भी इस अंक को ‘लघुकथा महाविशेषांक’ की संज्ञा दी जा सकती है।
विशेषांक के आवरण पर कलासिद्ध संदीप राशिनकर की कृति का उपयोग किया है। क्या ही अच्छा होता कि उनसे ‘पर्यावरण’ की बजाय ‘लघुकथा’ की थीम पर ही चित्र बनवाया जाता।