• प्रथम पुरस्कार अर्चना राय - मदर... टू प्वाइंट ओ
• द्वितीय पुरस्कार - सविता मिश्रा 'अक्षजा' - सौतन
• तृतीय पुरस्कार अब्दुल समद राही - चंदा
ऋता शेखर 'मधु' - उजली किरण
□ प्रोत्साहन पुरस्कार -
• अंजना बाजपेई - लाइक्स एंड कमेंट
• सुरेश बरनवाल - एहसान
• पुष्पा कुमारी 'पुष्प' - सुझाव
• मधु जैन - संतप्त मन
• राम करन - मेड़
→ पुरस्कार राशि-
* प्रथम पुरस्कार ₹2000/-
• द्वितीय पुरस्कार ₹1000/-
• तृतीय पुरस्कार ₹700/-
• प्रोत्साहन पुरस्कार - ₹500/-
संयोजक -- डॉ. ऋचा शर्मा,
प्रो. एवं अध्यक्ष - हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर (महाराष्ट्र)
संयोजक - लघुकथा शोध केंद्र, अहमदनगर, महाराष्ट्र।
मो.-9370288414
प्रस्तुत हैं लघुकथाएं
• मदर...टू प्वाइंट ओ / अर्चना राय
सप्ताह में कम- से-कम चार बार फोन करने वाली माँ का काफी दिनों से फोन नहीं आने पर हाल-चाल जानने आखिरकार विदेश में बसे बेटे ने माँ को फोन लगा ही लिया।"हैलो माँ।"
"हाँ, बेटा।" माँ की आवाज में एक खनक थी। सुनकर उसे झटका-सा लगा। पहले जब भी माँ से बात करता उनकी आवाज में दु:ख और उदासी साफ महसूस होती थी।
"आपकी तबियत तो ठीक है न?"
"मैं तो बहुत अच्छी हूँ। तू कैसा है? " सुनकर उसे दोबारा झटका लगा। पहले तो उसके पूछने से पहले ही अपनी शिकायतों का पिटारा खोल कर बैठ जातीं थीं। जो फोन रखने तक खत्म ही नहीं होता था।आज उसका हालचाल पूछ रहीं थीं।
"क्या बात है माँ, आजकल आप फोन ही नहीं करती?"
"अरे क्या बताऊँ ये 'दीनू' है न! ये मुझे एक मिनट भी फुर्सत रहने दे, तभी न करूँ। कभी माॅं, नाश्ते का समय हो गया... माँ, सोने का समय हो गया... माँ, वाॅक पर जाना है.... तो कभी दवा लेकर खिलाने मेरे आगे-पीछे घूमता रहता है।"
"माँ, ये द...दीनू कौन है?"
"अरे! वही तेरा भेजा रोबोट... मैंने उसका नाम दीनू रखा है। अच्छा है न? तेरे बचपन का नाम रखा है।"
"हूँ।"
"बेटा तूने इस रोबोट का चेहरा और आवाज अपनी तरह बनाकर बहुत ही अच्छा किया है। कभी-कभी तो मैं भूल ही जाती हूँ कि ये तू नहीं बल्कि एक रोबोट है।"
"अच्छा माँ! मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"
"हाँ, बोल।"
"आपको तो पता है कि राधिका की डिलेवरी डेट आने वाली है। तो मैं चाहता हूँ आप यहाँ आ जाओ।"
"बेटा, मेरा आना तो संभव नहीं है।"
"क्यों? आप तो कब से यहाँ आना चाहतीं थी। और अब आप मना कर रही हैं?"
"हाँ! मैं आना चाहती थी। क्योंकि मैं अकेली थी, और बेटे के साथ रहना चाहती थी। पर अब नहीं, क्योंकि अब दीनू मेरा बेटा मेरे पास है। उसके साथ मैं बहुत खुश हूँ।"
"माँ! ... आप ये क्या बोल रहीं हैं?"
"बेटा मैं तो नहीं आ सकती हूँ, पर तेरे लिए एक सलाह जरूर देती हूँ। "
"क्या?"
"जिस तरह तूने अपने जैसा हू-ब-हू दिखने वाला रोबोट बनाया है। वैसे ही अपनी माँ की तरह दिखने वाला रोबोट बना ले। जो माँ वाली जरूरत पूरी कर दे....अच्छा! मैं फोन रखती हूँ। मेरी वाॅक का टाइम हो गया है। मेरा बेटा दीनू मुझे बुला रहा है।"
कहकर उन्होंने फोन काट दिया। -0-
• सौतन / सविता मिश्रा ‘अक्षजा’
“ये क्या, फिर गीली तौलिया बिस्तर पर?”
“कितनी बार कहा है, मेरा काम मत बढ़ाया करो। कॉलेज को लेट हो जाती हूँ। केमिस्ट्री की टीचर हूँ, प्रिंसिपल नहीं कि दिन-प्रतिदिन देर से जाऊँ।”
पति अपने कान का प्रयोग भलीभाँति इसी समय तो करता था।
जब उधर से कोई उत्तर नहीं आया तो पत्नी धड़धड़ाती हुई ड्राइंगरूम में उसके पास पहुँच गयी, “यह क्या, तुम निक्कर में बैठे हो?”
“अरे यार, घर में ही तो हूँ।” मोबाइल में आँखें गड़ाए हुए ही बोला।
“तो क्या हुआ, कपड़े पहनकर घर में नहीं रहा जा सकता क्या?”
“दिखावा बाहर वालों के लिए होता है, घर में थोड़ी।”
प्रतिदिन ही घर का ऐसा ही वातावरण होता था। तथापि ऑफिस जाना, फिर लौटकर आना और महराजिन द्वारा बनाया भोजन ग्रहण कर बिस्तर पर अपने-अपने साइड पर मोबाइल लेकर चिपक जाना।
“मोबाइल में ही लगे रहोगे?” बिस्तर पर लेटते हुए आज फिर पत्नी ने कहा था।
“हाँ, बताओ? कुछ बात है...? ...वैसे आज तुम कोई चुटीली पोस्ट नहीं लिख रही हो क्या?”
पत्नी ने मोबाइल उठाया परन्तु तत्क्षण रखकर बोली, “सुनो...!”
“सोशल मीडिया पर हर जगह अपडेट कर रहा हूँ, तुम बताओ, मेरे कान खुले हैं। ...अच्छा, आओ आज, मुस्कराते हुए तुम्हारे साथ ली सेल्फी डालूँ मैं।”
सेल्फी लेने के बाद पति के मोबाइल में आँख गड़ाये पत्नी बोली, “इस तरह से कब गले लगकर या फिर हाथ पकड़कर साथ में बैठे थे हम दोनों?”
अकेलेपन की पीड़ा को अनसुनी करके पति ने कहा, “अरे पगली, दिखावा बाहर वालों के लिए होना चाहिए, आपस में दिखावे की क्या आवश्यकता...”
बोलते हुए स्माइली और लॉफिंग-लविंग का स्टीकर डालता रहा, लोगों के कमेंट्स और पोस्टों पर।
“मोबाइल न हुआ सौतन हो गया।” पत्नी भुनभुनाई। उसे अनसुना करके सभी साइट पर अपडेट होते ही मोबाइल अपने सीने के पास रख पति ऊँघने लगा। तत्क्षण ही पलँग का दाहिना साइड खर्राटों से गुंजायमान हो उठा और बायाँ साइड सिसकियों से। -0-
• चंदा / अब्दुल समद राही
‘‘आप तो कभी किसी को कुछ भी नहीं देते, फिर यहाँ खुलकर.......।" बन्टू ने फिर कहा।
पापा ने कहा, ‘‘अरे बेटा यह वृद्धाश्रम बन रहा है, यहाँ सभी वृद्ध लोग रहेंगे। खूब भक्ति कर अपनी दिनचर्या व्यक्त करेंगें।"
‘‘बिल्डिंग पूरी होते ही तेरी दादी को भी तो यहीं आना है।‘‘ पापा ने फिर कहा।
‘‘ठीक है पापा, आपके चन्दे से यह बिल्डिंग तो बन जाएगी। मुझे इसको बनाने में चन्दा नहीं देना पड़ेगा।" बन्टू ने आँखे मटकाते हुए कहा।
पापा उस मासूम का मुँह देखते रह गये।-0-
• उजली किरण / ऋता शेखर मधु
अपार्टमेंट में वह एक महीना पहले आयी थी। आज रविवार को मॉर्निंग वॉक में साथ हो ली।
टहलते हुए मैंने सिर्फ यह पूछा, "तुम्हारी ससुराल कहाँ है ?"
"आंटी, मेरी ससुराल इसी शहर में है। पूरे आठ लोगों का परिवार है। वहाँ सब लोग सुबह 5 बजे से उठकर घर के काम में लग जाते हैं। सुबह-सुबह उठना मुझको पसन्द नहीं था। वैसे उठकर मुझे कोई काम नहीं करना होता था। सब-कुछ सासू माँ ही संभालती थीं। सुबह की चाय भी वही बनातीं। मैं ससुर, पति और देवर को चाय पहुँचा देती। मुझे शाम की आठ कप चाय बनानी होती थी। बाकी कुक, मेड सभी को सास ही मैनेज करती थीं।"
बीच में वह साँस लेने के लिए रुकी तो मैंने दूसरा सवाल कर दिया, "और यहाँ अकेला परिवार कैसा लग रहा?"
वह फिर से शुरू हो गयी--
"इस अपार्टमेंट में आने से पहले ही मैंने कुक और मेड को ठीक कर लिया था। हम दोनों को सुबह 9 बजे से ही कम्पनी का काम करना होता है। यहाँ सो नहीं पाती क्योंकि सुबह से ही मेड और कुक को देखना होता है। सुबह-सुबह डस्टबिन बाहर करना होता है। काम के चक्कर में पति को तो चाय दे देती हूँ किन्तु मैं खुद नहीं पी पाती। मेड के पीछे लगकर काम करवाना, कुक को सारा सामान जुटाकर देने में मेरा सब समय ही निकल जाता है। अब मैंने सबको हटा दिया है और खुद ही काम करती हूँ। आराम से रहना और सोना...यह सपना बनकर रह गया। ससुराल में थी तो कई पेंटिग्स भी बनाई, यहाँ महीने भर में एक भी नहीं!" कहती हुई वह ठहाका मारकर हँस पड़ी।
"तो आगे क्या सोचा तुमने, ससुराल वापस जाना है ?" बस टोह लेने के लिए पूछा।
"दुविधा में हूँ। यहाँ कोई टोकने वाला नहीं फिर भी बंधन है। उधर थोड़ा बंधन है किंतु आज़ादी भी है।"
उसकी बात सुनकर मुझे सचमुच उस पर दया आ गयी। इन गुमराह बच्चों को सही मार्गदर्शन की आवश्यकता थी।
"तुमने पतंग को उड़ते देखा है न। जब तक वह धागे से बंधी रहती है, निर्बाध ऊँचाई पाती है। धागे से आज़ाद पतंग को कभी उड़ते देखा है तुमने ?" मैंने बस कोशिश की कि उसे समझा सकूँ।
वह अचानक मेरे गले लग गयी।
"कभी किसी ने इतने अच्छे से समझाया नहीं आंटी। मैं अभी जाकर सासू माँ को फोन करती हूँ।"
तब तक सुबह की पहली किरण फूट चुकी थी और उस किरण से उसका चेहरा प्रदीप्त हो गया था।-0-
• लाइक्स एंड कमेंट / अंजना बाजपेई
छोटे शहर से महानगर में बस चुका होनहार बेटा अक्सर तरक्की और उपलब्धियों की खबरों से फेसबुक और सोशल मीडिया पर चर्चा में रहा करता ।शिकायत दूर करने के लिए पिताजी को एक महंगा वाला फोन मिला था जिससे वो भी अक्सर फेसबुक पर बेटे की फोटो और सफलता की सूचना देख कर खुश हो जाया करते । मां-बाप अपना सारा प्यार और आशीर्वाद लाइक और कमेंट के रूप में उंड़ेल दिया करते ।
सफलता और व्यस्तता के बीच बातचीत का समय नहीं था इसलिए ऑफिस, बिजनेस और परिवार के लिए अलग-अलग फोन और व्हाट्सएप नंबर थे जिससे एक-दूसरे में डिस्टरबेंस ना हो ।
इस वर्ष यंग अचीवर अवार्ड कार्यक्रम में भाग लेने के लिए बेटा दस दिन की विदेश यात्रा से वापस आने से पहले अपनी अवार्ड वाली फोटो व न्यूज़ फेसबुक और इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर चुका था। पर उसे हैरानी तब हुई जब इंडिया पहुंचने तक भी पिताजी का कोई कमेंट नहीं आया।
अब यूं ही उसने घर वाला व्हाट्सएप नंबर खोला तो हाथ कांप गए। पाँच दिन पहले मां की मृत्यु की सूचना और दूसरे दिन मां की फोटो पर माला चढ़ी दिखाई दी। लिखा था--तुम्हारे सारे नंबर बंद है इसलिए मैसेज किया ।
कांपते हाथों से सबको सूचना देने के लिए उसने वहीं पर मां की यही फोटो पोस्ट कर दी । आज हजारों फेसबुक फ्रेंड्स के संदेश आए, पर सबसे पहले लाइक और कमेंट वाली जगह खाली पड़ी थी । -0-
• एहसान / सुरेश बरनवाल
भीख मांगकर और कचरे में से रोटियां बीनकर लाने के बाद वह जब अपने मोहल्ले में पहुंचती तो अपनी झुग्गी के सामने वाले नाले में मुंह मारते कुत्ते को दो रोटी डाल देती थी। कुत्ता पूंछ हिलाने लगता था।शहर में अमीर बहुत थे और वे कचरे में रोटियां फेंक ही दिया करते थे। भीख कम मिलने पर भी उसके परिवार को यूं भूखा नहीं सोना पड़ता था।
पर एक दिन उसे न भीख मिली न कचरे में रोटियां। उसके पहले दिन भी मिली रोटियां उसके परिवार के लिए पूरी नहीं पड़ी थीं। दोपहर चढ़े जब वह झुग्गी पहुंची तो खाली हाथ थी। कुत्ता उसे देख पूंछ हिलाता रह गया। वह अपने दोनों छोटे बच्चों को बहलाती झुग्गी के कच्चे फर्श पर लेट गई। छोटे वाला उसके पेट पर लेट कर उसका मुंह तकने लगा था। उसने उसे थपकी देकर सुलाना चाहा पर बच्चा भी भूखा था सो जागता रहा। कुछ देर बाद झुग्गी के फूस के दरवाजे पर किसी की आहट हुई।
उसने देखा कुत्ता भीतर आ रहा है।
आज कुत्ते के मुंह में कुछ रोटियां थीं।
• सुझाव / पुष्पा कुमारी 'पुष्प'
“मामला क्या है?”
न्याय की कुर्सी पर बैठे जज साहब ने सामने कटघरे में खड़ी लगभग 80 वर्ष की वृद्ध महिला के वकील से सवाल किया लेकिन अदालत के नियमों से अनभिज्ञ वह वृद्ध महिला बीच में ही बोल पड़ी...
“जज साहब, मेरा एक बेटा है और एक बेटी है लेकिन दोनों में से कोई मुझे अपने साथ रखकर मेरी सेवा करने को तैयार नहीं हैं !”
“आप क्या चाहती हैं?”
“मैं उन दोनों को अपनी संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं देना चाहती।”
“फिलहाल आप रहती किसके साथ है॔?”
“जी, मैं अपने खुद के मकान में रहती हूंँ!”
“और आपके बच्चे कहां रहते हैं?”
“साहब मेरे दोनों बच्चें विदेश में जॉब करते हैं और वहीं रहते हैं। वहां उनका अपना परिवार है उनके भी बच्चे हैं।”
“फिर उन्हें आपकी संपत्ति क्यों चाहिए?”
“वे कहते हैं कि उन दोनों का अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा है।”
“आपके पति कहां है?”
“जी 2 वर्ष हुए, गुजर गए!”
“आप अकेले रहती हैं?”
“हां जज साहब, मैं अकेली ही रहती हूंँ!”
“आपका ध्यान कौन रखता है?” उस बुजुर्ग महिला की उम्र देखते हुए जज साहब ने सवाल किया।n⁷
“मेरा एक नौकर है गोपाल! मैं उसी पर आश्रित हूंँ; वही मेरा ध्यान रखता है।”
“कहां रहता है गोपाल?”
“बचपन से हमारे साथ ही रहा है; हमारे घर में!”
“उसका अपना कोई घर नहीं है?”
“नहीं जज साहब, अनाथ है बेचारा! हमेशा से हमारे ऊपर ही आश्रित रहा है।”
“लेकिन अभी-अभी तो आपने कहा कि आप गोपाल पर आश्रित है! और अब आप कह रही हैं कि गोपाल आपके ऊपर आश्रित है! आखिर कौन किसके ऊपर आश्रित है इस बात को आप जरा स्पष्ट कीजिए।”
“हम दोनों एक दूसरे पर आश्रित हैं जज साहब!”
“तो फिर आप दोनों एक-दूसरे का सहारा क्यों नहीं बन जाते?”
“मैं कुछ समझी नहीं?”
“आप अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा गोपाल को दे दीजिए। इससे वह आपसे अपनी सेवा का फल पाकर उत्साह और पूरे मन से जीवन भर आपकी सेवा करेगा! बाकी आपके मरने के बाद तो आपकी संपत्ति आपके नालायक बच्चों को ही मिलनी है!”
जज साहब की बात सुनकर वह वृद्ध महिला सोच में पड़ गई। यह देखकर जज साहब मुस्कुराए...
“आप चिंता मत कीजिए! यह मेरा फैसला नहीं बल्कि एक सुझाव था!”-0-
• संतप्त मन / मधु जैन
"क्या सोच रही हो शांता? जरा जल्दी-जल्दी हाथ चला, देख कितना काम पड़ा है।"शांता को चुप देख एक बार फिर कमला मज़ाक में बोली "लगता है तू भी अपने मुन्ने का बर्थडे मेमसाब के बेटे जैसा मनाने की तो नहीं सोच रही।"
शांता की आँखों में पानी भर आया और वह बोली "क्या जीजी ? जन्मदिन तो बहुत दूर की बात, मैं तो उसे पेट पर खिला भी नहीं पा रही हूँ। आज भी उसे भूखा छोड़ कर आई हूँ।"
"क्या हुआ ? कल तू गुप्ता मेमसाब से एडवांस तो लेकर आई थी।"
"हाँ लाई तो थी किंतु वह बनिया खोली का किराया ले गया।"
"ओह, तेरे पास राशन कार्ड भी नहीं है।"
उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कमला ने कहा "एक काम कर, मेमसाब ने हमें खाना तो दे ही दिया है तू यह ले जा और मुन्ने को खिला दे।"
"लेकिन जीजी इतना सारा काम..."
"अरे! तू जा, मैं सब देख लूंगी।"
शांता ने आकाश की ओर उड़ते पंक्षियों को देखा, "काश मेरे भी पंख होते।" और लंबे-लंबे डग भरते हुए घर की ओर चल पड़ी। घर पहुँचते ही मुन्ने को कागज चबाते हुए देख क्रोध और बेबसी से उसकी आँखे भर आयीं। मुन्ने को डांटते हुए मुँह से कागज निकालने लगी। मुन्ना ने रोते हुए कहा "माँ इस कागज में रोटी बनी थी।" -0-
• मेड़ / राम करन
मेड़ पर बैठे बच्चालाल अपने धान के खेत देख रहे थे -'बादलों के धोखा देने पर भी फसल लहलहा उठी। अपने बोरिंग और पम्पिंग सेट की मेहरबानी..... खेत कितना अच्छा लगता है ।'
बगल के खेत में पड़ोसी के धान भी थे। पर पानी न मिलने से लगता था कि इस बार फसल खराब हो जायेगी।
'अच्छी बात है,'
बच्चालाल सोचने लगे,
'और आए लड़ने....अब पता चलेगा .....जब खाने को नहीं रहेगा तो फिर लड़ना भूल जाएगा ....जब देखो कूद कर चला आता है .....भला बच्चों के झगड़े पर भी लड़ा जाता है?'
"बेवकूफ,"
बच्चालाल के मुँह से अनायास ही निकल गया.....
'फिर भी है तो पड़ोसी ही। अगर एक बार पानी पा जाता तो खेत लहलहा उठता ....।'
'एक बार कहता तो क्या चला नही देता ....बड़ा स्वाभिमानी बनता है ...
अबकी बार स्वाभिमान की मिट्टी न पलीद हुई तो ........बच्चे भूख से बिलखेंगे तब आयेगा औकात पर।'
बच्चा लाल को अपने बचपन के दिन याद आ गए ....झगड़ों की पुरानी परंपरा है उनके यहां। बहुत बार झगड़ा और मेल - मिलाप हुआ है ....
ऐसे भी दिन थे जब बच्चा के दादा पड़ोसी के दादा से चावल मांगने गए थे ......।'
बच्चालाल को अभी भी याद है ....दादा कह रहे थे बाल - बच्चों की बात है वरना कभी किसी के सामने हाथ नही फैलाता।
'अब उसके बच्चे भी.....'
धान की बाली को हाथ में लेकर कुछ देर वो यूं ही बैठे रहे। देर तक उसे देखते रहे...
फिर अचानक उठ कर पंपिंग सेट चालू कर मेड़ तोड़ दिए। पड़ोसी के खेत में पानी छलछला कर जाने लगा। धान के पौधे पानी पाकर सीधे होने लगे।-0-
लघुकथाओं को पढ़ने का अवसर देने के लिए आभार सर।
ReplyDeleteइन लघुकथाओं को पढ़ने की इच्छा थी,अब इन्हें पढ़ा जा सकेगा, धन्यवाद।
ReplyDeleteउत्तम निर्णय। सभी लघुकथाएँ मानवीय सरोकारों से सम्पृक्त हैं। निर्णायकों एवं विजेताओं को हार्दिक बधाइयाँ.
ReplyDelete👌👍💐💐💐💐💐💐💐
सभी लघुकथाएं बहुत उत्कृष्ट हैं। निर्णायक मंडल ने लघुकथाओं का चयन जिस क्रम से किया है वह भी प्रशंसनीय है। निर्णायकों को साधुवाद और चयनित लघुकथाकारों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसादर
डॉ दिनेश पाठक शशि मथुरा
9870631805
सुंदर आयोजन! प्रभावित करती लघुकथाएँ
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर। मैंने भी इसमें प्रतिभाग किया था। लघुकथा सीधे ही लिखकर शामिल कर दी थी।क्या वह मुझे पढ़ने को मिल पाएगी ताकि इसमें रह गई कमी को दूर कर सकूं।
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी सारी लघुकथाएं! सभी को हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteसारी लघुकथाएँ बहुत अच्छी हैं।
ReplyDeleteलघुकथाएं पढ़ गई।अच्छी लगीं।लघुकथाकारों को बधाई। ऋचा जी को आयोजन की बधाई।
ReplyDeleteसभी लघुकथाएं बहुत ही उम्दा हैं। हार्दिक बधाई
ReplyDelete