Tuesday, 14 November 2017

पंजाबी कथाकार गुरदीप सिंह पुरी की लघुकथाएँ

सारे जहां से अच्छा
इस बार पंचकुला में आयोजित 26 वें अन्तरराज्यीय लघुकथा सम्मेलन में डॉ॰ श्याम सुन्दर दीप्ति की ओर से जो सामग्री बाँटी गयी उनमें गुरदीप सिंह पुरी के पंजाबी लघुकथा संग्रह ‘सारे जहां से अच्छा’ (1998) का हिन्दी रूपान्तर भी शामिल था। इसका रूपान्तर किया है श्री के॰ एल॰ गर्ग ने और भूमिका प्रि॰ दलीप सिंह भूपाल व डॉ॰ श्याम सुन्दर दीप्ति ने लिखी है। यहाँ पेश हैं उस संग्रह से तीन लघुकथाएँ :

पहली बार रोये
एक मुहल्ले के लोगों को अपने मुहल्ले में गुरुद्वारा बनाने का चाव चढ़ा।
उन्होंने घर-घर जाकर धन इकट्ठा किया और एक निहायत खूबसूरत गुरुद्वारे का निर्माण कर लिया। नाम रखा—श्री कलगीधर गुरुद्वारा।
पहला साल अच्छा व्यतीत हुआ।
अगले वर्ष गुरुद्वारा कमेटी चुनाव में मुहल्ले के दो धड़े बन गये।
अलग हुए धड़े ने अपना नया गुरुद्वारा खड़ा कर लिया। सोच-सोच कर नाम रखा—गुरुद्वारा श्री गुरु तेग बहादुर जी।
अब हर कार्यक्रम के वक्त इस गुरुद्वारे की कमेटी गुरु-घर के बाहर खड़ी होकर ‘कलगीधर गुरुद्वारे’ जाने वाली संगत को रोककर रोष से कहती है :
 “तुम्हें शर्म आनी चाहिए। बाप का घर छोड़कर पुत्तर के दर पे जाते हो! घोर बेअदबी!”
पिता-पुत्र अपने सिक्खों पर पहली बार धाहें मार-मार कर रोए।

बोझा
“यार, जब से यह नयी कमेटी आयी है न, ससुरों ने गुरु-घर में सुधार-लहर ही चला दी है!” गुरु-घर के ग्रंथी सिंह ने बड़े दु:खी स्वर में कहा।
“वह कैसे?” दूसरे गुरु-घर के ग्रंथी ने गुरु-भाई से हैरानी से पूछा।
“देखो न—नयी गुल्लक धर दी है! इसमें न चिमटी पड़ती है और न ही गोंद वाला डक्का। अब ये छोटी-छोटी हरकतों पे उतर आये हैं। रात के अखंड-पाठ की माया भी गुल्लक में डाल देते हैं।”
“हूवर (वेक्यूम मशीन) चला लिया कर न! ऐसे मन क्यों मैला करता है।”
सुनते ही पहले ग्रंथी के सिर से मनों बोझा उतर गया।

बूढ़ी भिखारन
“बेटा, सुबह का कुछ नहीं खाया। भगवान के नाम पर रोटी दे दे! भगवान तुझे लम्बी उम्र दे। तेरी कुल ऊँची हो। तेरा आँगन खुशियों से भर जाये।” बूढ़ी भिखारन ने दफ्तर के लॉन में बैठे बाबू को रोटी वाला डिब्बा खोलते देख मिन्नत-सी की।
बाबू ने डिब्बा खोला तो उसमें पहले की तरह तीन रोटियाँ ही थीं, जिनसे बाबू का ही पेट मुश्किल से भरता था।
उसने दो रोटियों पर थोड़ी-सी सब्जी रखकर बुढ़िया की तरफ बढ़ा दी।
बूढ़ी के थिरकते होठों से बस यही निकला :
“बेटा, रोटियाँ तो तीन ही हैं! आप खा लो। मेरा क्या है, मैं कहीं और से माँग लूँगी। कहीं आप भूखे रह गये तो… ”
बुढ़िया लाठी टेकते आगे सरक गयी। बाबू कितनी ही देर अपने आँसू ठेलने की कोशिश करता रहा।


गुरदीप सिंह पुरी  की अन्य कृतियाँ :
कहानी संग्रह
1 उदासे फुल बहारां दे (1981)
2 ख्वाहिश (1990)
3 इक रात दा कत्ल (1990)
मिन्नी कहानी संकलन का संपादन
गुआचे दिनां दी भाल (1992)
मुलाकातें
बिन तुसां असी सखने (1985)
काव्य संग्रह
सखने हथ (1994)
निवास  का पता : 73-मैडक्नि स्ट्रीट, 3-एल, व्हाइट इंच, ग्लासगो जी-149 आर॰ टी॰ (यू॰ के॰)

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