आज रामलीला का पहला दिन था। उसे उसके संवाद तथा सारे दृश्य समझा और याद करा कर अब राम की भूमिका के लिए उसका श्रृंगार किया जा रहा था कि कमिटी के सेकेट्री वहां आ पहुंचे।
"ये आप किसको ले आये प्रधान जी ? ये तो दूसरे महल्ले का एक नंबर का छटा हुआ बदमाश, चोर और जेबकतरा है इसकी शक्ल और आयु पर मत जाईये। अभी दो महीने पहले बाल सुधार-गृह में तीन वर्ष की सज़ा काट कर आया है और आते ही इसने फिर अपने कारनामे शुरू कर दिए |अभी भी इसकी जेब में एक-दो चाक़ू-छुरे आपको मिल ही जायेंगे।" सेकेट्री प्रधान के कानों में फुसफुसाते हुए बोले।
प्रधान ने मुस्कुराते हुए मेकअप कराते उस किशोर को देखा और बोले, "बंसल साहब, इसकी छवि पर तो मेरा दिल आ गया है, राम तो इसी को बनाएंगे , जो होगा सो देखा जायेगा।"
आज की रामलीला के ख़त्म होने के बाद परंपरानुसार चारों भाइयों की आरती की जा रही थी। श्रद्धालु उस मनमोहक व सुदर्शन राम के दर्शनों के लिए मंच पर उमड़ आए थे। पुरुष, स्त्री, बच्चे--कोई प्रणाम कर रहा था कोई पैर छू रहा था। कुछ प्रौढ़ा और वृद्धाएँ तो स्नेहवश अपने हाथ को चुम्बन की मुद्रा में अपने होठों को छू कर उसके गाल को छुआ गयी। अनजाने में ही सेकेट्री बंसल भी उस छवि के सम्मुख नतमस्तक हो गए।
राम की पोशाक उतार कर वो अपने कपडे पहन ही रहा था कि उसका साथी सोमू उसे खींच कर एक और ले गया, "अबे राजू तू तो ये कह के आया था कि मौका पाते ही यहां से पोशाकें और जेवर वगैरह समेट कर भाग आएगा। तू तो यही रह गया ,साले सच्ची में राम बनने का इरादा तो नहीं?.. ले लगा ले सुट्टा , मुझे पता है तुझे तलब लग रही होगी , इतनी देर तो तू कभी इसके बिना नहीं रहता। भूल तो नहीं गया न कि आज लंबा हाथ मारने का प्लान है। वो मोटे सेठ का पूरा परिवार शहर से बाहर गया हुआ है।
" सोमू रे , सोच कर तो यही आया था कि कमिटी के माल पर हाथ मार कर यहाँ से चम्पत हो जाऊंगा, लेकिन आज जो इज्जत और प्यार मिला है न, माँ कसम ! कभी सपने में भी नहीं मिला | बड़े बड़े इज्जतदार, नामी रईस, आंटियां मुझे भगवान् समझ कर मेरे पैर छू रहे थे.... सोमू मैं भगवान् तो नहीं बन सकता पर इनके प्यार और श्रद्धा ने इंसान बनने पर मजबूर कर दिया है....अब ये सुट्टा ...नहीं चाहिए .. ये ले ,मेरा चाकू भी ले जा, अब इसकी जरूरत नहीं है। मैंने इंसानियत का स्वाद चख लिया है स्सा....., सोमू !"
".........."
" रुक सोमू , अभी रामलीला में बहुत सारे किरदारों की जगह खाली है अगर तू चाहे तो ....आ जा यार..|"
मो.- 9953235840
सेलिब्रेशन / शोभा रस्तोगी
आईने के समक्ष खुद को निहारा उसने। यूँ तो रोज ही खड़ा करती स्वयं को इसमें संवेदना रहित। टोटल औपचारिक। आज आँधी की उडान जोरों पर थी। अपनी आँखों में झाँका तो आँसुओं की नमकीन बर्फ जमी पड़ी मिली। रात के तीन बजे थे। आज वह जल्दी फारिग हो गयी।महिला दिवस का सेलिब्रेशन जो करना था। कुछ घंटे स्वतंत्रता का उद्घोष। अपने शरीर के अनगिनत पड़ावों को देखा। जगह जगह राहगीरों के रुकने के निशान मौजूद थे। पिकनिक मनाई थी पुरुषों ने उसकी देह पार्क में। ठर्रा और व्हिस्की की बोतलों के ढक्कन उसकी गोलाइयों के ओपनर से ही खोले गए थे। खाने पीने की चीजों के खाली पाउच-सी रिसती उसकी नसें, सिगरेट के टोटे, मिली जुली सुगंध -दुर्गन्ध में जलते लवों की मुहर से आबाद थी उसकी संगमरमरी देह। नर नाखूनों से बनी आड़ी तिरछी ज्यामितीय आकृतियाँ। कहीं कहीं फफोले थे ग़मगीन दुनिया का गम छिपाए। बीच बीच में आदम बत्तीसी के प्यार की स्टेम्प। इन सब पर नज़र फेरते हुए उसकी दृष्टि एक जगह रुक गयी जहाँ उस किसी ने सहलाया भर था। अपनी भाव नदिया को उसकी आँखों में उंडेलने की हलकी-सी कोशिश की थी। वह कोमल अहसास उसके अन्दर कहीं गहरे सुरक्षित था। अट्टहास किया उसने। चलो इसी शानदार सुनहरी याद की केवल एक किरण को ओढ़ महिला दिवस मनाएँ…।
मोबाइल-96502 67277
चुनाव / रेनुका सिंह
चुनाव सर पर था । सब तरफ गहमा गहमी लगी हुई थी । प्रचार का दौर पूरे शबाब पर था ।आज विधायक साहब सलेमपुर गांव में आने वाले थे । उनके सहकर्मियों ने खूब मज़मा लगा लिया था।
सायरन बजाती हुई विधायक साहब की गाड़ी व पीछे पीछे 6-7 और गाड़ियों का काफिला पहुँच गया। जल्दी जल्दी कुर्सियां ठीक की गयी । माइक लगाया गया। फूल माला पहनने के बाद विधायक साहेब ने जोरदार भाषण दिया ।
खूब तालियां बजी। चलते समय कुछ लोगो ने विधायक साहब का फोन नंबर माँगा तो उन्होंने कहा, "अरे सोनुआ, तनी नम्बर तो नोट करा इनके।"
सोनुआ नम्बर लिखवाकर बाहर आकर बोला "सरकार काहे नम्बरवा लिखवा दिए रोज रोज़ फोन करिहै सो... "
"धत मर्दवा ! गदहा कही का जीतले के बाद के फोन उठाई रे..."
मोबाइल: 9807303555
खेल भावना / सदानंद कवीश्वर
“हूँ... तो आप मि. भारत हैं ?”“जी।”
“आज आपको यहाँ कार्यभार संभालना है ?”
“जी, आप से काम की जानकारी लेने भेजा गया है।”
“पानी में उतरेंगे तो तैरना आ ही जाएगा।”
“जी।”
“एक बात जो आपको हमेशा याद रखनी है वह सुन लीजिये और समझ भी लीजिये।”
“जी।”
“आपकी नियुक्ति खेल-कोटा में हुई है न, तो हर काम खेल-भावना से करिए।”
“जी, समझ गया।”
“क्या समझे ?”
“सब काम खेल-भावना से करना है अर्थात काम मन लगा कर करना है, पूरी लगन होनी चाहिए, जीतने का संकल्प होना चाहिए, असफलता मिल भी गयी तो हताश होने के स्थान पर पुनः प्रयत्न करना है और जीत के प्रति दृढनिश्चय करके काम करना है l”
“नहीं, मैं बताता हूँ, खेल-भावना क्या होती है... कौनसे खेल में रुचि है आपकी ?”
“टेबल-टेनिस।”
“सामने से सर्विस आती है तो क्या करते हैं ?”
“कुशलता से लौटा देता हूँ।”
“फिर बॉल पलट कर आए तो ?”
“फिर लौटा देता हूँ।”
“और जितनी बार आती है बॉल, उतनी बार बिना उसे गिरने देते हुए लौटा देते हैं।”
“जी।”
“बस, यही खेल-भावना है और यही आपको करना है, फिर वह बॉल हो चाहे फाइल...”
मोबाइल-98104 20825
बुलावा / अंजू खरबंदा
ठक-ठक....!"कौन ? दरवाजा खुला है आ जाओ ।"
"राम राम चन्दा!"
"राम राम बाबूजी! आप यहाँ!"
"क्यों मैं यहाँ नहीं आ सकता?"
"आ क्यों नही सकते! पर यहाँ आता ही कौन है!"
"आया न आज ! ये कार्ड देने मेरे बेटे की शादी का!"
"कार्ड ! बेटे की शादी का !"
"हाँ अगले महीने मेरे बेटे की शादी है तुम सब आना।"
"......!"
"...और ये मिठाई सबका मुँह मीठा करने के लिये!"
काँपते हाथों से मिठाई का डिब्बा पकड़ते हुए चंदा बोली, "हम तो जबरदस्ती पहुँच जाते है शादी ब्याह या बच्चा पैदा होने पर तो लोग मुँह बना लेते हैं और आप हमें बुलावा देकर...!"
आगे के शब्द चंदा के गले में ही अटक कर रह गए।
"चन्दा, बरसों से तुम्हें देख रहा हूँ सबको दुआएं बाँटते !"
".....!"
"याद है जब मेरा बेटा हुआ था तो पूरा मोहल्ला सिर पर उठा लिया था तुमने खुशी के मारे ।"
"हाँ! और आपने खुशी खुशी हमारा मनपसंद नेग भी दिया था !"
"तुम लोगों की नेक दुआओं से मेरा बेटा पढ़ लिख कर डॉक्टर बन गया है... और तुम सबको उसकी शादी में जरुर आना है !"
"क्यों नही आएँगें बाबूजी! जरुर आएँगें ! आपने इतनी इज्ज़त मान से बुलाया है तो क्यों न आएँगें!"
कहते हुए चंदा की आँखे गंगा जमुना सी बह उठी और उसका सिर बाबूजी के आगे सजदे में झुक गया ।
मोबाइल : 9582404164
मुस्कुराहट वाली चादर / नीता सैनी
तू खुश तो है रानो ?" रानो से उसकी सहेली ने पूछा ।"हु उँ ... " इतना ही बोल पायी रानो और उसने बिस्कुट की प्लेट सुरेखा की तरफ बढ़ा दी । "ले ना, तूने तो चाय के साथ कुछ लिया ही नहीं।"
रानो, मैंने जो पूछा तूने उसका सही से जबाब नहीं दिया । बता ना ठीक से , रमेश जी तुझे प्यार तो करते हैं ना?"
"हाँ , बहुत , बहुत ही ज्यादा ।" रानो ने कहीं खोई हुई सी आवाज में जबाब दिया ।
चल ठीक है जो हुआ सो हुआ अब तू सब कुछ भूलकर अपनी नई जिंदगी शुरू कर ।" सुरेखा ने रानो को समझाते हुए कहा ।
"किसी को भूलना इतना आसान होता है क्या सुरेखा?"
"आसान तो नहीं , लेकिन भूलने का भरम पालना पड़ता है बहन और इसी में सबकी भलाई है।"
हम्म.. एक लंबी साँस ली रानो ने । "इसीलिए तो हर वक़्त चेहरे पर मुस्कुराहट की झूठी चादर ओढ़कर रहती हूँ । वरना उन्हें लगता है कि मुझे पहले वाले कि याद आ रही है और वे उदास हो जाते हैं ।"
रानो के अंदर का दर्द आँसू बनकर गालों पर लुढ़कने लगा । सुरेखा ने अपने हाथों से उसके आँसूं पोंछें और दोनो सहेलियां गले लगकर फफक पड़ी ।
रोते रोते रानो बोली "वो तो एक ही बार मरा लेकिन मैं तो रोज ही मरती हूँ । तिसपर कुछ लोग पीठ पीछे खुसर-फुसर करते हैं कि इसका क्या गया इसको तो नया खसम मिल गया।"
मोबाइल : 85271 89289
विडम्बना / केदारनाथ 'शब्द मसीहा'
"अरे पापा! ये हिन्दी भी कैसी अजीब चीज है, जबर्दस्ती पढ़नी पड़ती है।" बेटा बोला।"क्या हो गया ? क्यों नीम चढ़ा करेला हो रहा है।" पिता ने हँसते हुए पूछा।
"ये विडम्बना का मतलब क्या होता है?" बेटे ने पूछा।
"अर्थ बताऊँ या समझाऊँ खोलकर?"
"अर्थ मैं समझ जाऊंगा, आप बताओ, मैं पागल थोड़े ही हूँ।" बेटा बोला।
"तो सुनो, हम लोग दूसरे ग्रहों पर जीवन खोज रहे हैं बिलियन्स ऑफ डॉलर खर्च करते हैं, ताकि आदमी वहाँ रह सकें।"
"हाँ, ये तो मुझे पता है।" बेटा झुँझलाकर बोला।
"और दुनिया को ख़त्म करने के लिए , आदमियों को मारने के लिए, ट्रिलियन्स ऑफ डॉलर हथियारों पर खर्च करते हैं .... इसे ही विडम्बना कहते हैं।"
Mob. 9810989904
चाँदनी / अंजू निगम
"माधव, मुझे यहाँ टाइम लग जायेगा। झांसी वाले फूफाजी की ट्रेन लेट हो गई है। टिप्पो को भी साथ ही लेता आँऊगा। आगे पीछे ही आयेगीं दोनों की ट्रेन।" नवीन ने कहा।"अरे भैया!!! मैंने कहा था ओलॉ कर लेगें दोनों। यहाँ अकेला मैं, क्या क्या देखूँ।" माधव परेशान सा बोला।
"झांसी वाले फुफाजी को तो जानते हो न!! अरे, फूफाजी से याद आया। अभी कैटरर वाला गद्दे पहुँचवा रहा है। चालीस बोले थे। गिनवा लेना और चाँदनी,गिलाफ देख लेना। साफ हो तभी रखवाना, नहीं वापस भेज दूसरे मँगवा लेना। झांसी वाले फूफाजी तो हाथ में सरसों नहीं उगने देते । तुम बस ये कर लेना, बाकी मैं आकर देख लूँगा।"
तभी गद्दे लिये मजदूर आ गये। गद्दे तो ठीक लगे पर चाँदनी एकदम उजाड़, भिजवा दी थी। काम ने वैसे ही माधव के दिमाग में गर्मी भर दी थी ,यह गर्मी उसने कैटरर को खरी खरी सुना कर उतारी।
सारी चाँदनी जस की तस वापस भेज दी गई , जो नयी आयी वे झक सफेद। चाँदनी के उजास से कमरा चमक सा गया।
फूफाजी आये तो खुश दिखे।
"भई, इंतजाम तो तगड़ा है। गंदगी मुझे जरा पंसद नहीं। इस बार तो सोच कर आया था, कुछ ऐसा-वैसा रहा तो होटल ले लूँगा।" फूफाजी एहसान से दबाये जा रहे थे।
घर के दामाद का रोल वे बखूबी निभा रहे थे। शाम को शगुन ले जाने की हड़बड़ी शुरु हुई। सब अपनी तैयारियों में लगे और फुफाजी की सेवा में कुछ नरमाई आ गई।
ऊपर से नीचे तक चमक रहे फुफाजी को जूतोंं की चमक कुछ फीकी लगी और सफाईपंसद फूफाजी ने वहीं बिछी लकदक चाँदनी का कोना खींच अपने जूते चमका लिये।
उजली चाँदनी में एक काला धब्बा चिपक गया।
मोबॉइल : 7999920636 / 9479377968
खूबसूरती / उपमा शर्मा
ऑपरेशन थियेटर में डॉक्टर की आवाज कानों में पड़ने पर काजल ने धीरे से आँखें खोलीं।डॉक्टर का हाथ उसके पेट पर था।वो स्टिच लगा रही थी।साथ ही नर्स को कुछ इंस्ट्रक्शन देती जा रही थी।दर्द की तीव्र लहर से काजल की आँखों में आँसू आ रहे थे।उसे समझ नहीं आ रहा था कौन सा दर्द ज़यादा है ?शरीर पर लगे कट का या अपनी खूबसूरती खत्म होने का।सहेलियों की बातें रह -रहकर याद आ रहीं थीं।
"अब तेरे पेट पर बर्थ मार्क बन जायेंगे।"
" तू अब सुंदर नहीं रही।"
देख तो मोटापे से सारी खूबसूरती का सत्यानाश कर लिया। "
"यामिनी तेरे सामने कहीं नहीं ठहरती थी।अब तेरे सारे प्रपोजल उसके पास हैं।तूने ख़ुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है।
"बैडोल शरीर ,बढ़े हुए पेट के साथ कौन तुझसे मॉडलिंग करायेगा।अरी मूर्ख बच्चा ही चाहिए था सरोगेसी से कर लेती। "
"शीर्ष पर आ सब कुछ छूटने का दर्द तुझे बाद में समझ आयेगा काजल।"
"देखना सुंदर मॉडल देखकर एक दिन राज भी तुझे भूल जायेगा।"
काजल की आँखों के आँसू कुछ दर्द की शिद्दत और कुछ सहेलियों के आने वाले दिनों के खाके से और तेज़ हो गये।बच्चा तेज़ आवाज में रो रहा था।
"क्या हुआ काजल?दर्द बहुत ज़्यादा हो रहा है? अभी तुझे पेन किलर के इंजेक्शन लगवाती हूँ।"
"डॉक्टर! क्या मैं अब सुंदर नहीं रही।"काजल के आँसू रूक ही नहीं रहे थे।
"किसने कहा? "
काजल के आँसुओं में और तेजी आ गई। डॉक्टर ने स्टिच लगाना छोड़ उस नर्स को इशारा किया जो बच्चे को चुप कराने की कोशिश में थी।नर्स ने मुस्कुरा कर बच्चे को काजल के सीने पर लिटा दिया।
बच्चा पहचानी हुई धड़कनों को सुन चुप हो गया।
अपने बच्चे को अपने सीने से लगाये वो ख़ुद को दुनिया की अब सबसे खूबसूरत औरत लगी।
मोबाइल : 8826270597
चौपाल / मन मोहन भाटिया
नगर से चार किलोमीटर दूर हाइवे पर एक कॉलोनी बसी हुई है। लगभग चार हजार की आबादी वाली कॉलोनी के निवासी नगर में व्यापार करते हैं। बच्चे नगर के स्कूल में पढ़ते हैं। कॉलोनी के बीच चौराहे पर एक मंदिर है जिस के आगे हर सुबह सब्जी मार्किट लगती है। चौराहे पर हर सुबह पीपल के पेड़ के इर्दगिर्द चौपाल जमा कर कॉलिनी के लोग गपशप में समय व्यतीत करते हैं।"और सुना मंटू आजकल बड़े नोट छाप रहा है?" चिंटू ने दातुन मुँह में चबाते हुए पूछा।
"तेरे को क्या? मेरी दुकान पर नजर क्यों गड़ाए बैठा है?" मंटू बिगड़ गया।
"नाराज क्यों हो रहा है? एक बात बता दूँ, बिल्लू से बच कर रहियो। पेमेंट देर से देता है। मेरी मोटी रकम उसके पास फंसी हुई है। मुझे रकम नहीं दे रहा है। मैंने तो उसको माल देना बंद कर दिया है तभी तेरी दुकान पर डेरा जमाए बैठा है।" चिंटू की मुस्कान कुटिल थी।
मन में बड़बड़ाता मंटू चला गया। "पट्ठे का सबसे बड़ा खरीददार हड़प लिया तभी तिलमिला रहा है।"
मंदिर दर्शन के बाद घर वापिस लौटते समय सब्जी खरीदते हुए बीना ने रीना को कहा। "तुझे मंटू की लड़की का चक्कर पता है?"
"किसको नहीं पता। मंटू की लड़की का चिंटू के लड़के के साथ जबरदस्त चक्कर चल रहा है। सबको मालूम है।"
"नहीं मालूम तो उन दोनों को ही नहीं पता। एक दूसरे से व्यापार में लड़ते हैं। जब बच्चों की करतूत पता चलेगी तब उनके चेहरे का रंग देखेंगे।"
दोनों खिलखिला कर हँस दी। तोलमोल कर सब्जी खरीद घर की ओर रवानगी की।
नौ बजे तक सब्जी मंडी सिमट गई और चौपाल खाली हो गई।
अब चौपाल कल लगेगी।
मोबाइल - 9810972975
सबसे खूबसूरत औरत /चंद्रभान आर्य
आज जब सवेरे मेरे जीवन के सौ साल पूरे होने पर परिवार में यज्ञ किया गया, बाद में जब मेरी छठी पीढ़ी तक के वृद्धों-प्रौढ़ों, युवक-युवतियों, किशोर-किशोरियों ने मेरे चरण स्पर्श करते, मुझे फूल-मालाओं से लादते समय मुझसे एक प्यारा-सा प्रश्न पूछ लिया तो मैं एकबारगी अचकचाकर रह गया।प्रश्न किया था मेरे पोते की पोती सुनयना ने--"बड़े दादू, एक बात पूछूं?"
“पूछो बिटिया रानी।"
"आपकी जिंदगी में सबसे खूबसूरत औरत कौन-सी थी?"
ऐसा बेहूदा (!) सा प्रश्न सुनकर सभी ठठाकर हँस ही पड़े। एक-दो बड़ी उम्र की महिलाएँ शर्मा भी गयी थी॔ और मुस्कराती कनखियों से मेरी ओर निहार भी रही थीं। लेकिन सबके चेहरों पर ध्यान-मुद्रा अंकित हो गई थी। सबकी मुस्कराती, प्रश्नाती आँखें मेरे चेहरे पर घंटे वाली सुई की तरह टिक गई थीं।
“जब से मुझे होश है, तब से सात-आठ साल की उम्र तक मेरी माँ सबसे खूबसूरत औरत थी।
"जब मैं दस-ग्यारह का हुआ, तो मुझसे दो साल कम उम्र की मेरी बहिन सुभद्रा भी मुझे बहुत-बहुत प्यारी लगने लगी।
"मेरे मन में रह-रहकर एक सवाल कौंधता रहता--मुझे कौन ज्यादा प्यार करती है--माँ या सुभद्रा ?
"इधर मैं बीस-इक्कीस का हुआ, उधर सुलोचना की मदमाती खिलखिलाहट मेरे मन-मंदिर में गूँजने लगी। वह मेरी पहली प्रेयसी थी, आखिरी भी।
"लेकिन हमारा यह पागल प्यार बहुत दूर तक हमारे संग-संग नहीं चला। वह अपने इंजीनियर पति के साथ सात फेरे लेकर ऑस्ट्रेलिया जा बसी। मुझे समाज ने उर्वशी के हाथों में सौंप दिया। तब मैं सत्ताइस का था। अभी तीन साल पहले तक उर्वशी ही मेरी जिंदगी की सबसे खूबसूरत औरत थी।"
उर्वशी के वियोग की तड़प मेरे चेहरे पर साक्षात् प्रकट हो गई। मेरी वाणी शिथिल हो गई। मैं कह रहा था, “अभी सेवा की मूर्तिमयी मेरी बहूरानी मेरी बुढ़ाती दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत है। "...
मैंने महसूस किया कि सबकी आँखें भीगी-भीगी सी लग रही थीं।
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