Wednesday, 30 September 2020

समीक्षा की कसौटियाँ और लघुकथा-2/डॉ॰ अनिता राकेश

 दिनांक 29-9-2020 से आगे

 समीक्षा की कसौटियाँ और लघुकथा

 दूसरी किस्त 


चिन्तन के बढ़ते सोपानों में एक महत्त्वपूर्ण सोपान लाँजाइनस का भी है। लघुकथा-समीक्षा की दृष्टि से इनकादात्तवाद सम्बन्धी सिद्धान्त एवं चिन्तन भी महत्त्वपूर्ण है। उदात्तता के सन्दर्भ में वे जिस परमानन्द (Ecstasy) पर बल देते हैं वही तो भारतीय काव्यशास्त्रा का आनंद तत्त्व एवं ब्रह्मानन्द सहोदर ‘रस’ है। भाषिक अस्त-व्यस्तता एवं अपरिपक्वता को वे बाधक तत्त्व मानते हैं जो सत्य भी है। वैसे तो सभी रचनाओं में प्रबल भाव एवं संवेग की ही अभिव्यक्ति होती है किन्तु लघुकथा के सन्दर्भ में लाँजाइनस के विचार पूर्णतः सटीक हैं। उनके अनुसार वह रचना जिसमें प्रबल भावों एवं संवेगों से समन्वित उच्च विचारों की सशक्त अभिव्यक्ति के साथ-साथ आवश्यकतानुरूप कल्पना एवं अलंकार प्रयुक्त हों परमानन्द की ओर ले जाती है। दूसरे शब्दों में दाँते, ड्राइडन आदि ने भी अपने-अपने ढंग से उत्कृष्ट कथ्य, भाषा, शैली में कलात्मक आकर्षण आदि को ही उच्च कोटि के साहित्य की कसौटी माना है।

समीक्षा के सन्दर्भ में मतों की विविधता के मुख्य कारण हैं समीक्षकों की निजी प्रवृत्तियाँ एवं संस्कार। इस दृष्टि से मुख्यतः दो प्रकार के समीक्षकों की चर्चा होती हैएक जन्मजात प्रतिभासम्पन्न और दूसरे अभ्यासजन्य। टी.एस. इलियट ने भी अपनी पुस्तक ‘द सैक्रेड वुड’ में समीक्षा सम्बन्धी विचारों के क्रम में दो प्रकार के समीक्षकों की चर्चा की हैएक प्रभाववादी (Impressionist) और दूसरा बौक (Intellectual)। यद्यपि दोनों प्रकार के समीक्षकों के समूह इलियट-काल में क्रियाशील थे, तथापि उन्होंने एक की अति भाव-प्रवणता पर तो दूसरे की अति बौ(कता पर प्रहार किया। लघुकथा की दृष्टि से इलियट के विचार भी महत्त्वपूर्ण परिलक्षित होते हैंµ

  •          आलोच्य कृति का पक्ष-विपक्ष, गुण-दोष महत्त्वपूर्ण नहीं।
  •          कृति का तथ्यगत विश्लेषण महत्त्वपूर्ण है।
  •          कालजयी एवं श्रेष्ठ रचनाओं से तुलना।
  •          सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों दृष्टियों से विश्लेषण से।
  •          अतीत वर्तमान में जीवित ही नहीं गतिमान भी रहता है।

निष्कर्षतः एलियट के अनुसार परम्परा रूढ़ि नहीं, निरन्तर गतिमान सृजनशीलता है। अतः, रचनाकार एवं समीक्षक दोनों को अतीत की चेतना का अर्जन कर उसे निरन्तर आजीवन विकसित करते रहना चाहिए। यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि जब एलियट कविता के सन्दर्भ में समीक्षा-प्रवृत्ति का विवेचन करते हुए यह कहते हैं कि ‘क्या कविता अच्छी है! यदि है तो क्यों?’ अरस्तू भी उक्त सन्दर्भ में कविता की श्रेष्ठता का कारण ढूँढने की बात करते हैं तो लघुकथा के सन्दर्भ में भी विश्लेषण की यह दृष्टि महत्त्वपूर्ण हो जाती है। लघुकथा अच्छी है या नहीं? यदि है तो क्यों एवं नहीं है तो क्यों? इन कारणों एवं तथ्यों की पड़ताल लघुकथा में भी होनी चाहिए।

दूसरी तरफ जब रेनेवेले के विचारों पर दृष्टि जाती है तो वहाँ भी बौद्धिक विवेचन-विश्लेषण का ही महत्त्व दिखता है। उनका समग्रता या सापेक्ष्यवाद का सिद्धान्त समग्र रूप में साहित्य का आकलन करने पर बल देता है। वे विविध शास्त्रों, यथामनोविज्ञान, दर्शन विज्ञान, समाज विज्ञान, राजनीति विज्ञान के आधार पर दोष ढूँढने के पक्षधर नहीं; वरन् साहित्य में उनका कितना सम्मिलन है, समन्वय है, वह कितना उपादेय है; यह ढूँढना चाहिए।

समीक्षा सम्बन्धी धारणाओं में निरन्तर परिवर्तनशील सिद्धान्तों की शृंखला दिनानुदिन वृहत्तर होती जा रही थी। पूर्व से चली आती विचारधाराएँ भविष्य की शुष्क धरती को सिक्त करती, प्रभावित करती जा रही थीं। परिणामतः पूर्ववर्ती विचारों के अंश परिवर्तन-परिव(र्न के साथ भविष्य में भी स्वीकृत हुए। इसी क्रम मेंं रेनेवेले के समग्रता सिद्धान्त को परवर्ती नव्य-आलोचकों ने दूसरे रूप में स्वीकार किया। कृतिकार के उद्देश्य एवं अभिव्यक्ति के सम्यक् मूल्यांकन हेतु कृति को स्वतन्त्रा अस्तित्व के रूप में विश्लेषित करने का आग्रह इन विचारकों में दिखता है।

यद्यपि उक्त सिद्धान्तों के क्रोड़ से ही नव्य-आलोचना का विकास हुआ तथापि उसकी चिन्तनधारा में भिन्नता के साथ-साथ नूतनता भी थी। आई. ए. रिचर्ड्स को इस नव्य-आलोचना का अग्रदूत मानते हुए समीक्षा के मुख्य बिन्दुओं की ओर ध्यानाकृष्ट किया गया। यह सिद्धान्त कृतिकार के उद्देश्य एवं अभिव्यक्ति का मूल्यांकन पूर्णतः निरपेक्ष दृष्टि से करने का आग्रह करता है। उसके अनुसार कृति को स्वतन्त्र एवं पूर्ण अस्तित्व के रूप में मानकर वैज्ञानिक रूप से विश्लेषित किया जाना चाहिए।

  •          कृति का पूर्ण एवं स्वतन्त्रा अस्तित्व के रूप में मूल्यांकन
  •          कृति का सर्वाधिक महत्त्व
  •          कला-पक्ष का महत्त्व
  •          शैली महत्त्वपूर्ण
  •      कला-पक्ष एवं भाव-पक्ष के समन्वय से उत्पन्न प्रभावोत्पादकता का मूल्यांकन।

अस्तु, नव्य-समीक्षा सिद्धान्तों से अधिक विचारों एवं दृष्टिकोणों पर आधारित है जो गम्भीर एवं सूक्ष्म अध्ययन-मनन की आकांक्षी है।

नव्य-आलोचना के प्रतिष्ठाता के रूप में आई. ए. रिचर्ड्स की चर्चा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाती है। यह विचारधारा गम्भीरता का पैगाम लेकर प्रवाहित हुई तो रचनाओं में प्रभाव एवं सम्प्रेषण का तत्त्व स्वयमेव महत्त्वपूर्ण हो गया। अतः रिचर्ड्स के ‘सम्प्रेषणीयता सिद्धान्त’ के अवलोकन-योग्य कुछ बिन्दुओं की चर्चा अपेक्षित हो जाती है। लघुकथा के समीक्षा-बिन्दुओं का लक्ष्य-संधारण करते हुए मुख्य तत्त्व निम्नवत् हो सकते हैं

  •          सृजन-प्रक्रिया का रचना-केन्द्रित वैज्ञानिक विश्लेषण।
  •          मानव-मूल्यां की दृष्टि से प्रभावोत्पादकता का आकलन एवं विश्लेषण।
  •      विकल-विह्वल मानवीय संवेगों पर सकारात्मक प्रभाव की दृष्टि से मनोवैज्ञानिक विश्लेषण।
  •        अनुभव के बाह्य एवं मानसिक स्रोतों की खोज।
  •        बौद्धिकता की अपेक्षा भावनाओं के उद्बोधक तत्त्वों की दृष्टि से मूल्यांकन।
  •        सम्प्रेषणीयता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण।
  •        रचनाकार की अनुभूति-व्यापक, मूल्यवान एवं संवेगों की व्यवस्थित संघटना से युक्त हो।
  •       सम्प्रेषणीयता हेतु प्रमुख शर्तेंरचनाकार की सूक्ष्म निरीक्षण क्षमता, जागरुक दृष्टि, अनुभवों का स्रोत, कल्पना एवं सत्य की समन्वयकारी क्षमता, भाषा का सौन्दर्यपूर्ण एवं रागात्मक प्रयोग आदि।

निष्कर्षतः  रिचर्ड्स के आलोचना सिद्धान्त शाश्वत मूल्यों के प्रवहमान संरक्षक के रूप में स्थापित हैं। यहाँ मानवतावादी मूल्यों के रूप में मार्क्स एवं एंगिल्स की जोड़ी को विस्मृत नहीं किया जा सकता। इन आर्थिक एवं राजनीतिक विश्लेषकों ने अपनी साहित्यिक अभिरुचि एवं मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण आलोचना विधा में अपनी मजबूत पैठ बनायी तथा मार्क्सवाद ने साहित्य को कापफी प्रभावित किया। उक्त विचारधारा का मानवतावादी दृष्टिकोण, कला एवं साहित्य की जीवन में उपादेयता, शोषित-शोषक के वर्ग-संघर्ष में ज्ञान के बहुक्षेत्रीय विकास द्वारा आदर्श-युग के सृजन का प्रयास जैसे मुख्य आयामों ने साहित्य में एक नए संघर्षशील विरोध एवं प्रतिरोध के दौर का सृजन किया। साहित्य को हथियार बना सत्ता एवं शोषण के प्रति आक्रोशजन्य संघर्ष को धार दी गयी। लेनिन की विचारधारा इस घटना की संपोषिका बन गयी—Literature is the greatest weapon for sharpening the class-struggle.

                               शेष आगामी अंक में………

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