कुछ काम अचानक ही रचनात्मक रूप ले लेते हैं। कथाकार-पत्रकार कमलेश भारतीय ने कहा--1992 में स्वदेश का दीपावली 1973 के अवसर पर प्रकाशित 'लघुकथा का विशेष खण्ड'प्रकाशित उनका लघुकथा संग्रह स्वयं उनके पास ही नहीं है। मैंने कहा--मेरे पास है। कल उसकी स्कैंड कॉपी उन्हें भेजी तो विचार आया और उनसे पूछा कि इस पूरी पुस्तक को 'जनगाथा' पर दे दिया जाए। उन्होंने सहर्ष अनुमति दे दी। कल रात ही युगल जी द्वारा संपादित-प्रकाशित 'फलक' के दो अंकों से भी आपको परिचित कराया।
इस बार डॉ॰ शकुन्तला किरण के सौजन्य से प्राप्त, इन्दौर और ग्वालियर से प्रकाशित होने वाले पत्र 'स्वदेश' के दीपावली पर्व 1973 में 'लघुकथाओं का विशेष खण्ड' शीर्षक से प्रकाशित साहित्यिक पुस्तिका। यहाँ पर उक्त पुस्तिका के केवल उन पन्नों को ही दिया जा रहा है, जिन पर लघुकथाएँ प्रकाशित थीं।
अब मैं इस शृंखला को 'समकालीन हिन्दी लघुकथा इतिहास के पन्ने' नाम दे रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ कि इससे विशेषत; समकालीन लघुकथा के जिज्ञासुओं और शोधार्थियों को यथेष्ट मदद मिलेगी।
'जनगाथा' पर इस शृंखला की शुरुआत डॉ॰ अनिल शूर के सौजन्य से प्राप्त डॉ॰ सुरेंद्र मंथन के प्र्थम लघुकथा संग्रह 'घायल आदमी' से मानकर चल रहा हूँ। इस प्रकार यह उक्त शृंखला की 4थी कड़ी है।
👍🏼 इतने वर्षों मे क्या बदला और क्या नही ये जानने का सुगम मार्ग। हार्दिक आभार।
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