आधुनिकता के बोध और अपने समय की युग चेतना से युक्त माना और कहा है बलराम अग्रवाल ने लघुकथा को । यह बहुत आसान विधा भी नहीं , जैसे कि इसके लघु आकार को देख कर नये लेखक उछल पड़ते हैं । इसमें सकारात्मक मानवीय दृष्टि होना भी बहुत जरूरी है । इस संकलन में 115 लघुकथाएं संकलित हैं जो ज़िंदगी की बुनियादी सच्चाइयों से टकराती हैं । हमारा सामना करवाती हैं । यह भूमिका में कहा बलराम अग्रवाल ने ।
भगीरथ परिहार का चयन का आधार कि जब जब कोई लघुकथा पसंद आई वे इसे अलग से रखते गये और इस पसंद में मेरी लघुकथा किसान भी शामिल । मेरे लिए खुशी की बात । पर इतने दिन इस संग्रह को मिले हो गये । मैं सुबह सवेरे उठकर इनको पढ़ता और आनंद के साथ साथ लघुकथा की यात्रा को जानता रहा । बहुत अलग लघुकथाएं हैं । कुछ लघुकथाएं अपनी धर्मपत्नी को जगा जगा कर सुनाईं और वह जल्दी जगाने से नाराजगी भूल गयी । सचमुच हेमंत राणा की दो टिकट एक अलग तरह की प्रेम कथा है । अरूण कुमार की स्कूल हमारी आधुनिक शिक्षा पर चोट करती है । अंजना अनिल हो या अंतरा करवड़े , अपराजिता अनामिका, अर्चना तिवारी, चंद्रेश कुमार छतलानी, चित्रा मुद्गल, चित्रा राणा राघव , चैतन्य त्रिवेदी, सुरेंद्र मंथन , सुकेश साहनी , बलराम अग्रवाल कितने नये पुराने रचनाकारों ने अलग से कहा और अपनी बात पाठक तक पहुंचाने में सफल रहे । बहुत सार्थक लघुकथा संग्रह । साबित कर दिया कि लघुकथा आकाश क्यों छू रही है ।
बहुत बहुत बधाई भगीरथ और बलराम अग्रवाल ।
शानदार संपादन के लिए बधाई
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