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दोस्तो! गत दिनों तीन लघुकथा संग्रह—'घाव करे गम्भीर'(कथाकार : राज हीरामन), 'बूँद से समुद्र तक'(कथाकर : सतीश दुबे) तथा 'मेरी मानवेतर लघुकथाएँ'(कथाकार : पारस दासोत) व एक आलोचना पुस्तक 'भारत का हिंदी लघुकथा संसार('संपादक : डॉ॰ रामकुमार घोटड़) प्राप्त हुई है। प्रस्तुत है चारों पुस्तकों का संक्षिप्त परिचय व लघुकथाएँ—
॥1॥ भारत का हिंदी लघुकथा संसार(संस्करण : 2011)
डॉ॰ रामकुमार घोटड़ द्वारा संपादित ‘भारत का हिंदी लघुकथा संसार’ को शोधोपयोगी पुस्तक कहा जा सकता है। इसमें कुल 16 लेख हैं जो भारत के राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, हिमाचलप्रदेश, पंजाब, गुजरात तथा महाराष्ट्र में प्रारम्भ से लेकर आज तक हुए हिंदी लघुकथा लेखन, शोध, आलोचना, प्रकाशन, सम्मेलन, मंचन आदि समस्त कार्यों व गतिविधियों का लेखा प्रस्तुत करते हैं। नि:संदेह इन लेखों को डॉ॰ रामकुमार घोटड़, सतीशराज पुष्करणा, रामयतन यादव, मालती बसंत, प्रो॰ रूप देवगुण, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, हरनाम शर्मा, डॉ॰ राजेन्द्र सोनी, डॉ॰ अमरनाथ चौधरी ‘अब्ज़’, रतनचन्द ‘रत्नेश’, श्याम सुन्दर अग्रवाल, प्रो॰ मुकेश रावल ने परिश्रमपूर्वक लिखा है। हिंदी लघुकथा पर शोध करने वालों के लिए जहाँ यह अनेक तथ्य प्रदान करने वाली उपयोगी पुस्तक है, वहीं इसमें वर्णित कुछ तथ्य शोध की माँग करते-से लगते हैं। डॉ॰ घोटड़ ने ‘लघुकथा’ शब्द-मात्र को ही लघुकथा मानकर अपने लेख ‘भारतीय हिन्दी लघुकथा साहित्य में शोधकार्य’ के अन्तर्गत कुछ उन शोधों को भी गिना दिया लगता है जिनमें ‘लघुकथा’ शब्द से तात्पर्य सम्भवत: ‘कहानी’ है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि केन्द्र व अनेक राज्यों के हिंदी अनुवादक आज भी कहानी के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द ‘शॉर्ट स्टोरी’ का अनुवाद ‘लघुकथा’ कर रहे हैं। केन्द्रीय सचिवालय ग्रंथागार, नई दिल्ली में आज भी ‘कहानी’ से संबंधित समस्त हिन्दी पुस्तकों को ‘लघुकथा’ श्रेणी में चिह्नित किया हुआ है। ‘कन्नड़ लघुकथाएँ’ शीर्षक से साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने अब से चार दशक पहले कहानी संकलन प्रकाशित किया था।
॥2॥ मेरी मानवेतर लघुकथाएँ(प्रथम संस्करण : 2011)
यह वरिष्ठ चित्रकार, मूर्तिकार, हाइकूकार व कथाकार पारस दासोत की 146 लघुकथाओं का संग्रह है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इसमें उनके द्वारा रचित मानवेतर पात्रों वाली लघुकथाएँ ही संग्रहीत हैं। ये सभी लघुकथाएँ सन् 1982 से सन् 2010 तक के 28 वर्ष लम्बे लेखन-काल में लिखित हैं। हिंदी में पारस दासोत लघुकथा कहने की ‘गद्यगीत शैली’ के सम्भवत: अकेले ही प्रस्तोता हैं। इनकी लघुकथाओं पर शोधस्वरूप दो शोधार्थियों को पी-एच॰डी॰ तथा छ: शोधार्थियों को एम॰फिल॰ की उपाधि मिल चुकी है। यहाँ प्रस्तुत है उक्त संग्रह से एक लघुकथा:
इंकलाब ज़िन्दाबाद
पन्द्रह अगस्त की सुबह,
पिंजरे में बैठी चिड़िया, अपने चूजों को जगाती हुई बोली—
“उठो मेरे बेटो, उठो! आज पन्द्रह अगस्त है!”
“मम्मी, हम तो परतन्त्र हैं!”
चूजा अपनी करवट बदलते हुए बोला।
“पन्द्रह अगस्त, काहे का पन्द्रह अगस्त!”
दूसरे ने अपनी आँखें मलीं।
“मम्मी! क्या आज स्वतन्त्रता दिवस है?”
तीसरे ने अपने नन्हे-नन्हे पंख फड़फड़ा जिज्ञासा जताई।
अब
इससे पहले, चिड़िया अपने प्यारे चूजे को उत्तर में हाँ बोलती, चूजे ने पिंजरे के फाटक को टोंच-टोंच कर, अपने को लहूलुहान कर लिया।
चिड़िया बोली—“महात्मा गाँधी! जिंदाबाद!”
पहला चूजा बोला—“भगतसिंह, जिंदाबाद!”
दूसरा बोला—“सुभाषचन्द्र बोस, जिंदाबाद!”
फाटक के पास पड़ा घायल चूजा अपनी अन्तिम साँस लेकर बोला—
“इंकलाब!”
सभी मिल बोले—“जिंदाबाद!”
॥3॥ बूँद से समुद्र तक(संस्करण : 2011)
हिंदी लघुकथा में डॉ॰ सतीश दुबे गत 45 वर्षों से निरन्तर रचनारत हैं; न केवल रचनारत बल्कि विचाररत भी। प्रस्तुत संग्रह को उन्होंने हिंदी लघुकथा के शोधार्थियों की सुविधा के मद्देनजर संपादित/प्रकाशित किया है। इसमें उन्होंने विगत तीन वर्षों अर्थात् सन् 2008, 2009 व 2010 में रचित अपनी 104 लघुकथाओं के साथ-साथ फरवरी 1974 में प्रकाशित अपने लघुकथा संग्रह 'सिसकता उजास'से अठारह प्रतिनिधि लघुकथाएँ उसके मुखपृष्ठ की प्रतिकृति सहित, 'सरिता' आदि पत्रिकाओं में 1965-66 में प्रकाशित बारह लघुकथाएँ तथा प्रकाशित लघुकथा संग्रहों ‘सिसकता उजास’, ‘भीड़ में खोया आदमी’, ‘राजा भी लाचार है’, ‘प्रेक्षागृह’ तथा ‘समकालीन सौ लघुकथाओं’ में प्रकाशित रचनाओं पर डॉ॰ कमल किशोर गोयनका, डॉ॰ श्रीराम परिहार, डॉ॰ पुरुषोत्तम दुबे, बसंत निरगुणे, श्याम सुन्दर अग्रवाल, प्रतापसिंह सोढ़ी, मधुदीप, रामयतन यादव, खुदेजा खान, श्याम गोविंद के आलोचनात्मक लेख तथा कथाकार व शोधार्थी जितेन्द्र ‘जीतू’ द्वारा लिया हुआ प्रश्न-साक्षात्कार को सम्मिलित किया है। इस संग्रह से न केवल सतीश दुबे की रचनाशीलता बल्कि उनके द्वारा लघुकथा-विधा को उत्तरोत्तर उत्कृष्ट करते जाने पर भी यथेष्ट प्रकाश पड़ता है। प्रस्तुत है ‘बूँद से समुद्र तक’ लघुकथा-संग्रह से सतीश दुबे की एक लघुकथा:
थके पाँवों का सफर
दाएँ कन्धे से बाईं ओर लटकाए शोल्डर-बैग तथा तीन-चार फीट का डंडा थामे वृद्ध को सहारा देकर बस में चढ़ाने वाला अधेड़ व्यक्ति टिकट पर सीट का नम्बर देखते हुए सत्येन्द्र के निकट पहुँचकर बोला—“भाईसाहब, आपके पासवाली सीट का नम्बर हमें मिला है, क्या आप चाचाजी को विंडो-सीट दे सकते हैं, इन्हें उस तरफ आराम रहेगा…।” सत्येन्द्र बिना कुछ बोले खड़ा हो गया और चाचाजी के व्यवस्थित हो जाने पर दाईं ओर बैठ गया।
वृद्ध चाचाजी के साथ आया व्यक्ति उनसे विदा लेकर सत्येन्द्र से आग्रह कर गया कि वह अपने हमसफर का ध्यान रखे।
पाँच-दस मिनट मौन रहने के बाद सत्येन्द्र ने चाचाजी को मुखर करने की दृष्टि से पूछा—“चाचाजी, ये जो बैठाने आए थे, आपके भतीजे थे?”
“घर के पास रहते हैं, टाइम-बेटाइम मदद कर देते हैं।”
“आपके बेटे नहीं हैं क्या?”
“ऐसा मत बोलो, भगवान के दिए चार बेटे हैं, चारों होनहार…अच्छी और बड़ी नौकरी वाले…”
“बहुएँ कैसी हैं?”
“बड़े और सम्पन्न घर की बेटियाँ हैं, बेटों से दस गुना होनहार।”
“इधर कहाँ तक जाएँगे आप?”
“जौनपुर।”
“किस बेटे के पास?”
“नहीं, निकट के रिश्तेदार के घर, बड़े प्रेम से बुलाया है, बस पर लिवाने को आ जाएँगे।” कहकर चाचाजी चुप हो गए। उनकी सूनी आँखें और निस्तेज चेहरे की ओर गौर से देखते हुए सत्येन्द्र कुछ-और प्रश्न करे, उससे पूर्व ही चाचाजी अस्फुट शब्दों में बोले—“अब और-कुछ पूछना मत, ज्यादह बोलने से मुझे तकलीफ होती है…”
सत्येन्द्र ने देखा—यह कहते हुए चाचाजी ने पैर लम्बे तथा सिर सीट के सहारे लगाकर बूँदे टपकाने का प्रयास कर रही छोटी-छोटी आँखों को जोरों से भींच लिया।
॥4॥ …घाव करे गम्भीर(संस्करण : 2009)
हिंदी पत्रकारिता एवं संपादन से जुड़े मॉरीशसवासी राज हीरामन मूलत: कवि हैं और लघुकथा की विधा को उन्होंने बहुत बाद में यानी इस सदी के पहले दशक में अपनाया है। ‘…घाव करे गम्भीर’ उनकी 140 लघुकथाओं का दूसरा संग्रह है। पहला लघुकथा संग्रह ‘कथा संवाद’ सन् 2008 में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह की भूमिका रामदेव धुरंधर ने लिखी है जो स्वयं भी सिद्धहस्त लघुकथा-लेखक हैं और जिनकी लघुकथाओं का संग्रह गत सदी के अंतिम दशक में प्रकाशित हो चुका है। लघुकथा-लेखन को अपनाने पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए राज हीरामन ने लिखा है—‘मूलत: मैं कवि हूँ, पर बाद में मैंने ‘लघुकथा’ विधा अपनाई। लघुकथा लिखने में क्या मज़ा आता है। वाह! ये छोटी-छोटी, बौनी-बौनी-सी तो रहती हैं। फैलाव तनिक भी नहीं, पर लम्बे वाक्य का प्रावधान छोड़ देती हैं। आदमी को हिला देने और झकझोर देने की ताकत भी रखती हैं। लघुकथा-लेखन मुझे भी ताकतवर बना देता है।’ संग्रह की लघुकथाओं का यदि भाषा-संपादन करा लिया जाता तो आम हिंदी पाठक के लिए वे अधिक ग्राह्य बन सकती थीं। आइए पढ़ते हैं राज हीरामन की एक उत्कृष्ट लघुकथा:
गिरजाघर की व्यस्तता
यहाँ के गिरजाघर में प्रत्येक रविवार को प्रार्थना के लिए ठेला-ठेली रहती है। सुबह चार बजे से शाम छह बजे तक पादरी एसेम्ली लगाते-लगाते, बोलते-बोलते थक जाते हैं। पर हब्शी किश्च्यन, गोरे क्रिश्च्यन तथा चीनी क्रिश्च्यनों की प्रार्थना-सभाएँ अलग-अलग क्यों लगती थीं—यह हब्शियों की समझ से बाहर की बात थी। फिर भी सब इसे रंगभेद ही मानते थे। गोरे सवेरे तड़के चार बजे की प्रार्थना-सभा में ही आते। तब आते हब्शी भक्त और शाम में चीनी आते।
पादरी को इस प्रश्न का उत्तर सूझता ही नहीं था, क्योंकि पादरी भी गोरा था, ने समझाया—
“गोरों के पास कारें हैं इसलिए वे सवेरे तड़के ही आ जाते हैं। आप लोग बस से सफर करके आते हैं और बसों के चलने का तो समय होता है! हमारे चीनी भाई दिनभर अपनी दुकान में काम करते हैं फिर जब आधे दिन दुकानें बंद होती हैं, तो वे तैयार होकर आते हैं!”
बहुत ही उल्लेखनीय लघुकथाएं. ब्लॉग में प्रकाशित करके उन पाठकों तक भी ये रचनाएं पहुंच गयीं जिन्हें पुस्तक मिलना कठिन होगा. सराहनीय काम.
ReplyDeleteब्लॉग का कवर कुछ आकर्षक बनाओं. लगता है तुमने इसके कवर की प्रेरणा महावीर प्रसाद द्विवेदी की सरस्वती से ली है. अब तो एक से एक उम्दा कवर आ गये हैं नेट पर.
चन्देल
jitendra jeetu
ReplyDeleteto me
show details 8:43 PM (3 minutes ago)
aadarniya bhai,
jangatha orr laghukatha varta ke ank behtareen hain. visheshkar jangatha main jo aap pustak parichay de rahe hain, vo kamal ki hai. durbhagyavash mere paas inme se koi nahi hai. isliye kuch jyada hi maza aaya. badhai. orr varta main bharti ka liya interview bhi jordar hai. unhe badhai den. aapke pas to hai hi laghukatha ke har prashan ka uttar.
- jitendra jeetu
SHUBH SHAGUN HAI KI LAGHUKATHA
ReplyDeleteKAA BHANDAAR BHAR RAHAA HAI .
SABHEE LAGHU KATHAKARON KO UJAAGAR
KARNE KAA AAP PRAYAAS SARAAHNIY
HAI .
UK KE PUNJABI KE LAGHU
KAHHAKAR NE KAL HEE MUJHSE KAHA
KI LAGHU KATHAA KO MINI STORY
KAHNAA CHAHIYE . LAGHU KATHA TO
SHORT STORY KAA ANUWAAD HAI .
डॉ सतीश दुबे की लघुकथा "थके पाँवों का सफ़र" वृद्धजनों की पीड़ा को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त करती लघुकथा है, और राज हीरामन की लघुकथा "गिरजाघर की व्यस्तता" भी प्रभावकारी है।
ReplyDelete"जनगाथा" में लघुकथा से जुड़ी पुस्तकों की जानकारी और उसमें से चुनींदा लघकथा(एं) देना, एक अच्छी शुरूआत है, इसे जारी रखो।
सर ,
ReplyDeleteनमस्कार !
चारो लघु कथा कारों को हार्दिक बधाई ! आप द्वारा ये कार्य प्रशंसनीय है , आभार
साधुवाद !
चारो लघु कथा कारों को हार्दिक बधाई !
ReplyDeletesatish dube ji ki laghu katha 'thake pao ka safar 'bahut achchi hai .'jana gatha' yah blog bhi bahut sarahaniy hai.
ReplyDeletepavitra