दोस्तो, इस बार बंगलौर गया तो वहाँ रह रहे दो पुराने
साहित्यिक मित्रों से भी भेंट का सुअवसर मिला—भाई राजेश उत्साही और दीदी
सुधा भार्गव से। इन दोनों के अलावा दो नये मित्रों से भी मुलाकात हुई— ‘एकलव्य’ के शिवनारायण गौर
और अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की छात्रा प्रियंका गोस्वामी से। इस बार अपना कैमरा साथ नहीं लेजा सके थे,
इसलिए सभी की संयुक्त फोटो खींचने से चूक गये।
'साहित्यिकी' के हस्तलिखित लघुकथा विशेषांक का मुखपृष्ठ सौजन्य :श्रीमती सुधा भार्गव, बंगलौर |
सुधा जी के आवास पर कु्छ पुस्तकें और
पत्रिकाएँ भी देखने को मिलीं जिनमें पता नहीं कितने वर्षों से प्रकाशित हो रही ‘कोलकाता की बुद्धिजीवी स्त्रियों’ के मंच ‘साहित्यिकी’ की हस्तलिखित
पत्रिका ‘साहित्यिकी’ के लघुकथा विशेषांक
(जुलाई 2010, अंक 18) ने मुझे एकदम से आकर्षित किया। इस अंक की संपादक द्वय हैं—रेवा जाजोदिया और गीता दुबे तथा विशेष सहयोग दिया है—संस्था की सचिव किरण सिपानी ने। संपादकीय, किरण सिवानी द्वारा लिखित ‘अपनी बात’, पाठकों का पन्ना तथा कृषक भारती को-ऑपरेटिव की विपणन प्रबंधक
श्रीमती शालिनी माथुर से साक्षात्कार के साथ ही इस अंक में 30 महिला कथाकारों की
30 लघुकथाएँ उनकी हस्तलिपि में दी गई हैं।
इस श्रमसाध्य साहित्यिक प्रयास की जितनी
प्रशंसा की जाय, कम है। संपादक द्वय से संपर्क का पता आपकी सुविधा के लिए नीचे दे
रहा हूँ। अंक का लिखित मूल्य मात्र रु॰ 20/- है जिसे मँगाने के लिए पहले फोन से
सम्पर्क कर लें तब राशि भेजें।
1॰ रेवा जाजोदिया, ‘प्राची’, 57/1, कालीतल्ला लिंक रोड, उत्तर पूर्वांचल, कोलकाता-700078 दूरभाष:
24847936
2॰ गीता दुबे, पूजा अपार्टमेंट्स, 58ए/9, प्रिंस गुलाम
सेन शाह रोड, पो॰ कोलकाता-700032 दूरभाष : 24143160
वेदप्रकाश अमिताभ का लघुकथा संग्रह 'गुलामी'
वेदप्रकाश अमिताभ का लघुकथा संग्रह 'गुलामी'
डॉ॰ वेदप्रकाश अमिताभ का पहला लघुकथा संग्रह |
बंगलौर से लौटकर घर आया तो सबसे पहले गत एक माह में
आयी डाक को देखना-परखना शुरू किया। उस बहुत-सी सामग्री में जो उल्लेखनीय कृति सामने आयी, वह थी
सुपरिचित लेखक-आलोचक डॉ॰ वेदप्रकाश अमिताभ की 31 लघुकथाओं का संग्रह ‘गुलामी’। कवर पृष्ठों सहित 44 पृष्ठों की इस नन्ही
पुस्तिका का मूल्य मात्र 30 रुपए रखा गया है, शायद दिखानेभर के लिए। इन लघुकथाओं
पर पुस्तिका के दोनों भीतरी कवर पृष्ठों पर डॉ॰ रमेशचन्द्र शर्मा व डॉ॰ देवेन्द्र
कुमार की बड़ी सारगर्भित टिप्पणियाँ हैं। कवर डिज़ाइन राघवेन्द्र तिवारी ने तैयार किया
है तथा भीतरी लघुकथाओं को अपने रेखांकनों से सजाया है कथाकार-चित्रकार भाई
राजेन्द्र परदेसी ने।
यद्यपि ‘अपनी बात’ में अमिताभ जी ने लिखा है कि ‘लघुकथा मेरी मुख्य विधा नहीं है’ तथापि संग्रह की अनेक
रचनाओं को पढ़कर लगता यही है कि उन्हें लघुकथा विधा को स्वयं के लेखन-कौशल से वंचित
रखना नहीं चाहिए। उक्त संग्रह से प्रस्तुत है एक ऐसी संवेदनशील लघुकथा ‘सवाल’, जो सामाजिक विसंगतियों से आहत बालमन की ध्वंसात्मक स्थिति को पूरी गहराई के साथ सामने रखती है:
“भूकंप क्या होता है पापा?”
बेटी अपनी
किताब को भात से चिपका रही थी। कई दिन से भूकंप की चर्चा सुनकर तंग आ गयी थी कि
जाने क्या बला है भूकम्प? वैसे भी बहुत सवाल पूछती है। कभी पूछती है कि हमारे पास
कलर टीवी क्यों नहीं है? कभी जानना चाहती है कि हमारा अपना घर क्यों नहीं है?
सामने वालों की कोठी इतनी बड़ी, ऊँची और सुन्दर क्यों है? आदि-आदि।
पिता ने अपनी समझ के अनुसार भूकम्प का वर्णन
करते हुए कहा—“भूकम्प में धरती हिलती है। बड़े-बड़े मकान गिर
जाते हैं। सब कीमती सामान टूट-फूट जाते हैं। बहुत-से लोग…”
पिता की बात खत्म होने पर बिटिया ने एक बार
सामने वाली कोठी की ओर देखा औए एक नया सवाल दाग़ दिया—“भूकम्प हमारे मुहल्ले में क्यों नहीं आता पापा?”
वेदप्रकाश अमिताभ से सम्पर्क का पता:डी-131,
रमेश विहार, अलीगढ़-202010 (ऊ॰प्र॰), मोबाइल: 09837004113
UPYOGEE JAANKAAREE DENE KE LIYE
ReplyDeleteAAPKA DHANYAWWAD . LAGHU KATHA KE
PRATI AAPKAA YOGDAAN ULLEKHNEEY HAI .
आपने जनगाथा में साहित्यिकी लघुकथा विशेषांक से साहित्य जगत को अवगत कराया इसके लिए बहुत आभारी हूँ।
ReplyDeleteबालमनोविज्ञान से सम्बंधित लघुकथा में बच्चे की मासूमियत को बहुत अच्छे से दर्शाया है ।
sahityikee pariwar ki taraf se sasneh aabhar
ReplyDeleteBalramji,
ReplyDeletesahityikee pariwar ki taraf se ashesh aabhar
आपका कार्य निःस्वार्थ भाव से की गयी एक महत्त्वपूर्ण साहित्य-सेवा है...!
ReplyDeleteआप मौन रहकर कार्य करते रहने में विश्वास करते हैं... कोई लॉबीइंग नहीं...कोई झण्डा नहीं...कोई बैनर नहीं...सिर्फ़ काम...सिर्फ़ काम...और काम!
आपकी तमाम गतिविधियों को नेट पर करीब से देख रहा हूँ...प्रभु आपको दीर्घायु प्रदान करे...इस दुआ के मूल में साहित्य का व्यापक हित छिपा है...!
बाल मनोविज्ञान के बहाने इस लघुकथा में एक ज़रूरी सवाल है- अपने साधन हीन होने का।
ReplyDeleteसशक्त
बालमन के निश्छल प्रश्न और भोलापन । अद्भुत लघुकथा । बधाई ।
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