Monday, 2 July 2018

'परिंदों के दरमियां' : लघुकथा साहित्य में एक महत्वपूर्ण कृति / घनश्याम मैथिल 'अमृत'



घनश्याम मैथिल 'अमृत'
यों तो साहित्य की सभी विधाओं में अनवरत सृजन, प्रकाशन चल रहा है, परन्तु कभी-कभी बनी बनाई लीक से हटकर भी कुछ अनूठा सृजन प्रकाशन  भी पाठकों के सम्मुख आता है, जिसका लाभ उस विधा के सृजनशीलों को, पाठकों को उस विधा के सृजन से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण बातों को गम्भीरता से जानने समझने का अवसर मिलता हैकुछ ऐसा ही महत्वपूर्ण प्रकाशन का कार्य लघुकथा के क्षेत्र में पिछले दिनों हुआ है, जब वरिष्ठ लघुकथा लेखक, समीक्षक  बलराम अग्रवाल के सम्पादन में ‘लघुकथा के दरमियां’ नामक पुस्तक पाठकों के हाथों आई। समकालीन लघुकथा साहित्य को गहराई से समझने, अपनी तमाम जिज्ञासाओं और उनके समाधान आप इस महत्वपूर्ण कृति में पा सकते हैं। लघुकथा साहित्य के विकास और उन्नयन को पूर्ण निष्ठा से समर्पित वरिष्ठ लघुकथाकार श्रीमती कान्ता राय के लघुकथा विधा को समर्पित लोकप्रिय ऑन-लाइन आभासीय पटल 'लघुकथा के परिंदे' द्वारा आयोजित इस अनूठे आयोजन में लघुकथा के परिंदों ने विधा से सम्बंधित अपने प्रश्न श्री बलराम अग्रवाल से किये और उन्होंने उनके महत्वपूर्ण उत्तर दिए। इसप्रकार, लघुकथा के बारे में शंका, जिज्ञासा, जो भी पाठकों की रही, वह पटल पर अग्रवाल जी के उत्तर के रूप में पाठकों को प्राप्त हुई। उसका संकलित व परिवर्द्धित रूप पाठकों के सम्मुख, 'परिंदों के दरमियां’ कृति के रूप में सामने आया है। इस कृति के प्रथम पृष्ठ पर बतौर भूमिका किस्सा इस किताब का’ शीर्षक से बलराम जी ने जो बात पाठकों के सम्मुख रखी है, उसे ध्यानपूर्वक पढ़ना ज़रूरी है। इससे पाठकों के इस पुस्तक के जन्म की कथा और उसके मार्ग में आने वाली परेशानियों से रूबरू होने का अवसर मिलता है। इस पुस्तक की उपयोगिता के बारे में अग्रवाल जी ने जो भूमिका लिखी है, उसके एक अंश को मैं यहाँ आपके सम्मुख रखना आवश्यक मानता हूँ। वे लिखते हैं—‘परिंदों के दरमियां’ विशेषतः साहित्य के उन पिपासुओं के लिए है जिन्होंने कथा साहित्य की 'लघुकथा' विधा को साधने के मन बनाया है, और जिन्होंने कथा साहित्य के विशाल बरगद के तले अपना आसन डाल लिया है। इसके तले कथा और उससे जुड़े सैद्धान्तिक व व्यवहारिक सूत्र सुनने-गुनने, पढ़ने और सुनाने की रस-प्राप्ति इसमें उन सबको होगी।’ 
इस प्रकार इस कृति में अनेक वरिष्ठ और नवोदित लघुकथाकारों ने अपने प्रश्न बलराम जी के सम्मुख रखे। अब वे लघुकथा में ‘क्षण’ विशेष, सपाट बयानी, कथातत्व, लघुकथा का अंत, लघुकथा और सत्यकथा में अंतर, लघुकथा में भूमिका, लघुकथा में लेखकीय प्रवेश, कालखण्ड दोष, लघुकथा की विविध शैलियाँ, शीर्षक चयन, लघुकथा की परिभाषा यानी लघुकथा के लगभग समूचे ताने-बाने को लेकर परिंदों ने अपनी जिज्ञासाएँ रखीं और बलराम जी ने उनके सटीक, विभिन्न लघुकथाओं के उदाहरण देकर उत्तर दिए। इसके साथ ही, इसमें 'समीक्षक की कसौटी' शीर्षक से डॉ.लता अग्रवाल द्वारा लिया गया उनका एक साक्षात्कार है जिसमें लघुकथा की समीक्षा को केंद्र में रखकर पूछे गए महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर उन्होंने दिए हैं। साथ ही,21 वीं सदी की 22 लघुकथाएं’ भी इस कृति के तीसरे अध्याय में दी गई हैं। जिन लघुकथाकारों की लघुकथाएँ इसमें दी गई हैं उनमें प्रमुख हैंअनघा जोगलेकर, अनीता ललित, उपमा शर्मा, उषा अग्रवाल, उषा लाल, कनक के हरलालका, कल्पना भट्ट, कुणाल शर्मा, क्षमा सिसौदिया, जानकी बिष्ट वाही, तेजवीर सिंह, नयना कानितकर, निधि शुक्ला,  नीना सिंह सोलंकी, पूनम डोगरा, प्रेरणा गुप्ता, रूपेंद्र राज, लता अग्रवाल, शेख शहज़ाद उस्मानी, संगीता गांधी, सत्या शर्मा कीर्ति आदि।  
लघुकथा के परिन्दे’ नामक आभासीय पटल की प्रमुख संचालक श्रीमती कान्ता राय, श्री बलराम अग्रवाल व वे अन्य सभी लघुकथाकार बन्धु एवं भगिनी जिन्होंने उत्साहपूर्वक इस आयोजन में भाग लेकर अपने महत्पूर्ण प्रश्नों व जिज्ञासाओं को प्रकट किया, जिसके फलस्वरूप यह पुस्तक आकार ले सकी, सभी बधाई के पात्र हैं। साफ-सुथरा मुद्रण, अच्छा कागज़, प्रूफ की अशुद्धियों से मुक्त कृति अपना प्रभाव पाठक पर छोड़ती है। पुस्तक का मनोहारी आवरण बनाने के लिए भाई के.रवींद्र व भीतरी रेखांकन के लिए अनुप्रिया जी को भी बहुत-बहुत साधुवाद।
  • G/L 434 Ayoya Nagar, Bhopal-462041

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